गुरुवार, 27 जनवरी 2011

कश्मीर पर कुछ बिंदु

जबसे कश्मीर के लाल चौक पर भाजपा ने तिरंगा फहराने की बात की है, कश्मीर का मामला फिर से गर्म हो गया है. यूँ तो ये मामला कभी ठंडा होता ही नहीं क्योंकि इसके गर्म रहने पर ही राजनीतिक दल और दबाव गुट अपनी-अपनी रोटियां सेंक सकते हैं, लेकिन अक्सर ये कुछ ज्यादा गर्म हो जाता है. ये भी एक विडम्बना है कि कश्मीर के मुद्दे को हम दिमाग से कम और भावुकता से अधिक देखते हैं, चाहे हम उसकी ज़मीनी हकीकत के बारे में जानते हों या नहीं.


इतिहास -


बहुत से लोग नहीं जानते कि कश्मीर के भारत में विलय के समय कैसी परिस्थितियाँ थीं और उन परिस्थितियों में क्या और कैसा समाधान संभव हो सकता था. जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए तो उन्होंने एक बहुत बड़ी समस्या छोड़ दी थी और वो थी भारत के विभाजन की. इतिहास पढ़ने वाले लोग शायद जानते होंगे कि उस समय भारत में दो तरह की शासन व्यवस्था थी - ब्रिटिश भारत और रियासतें. भारत के विभाजन की शर्तों में ये बात सम्मिलित थी कि ब्रिटिश भारत में इस बात के लिए मतदान होगा कि वहाँ की जनता भारत में जाना चाहती है या पाकिस्तान में, लेकिन रियासतों की जनता का फैसला वहाँ के शासक के विवेक पर छोड़ दिया गया. सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से भारत में स्थित लगभग सभी रियासतें भारत में मिल गयीं, सिर्फ़ तीन को छोड़कर - हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर. हैदराबाद और जूनागढ़ के शासक मुस्लिम थे, पर जनता हिन्दू बहुल, पर कश्मीर का मामला अलग था. वहाँ के राजा हिन्दू थे और जनता मुस्लिम बहुल. जूनागढ़ के राजा पाकिस्तान में मिलना चाहते थे, जो कि असम्भव था. आखिरकार भारत सरकार की सैनिक कार्यवाही से बचने के लिए जूनागढ़ और हैदराबाद ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया, पर कश्मीर के राजा हरिसिंह ने नहीं किया. वे भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग एक स्वतन्त्र राज्य बनाना चाहते थे, जबकि इस तरह की कोई शर्त विभाजन की योजना में नहीं थी. उनको दोनों राष्ट्रों में से किसी एक में मिलना ही था. जब राजा हरिसिंह पर भारत की सरकार का दबाव बढ़ने लगा तो वो राजनीतिक सौदेबाजी करने लगे और उन्होंने अपने लिए अधिकाधिक स्वायत्तता की माँग की. इसी बीच पाकिस्तान ने कुछ सीमावर्ती कबीलों को उकसाकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. जब आधा कश्मीर उनके कब्ज़े में जा चुका था, तब जाकर राजा हरिसिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया. पर पाकिस्तान की तरफ से आक्रमण तब भी नहीं रुके. उसे ये प्रक्रिया चलाये रखने के लिए अधिकृत कश्मीर की ज़मीन ज़रूर मिल गयी. एक गलती राजा हरिसिंह ने की विलय में देरी करके. अगर उन्हें भारत में मिलना ही था, तो पहले ही मिल जाते. दूसरी गलती पंडित नेहरू ने की, इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाकर. जो मामला दो देशों के बीच था, अब विश्वपटल पर आ गया.


कुछ बिंदु -


  • सभी जानते हैं कि कश्मीर में मुसलमानों की संख्या, हिंदुओं से कहीं अधिक थी. तो अगर वह ब्रिटिश भारत का हिस्सा होता तो क्या पाकिस्तान में ना होता? क्योंकि सभी जानते हैं कि विभाजन के लिए हुए चुनाव में 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' ( बहुल मतदान ) प्रणाली अपनाई गयी थी. जिसमें सबसे अधिक मत पाने वाले को विजयी घोषित कर दिया जाता है, चाहे शेष मतों की संख्या उसके पक्ष में पड़े मतों से अधिक ही क्यों ना हो. वर्तमान में भारत में यही प्रणाली प्रचलित है.

  • जूनागढ़ और हैदराबाद की जनता भारत में मिलना चाहती थी. इन रियासतों में भी स्वतंत्रता सेनानी सक्रिय थे और वो भारत के प्रति निष्ठा रखते थे. लेकिन कश्मीर की बहुसंख्यक जनता क्या चाहती थी, इसकी ना तब किसी को कोई परवाह थी और ना अब है.

  • कोई भी किसी जगह की जनता को यूँ ही नहीं भड़का सकता. अगर नक्सलपंथी यू.पी.-बिहार के कुछ हिस्सों, छ्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में हैं और शेष राज्यों में नहीं, अगर उत्तर-पूर्व में अलगाववादी आंदोलन है, तो इन सबका कारण है कि वहाँ की जनता में असंतोष है.


  • कश्मीर में अलगाववादी यूँ ही नहीं पनपे हैं. उसमें अगर कुछ हाथ पाकिस्तान का है, तो कुछ जनता की असंतुष्टि का भी है. कश्मीर की जनता खुद को ठगा सा पाती है. दो देशों के खींचतान में फँसी, कुछ नेताओं की ऐतिहासिक भूलों का खामियाजा भुगतती.

  • कश्मीर के मामले को यहाँ बैठे-बैठे भारत की शान से ना जोड़कर वहाँ की जनता के नज़रिए से देखना चाहिए. उसकी स्थिति बहुत जटिल है. उसे सतही ज्ञान या कोरी भावुकता से नहीं देखा जा सकता.

  • इस मामले में सिक्किम का उदाहरण दृष्टव्य है. ये राज्य भी भारत में एक सहराज्य के रूप में सम्मिलित हुआ था. पर बाद में यहाँ की जनता ने जनमत संग्रह के द्वारा राजशाही के ना चाहते हुए भी भारत में पूर्ण रूप से विलय करने की इच्छा जताई. अगर कश्मीर के सभी लोग एकमत होते, तो उन्हें पाकिस्तान राष्ट्र संघ या और कोई शक्ति भारत में सम्मिलित होने से नहीं रोक सकती थी.

  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर में जनमत संग्रह की बात की थी, जो कभी भारत ने नहीं मानी और कभी पाकिस्तान ने. बाद में भारत कहने लगा कि कश्मीर के चुनाव ही जनमत संग्रह हैं. जबकि ये बात अलगाव वादी और स्वतंत्रता वादी नहीं मानते. उनका कहना है कि चुनाव राज्य की व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि चुनने से सम्बन्धित हैं, ना कि किसी प्रकार का जनमत संग्रह.

  • कश्मीर का मामला अपने आप में एक विशिष्ट मामला है, इसे फिलिस्तीन, चेचेन्या या श्रीलंका की समस्याओं से जोड़कर नहीं देखा जा सकता.

  • कश्मीर के मामले पर कुछ भी बोलने से पहले या तो हमें भावुकता के स्थान पर सहज बुद्धि का प्रयोग करना होगा और या फिर एक बार भारत के संविधान की रूपरेखा "बेयर एक्ट्स" पढ़ लेनी चाहिए. क्योंकि ना सिर्फ़ कश्मीर बल्कि और भी बहुत से राज्यों को विशेष सुविधाएँ मिली हुयी हैं/ थीं, जो कि समय के साथ समाप्त कर दी गयीं या परिवर्तित कर दी गयीं या कर दी जायेंगी. कश्मीर के सम्बन्ध में भी अनेक प्रावधान समाप्त कर दिए गए हैं. और शायद उसकी स्थिति भी और राज्यों के समान हो जाती अगर नवासी और नब्बे से पाकिस्तान ने आतंकवादी गतिविधियाँ तेज ना कर दी होतीं.



मेरे विचार -

मेरे विचार से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन उसके भारत या पाकिस्तान में मिलने सम्बन्धी कोई निर्णय लेना इतना आसान नहीं है. इसके लिए अनेक राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा अनेक समाधान सुझाए गए हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और न निकट भविष्य में निकलने की संभावना है. इसलिए इस मुद्दे पर सिर पीटने के बजाय इसे नीति-निर्माताओं पर छोड़ देना चाहिए.

मैं कश्मीर को स्वतन्त्र कर देने के पक्ष में नहीं हूँ. पर इस विषय में भावुकता से नहीं, बल्कि सोच-समझकर निर्णय लेने की पक्षधर हूँ. कश्मीर सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है और इसीलिये अमेरिका और चीन इसे विवादित बनाए रखने की पूरी कोशिश करते रहते हैं. यही कारण है कि कई बार संयुक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में इससे सम्बन्धित कई फैसलों पर दोनों अपने वीटो का प्रयोग कर चुके हैं. कश्मीर भले ही विवादित है, पर भारत और पाकिस्तान के बीच बफर स्टेट के रूप में कार्य करता है. अगर इसे स्वतन्त्र कर दिया गया तो भारत के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. इसलिए कश्मीर भारत से जुड़ा रहे इसी में भारत का राष्ट्रहित है.


भाजपा के मुद्दे का मेरे द्वारा विरोध किये जाने का कारण -


कश्मीर भारत का अंग है, इस बात को बार-बार दोहराने की क्या ज़रूरत है? क्या कोई अपने सगे भाई के बारे में बार-बार ये बात कहता है कि 'देखो ये मेरे सगे भाई हैं.' विशेषज्ञों की राय में वहाँ की जनता को धीरे-धीरे विश्वास में लेने की ज़रूरत है. इस तरह से जिस प्रकार मुख्यधारा की संस्कृति से इतने अलग होने के बावजूद उत्तर-पूर्व वाले स्वयं को भारतीय मानने लगे हैं, उसी तरह से वहाँ के लोग भी मानने लगेंगे. और ये तभी हो सकता है, जब वहाँ शान्ति बनी रहे. अगर आप उसे भारत का अंग मानते हैं, तो सबसे पहले वहाँ की जनता की भलाई के बारे में सोचिये ना कि किसी एक दल या गुट के मुद्दे बारे में.

मैं एक आम भारतीय हूँ. मैं भी राष्ट्रीय प्रतीकों का बहुत सम्मान करती हूँ, पर किसी एक राजनीतिक दल द्वारा अपने स्वार्थ के लिए उसके प्रयोग की विरोधी हूँ. ज़रा सोचिये कि भाजपा जब खुद केन्द्र की सत्ता में थी तो उसने ऐसा क्यों नहीं किया? जब बुंदेलखंड में सूखे से और बिहार में बाढ़ से तबाही मचती है, तब ये पार्टियाँ कहाँ चली जाती हैं? क्या हमें अपनी देशभक्ति का प्रमाण देने के लिए इन पार्टियों के उद्बोधन का सहारा लेना पड़ेगा? भाजपा स्वघोषित राष्ट्रवादी पार्टी है, तो क्या उसके किसी मुद्दे का विरोध करने वाले या उस पार्टी का ही विरोध करने वाले सारे लोग देशद्रोही कहलायेंगे?

इन सारी बातों से अलग मैं ये सोचती हूँ कि हमें गणतंत्र बने साठ साल से ऊपर हो गए हैं. इसलिए किसी भी समस्या के बारे में कोई धारणा बनाने में हमें समझदारी से काम लेना होगा. अगर लाल चौक पर तिरंगा फहराने से वहाँ की जनता की सारी समस्याएँ हल हो जाएँ, तो मैं खुद वहाँ जाकर राष्ट्रीय ध्वज फहराना पसंद करूँगी. लेकिन तब भी किसी राजनीतिक दल का सहारा नहीं लेना चाहूँगी. प्रतीक राष्ट्र के प्रति हमारी आस्था बनाए रखने के लिए हैं, लेकिन क्या राष्ट्र सिर्फ़ एक भावना है? राष्ट्र वहाँ रहने वाले लोगों से बनता है, तो इस तरह के किसी भी मुद्दे का समर्थन करने से पहले उससे प्रभावित होने वाले आम आदमी के बारे में सोचिये.

34 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा जो गलती नेहरू ने की वही काँग्रेस कर रही है।
    लेकिन यह भी कहाँ तक सही है की कश्मीर का प्रशासन और केन्द्रीय प्रशासन अपनी पूरी ताकत लगा दे राष्ट्रिय ध्वज न फहराने के लिए ।

    Tricolour national flag should be unfurled at Lal Chowk, Srinagar on Jan. 26, 2011 : Dr. Subramanian Swamy
    The UPA government is duty bound under the Transaction of Business Rules framed under the Constitution, to officially unfurl the tricolour national flag at Lal Chowk in Srinagar, J&K. A Resolution to this effect was adopted by the Cabinet Committee on Political Affairs in January first week or thereabouts in 1991 when Chandrashekhar was Prime Minister and I was Cabinet Minister of Law &Justice besides of Commerce.
    As a senior Minister and member of CCPA, I had raised the issue in the CCPA because the V.P. Singh government had considered the matter and decided to discontinue the practice of unfurling the flag in Lal Chowk in 1990 as “it might hurt the feelings of the people of the state”.
    http://hinduexistence.wordpress.com/2011/01/26/lal-chowk-is-a-place-to-unfurl-the-tri-colour-not-the-pak-flag/

    नकसलवाद एक सोचा समझा षड्यंत्र है जो आदिवासी बहुल सुरक्षित पनाहगाहों में चलाया जा रहा है । बाकी देश के लोग क्या संतुष्ट हैं ? अगर नहीं तो वो भी नकसलवाद का समर्थन क्यों नहीं करते

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  2. कोई फैसला लेने से पहले जे एन यू के कम्यूनिस्ट छात्रों से राय लेनी चाहिए जिनके ज्यादातर फैसले देश के समप्रभूता के खिलाफ ही होते हैं । आज हमें जरुरत है कि हम अपने दृष्टिकोण को बदले । कभी कभी हम कोई अच्छा काम भी करने से मना कर देते है क्योंकि हमें लगता है कि यह काम वह कर रहा है जिसका मैं विरोधी हूँ । ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपर सभी भारतीयों के एकत्र होना चाहिए , ठिक है अगर आप को भाजपा से दिक्कत है तो अलग दर झंडक फहराईयए , लेकिन फहराने से मना करना तो ध्वज का अपमान है ।

    मैं प्यारा अपने देश का
    मैं न्यारा अपने देश का
    सारे जहाँ में मेरी शान
    मैं तिरंगा भारत देश का ।

    मैं वीर जवान की आन हूँ
    मैं वीर जवान की शान हूँ
    मिट जाए वीर जवान मेरे लिए
    मैं हिन्दुस्तान की जान हूँ ।

    मेरे वीरता की अमर कहानी
    मुझे इझ्जत देता हर हिन्दुस्तानी
    मैं दुश्मन की छाती पर लहराऊं
    मुझे देखकर जलता पाकिस्तानी ।

    मैं हिन्दुस्तान की जंग
    हिन्दुस्तान का इन्तकाम हूँ
    मैं हिन्दुस्तान के दुश्मनों का
    सबसे बुरा अंजाम हूँ ।

    दरिया दिल मेहरबानों के लिए
    शेर दिल कदरदानों के लिए
    मैं तिरंगा सलामी हूँ
    कार्गिल जवानों के लिए ।

    हिन्दुस्तान की इनायत में
    हिन्दुस्तान की इबाबदत में
    मरते दम तक लहराऊँगा
    हिन्दुस्तान की हिफाजत में ।।

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  3. इस लेख की भाषा शैली प्रति -प्रत्युत्तर सी लगती है -मूल संदर्भ ही गायब है !
    यह सतही जानकारी अदने से आदमी को भी मालूम है ..
    आज मुद्दा है कि लाल चौक पर भारत का तिरंगा अगर नहीं फहरता तो क्या संविधान की रक्षा हो पायी ?
    बल्कि राजकीय शक्तियां संसाधन इसे न फहराने में झोंक दी गयी -इससे बड़ा भारतीय संविधान का मजाक और क्या हो सकता है ..
    १९९२ में तो स्थिति और भी बदतर थी तब केंद्र ने संविधान की लाज रख ली -
    आज आवश्यकता किताबी अव्यवहारिक ज्ञान की नहीं है -ठोस हल की है ......सीधे हस्त

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  4. ...छूटा अंश ...
    हस्तक्षेप की है ....
    "लेकिन यह भी कहाँ तक सही है की कश्मीर का प्रशासन और केन्द्रीय प्रशासन अपनी पूरी ताकत लगा दे राष्ट्रिय ध्वज न फहराने के लिए"
    डॉ महेश सिन्हा ने भी यही बात कही है !

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  5. मुक्ति,
    पूरी सहमति है तुम्हारे इस आलेख से . समस्या के हर पक्ष का संतुलित रूप से विवेचन करने का प्रयास किया है.

    बस दुख यही होता है कि इतने पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी लोग इस तरह क्यूँ नहीं देख पाते.
    कश्मीर का मामला बिलकुल अलग है..उसे अलग दृष्टि से ही हल किया जा सकता है...सबसे ज्यादा जरूरत वहाँ के लोगो को विश्वास में लेने की है. तभी सारे शान्ति-प्रयास सफल होंगे.

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  6. @रश्मि जी

    इस देश में कौन सी जगह जहां जनता को विश्वास में लेकर काम किया जाता है । कश्मीर की जनता अपने वोट देकर अपनी सरकार चुनती है । उन मुट्ठी भर अलगाववादीओं को नहीं जिनकी हिम्मत नहीं है चुनाव लड़ने की।

    लेकिन इन्ही अलगाववादियो को न जाने क्यों इस देश और राज्य की सरकार बढ़ावा देती है ।

    इस देश की सरकार ने ही देश में अराजकता को बढ़ावा दिया है और अब उसके असर सारे देश में नजर आ रहे हैं । एक सरकारी अधिकारी को जिंदा जलाना एक दिन के तुस्टिकरण का प्रभाव नहीं है ।

    कश्मीर की घटना का छोटा रूप हुआ महाराष्ट्र में । अपराधी खुले आम घूम रहे हैं । रक्षक और सरकार घूँघट डाले बैठे हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं की घूँघट डाले रहने से बच नहीं जाएंगे ।

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  7. @ डॉ. महेश सिन्हा, लाल चौक पर तिरंगा फहराने के विरोध में कौन है? अगर कश्मीर के लोग वहाँ तिरंगा फहराने जाते और प्रशासन और केन्द्र सरकार उनका विरोध करती तो ये निश्चित ही भर्त्सनीय होता, पर यदि कुछ राजनीतिक कार्यकर्त्ता बाहर से जाकर ऐसा करने का प्रयास करते हैं, तो शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्हें रोका जा सकता है. आखिर आपलोग 'आम लोगों के तिरंगे के प्रति प्रेम और उसे फहराने की आज़ादी' और 'राजनीतिक दलों द्वारा तिरंगे का अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग़' में अंतर क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

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  8. एक बेहद महत्वपूर्ण आलेख , जिसकी जानकारी होना बहुत आवश्यक है ! शुभकामनायें !

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  9. मुक्ति,
    पूरी सहमति है तुम्हारे इस आलेख से
    Its time we understood the difference between political " deshbhakt" and deshbhakt

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  10. सहज संतुलित और सामान्य तार्किकता वाला असाधारण लेख! पुर्णतः सहमती

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  11. जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन तत्वों को तो नहीं रोका जिन्होने इसी लाल चौक में पाकिस्तान का झंडा फहराया था!! फिर भाजपा को ही क्यों जबरन रोका गया?
    अगर सरकार चाहती तो भाजपा को लाल चौक में ध्वजारोहण के लिए आमंत्रित करती जिससे भाजपा के खोखले देशप्रेम के दावे की हवा निकल जाती लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और जनता में साफ-साफ एक संदेश दिया कि वह अलगाववादियों के साथ है, उनकी धौंस से डरती है।

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  12. पिछले तीन दिन से ब्लोग्बुड कुछ लोग इतिहास-भूगोल गोल करके बहसिया रहे थे , अब कम-से-कम जानकारी तो पायेंगे ! सुन्दर !

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  13. @ सागर जी, इस बात को आप यूँ भी देख सकते हैं कि अगर भाजपा चाहती तो चुपचाप दो-तीन लोग कार्यकर्ताओं को कहकर लाल चौक पर तिरंगा फहरा देती. इससे तिरंगा भी फहर जाता और सरकार या प्रशासन मुँह ताकते रह जाते. जैसा कुछ अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तान का झंडा फहराने पर हुआ था. प्रशासन को भनक भी नहीं लगी थी. पर भाजपा को तिरंगा फहराने से अधिक उसके प्रचार से मतलब था. उसने शोर मचाकर प्रशासन को स्वयं को रोकने का न्योता खुद दिया.

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  14. "जैसा कुछ अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तान का झंडा फहराने पर हुआ था. प्रशासन को भनक भी नहीं लगी थी."
    मुक्ति जी डॉ महेश जी की पहली टिप्पणी में दिए गये वीडियो लिंक को आँखे खोल कर ध्यान से देख तो लीजिये ...
    हद इस बात की है की आप आँखे मूँद कर अलगाववादियों के पक्ष में क्यूं बोले जा रही हैं -अब तो सचमुच आपकी सत्यनिष्ठा पर संदेह हो चला है -देश का प्रबुद्ध जन इस तरह से आँखे मूद कर बैठ जाएगा तो यह तो राष्ट्र की संक्रांति की स्थिति होगी --और यह करीब है !बहुत दुर्भाग्यपूर्ण !
    Please see this and for heavens sake don't make further comments without sincerely seeing this......
    you are now indulging in fantasies while ground realities are just opposite!
    http://hinduexistence.wordpress.com/2011/01/26/lal-chowk-is-a-place-to-unfurl-the-tri-colour-not-the-pak-flag/

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  15. @अमरेन्द्र जी,
    ये इतिहास भूगोल की बात अच्छी कही आपने -मुक्ति जी ने इतिहास पर प्रकाश डाला ..आप से गुजारिश है तनिक उक्त वीडियो देखकर यह बताएं कि भूगोल में लाल चौक कहाँ हैं पकिस्तान में या हिंदुस्तान में -मुझे तो बड़ा भारी भ्रम हो गया है -हाँ वीडियो देखे बिना प्लीज प्लीज कोई अग्रेतर टिप्पणी मत करियेगा ..अगर यह लैपटाप में न दिखायी दे तो किसी के पी सी का सहारा लें -मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे खुद इसे अपने लैपटाप के बजाय ब्राड बैंड पी सी में देखना होगा ...
    मित्रों हम अतिरंजित हो सकते हैं ,विचारों की समझ में आने वाली विभिन्नाता भी अलग शिक्षा संस्कार परिवेशों के कारन हो सकती है मगर हमें तथ्यों की अनदेखी भी नही करनी चाहिए -जो हम देख रहे हैं उस सच्चाई को किसी भी नजरिये से कैसे झुठला दें -हम इतने ईमानदार तो रहें -यहाँ बात एक राष्ट्रीय संकट की है तब तो हमें और भी सजग रहना होगा !

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  16. @ अरविन्द जी , इतिहास-भूगोल से मेरा आशय उस जटिलता को रखने भर से था , जिसके अज्ञान में सतही भावुक ढंग से बयान-बाजी ही जारी है कई दिनों से !

    मैं अलगाववादियों का समर्थक नहीं हूँ , न ही प्रगतिशील-आधुनिक कहे जाने का चस्का-शुदा इंसान हूँ कि आँगन की तुलसी से राष्ट्र तक सबको गरियाता फिरूं पर इस अनावश्यक से लग रहे ध्वजारोहण में निहित राजनीतिक कर्म-काण्ड के पहचान का हिमायती हूँ जिसको न देखकर पिछले दिनों से बतकहीं जारी हैं ! अव्वल तो ये है कि ये भाजपाई कर्म-काण्ड अलगाववादियों के अनुकूल स्थितियां ही पनपा रहे हैं ! यह कश्मीर व मुल्क की खुशहाली का रास्ता नहीं है !

    कांग्रेस हो या भाजपा , कश्मीर को लेकर इनकी गंभीरता की हकीकत किससे छुपी है , भाजपा सरकार में थी तो क्या कर सकी थी , का-र-गि-ल ! गौर से देखें वैश्विक राजनीति को , कश्मीर का फैसला भारत या पाक नहीं बल्कि न्यूयार्क की टेबुल पर तय होता है ! भारत पर वहीं से आँख तरेरी जाती है कि मयनमार में तुम क्या कर रहे हो , और इधर से खामोशी छा जाती है यानी एक सर्व-स्वीकारक चुप्पी !!

    इन जटिलताओं की उपेक्षा लालचौक के झुनझुने बजाकर नहीं की जा सकती ! वीडियो में जो अलगाववादी नेता दिखे और अपनी सियासत - पड़ोसी झंडा भी - के साथ दिखे , उनका विरोधी हूँ क्योंकि वे भी कश्मीर मुद्दे को वैसे ही भंजा रहे जैसे भाजपा मंदिर मुद्दे को ! ऐसी स्थिति में गलदश्रु (?) भावुकता के साथ भाजपा का समर्थक हो जाना , या उसके कदम को जस्टीफाई करना , कहाँ की देश-भक्ति है ! अब आपको यह तुलसीय पंक्ति याद दिलाना अनावश्यक समझता हूँ कि ''राजनीति नहिं धरम बिचारी'' !! ( धरम व्यापक युक्तायुक्त के अर्थ में है , संकीर्ण मजहबी अर्थ में नहीं )

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  17. @अरविन्द जी,
    प्रशासन को भनक नहीं लगी से मेरा मतलब ये था कि प्रशासन ने मीटिंग की इजाज़त दी थी, ना कि पाकिस्तान का झंडा फहराने की. और कुछ आतंकवादियों ने पाकिस्तान का झंडा फहरा भी दिया तो क्या कश्मीर पाकिस्तान का हो गया?
    दूसरी बात अलगाववादियों का तो काम ही है आतंक का वातावरण बनाए रखना, स्थिति को सामान्य होने से रोकना. क्या भाजपा भी यही चाहती है?
    और आप फिर वही बात दोहरा रहे हैं. मैं ये कह रही हूँ कि मुझे भाजपा के मंतव्य पर संदेह है, तो आप मेरी निष्ठा पर संदेह कर रहे हैं. इससे तो यही सिद्ध होता है कि जो भाजपा का विरोध करे वह राष्ट्रद्रोही है.
    खैर, मुझे अपनी राष्ट्र के प्रति निष्ठा सिद्ध करने के लिए किसी परीक्षा की आवश्यकता नहीं है. मैं भी उतनी ही राष्ट्रभक्त हूँ जितना भाजपा का गुणगान करने वाले. मेरी आपत्ति सिर्फ़ राजनीतिक दलों द्वारा तिरंगे को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल पर है, ना कि तिरंगा फहराने के बारे में.
    और मुझे नहीं लगता कि ये कोई राष्ट्रीय संकट है. राष्ट्रीय संकट तो भाजपा खड़ा करना चाहती है. और कई बार खड़ा कर भी चुकी है.
    भला बताइये उस पार्टी को कहीं जाकर अपने राजनीतिक मुद्दे को भुनाने की छूट कैसे दी जा सकती है, जिसने कारसेवा के बहाने जाकर एक ऐतिहासिक ढांचा तुड़वाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
    मैंने ऊपर वाला वीडियो देखकर ही टिप्पणी की थी और उस घटना के बारे में भी खूब पढ़ चुकी हूँ. लेकिन क्या अलगाववादी जो कर रहे हैं उसका उदाहरण देकर किसी बात को न्यायसंगत ठहराया जा सकता है? और फिर वही प्रश्न करना चाहती हूँ कि क्या सच में लाल चौक पर तिरंगा फहराना इतना बड़ा मुद्दा है कि भारत की संप्रभुता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा? मुझे तो लगता है कि भाजपा ये सब अपने स्वार्थ के लिए कर रही है. राम मंदिर का मामला सुलझ जाने के बाद अब उसके पास कोई मुद्दा नहीं है. इसीलिये वह विवादित मुद्दों को उठा रही है. मेरा प्रश्न ये भी है कि भाजपा को कश्मीर तभी क्यों याद आता है जब वह विपक्ष में होती है. फिर चाहे वह 1992 हो या 2011.

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  18. आलेख अपनी जगह पर सही है.. पर कुछ बिंदु है जो मुझे पर्सनली ठीक नहीं लगते.. मसलन भाजपा ने तिरंगा फहराने का ढिंढोरा क्यों पीटा? लेकिन ये भी तो सच है कि अगर ढिंढोरा नहीं पीटा जाता तो हमें फुर्सत ही कहा थी उस मुद्दे पर बात करने की..
    जिसे भाजपा का राजनितिक दाव पेंच समझा जा रहा है वो एक अच्छे विपक्ष की निशानी है.. लोकतंत्र के लिए विपक्ष का होना बहुत ज़रूरी है वरना लोकतंत्र का क्या अस्तित्त्व है ? हालाँकि मैं पोलेटिक्ली बायस्ड तो नहीं पर मुझे भाजपा एक अच्छी विपक्षी पार्टी लगती है.. सत्ता उन्हें संभालनी नहीं आती.. अगर सत्ता पक्ष के किसी भी कार्य को दुसरे पहलु से देखने का अधिकार विपक्ष के पास है. और उसे मिडिया तक पहुँचाना भी ज़रूरी है.. वरना हम जैसे आम लोग कुछ जान ही नहीं पायेंगे.. अगर बीजेपी के चार लोग जाकर तिरंगा फहरा देते तो हमें इस मुद्दे के बारे में पता ही नहीं चल जाता..

    रही कश्मीर के लोगो की बात.. तो वो लोग बंटे हुए है.. कुछ लोग पाकिस्तान में शामिल होना चाहते है.. कुछ भारत में और कुछ स्वतंत्र कश्मीर की मांग करते है.. ऐसे में जो बहुल मतदान की बात आपने साझा की है.. उसके परिणाम भिन्न हो सकते है.. कश्मीर की जनता का भी वही हाल है जो विभाजन के बाद उनके राजा का.. वही बात कि हैदराबाद और जूनागढ़ की जनता ने एकजुटता दिखाई वो कश्मीर में तब भी नहीं थी और अब भी नहीं..

    भारत के लिए कश्मीर को छोड़ देना बहुत बड़ा खतरा है.. बांग्लादेश साफ़ साफ़ उदाहरण है.. फिर पाकिस्तान हिमालय के पीछे है अभी.. सोचिये, जम्मू तक पाकिस्तान का हाथ बढ़ जाएगा.. जब इतनी सतर्कता के बावजूद पाकिस्तानी आतंकवादी कश्मीर में घुसे हुए है तो भारत के छोड़ देने के बाद क्या होगा?

    भारतीय दृष्टिकोण से कश्मीर का भारत में विलय हो जाना ही उत्तम है..
    पाकिस्तान से तो वैसे भी अभी जो है वो नहीं संभाल रहा तो कश्मीर का क्या होगा? दो वक़्त की रोटी जिसे नसीब नहीं हो रही हो वो अगर बच्चा गोद भी ले ले तो उसका लालन पोषण भला कैसे कर पायेगा..?

    जो मुझे लगता है..
    मैं चिट्ठा चर्चा में कह चुका हूँ कि हम लोगो ने ही कश्मीर को अपने से अलग कर रखा है.. सगे भाई को बार बार सगा भाई ना कहा जाए ये तो ठीक है लेकिन यदि चार भाइयो में से तीन भाई आपस में बात करे और एक से कोई बात ना करे तो वो भाई कैसा महसूस करेगा? कश्मीर को हमारे साथ की जरुरत है..

    बचपन में कश्मीरी लोग हमारे मोहल्ले में ऊनी कपडे बेचने के लिए लाते थे.. अब बहुत कम दिखाई देते है.. हमें खुद कितना समय हुआ कश्मीरी शोल या रजाई ओढ़े हुए.. कश्मीर के वो हाथ जिनका बुनकरी का धंधा नहीं चलता वो पत्थर नहीं उठाएंगे तो क्या करेंगे.. सारेगामा पा और इन्डियन आइडियल पाकिस्तान तक जा पहुचे ऑडिशन के लिए लेकिन कश्मीर तक कोई नहीं जाता.. कश्मीर के लोग किसी टेलेंट हंट में नहीं है.. किसी फिल्म में नहीं.. भारतीय क्रिकेट टीम में नहीं.. बड़ी बड़ी कंपनियों में नहीं.. वो क्या वजह है की भारत का तिरंगा फहराने के लिए ही कश्मीर भारत का हिस्सा है.. पर यदि है तो कहाँ?


    Thanks Mukti for bringing this topic here

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  19. TIRANGA FOR MUSLIMS AND SAFFRON FOR HINDUS
    Shamsul Islam
    The RSS/BJP gang is once again on to its old pastime of whipping up frenzy against Muslims. They plan to unfurl, Tricolour, the Indian National Flag in Srinagar on January 26, 2011. It may not be out of context to know that BJP and its RSS mentors who are so zealous about hoisting Tricolour in Srinagar have least respect for Tricolour as we will see from the following documentary evidences available in the RSS archives..

    Organiser, the RSS English organ in its third issue (July 17, 1947) disturbed by the Constituent Assembly’s decision to select the Tricolour as the National Flag, carried an editorial titled 'National Flag', demanding that the saffron flag be chosen instead.

    The same demand continued to be raised in editorials on the eve of Independence of India (July 31 editorial titled 'Hindusthan' and August 14 editorial titled 'Whither') simultaneously rejecting the whole concept of a composite nation. The August 14 issue also carried 'Mystery behind the Bhagwa Dhawaj' (saffron flag) which while demanding hoisting of saffron flag at the ramparts of Red Fort in Delhi, openly denigrated the choice of the Tri-colour as the National Flag in the following words: "THE PEOPLE WHO HAVE COME TO POWER BY THE KICK OF FATE MAY GIVE IN OUR HANDS THE TRICOLOUR BUT IT NEVER BE RESPECTED AND OWNED BY HINDUS. THE WORD THREE IS IN ITSELF AN EVIL, AND A FLAG HAVING THREE COLOURS WILL CERTAINLY PRODUCE A VERY BAD PSYCHOLOGICAL EFFECT AND IS INJURIOUS TO A COUNTRY."

    Golwalkar, second chief of the RSS and the most prominent ideologue of the organization till date, while addressing a gathering in Nagpur on July 14, 1946, stated that it was the saffron flag which in totality represented their great culture. It was the embodiment of God: "We firmly believe that in the end the whole nation will bow before this saffron flag".

    Even after independence when the Tricolour became the National Flag, it was the RSS which refused to accept it as the National Flag. Golwalkar, while discussing the issue of the National Flag in an essay entitled 'Drifting and Drifting' in the book ‘Bunch of Thoughts’, an RSS publication and collection of writings of Golwalkar (treated as Bible for the RSS cadres), has the following to say: "Our leaders have set up a new flag for our country. Why did they do so? It is just a case of drifting and imitating. Ours is an ancient and great nation with a glorious past. Then, had we no flag of our own? Had we no national emblem at all these thousands of years? Undoubtedly we had. Then why this utter void, this utter vacuum in our minds?"

    Importantly, nowhere in the functioning of the RSS is the Tricolour or National Flag used even today. The RSS headquarters at Reshambaugh, Nagpur does not fly it nor do the RSS shakhas display it in daily parades. It seems the National Flag is meant only to whip up frenzy against Muslims. In 1991(Ekta Yatra) it was Murli Manohar Joshi, another favourite in the RSS hierarchy, who went to unfurl the Tricolour at Lal Chowk of Srinagar, Kashmir. Uma Bharti carried a Tri-colour because it was an Idgah which was being targeted by Hindutva. On the other hand, it is important to note that the Hindutva cadres who went to demolish Babri mosque in 1992 did not carry the Tricolour. They carried only saffron flags which were subsequently hoisted there. The RSS is faced with a peculiar dilemma. For Hindus it has saffron flag and for Muslims Tricolour. This selective use of the national symbols is bound to boomerang and further expose the Hindutva camp's real designs. But one thing is sure that ‘Muslim Bashing’ remains the favourite pastime of the Hindutva gang.

    Shamsul Islam
    notoinjustice@gmail.com

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  20. @कुश
    आपकी भाजपा वाली बात से पूर्ण सहमति तो नहीं है...पर मैं यहाँ कुछ और कहना चाहूंगी..

    ऐसा नहीं है कि कोशिश नहीं हो रही है...लोग अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं कि कश्मीरी लोग अलग थलग ना महसूस करें...इन्डियन आइडल जैसा ही एक म्यूजिकल टैलेंट शो सोनी चैनल पर बहुत लोकप्रिय हुआ था (नाम मुझे याद नहीं आ रहा )..तीन जजों में एक जावेद अख्तर भी थे .और उसे एक कश्मीरी लड़के ने जीता जिसका नाम "क़ाज़ी तौकीर" था. कश्मीर में उसके घर जाकर वहाँ के फूटेज भी शूट किए गए थे और वो क़ाज़ी तौकीर,उन दिनों हर टीन-एज लड़के/लड़कियों का प्रिय था. कई कश्मीरी लड़के सफल मॉडल भी हैं .

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  21. @ डॉ. महेश सिन्हा, लाल चौक पर तिरंगा फहराने के विरोध में कौन है? अगर कश्मीर के लोग वहाँ तिरंगा फहराने जाते और प्रशासन और केन्द्र सरकार उनका विरोध करती तो ये निश्चित ही भर्त्सनीय होता, पर यदि कुछ राजनीतिक कार्यकर्त्ता बाहर से जाकर ऐसा करने का प्रयास करते हैं, तो शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्हें रोका जा सकता है. आखिर आपलोग 'आम लोगों के तिरंगे के प्रति प्रेम और उसे फहराने की आज़ादी' और 'राजनीतिक दलों द्वारा तिरंगे का अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग़' में अंतर क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

    @मुक्ति शायद आपने नहीं पढ़ा की कानूनी स्थिति क्या है और उसका कैसे मज़ाक उड़ाया जा रहा है ।
    आप की सोच में खुद अलगाव झलकता है , कश्मीर के लोगों से आपका क्या मतलब है ? क्या इस देश के हर राज्य के लोग यह फैसला करेंगे की वो राष्ट्रिय ध्वज फहराएँ या नहीं ? यह तो अराजकता है और यही इस देश और कश्मीर की राज्य सरकार कर रही है ।
    लाल चौक पर आप तिरंगा नहीं फहरा सकते लेकिन स्टेडियम में फहरा सकते हैं इससे बड़ा पाखंड और क्या हो सकता है ।

    आप कहती हैं की क्योंकि बीजेपी यह कह रही है इसलिए गलत है तो आप कब लाल चौक में झंडा फहराने जा रही हैं ।

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  22. @ डॉ. महेश सिन्हा, लाल चौक पर तिरंगा फहराने के विरोध में कौन है? अगर कश्मीर के लोग वहाँ तिरंगा फहराने जाते और प्रशासन और केन्द्र सरकार उनका विरोध करती तो ये निश्चित ही भर्त्सनीय होता, पर यदि कुछ राजनीतिक कार्यकर्त्ता बाहर से जाकर ऐसा करने का प्रयास करते हैं, तो शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्हें रोका जा सकता है. आखिर आपलोग 'आम लोगों के तिरंगे के प्रति प्रेम और उसे फहराने की आज़ादी' और 'राजनीतिक दलों द्वारा तिरंगे का अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग़' में अंतर क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

    @मुक्ति शायद आपने नहीं पढ़ा की कानूनी स्थिति क्या है और उसका कैसे मज़ाक उड़ाया जा रहा है ।
    आप की सोच में खुद अलगाव झलकता है , कश्मीर के लोगों से आपका क्या मतलब है ? क्या इस देश के हर राज्य के लोग यह फैसला करेंगे की वो राष्ट्रिय ध्वज फहराएँ या नहीं ? यह तो अराजकता है और यही इस देश और कश्मीर की राज्य सरकार कर रही है ।
    लाल चौक पर आप तिरंगा नहीं फहरा सकते लेकिन स्टेडियम में फहरा सकते हैं इससे बड़ा पाखंड और क्या हो सकता है ।

    आप कहती हैं की क्योंकि बीजेपी यह कह रही है इसलिए गलत है तो आप कब लाल चौक में झंडा फहराने जा रही हैं ।
    सागर नहर के बात की जवाब में जो आपने कहा कितना सही है की अपना राष्ट्र ध्वज लोग चोरी छुपे फहरा आते जैस कुछ लोगों ने पाकिस्तानी झण्डा फहरा कर किया , वाह क्या सोच है आपकी !!!!!!!!!!!!!!!!

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  23. मैं ये उल्लेख करना भूल गयी कि पूरी भारत की जनता ने 'क़ाज़ी तौकीर' को sms कर के जिताया था. जिसमे मेरी सहेलियाँ और मेरे बेटे भी शामिल थे.
    जहाँ मौका मिले,आम जनता, अपना प्यार दिखाने से नहीं चूकती. पर ये राजनीतिज्ञ हैं (हर पार्टी के ) जो वैमनस्य फैलाने से बाज़ नहीं आते.

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  24. आप खुद confused हैं आपके विचार से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है फिर उसके किसी से मिलने या अलग होने का प्रश्न कहाँ से आता है ।

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  25. यह ज़रूरी है कि काश्मीरियों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए. वैसे ही जैसे एक आम हिन्दुस्तानी की, लेकिन आज आम कश्मीरी अपनी इस स्थिति के लिए खुद भी काफी हद तक ज़िम्मेदार है. मासूमियत का तमगा दे कर और आम हितों की बात कर के हकीकत पर पर्दा नहीं डाला जा सकता है. हमेशा सिर्फ भाजपा की मंशा पर प्रश्नचिन्ह क्यों उठाया जा रहा है. काश्मीर के हाल जरा वहाँ जा कर देखिये.कश्मीर की इस स्थिति के लिए आप किसे जिम्मेदार ठहराएंगे. शायद वहाँ जा कर यह महसूस कर सकें कि आप भारत में हैं या पाकिस्तान में. फिलहाल वीडियो तो देख ही लीजिए.

    वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती
    हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

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  26. निष्कर्षतः
    एकल आमना सामना संवाद के बजाय मैं अपनी तई निम्न बिन्दुओं में उपसंहार करना चाहता हूँ -
    १-स्पष्ट है यहाँ विमर्श रत लोग अपने अपने निहितार्थों के चलते वैचारिक खेमे बना लिए हैं ....कुछ को तो जम्मू कश्मीर सरकार का ब्रैंड अम्बेसडर पद आसानी से हासिल हो जाएगा ..और उन्हें बिना देर आवेदन कर देना चहिये ....
    २-कुछ भावना विहीन लोग लोगों की सहज भावनाओं का मजाक उड़ाते फिर रहे हैं -यह भूल गए की इसी झंडे के लिए कितनी जाने लोगों ने न्योच्छावर कर दी ....आधुनिक वृहन्नलाओं की पहचान ऐसे ही मौकों पर होती हैं
    ३-यहाँ सायास अयोध्या का मुद्दा लाने की भी कोशिश हुयी है -मन का चोर सारे राज खोल रहा है -स्पष्ट है कुछ लोग गहरे ब्रेन वाश हो चुके हैं -निज समाज पहचान से कटे हुए भ्रमित लोग ..जिनसे सचमुच समाज राष्ट्र को कोयीअपेक्षा नहीं करनी चाहिए
    ४-अध्ययन ,वक्तृता का ऐसा पतन कहीं माँ सरस्वती को भी गहरा सदमा देता ही होगा -
    ..सर धुन गिरा लाग पछताना
    अंततः
    जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं है पशु निरा है , और मृतक समान है ! ...
    मृतकों से कैसा संवाद !

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  27. An outpouring of mind incapable of assimilating things in proper perspective.Once again an open display-a full public display - of one's inability to address sensitive issues in proper perspective.

    Ma'm how many times have you really bothered to react when anti national elements-the separatists in Kashmir or Naxalities in rest of the part of the country- openly entered into defamatory gestures ?Oh Yes!I have seen you many times shedding crocodile tears.I forgot.

    What about the progressive souls who openly promote people involved in seditious activities? Were you or Mr.Chidambaram sleeping when
    separatists entered in anti-India gestures at New Delhi ? Were you dead that you just could not post a simple post, the way you do when people not on par with your ideology get involved in something, lambasting the chosen rascals who on Sep.11,2010 waved Pakistani flag at Lal Chowk ?

    Shame on your prejudiced mind.Shame on your partisan attitude.BJP is playing politics.Accepted.Now what the hell are you doing ?

    Aren't you playing politics by concocting facts, by speaking the language of separatists in a sophisticated way ?

    Look at yourself first before pointing accusing fingers at others. The harsh truth is that you have turned into a person who has become slave to idealogical moorings ,to an extent that only possible act now possible for you is copy-pasting the views of distorted minds.Yo are no longer a logical mind.You are a programmed mind-the remote controlled ones.

    Okay.God Bless You.Sorry! There is no God for likes of you.The soul that governs the separatists bless you.

    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.instablogs.com/

    http://indowaves.wordpress.com/

    ***********

    Rest of the views can be read here:

    http://indowaves.wordpress.com/2011/01/28/hoisting-the-national-flag-is-a-crime-in-india/

    **********

    तिरंगा फहरे या ना फहरे भला ये भी क्या एक मुद्दा हो सकता है -On Wordpress

    ********

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  28. यानि वे दुश्मन देश का झंडा बड़ी धूमधाम से फहराएं तो कुछ नहीं, देश को कोसें कुछ नहीं और भाजपा को अपने ही देश का धवज फहराना हो तो चुपचाप दो तीन जने जाकर फहरा आएं। बड़ा अजीब सा सुझाव है आपका।
    कम से कम भाजपा ने प्रचार के लिए ही सही हिम्मत तो की।

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  29. मुक्ति आपके इस लेख मात्र से कितने लोगों के चेहरे बेनकाब हो गए हैं। सचमुच हम लोग देशभक्ति को मात्र झंडा फहराना ही समझ लेते हैं।

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  30. मुझे बस इस बात पर हंसी आ रही है कि 'भाजपा के लोग "चुपके" से जाते और झंडा फहरा के आ जाते.. किसी को पता भी नहीं चलता' .... हद है.. पता नहीं था कि इतने बड़े-बड़े विद्वतजन पड़े हैं यहाँ.. अगर ऐसे लोग इतिहास के बारे में लिखें तो शायद ये भी बोल दें कि गांधी को नमक बनाना था तो इतना हंगामा करने कि क्या जरुरत थी.. दो-चार लोगों के साथ जाते और चुपके से नमक बना लेते...
    ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा...

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  31. @Satish Chandra Satyarthi और सागर नाहर जी

    लोगों का अपने काम करने का एक तरीका होता है , वे उस काम को अपने तरीके से ही करेंगे। लेकिन मौका मिलने पर सब सिद्धान्त छोड़ कर सत्ता का सुख भोगने से कोई विरक्ति नहीं है ।
    जिनहे अच्छे से मालूम है की उनकी सत्ता इस देश में नहीं आ सकती वे अलगाववाद और नकसलवाद के हथियारों का ही छुप कर प्रयोग करेंगे

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स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…