बुधवार, 15 दिसंबर 2010

सत्ता का पाखंड और विकिलिक्स






विकीलीक्स मामले की दोहरी अहमियत है। एक तरफ यह एक बोगस स्कैंडल है। ऐसा स्कैंडल, जिसे स्कैंडल तभी माना जा सकता है, जब इसे सरकार, जनता और प्रेस के रिश्तों में व्याप्त पाखंड की पृष्ठभूमि में देखा जाए। दूसरी तरफ इसमें अंतरराष्ट्रीय संचार व्यवस्था का पश्चगामी भविष्य नजर आ रहा है। ऐसा भविष्य जिसमें हर नई टेक्नॉलजी केकड़ों की तरह संचार को पीछे ही पीछे घसीटती जाएगी। इनमें पहले बिंदु को लें तो विकीलीक्स ने इसकी पुष्टि कर दी है कि किसी भी देश की गुप्तचर सेवा जो फाइलें जोड़ती रहती है, उनमें सिर्फ अखबारी कतरनें भरी होती हैं। बर्लुस्कोनी की सेक्स आदतों के बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने जो असाधारण खुलासे अपनी सरकार के पास भेजे हैं, वे महीनों से सबकी जानकारी में थे, और गद्दाफी का जो गंदा कैरिकेचर इन खुफिया फाइलों में नजर आता है, उससे ज्यादा ब्यौरे कैबरे डांसरों की परफॉर्मेंस में मिल जाते हैं।

जासूसी के अड्डे

यही हालत खुफिया फाइलों की है। भेदिए बिल्कुल काहिल हैं और खुफिया सेवा का चीफ उनसे भी लद्धड़ है- जो चीज उसकी समझ में आती है, उसी को सच मानता है। तो भला इन लीक्स को लेकर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है? इसकी वजह सिर्फ एक है, और यह वही है, जिसे कोई भी समझदार प्रेक्षक पहले से जानता है। वह यह कि द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद से सारे दूतावास अपनी राजनयिक भूमिका खो चुके हैं और जब-तब आयोजित होने वाले समारोहों को छोड़ दें तो वे महज जासूसी के अड्डे बनकर रह गए हैं। सत्ताओं के संदेशवाहकों का काम वे पहले किया करते थे। जब से राष्ट्राध्यक्षों को कभी भी फोन मिलाकर एक-दूसरे से बात कर लेने और रातोंरात उड़कर दूसरे देश चले जाने की सुविधा हासिल हो गई है, तब से दूतावासों के लिए काम ही क्या बचा है?
पाखंड का कर्तव्य


जो लोग खोजी डॉक्युमेंट्रीज देखना पसंद करते हैं, वे इसे अच्छी तरह जानते हैं और यह हमारा पाखंड ही है, जो हम इसे जानकर भी अनजान बने रहते हैं। फिर भी, इस जानकारी को सार्वजनिक करना पाखंड के कर्तव्य का उल्लंघन करना है और अमेरिकी डिप्लोमेसी को तो इसने अभी नंगा करके नहला दिया है। इस लीक का दूसरा पक्ष इससे बनने वाली यह समझ है कि कोई भी पुराना हैकर संसार के सबसे ताकतवर देश के सबसे गोपनीय रहस्यों तक अपनी पहुंच बना सकता है। इससे अमेरिकी विदेश नीति की प्रतिष्ठा को भारी आघात लगा है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस स्कैंडल ने कुचक्रों का शिकार होने वालों से ज्यादा चोट कुचक्र रचने वालों को पहुंचाई है।

अब इस घटना के ज्यादा महत्वपूर्ण पक्ष पर आते हैं। जॉर्ज ऑरवेल के जमाने में हर सत्ता को अपने प्रजाजनों पर नजर रखने वाले बिग ब्रदर की तरह लिया जाता था। ऑरवेल की भविष्यवाणी तब पूरी तरह सच हो गई जब सरकारें किसी भी नागरिक की हर फोन कॉल पर , चाहे जिस भी होटल में वह ठहरे , उस पर , और जिस भी टोल रोड से होकर वह गुजरे , उसके चप्पे - चप्पे पर नजर रखने की स्थिति में आ गईं। लेकिन पहली बार जब यह सचाई सामने आती है कि ऐसी सरकारों के रहस्य भी हैकरों के दायरे में आ चुके हैं , तब नजर रखने की प्रक्रिया एकतरफा न होकर चक्रीय हो जाती है। सरकार की नजर हर नागरिक पर है , लेकिन हैकर , जो नागरिकों का स्वघोषित प्रतिनिधि है , खुद सरकार के भी हर सीक्रेट में ताकझांक कर सकता है।


कोई भी सत्ता अगर अपने रहस्यों को ही सुरक्षित नहीं रख सकती तो वह भला टिकी कैसे रह सकती है ? जॉर्ज सिमेल ने एक बार कहा था कि असली रहस्य एक छूंछा रहस्य होता है , यानी कोई ऐसी चीज , जिसे खोज लेने पर कुछ भी हाथ नहीं लगता। यह बिल्कुल सही है कि बर्लुस्कोनी या मर्केल के चरित्र के बारे में जो भी जानकारी बाहर आती है , वह एक छूंछा रहस्य ही है। एक ऐसा रहस्य , जिसमें कुछ भी रहस्य नहीं है , क्योंकि सारा कुछ सबको पहले से ही पता है। लेकिन विकीलीक्स ने इसे जिस तरह यह उजागर किया कि हिलेरी क्लिंटन के रहस्य भी दरअसल छूंछे रहस्य ही हैं , वह उनसे उनकी सारी ताकत छीन लेने जैसा है।

एक अत्यंत शक्तिशाली सत्ता को लगे इस घाव के नतीजे क्या होंगे ? जाहिर है कि भविष्य में सरकारें अपनी किसी गोपनीय सूचना को ऑनलाइन इधर - उधर नहीं भेजेंगी। व्यवहारत : यह गली के कोने में जाकर सूचना को पोस्टबॉक्स में डाल देने जैसा होगा। आज की तकनीकी तरक्की को देखते हुए गोपनीय बातचीत में फोन का इस्तेमाल सुरक्षित होने की तो कल्पना भी व्यर्थ है। यह जानने से ज्यादा आसान तो कुछ भी नहीं है कि कौन राष्ट्राध्यक्ष उड़कर कहां जा रहा है और अभी अपने किस जोड़ीदार से उसने संपर्क किया है। फिर भविष्य में गोपनीय बातचीत आखिर होगी कैसे ?

अंधेरी रात में

मुझे पता है कि मैं अब जो कहने जा रहा हूं , वह साइंस फिक्शन के दायरे में आने वाली चीज है , लेकिन मैं एक कल्पना करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। अंधेरी रात में सरकार का कोई प्रतिनिधि बिना बत्ती जलाए अपनी बग्घी से किसी अनजानी डगर पर बढ़ा चला जा रहा है। उसके पास जो संदेश है , उसे या तो उसने जुबानी सुनाने के लिए याद कर रखा है , या फिर किसी बारीक से कागज पर लिखी हुई उसकी घसीटामार तहरीर उसने अपने जूते में छुपा रखी है। इसकी एकमात्र प्रति आगे किसी तालाबंद दराज में छुपा कर रखी जानी है। एक बार मैंने कहा था कि तकनीक की प्रगति अब केकड़ों की तरह पीछे की तरफ होने लगी है। इससे जुड़ा एक प्रेक्षण इस प्रकार है : अतीत में प्रेस यह जानने की कोशिश में जुटा रहता था कि दूतावासों के भीतर क्या पक रहा है , लेकिन आजकल दूतावास ही प्रेस से पूछते रहते हैं कि इनसाइड स्टोरी क्या है।



( लेखक इतालवी चिंतक और साहित्यकार हैं. उनका यह लेख लिबरेशन में छपा. यह हिंदी अनुवाद चंद्रभूषण द्वारा, नवभारत टाइम्स के 15.12.2010 के सम्पादकीय पृष्ठ से साभार...और यहाँ अनुराग वत्स के फेसबुक पेज़ से )

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अद्भुत और विचारणीय है सारा कुछ...

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  2. ... vaise bhee dootaavaas kaa taatpary hi dooton ke rahane kaa deraa hai ... doot kaa praathamik kaary hi sandeshon kaa aadaan-pradaan hotaa hai ... iss kaary men maalik ke prati nishthaa atyant aavashyak hotee hai issliye sabhee dootaavaas vahee kar rahe hain jo unhen karnaa chaahiye !!!

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  3. तो सत्ता के नग्न नृत्य के लिए मंच तैयार है?

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  4. शुक्रिया एक महत्वपूर्ण लेख के लिये..कई जरूरी बिंदुओं के बारे मे इशारा किया गया है..मगर कुछ बिंदुओं पर असहमतियाँ भी हैं..पहली बात यह कि विज्ञापित रूप से विकीलीक्स द्वारा हासिल किसी भी केबल की गोपनीयता की वरीयता ’टॉप सीक्रेट’ स्तर की नही है..जिस स्तर पर अमेरिकी सरकार अत्यधिक गोपनीय सूचनाएं सूचीकृत करती है..अमेरिका के लिये उन केबल्स का खुलासा किसी वास्तविक खतरे या सुरक्षा को चुनौती से ज्यादा उसके लिये शर्म का सबब भर हैं..कि उनके राजनयिकों के लिये उन देशों मे निरापद काम करना थोड़ा और मुश्किल हो सकता है..दूसरा यह कि मेरे खयाल से यहाँ यह उतना मह्त्वपूर्ण नही था कि उन केबल्स मे क्या है बल्कि यह ज्यादा प्रासंगिक है कि किन परिस्थितियों मे वे खुलासे हुए..और उसके निहितार्थ क्या हैं..सूचना को सरकारें भी अपनी अहम ताकत बना कर चलती हैं..और तकनीकी प्रगति के साथ सरकारों और महत्वपूर्ण संस्थाओं की इस ताकत मे वृद्धि ही हुई है..किसी भी मुल्क की सरकार का पूरा जोर इस सूचना की जनता तक पहुंच पर अंकुश रखने मे रहा है..सूचना उनके लिये बड़ी ताकत हो सकती है..तो सबसे बड़ा खतरा भी..इसीलिये सरकारें जनता के किसी सूचना तक पहुँच के स्तर को नियंत्रित करने के प्रति बहुत जागरुक रहती हैं..मगर जब इसी टेक्नालॉजी का इस्तेमाल किसी सरकार की गुप्त सूचनाओं को आम इंसान को उपलब्ध कराने मे हो सकता है..तो इससे सरकार की ताकत और उसकी नियंत्रण-शक्ति की विश्वसनीयता प्रभावित होती है..फिर अमेरिकन सरकार जिसका सारा जोर खुद को दैवीय ताकतों की तरह अपराजेय और अभेद्य देखाने पर रहा है..अगर उसकी सत्ता को कोई चुनौती देता है..तो इस घटना का प्रतीकात्मक महत्व खुद ब खुद समझा जा सकता है..ऐसे मे गोपनीय बना कर रखी गयी गयी सूचनाओं का सार्वजनिक होना सत्ता की निरंकुशता को सबसे गंभीर चुनौती है..और उसकी ताकत को सबसे बड़ा खतरा भी..यह इतना महत्वपूर्ण नही था कि केबल लीक होने से अमेरिका को कितना क्षति हुई..महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिकन सरकार की पुरजोर कोशिशों को धता बताते हुए यह केबल सार्वजनिक किये गये..और उनके तमाम दबावों बावजूद पिछले बीस दिनों से केबल्स रोज अबाध जारी हो रहे हैं..वैसे ही इस इस बात का महत्व मुझे उतना नही लगता कि उस सूचना की मेरे लिये वास्तविक प्रासंगिकता कितनी है..जितना कि इस बात का कि तकनीक मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति की पहुंच उन गोपनीय केबल्स तक सुलभ कराती है..और यह कि सूचना-क्रांति के इस युग मे विश्व की सबसे मजबूत और खतरनाक सत्ता का किला भी अभेद्य नही है..और जैसा कि लेख मे कहा गया है कि रहस्य के खुल जाने का खतरा उसे छूछा बना देता है..वैसे ही अमेरिका की मुट्ठी भी खुल जाने पर लाख की नही रहेगी..
    ..इस लिये अगर हम उन केबल्स के स्कैंडलस तथ्यात्मक डिटेल्स मे न जा कर उनकी प्रतीकात्मक प्रासंगिकता को अपने समय की कसौटी पर परखें तो यह परिघटना तमाम प्रचिलित नैतिक, सामाजिक मानकों को पुन: परिभाषित करने की जरूरत को रेखांकित करती है..जाहिर है आगे आने वाला वक्त इस घटना के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों से अछूता नही रहेगा..

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