tag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post3292361174368760079..comments2023-10-26T15:24:46.256+05:30Comments on जनपक्ष: यह संकट कोई दो-चार दिनों, महीनों या वर्षों का नहीं है.Ashok Kumar pandeyhttp://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-90753900308085743402012-05-31T15:36:05.391+05:302012-05-31T15:36:05.391+05:30भैया आँखे खोलने वाला लेख है.
तस्वीर बहुत विचलित कर...भैया आँखे खोलने वाला लेख है.<br />तस्वीर बहुत विचलित करने वाली है !आनंदhttps://www.blogger.com/profile/06563691497895539693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-40972377696844050102012-05-28T07:43:48.251+05:302012-05-28T07:43:48.251+05:30101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम प...<a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/05/101_27.html" rel="nofollow">101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है<br />एक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें</a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-12959424612797717232012-05-27T13:45:19.258+05:302012-05-27T13:45:19.258+05:30अर्थव्यवस्था के चकाचौंध को परत दर परत उधेड़ कर रख ...अर्थव्यवस्था के चकाचौंध को परत दर परत उधेड़ कर रख दिया आपने.. बढ़िया आलेख।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-54322622084770059452012-05-27T10:06:05.291+05:302012-05-27T10:06:05.291+05:30वैभव सिंह - जब देश की आर्थिक गतिविधियों के संचालन ...वैभव सिंह - जब देश की आर्थिक गतिविधियों के संचालन में पूंजीपतियों का ही दबदबा हो जाता है तब पूंजीपतियों का नुकसान देश का नुकसान और उनका लाभ देश का लाभ बन जाता है। देखने में यह भी आया है कि अत्यधिक होड़ के दर्शन ने भी अर्थव्यवस्थाओं को हानि पहुंचाई है। अर्थव्यवस्था की विभिन्न इकाइयां होड़ के कारण श्रम, उत्पादन तथा उपभोग को विकृत कर रही हैं और वही वित्तीय घाटे, करेंसी संकट और लोन डिफाल्टिंग के रूप में सामने आ रहा है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-85467246870843067222012-05-27T09:09:34.895+05:302012-05-27T09:09:34.895+05:30नव-उदारवादी नीतियों से संचालित यह वैश्विक अर्थव्यव...नव-उदारवादी नीतियों से संचालित यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों से जिस तरह से अपने घुटनों पर घिसट रही है , वह अपने आप में इसके खोखलेपन की कहानी बयान करता है | पुरी दुनिया में अजीब किस्म की मुर्दानगी छाई हुई है , जिसे आजकल मंदी करार दिया जा रहा है | आज से बीस वर्ष पूर्व तो इस बात की धूम मची थी कि जब तक पुरी दुनिया एक साथ व्यापार में जुड नहीं जाएगी , तब तक उसका भला नहीं हो सकता | हर देशों में इसके प्रवक्ता भी खड़े हो गए थे , जिन्हें बड़े और नामी अर्थशास्त्री के रूप में प्रचारित किया गया था | फिर ऐसा समय भी आया कि इन्ही कथित नामी अर्थशास्त्रियों के हाथों में दुनिया भर के देशों की सत्ताए भी सौंप दी गयी | और इसके शीर्ष पर बैठे लोगों ने लोभ, छल , कपट और लूट का खुला खेल खेलना आरम्भ कर दिया | लेकिन इस तरह का खेल , इतिहास गवाह है , कि कभी भी लंबे समय तक नहीं खेला जा सकता | और वही हुआ भी | विकास और प्रगति का गुब्बारा उनके लोभ और लालच के दबाव में आकर अंततः फूट ही गया | पुरी दुनिया जो एक साथ जुडकर प्रगति और विकास के सपने देख रही थी , एक साथ ही मंदी की चपेट में आ गयी |<br /> <br />तो ऐसा कैसे हो गया कि अमेरिका या यूरोप के बाजारों के ढहने से पुरी दुनिया ही ढह जाए ..? हमें तो यह बताया गया था कि इससे सबको लाभ होगा और जो इस वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बनेगा वह दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा , लेकिन यहाँ तो सारे के सारे लोग ही घाटे में हैं | सबके होठों पर फेफरी पड़ी हुई है कि अब क्या किया जाए | दरअसल यह पूरा खेल उस पूंजी के महाजाल से शुरू हुआ था , जिसमे बड़े और विकसित देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में पैदा हुए अवरोध को दूर करने के लिए दुनिया को जोड़ने का फलसफा रचा था | आज जब भौतिक रूप से एक देश को गुलाम बनाना असंभव और अव्यावहारिक है , यह नुस्खा तात्कालिक रूप से बड़े काम का साबित हुआ | लेकिन जहा सम्पूर्ण नीतिया लूट और धोखे की बुनियाद पर टिकी हो ,वहा ऐसे कोई भी नुस्खे कितने समय तक कारगर साबित हो सकते है | पुरी दुनिया तो जुड गयी लेकिन खेल कुछ बड़े और ताकतवर लोग ही खेलते रहे | सट्टेबाजी और जुएबाजी के इस खेल का भांडा आज से पांच साल पहले जब फूटा , तो इन बड़े और ताकतवर लोगों के साथ पुरी दुनिया ही घुटनों पर आ गयी | चुकि ये लोग पुरी दुनिया को जोड़ चुके थे , इसलिए जिसने यह पाप किया , के साथ, जिसने इसमें कोई भूमिका नहीं निभायी , वे सभी लोग भी इसके शिकार हो गए | <br /> <br />एक आम आदमी भारत जैसे देश में जब यह सवाल करता है ,कि अमेरिका में आई इस मंदी को हम क्यों झेलें , या उसका हमारे ऊपर ऐसा क्यों असर पड़ रहा है , तो इन बातो को समझे बिना आप कोई भी माकूल उत्तर कैसे दे पायेंगे | आप यही कहेंगे कि पुरी दुनिया आजकल जुडी हुयी है , इसलिए ऐसा हो रहा है | तो यह सवाल खड़ा हो जाएगा , कि पुरी दुनिया को इस तरह से जोड़ा ही क्यों गया | अब ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारे गांव के ऐय्याश और जुआरी अपने लोभ और लालच में सारा कुछ हार जाए , और पूरा गांव उसकी सजा भुगते ..? यदि हमने गलती की है , तो हमें यह सजा भी मिले , लेकिन उनके ऐय्याशियों की सजा हम क्यों भुगते ..? और ये सवाल किसी के भी मन में उठ सकते है , वरन यह कहना उचित होगा कि उठ रहे हैं | हम तो उस समय भी यही मानते थे कि ऐसी नीतियों का अनुसरण करके हम अपनी संप्रभुता को एक तरह से गिरवी रख रहे हैं | लेकिन दुर्भाग्यवश उस आंधी में हमारी यह महत्वपूर्ण बात उड़ गयी | आज जब यह मंदी पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले चुकी है और सब लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं तथा किसी को भी इससे निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा है , तब शायद हमारी बाते अब दुनिया के लोगो को याद आ रही हैं | <br /><br />लेकिन यह समझना गलत होगा कि इन नीतियों से उपजी इस मंदी से इस दुनिया के संचालकों ने कुछ सबक भी लिया है , वरन इसके उलट उन्होंने इसके परिणामों को आम सामान्य जनता के सर मढ़ने का ही काम किया है | अमेरिका का उदाहरण हमारे सामने है | बेल आउट और सहयोग के द्वारा अरबो और खरबों डालर की सहायता उन संस्थाओ ,व्यक्तियों और बैंको को प्रदान की गयी है , जो इस मंदी के लिए जिम्मेदार हैं | और ऐसा आम सामान्य जनता के लिए आवंटित किये जाने वाले बजट में कटौती करके किया गया है | सामाजिक सुरक्षा के निमित्त रखे गए इस पैसे के इस दुरुपयोग और चंद लोगों की गलतियों की सजा को पूरे समाज पर थोपने की यह कार्यवायी सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है , वरन उसका विस्तार भारत सहित दुनिया के हर देश तक हुआ है | निश्चित तौर पर इसका समाधान इन विनाशकारी नीतियों को सम्पूर्णता में बदलकर ही खोजा जा सकता है , एक मरी हुई व्यवस्था में स्टेयोराईड डालकर नहीं ...|रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-78971401057300928932012-05-27T08:29:35.753+05:302012-05-27T08:29:35.753+05:30अर्थव्यवस्था का संकट हो या कोई और संकट झेलना आम जन...अर्थव्यवस्था का संकट हो या कोई और संकट झेलना आम जनता को ही है ! खास लोगों ने अपने खास इंतज़ाम कर लिए हैं ! इतना धन बटोर लिया है कि अगर देश छोड़ना भी पड़े तो कोई फर्क नही पड़ेगा ! आगामी वर्षों में आने वाली तबाही के लिए हम आमजन को सोंचना होगा ! एक भयानक खबर देता और खबरदार करता लेख !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-36958850378996555712012-05-27T07:11:57.112+05:302012-05-27T07:11:57.112+05:30अशोक भाई, कभी इंदिरागांधी ने संविधान के आमुख में स...अशोक भाई, कभी इंदिरागांधी ने संविधान के आमुख में समाजवाद शब्द जुड़वाया था तो इस का मतलब ये तो नहीं था कि भारत समाजवादी हो गया। भाई! जिन का राज है उन्हीं को सबसिडी नहीं मिले तो फिर राज होने का मतलब ही क्या हुआ?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-59148344967685186112012-05-27T06:44:48.122+05:302012-05-27T06:44:48.122+05:30चार लाख अठारह हजार करोड़ रुपये..सुधार दिया आशुतोष ...चार लाख अठारह हजार करोड़ रुपये..सुधार दिया आशुतोष भाई...गलती के लिए क्षमा...Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5809823261305391825.post-39950695374497571942012-05-27T06:35:50.102+05:302012-05-27T06:35:50.102+05:30कारपो को दी गयी 'सब्सीडी' मात्र चार लाख अठ...कारपो को दी गयी 'सब्सीडी' मात्र चार लाख अठारह हज़ार रुपये ? कृपया इस आंकड़े को जांच लीजिए .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.com