बुधवार, 4 अगस्त 2010

वी एन राय की यह करतूत माफी के लायक नहीं है-अल्पना मिश्र

यह पुलिसिया रवैया बर्दाश्त नहीं है

संदर्भ - पुलिस अधिकारी एवं कुलपति वी एन राय के द्वारा नया ज्ञानोदय पत्रिका के साक्षात्कार में महिला लेखिकाओं पर की गयी अपमानजनक टिप्पणी

शर्मनाक और दुखद है कि हिंदी साहित्य में अपने को प्रचारित करने के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति सस्ता प्रचार पाने के लिए किसी भी प्रकार की अमर्यादित भाषा अर्थात गाली की भाषा का प्रयोग करता है और लेखिकाओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का दुस्साहस करता है।हिंदी में चली आयी इस प्रवृत्ति पर तुरंत लगाम कसने की जरूरत है, क्योंकि यह वही सामंती मानसिकता है जो हमेशा ही स्त्री को गुलाम के रूप में देखने की आदी रही है। ये सामंती मनोरोग के शिकार लोग अपनी सत्ता के मद में इतने चूर हैं कि देख ही नहीे सकते कि स्त्रियों ने साहित्य स ेले कर सभी क्षेत्रों में अपनी जगह बनाने के लिए लम्बा संघर्ष और कड़ी मेहनत की है और यह भी कि उन्हें इस तरह सार्वजनिक मंच से गाली दे कर आसानी से अब नहीं निकला जा सकता है।
हैरत होती है कि यह हमारे पढ़े लिखे समाज से आए लोग हैं जो पत्रिका की बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसे चटपटे साक्षात्कार छापते हंै और लेखिकाओं को अपमानित करने वाली टिप्पणी को संपादित करना भूल जाते हंै और उनके साथ सामंतवाद के ये प्रतिनिधि हैं, शिक्षा और साहित्य से जिन्होंने कुछ भी नहीं सीखा। वी एन राय जैसे लोगों को यह नागवार गुजर रहा है कि महिलाएं साहित्यकार कहला रही हैं। उनकी अपनी पहचान है और हिंदी का बड़ा पाठक वर्ग उनके लिखे को पढ़ता है। राय जी की इस कुंठा ने उन्हें इस सार्वजनिक अभद्रता की स्थिति तक पॅहुचा दिया है और उनके व्यक्तित्व की कलई खोल दिया है।

यह और भी हास्यास्पद लगता है जब वी एन राय टी वी चैनलों पर अपने वक्तव्य के गाली वाले शब्दों की निर्लज्ज व्याख्या करते हुए अपने बचाव की कोशिश करते दिखते हैं। तिस पर उनका रूतबा इतना है िकवे टी वी के एक चैनल पर यह भी कह डालते हैं कि उनकी यह टिप्पणी विवाद नहीं बहस का विषय है। इसी समाज में बहुत संभव है कि कुछ महापुरूष उनका मनोबल बढ़ाएं और पीठ पीछे उन्हीं पर हॅसें।

यह घोर यशलिप्सा का वीभत्स उदाहरण है कि किसी भी हाल में निचले दर्जे की सस्ती लोकप्रियता हासिल की जाए, ऐसा ही कुछ वी एन राय की इस प्रायोजित कुचर्चा का भी लक्ष्य है और वह उन्हें मिल भी गयी है। कम से कम अब उनकी पहचान इस प्रसंग के बिना अधूरी होगी। उन्हें यह पता होना चाहिए कि न फिल्मों में गाॅसिप से कोई बड़ा कलाकार बनता है और न साहित्य में गाली बकने से कोई साहित्यकार बन सकता है।

उनके दुस्साहस का दूसरा अद्भुत नजारा स्टार न्यूज पर माफी मांगते हुए दिखता है, जब वे नाटकीय अंदाज के साथ यह कहते हैं कि ‘ वे महिला लेखिकाओं से माफी मांगते हैं, क्योंकि बहुत सी लेखिकाएं उनकी मित्र हैं।’ चोरी पर सीनाजोरी जैसी माफी है यह। जो लेखिकाएं उनकी मित्र होंगी, इस तमाशे और फिर इस माफीनामे से उन सबका सिर शर्म से जरूर झुक गया होगा।

मुझे उम्मीद है कि वी एन राय के इस कारनामे के बाद कोई भी महिला लेखिका उनके द्वारा आयोजित किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाएगी, जो उनकी मित्र हैं, यदि उनमें भी जरा आत्मसम्मान होगा तो वे भी नहीं जाएंगी। वी एन राय की यह करतूत माफी के लायक नहीं है। मुझे उम्मीद यह भी है कि पूरे देश के महिला संगठन इस पर चुप नहीं बैठेंगे और न लेखिकाएं ही इसे सहन करेंगी। यह लड़ाई केवल मैत्रेयी पुष्पा की लड़ाई नहीं, उनके साथ हम सब की लड़ाई है।

- अल्पना मिश्र
दिल्ली

इस मुद्दे को जानने के लिये यहां देखें
इस पर मैत्रेयी पुष्पा की प्रतिक्रिया यहां
और जसम का बयान यहां
इसके ख़िलाफ़ ज़ारी हस्ताक्षर अभियान में शामिल होने के लिये यहां

12 टिप्‍पणियां:

  1. अल्पनाजी ने बहुत बेबाकी से बात राखी है. मैं इसे फेस बुक पर कैसे शेयर करूं? लिंक नहीं समझ आ रहा है.

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  2. उनके इस कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए कम है...पहले अपमानजनक शब्द कहने हैं फिर सफाई देनी है और फिर माफ़ी.
    अल्पना मिश्र से पुर्णतः सहमत....ऐसे कदम उठाने चाहिए कि भविष्य में हर व्यक्ति अपनी भाषा पर संयम रखें और ऐसे अपमानजनक शब्दों का कभी प्रयोग ना करें.

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  3. मुझे बस इतना जोड़ना है कि यह सिर्फ़ महिलाओं की नहीं बल्कि समानता पर विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति की लड़ाई है…

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  4. अब विभूति जी के खिलाफ किसी माँग और उसके समर्थन का कोई औचित्य नहीं है। जब विभूति जी ने अपने उक्त कथन के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली है तो उनके खिलाफ किसी कार्रवाई की मांग केवल एक हठ है। मैं इस हठ का समर्थन नहीं कर सकता। यह माफ न करने की एक अलग तरह की प्रवृत्ति है जो इन दिनों हिंदी में चल पड़ी है। बल्कि मैं आप सब से यह माँग करता हूँ कि अपनी यह मांग वापस लें।

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  5. jo log kabhi is prakaran men vibhooti ke virodh men nahi bole ab unke hridy parivartan ki bat kahkar kukrity ka virodh karne walon ko gariya rahe hain. jai he mahapurush

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  6. मैं पूरी तरह से इस विरोध व अल्पना जी का समर्थन करता हूँ तथा इसमें शामिल लोगों को धन्यवाद् भी.... एक बात और की इस तरह के गैर-साहित्यिक व सस्ती चीजों पे प्रकाशकों की भी खबर लेनी होगी... ऐसी हरकतों के लिए वे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं ..अतः राय के अलावा कालिया जैसों को भी लगे हाथ साफ़ करने की जरूरत है...

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  7. अल्पना जी की टिप्पणी अच्छी है लेकिन यह समय केवल शाब्दिक चर्चा का नहीं ठोस कार्यवाही का है.अल्पना जी यह भी देखें कि कितनी महिला कथाकार ऐसी हैं जो उनके साथ खड़े होकर यह सार्वजनिक घोषणा करें कि जब तक कालिया और विभूति की अपनी अपनी कुर्सियों से छुट्टी नहीं होती तब तक न वे उस पत्रिका में छपेंगी न वर्धा किसी कर्यक्रम मे हिस्सा लेने जायेंगी ..

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  8. अल्पना जी की टिप्पणी अच्छी है लेकिन यह समय केवल शाब्दिक चर्चा का नहीं ठोस कार्यवाही का है.अल्पना जी यह भी देखें कि कितनी महिला कथाकार ऐसी हैं जो उनके साथ खड़े होकर यह सार्वजनिक घोषणा करें कि जब तक कालिया और विभूति की अपनी अपनी कुर्सियों से छुट्टी नहीं होती तब तक न वे उस पत्रिका में छपेंगी न वर्धा किसी कर्यक्रम मे हिस्सा लेने जायेंगी ..

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  9. बोधिसत्व जिस तरह से विभूति और कालिया की दलाली कर रहा है, वह देख कर अचरज नहीं हुआ.वह तो इलाहाबाद के दिनों से इन दोनों का पालतू है..कालिया और विभूति के ऐसे और भी बहुत सारे चमचे हैं जो बेनकाब हो रहे हैं.पर ये सब तो किसी गिनती में नहीं आते. सबसे ज्यादा निर्ल्लज चुप्पी हिन्दी साहित्य के हस्तिनापुर में बैठे उन महान आलोचक नामवर सिंह की है जो यूं तो रोज ही कुछ न कुछ ज़रूरत - बेज़रूरत बोलने रहने की बीमारी से ग्रस्त हैं पर द्रोपदी चीर हरण के हर मौके पर धृतराष्ट्र की एक चालाक चुप्पी ओढ लेते हैं .वाह ! क्या बात है , जियो हे महान आलोचक. इतिहास कल तुम्हारे साथ किस तरह से निपटेगा , आज तुम्हें इसका अंदाज़ा नहीं है. आज तो तुम वामपंथी नकाब ओढ़ कर बेफ़िक्र व्यवस्था की मलाई उड़ा रहे हो.
    -अशोक संगारी

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  10. ALAPANA JI AAPANE JO KAHA HAI HAM SAB USAKA SAMARTHAN KARATE HAIN. YAH HAM SAB KA SAJHA SANGHARSH HAI.

    RAKESH BIHARI

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  11. BhaaShaayi uchhrinkhilta bahas ko nahi vivad ko hi janm de sakti hai तिस पर उनका रूतबा इतना है िकवे टी वी के एक चैनल पर यह भी कह डालते हैं कि उनकी यह टिप्पणी विवाद नहीं बहस का विषय है।
    alpana ji ne bebaki se apni baat kahi hai aur na sirf ek lekhkiya jimmedari balki ek nagrik ki haisiyat se bhi pahalkadmi li hai.

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  12. अजी छोड़िये भी. मैं तो इन विभूति जी को जानता नहीं था. अब यह सुना हुआ सा नाम लग रहा है. कह दिया होगा बेचारे ने सुना हुआ सा बनने के लिए. ऐसा ही एक बार हंस मे किसी राम सरन जोशी ने किया था आदिवासी महिलाओं का अपमान कर के . और उस के बाद मुझे वोह नाम भी सुना सुना जैसा लग रहा था. ऐसा करते ही रहते हैं ये दोयम दर्जे के लेखक सम्पादक ....इस मुद्दे पर हम क्यों अपना वक़्त बर्बाद करते हैं. अपना काम करें हम !

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