बुधवार, 3 नवंबर 2010

इरोम शर्मिला- शर्मनाक चुप्पी के दस साल…

( उसके लिये दस साल से कुछ नहीं बदला है…यह पोस्ट तो अभी एक साल पुरानी ही है…कबाड़खाना से ली है…आज भी सब वैसे ही है…)



आज इरोम शर्मिला को अनशन करते हुए दस साल हो गए।


दस साल-- जिसमे दुधमुहा बच्चा तीसरी-चौथी में पहुंच जाता है... बच्चे जवान हो जाते हैं... एक हंसती खेलती लड़की उदास औरत में तब्दील हो जाती है...ज्यादातर धाराओं के बंदी छूटकर घर आ जाते हैं... लखपति नेता अरबपति बन जाता है और एक अनाम सा आदमी लाकर धर्मगुरु के रूप में स्थापित कर दिया जाता है। लेकिन जब ठहर जाते हैं ये बरस तो ?

उसके लिए तो ठहर ही गए ये बरस। हस्पताल की उस बेड पर नाक में नालियां डाले वह ठहरे हुए समय के साथ अपनी जिद के साथ ठहरी हुई है। खामोश प्रतिरोध का उसने वही तरीका अपनाया जो इतिहास की किताबों में आदर्श के रूप में सिखाया गया था -- गांधी का रास्ता। पर वह भूल गयी कि तीस्ता का पानी नहीं ठहरा रहा इतने बरस... वे अंग्रेज़ थे जो गांधी के उपवास से दहलते थे... फिर गांधी सत्ता और प्रभु वर्ग के करीब भी तो थे... और वह एक आम औरत ... वह भी एक ऐसे इलाके की जो देश के नक्शे भर से जुडा है।


कितनी असहायता लगती है ऐसे में। क्या करें…करने को किया एक आयोजन… पर इतने से क्या होगा?

पता नहीं कितने बरस और?

पता नहीं कितनी शर्मिलायें और??

तब तक पता नहीं कितनी हत्यायें और??

कितने बलात्कार और?

और पता नहीं कितनी मांओं के सडकों पर नग्न प्रदर्शन?

किसी को क्या फर्क पडता है भाई? यह किसी हिरोईन का जन्मदिवस थोडे है!

5 टिप्‍पणियां:

  1. पता नहीं कितने बरस और?
    पता नहीं कितनी शर्मिलायें और??
    तब तक पता नहीं कितनी हत्यायें और??
    कितने बलात्कार और?
    और पता नहीं कितनी मांओं के सडकों पर नग्न प्रदर्शन?

    ये वो सवाल हैं जो सब को साल रहे हैं और सब जैसे इन्हे जान बूझ कर टाल रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. पता नहीं कितने बरस और?
    पता नहीं कितनी शर्मिलायें और??
    तब तक पता नहीं कितनी हत्यायें और??
    कितने बलात्कार और?
    और पता नहीं कितनी मांओं के सडकों पर नग्न प्रदर्शन?

    ये वो सवाल हैं जो सब को साल रहे हैं और सब जैसे इन्हे जान बूझ कर टाल रहे हैं।

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  3. पता नहीं कितने बरस और?
    पता नहीं कितनी शर्मिलायें और??
    तब तक पता नहीं कितनी हत्यायें और??
    कितने बलात्कार और?
    और पता नहीं कितनी मांओं के सडकों पर नग्न प्रदर्शन?

    ये वो सवाल हैं जो सब को साल रहे हैं और सब जैसे इन्हे जान बूझ कर टाल रहे हैं।

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  4. आज़ादी की कीमत चुका रही है!
    उनको और आपको दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!

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  5. वो सत्ता गांधी के उपवास से नहीं दहलती थी,
    वह दहलती थी जनता की एकता से ....

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स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…