शुक्रवार, 18 जून 2010

हर घर में है एक खाप पंचायत

हर घर में एक खाप पंचायत है


खाप पंचायतें इन दिनों हर जगह चर्चा का विषय हैं। इनके द्वारा निर्णय और उन निर्णयों पर क्रूरतापूर्ण अमल न्यायपालिका से कहीं अधिक तेज़ गति से होता है। वैसे तो ये पंचायतें वर्षों पुरानी है और इस तरह के दिल दहलाने वाले निर्णय पहले भी हुआ करते है लेकिन मीडिया की सक्रियता के कारण अब ये ख़बरें आम लोगों तक भी पहुंचने लगी हैं। ये ख़बरें यह सोचने पर मज़बूर करती हैं कि आख़िर ये खाप पंचायतें हैं क्या और अवैधानिक होते हुए भी जनसमर्थन के साथ इस तरह के निर्णय लेने और उसे अमली जामा पहनाने में कैसे सफल हो जाती हैं?

मुख्यतः हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के बड़े हिस्से में खापें किसी जाति के अलग-अलग गोत्रों की पंचायतें होती हैं। ये एक ही गोत्र के भीतर होने वाले विवादों का निपटारा करती हैं। इस समय देश में कुल 465 खापें हैं जिसमें सर्वाधिक 69 हरियाणा में और तीस उत्तर प्रदेश में हैं। आरंभिक दौर में खाप पंचायतों का स्वरूप आज की खाप पंचायतों जैसा नहीं था। इनके बहुत सारे फैसले देश और समाज के हित में हुआ करते थे। परंतु समय के साथ-साथ इनके स्वरूप और भूमिका में भी बदलाव आया। जहां समाज तथा राजनीति में तमाम बदलाव आये तथा पुरानी सामंती जकड़ने टूटीं वहीं ये पंचायते अपने स्वरूप को समय के अनुसार बदलने तथा उन्हें प्रगतिशील बनाने की जगह अपने पुराने ढांचे को बनाये रखने तथा उन्हीं मूल्य-मान्यताओं को लागू कराने का साधन बन गयीं। हरित क्रांति के लागू होने के बाद जिन इलाक़ों को इनका सबसे अधिक लाभ पहुंचा वे ये ही थे। इससे यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन आया। दिल्ली के पास होने के कारण यहां ज़मीनों की क़ीमतों में तेज़ी आई और साथ ही देश में जातिवादी राजनीति के विस्तार के साथ इन खापों का महत्व वोटबैंक के रूप में भी बढ़ा। ये न केवल शक्तिशाली हुईं अपितु इनका राजनीति के क्षेत्र में भी हस्तक्षेप बढ़ा। इनकी ताक़त का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों जब मनोज-बबली प्रकरण में अपराधियों को सज़ा होने के बाद पंचायतों के संयुक्त सम्मेलन में सगोत्रीय विवाहों पर रोक लगाने के लिये हिन्दू मैरेज़ एक्ट में बदलाव की गयी तो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से जुड़े तमाम राजनैतिक नेताओं ने इसका समर्थन किया।

समृद्धि के साथ शहरों से लगातार संपर्क के साथ विकसित इस नये परिवेश में नई पीढ़ी की सोच भी बदलने लगी और उन्हें पंचायतों के ये फैसले जो घिसी-पिटी मान्यताओं पर आधारित थे, बेमानी लगने लगे। शिक्षा और तर्क के आधार पर आये इस बदलाव के कारण युवाओं ने पंचायतों के फैसलों के ख़िलाफ़ जाना शुरु कर दिया। ऐसे में खापों के मुखियाओं ने अपनी साख बचाने के लिये और हिंसक निर्णय सुनाने शुरु कर दिया और इसके पीछे अपनी वही पुरानी सभ्यता और संस्कृति को संभालने का राग अलापने लगे। नतीज़ा मनोज-बबली जैसे तमाम मामलों में पंचायत के ख़िलाफ़ जाने वालों की नृशंष हत्या।


यदि देखा जाये तो हर घर मे एक खाप पंचायत है। वहां भी नियम कायदे घर के मुखिया द्वारा तय किया जाता है जिसे घर के हर सदस्य को मानना होता है।जो कि तथाकथित सभ्यता और संस्कृति को बचाने की बात करते हैं।यदि आप इन नियमों को नहीं मानते तो आप भी दंड के अधिकारी होते हैं जैसे कि कश्मीर में अपनी शिक्षक बेटी को मार देना या बिहार में बिजनेस स्टैण्डर्ड की पत्रकार निरुपमा की अपने परिजनों द्वारा हत्या या उत्तर प्रदेश में एक भाई द्वारा इस तथाकथित इज्जत के लिये अपनी ही बहन को मारकर आंगन में गाड़ दिया जाना। ये खाप पंचायतें चाहे जाति की हों या घर की स्त्री की स्वतंत्रता की हमेशा से विरोधी रही हैं, जिसे वे कभी इज्जत तो कभी धर्म और बदले के नाम पर आये दिन लहूलुहान करती रहती हैं। दरअसल इनकी जड़ समाज में व्याप्त स्त्री विरोधी रवैये और मनु स्मृति के उन सूत्रों में है जहां औरत को दोयम दर्जे का नागरिक माना गया है। सच्चाई तो यह है कि आज भी हमारा समाज पितृसत्तात्मक मूल्यों पर टिका हुआ है जबकि आधुनिक समाज की कल्पना तभी सार्थक होगी जब हम इस पितृसत्तात्मक और जाति आधारित ढांचे से बाहर निकलेंगे। खाप पंचायतें इन दोनों मूल्यों की पोषक हैं और इनकी पूरी संरचना ही संविधान की मूल भावना के ही ख़िलाफ़ है। अभी हाल में ही अपने एक निर्णय में पंजाब एण्ड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस मुकुल मुद्गल और जस्टिस जसबीर सिंह की खण्डपीठ ने खेड़ी महम में खाप पंचायत द्वारा दंपत्ति को भाई-बहन घोषित करने के ख़िलाफ़ दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि, खाप पंचायतों को इस तरह का कोई अधिकार नहीं है कि वे किसी दंपत्ति को भाई-बहन बना दें और जो उसके आदेश का पालन न करे उसे मौत के घाट उतार दें। यह एक सामाजिक बुराई है। इन खाप पंचायतों को समानान्तर न्यायपालिका चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।


स्पष्ट है कि ये पंचायतें स्त्री विरोधी होने के साथ-साथ संविधान का भी खुलेआम मजाक बना रही हैं। संविधान के अनुसार बालिग हो जाने पर लड़का या लड़की अपनी मर्जी से विवाह कर सकते हैं। संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र पहचान देता है तो उसे ऐसे बंधनों में बांधने का अधिकार किसी को नहीं है। पर सबसे उपर संविधान ने तो हमें बहुत सारे अधिकार दिये हैं लेकिन समाज में शायद बहुत कम ही लागू होते हैं। संविधान पर आधारित शासन व्यवस्था को संभालने वाले भी निजी जीवन में इन्हीं मूल्य-मान्यताओं से संचालित होते हैं। इसलिये ऐसी खाप पंचायतें आज भी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

हमें इनका पुरज़ोर विरोध करना चाहिये क्योंकि ये व्यक्ति, समाज और देश के विकास में बाधक हैं। यह विरोध किसी एक व्यक्ति या केवल प्रशासन द्वारा संभव नहीं है। ज़रूरत है इनके ख़िलाफ़ एक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन द्वारा लोगों की मानसिकताओं में आमूलचूल बदलाव की जिससे समाज में लोकतांत्रिक व आधुनिक जीवन मूल्यों की स्थापना हो सके।  




किरन स्त्री अधिकार संगठन, ग्वालियर से जुड़ी हैं। यह लेख कल के पीपुल्स समाचार में प्रकाशित हुआ है। आप उनका एक और आलेख यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं

12 टिप्‍पणियां:

  1. एक सीमा तक यह बात सही है।

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  2. यह हमारी सरकारों की कमजोरी है कि वह इन खापों की परवाह करती है। वरना इन खापों को सिर्फ एक आदेश से समाप्त किया जा सकता है। खाँपों के विरुद्ध कोई जनान्दोलन भी नहीं विकसित हो सका है। असल में देश पूंजीवाद कमजोर रह गया है और उस ने सामंतवाद से समझौता कर लिया है और उसे जीवित रखने को तैयार है। पूंजीवाद की प्रगतिशीलता पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। जब कि हमारा कानूनी ढांचा उस की इजाजत नहीं देता। इसी कारण हमारी सरकारें सामंती तत्वों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करतीं।
    सामंतवाद को समाप्त करने की जिम्मेदारी भी अकेले श्रमजीवी जनता पर आ पड़ी है।

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  3. "यह हमारी सरकारों की कमजोरी है कि वह इन खापों की परवाह करती है। वरना इन खापों को सिर्फ एक आदेश से समाप्त किया जा सकता है।"
    दिनेश जी का यह कथन ,कई सच उजागर कर गया...सरकार को बस अपनी कुर्सी बचानी है...अगले चुनाव के लिए वोट लेने हैं...इसलिए वह इन सामंतवादियों के विरुद्ध नहीं जाना चाहतीं...बेहद शर्मनाक स्थिति.
    किरण जी ने खाप पंचायतों की विस्तृत जानकारी दी है...इन्हें जड़ से समाप्त करने में सचमुच बहुत वक़्त लगेगा...और उनका यह कहना भी अक्षरशः सत्य है कि 'हर घर में एक खाप पंचायत है.' सचमुच एक व्यापक,सामजिक और सांस्कृतिक आन्दोलन ही लोगों की ये मानसिकता बदल सकता है.
    ज़रूरत है इनके ख़िलाफ़ एक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन द्वारा लोगों की मानसिकताओं में आमूलचूल बदलाव की जिससे समाज में लोकतांत्रिक व आधुनिक जीवन मूल्यों की स्थापना हो सके।

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  4. एक आदेश से इन खापों को खत्म किया जा सकता है. लेकिन हर घर में जो खाप मठाधीश बैठे हैं उन्हें कितने आदेश, कितने कानूनों की जरूरत पड़ेगी कोई नहीं जानता. सचमुच हर घर में खाप है. कहीं तो इतने सॉफेस्टिकेटेड हैं कि महिलाओं को पता भी नहीं चलता कि कैसे वो इन खापों का शिकार हो रही हैं और उनके आदेशों को शिरोधार्य कर रही हैं.

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  5. aadaraniy kiran ji - hardik namskar apki bichar dhara , ap ki shikayt jayaj hai ham jis lokatantr me hai usase aap kuchh ummid karati hai achchhi bat hai lekin jara sochiye pahale ko jo kanun the we bhi to samaj ne hi banaye hoge usame bhi sabaka ya samaj ka yogadan raha hoga aaj wah galat kaise ho gayi ?aur kyo ho gayi ? aakhir un logo ne bhi to kuchh soch bichar kar to hi kanun banaya hoga .aaj ham jo bichar kar rahe hai aane wala kal ka samaj unhe bhi galat karar de sakata hai . jara sochiye ham hindustan me rahkar amerikan to ho nahi sakate aur amerika wale hindustani nahi ho sakate agar honge to nakli ya bnawati ya dogala honge is tarh duniya me kisi bhi samaj ka kuchh to niyam kanun hoga aakhir samaj ko jinda rakhane ke liye ya ek kampni ko jinda rakhne ke liye kuchh niyam kanun to hga hi jaise hamare lokatantr bhi ek kampni ya samaj hai isake bhi kuchh kanun hai , manushy ek samajik prani hai samay aur paristhiti ke anusar us samaj me koi byawastha ya kanun banaya jata hai jo sabko many hota hai aur uske khilaf koi jata hai to samaj ya sarakar usake khilaf kuchh kanuni karyawahi karati hai yah duniya ke har samaj me yah byawastha hai koi bhi duniya ka samaj har bykti ki dimand pura nahi kart sakata hai aur n har bykti ko kanun todane ka ijajat de sakata hai . arthat samaj ,aadami aur pashu me bhi kya antar hai pashu samaj ke bhi kuchh niyam hote hai jo unke dwara palan kiya jata hai jo agali pirhi ko unke prwajo dwara sikhaya jata hai .agr samaj ke niyam nahi honge to bhaai - bahan , mna - bap , bap - beti,chacha - chachi ,dada - dadi mama - mami , mausa - mausi aadi aadi kya yah rista bach payega ye sach hai ki sex mnushy ki jarurat hai aaj bhi chori - chhupe kuchh - kuchh nagany sa bap - beti ,bhaai - bahan aadi me riste sexuwal hai samajik kanun byawastha ke dar se we khul kar samne nahi aate hai , agar koi byawastha nahi hogi to janwar aur manushy me fark kya rh gaya yah mai nahi kah raha ki ya yah smajhiye khap panchayate thik kar rahi hai lekin koi n koi bywastha to honi chahiye jisase samaj ek jut rahe logo me samaj aur desh ke prati prem bhawana bani rahe .

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  6. परिवार का मुखिया घर को सुचारू रूप से चलाने के लिये करता हे परन्तु खाप पंचायते वो केवल अपनी पगडी को उपर रखना चाहती हे..परिवार के मुखिया की खाप पंचायतो से तुलना करना उचित नही..

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  7. किरण जी ने बहुत जरूरी बात कही है. हमारे घरों और और हमारे निजी सम्बन्धों में जो अंतर्निहित हिंसा है उस पर लोगों का ध्यान कम जाता है. स्त्री-पुरूष और अभिवावक-बच्चों के बीच इसे हम रोज़ देखते हैं—खुद अपने घर में भी.

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  8. यह हमारी सरकारों की कमजोरी है कि वह इन खापों की परवाह करती है। वरना इन खापों को सिर्फ एक आदेश से समाप्त किया जा सकता है। यह ।बात सही है।

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  9. ये फैशन चल पड़ा है स्वघोषित "बुद्धिजीवी/विचारक" टाइप ब्लॉगर्स/राइटर्स हमेशा परम्पराओं पर चलने वालों, ठाकुरों, ब्राह्मणों और बनियों को गाली देंगे| शायद इससे इन्हें भाव मिलते हों|

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