शनिवार, 12 मार्च 2011

यह जानता है हमारे साहस और लालच को

आज जनपक्ष पर मेरे प्रिय कवि आलोक धन्वा की एक बेहद महत्वपूर्ण कविता जिलाधीश। आलोक जी किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं…उनका एक कविता संग्रह ' दुनिया रोज़ बनती है'…कविता की तमाम पोथियों पर भारी है…लंबे समय से उनका लिखा कुछ नया पढ़ने को नहीं मिला। यह कविता इसी उम्मीद के साथ पोस्ट कर रहा हूं कि जल्दी ही उनका कवि फिर सक्रिय हो।





जिलाधीश
तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो

तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो
जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो
एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था

तुम क्या सोचते हो
संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को वैसा ही रहने दिया है
जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी

यह जो आदमी
मेज़ की दूसरी ओर सुन रह है तुम्हें
कितने करीब और ध्यान से
यह राजा नहीं जिलाधीश है !

यह जिलाधीश है
जो राजाओं से आम तौर पर
बहुत ज़्यादा शिक्षित है
राजाओं से ज़्यादा तत्पर और संलग्न !

यह दूर किसी किले में - ऐश्वर्य की निर्जनता में नहीं
हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है
यह हमारी असफलताओं और गलतियों के बीच पला है
यह जानता है हमारे साहस और लालच को
राजाओं से बहुत ज़्यादा धैर्य और चिन्ता है इसके पास

यह ज़्यादा भ्रम पैदा कर सकता है
यह ज़्यादा अच्छी तरह हमे आजादी से दूर रख सकता है
कड़ी
कड़ी निगरानी चाहिए
सरकार के इस बेहतरीन दिमाग पर !

कभी-कभी तो इससे सीखना भी पड़ सकता है !

2 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी प्रिय कविता , शुक्रिया !

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  2. मेरी प्रिय कविता है . कुछ दिनों से याद कर रहा था . आपके सहयोग से पढ़ने को मिला , धन्यवाद !!

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