tag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post1056361311672814659..comments2023-10-26T15:24:46.256+05:30Comments on जनपक्ष: धन्नासेठ प्रकाशक और हिन्दी कवि की विपन्नता का आख्यान: सौदाAshok Kumar pandeyhttp://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-42421613097153766032012-05-18T21:56:30.412+05:302012-05-18T21:56:30.412+05:30बाबा पर लिखा यह आलेख बहुत प्रासंगिक है ...अनवर जी ...बाबा पर लिखा यह आलेख बहुत प्रासंगिक है ...अनवर जी की पारखी नज़र ने बहुत सही परखा है "यात्री" कोNityanand Gayenhttps://www.blogger.com/profile/14656349243336915008noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-11047975876001367412012-05-17T07:51:51.539+05:302012-05-17T07:51:51.539+05:30अद्भुत कविता बाबा नागार्जुन की। धन्यवाद इसे यहां ...अद्भुत कविता बाबा नागार्जुन की। धन्यवाद इसे यहां पढ़वाने के लिये।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-59417770257600075582012-05-16T23:15:39.867+05:302012-05-16T23:15:39.867+05:30यही तो नागार्जुन की खूबी है , कि वे बिलकुल जमीन से...यही तो नागार्जुन की खूबी है , कि वे बिलकुल जमीन से जुडकर बात करते है ..|....और दुखद यह है , कि तब से लेकर अब तक इस समस्या में सुधार होने के बजाय और बिगाड़ ही आया है ...| इस समस्या को संबोधित करता हुआ महत्वपूर्ण लेख ...रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-35611934026711828072012-05-16T22:21:32.624+05:302012-05-16T22:21:32.624+05:30एक सर्वकालिक और कटु यथार्थ का ज़िंदा दस्तावेज़...ब...एक सर्वकालिक और कटु यथार्थ का ज़िंदा दस्तावेज़...बाबा ने एक लेखक की सच्ची पीड़ा व्यक्त की है अपनी कविता में.. पठनीय प्रस्तुति को साझा करने के लिए आभार!नवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-63493104568263013722012-05-16T22:18:27.684+05:302012-05-16T22:18:27.684+05:30एक सर्वकालिक और कटु यथार्थ का ज़िंदा दस्तावेज़...ब...एक सर्वकालिक और कटु यथार्थ का ज़िंदा दस्तावेज़...बाबा ने एक लेखक की सच्ची पीड़ा व्यक्त की है अपनी कविता में.. पठनीय प्रस्तुति को साझा करने के लिए आभार!नवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-4060492753561857742012-05-16T21:32:41.533+05:302012-05-16T21:32:41.533+05:30bahut sahee chitran kia anwar ne
badhaibahut sahee chitran kia anwar ne <br />badhaiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04125579342554874427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-40550842277415905682012-05-16T21:13:23.703+05:302012-05-16T21:13:23.703+05:30अभी बेहद प्रासंगिक लगा यह। बाबा की आँखों से बचना आ...अभी बेहद प्रासंगिक लगा यह। बाबा की आँखों से बचना आसान नहीं। भीतर तक थाह लेती हैं। लेखक-पाठक और प्रकाशक के संबंध की पड़ताल हिन्दी में नहीं ही होती है, या कम ही होती है। कई चीजें एक साथ जुड़ी हुई हैं। प्रकाशकों के सामने लेखकों का कद छोटा हुआ है, वह याचक की मुद्रा में है।(अनिवार्यतः नहीं).... अगर मैं लाख रुपए की खरीद करा दूँ तो मेरी भी किताब किसी भी बड़े प्रकाशक के यहाँ से आ जाएगी, भले ही उसमें कूड़ा हो। तो, इस तरह पूंजी का एक बड़ा खेल है इस सब के पीछे। यकीनन यह सम्मान का मामला भी है। पर मैं उसे अलग करके नहीं देखता। इस समूची व्यवस्था में लेखक बेचारा बना दिया गया है।आशुतोष पार्थेश्वरhttps://www.blogger.com/profile/08831231551236237964noreply@blogger.com