सोमवार, 23 मई 2011

कंधे पर एक बंदूक : शर्को फैक़ की दो कविताएँ


कुर्दी भाषा के कवि शर्को फैक़ (बेकस जूनियर), एक अन्य लोकप्रिय कुर्दिश कवि फैक़ अब्दुल्ला बेग (बेकस) के पुत्र हैं. शर्को फैक़ कुर्दिश मुक्ति आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़े रहे जिसकी झलक उनकी कविताओं में भी दिखाई पड़ती है. आन्दोलन के रेडियो स्टेशन वायस आफ कुर्दिस्तान के लिए 1984 से 1987 तक काम किया. उन्होंने अपने निर्वासन का कुछ समय इरान और स्वीडन में बिताया. 1991 में इराकी कुर्दिस्तान की मुक्ति के बाद वे अपने वतन वापस लौटे और 1994 तक वहां के संस्कृति मंत्री रहे.












तस्वीर

चार बच्चे
एक तुर्क, एक ईरानी
एक अरब और एक कुर्द
मिलकर एक आदमी की तस्वीर बना रहे थे.
पहले ने उसका सर बनाया
दूसरे ने उसका हाथ और ऊपर के अंग
तीसरे ने उसका पैर और धड़ बनाया
और चौथे ने उसके कंधे पर एक बंदूक.
[ 1979 ]
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अलगाव

अगर वे मेरी कविता से
फूल को निकाल दें,
मेरे चारो मौसमों में से एक ख़त्म हो जाएगा.
अगर वे मेरी प्रियतमा को निकाल दें,
दो मौसम ख़त्म हो जाएंगे.
अगर वे रोटी निकाल दें,
तीन मौसम ख़त्म हो जाएंगे.
और अगर वे निकाल दें आजादी,
मेरा पूरा साल ख़त्म हो जाएगा,
और मैं भी.
[ 1988 ]
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(अनुवाद : मनोज पटेल)

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार ,गज़ब की कविता ....................आज़ादी जिंदाबाद !
    बहुत बहुत धन्यवाद अशोक जी इस कविता को सहेजने के लिए !

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  2. मनोज जी शानदार अनुवाद के लिए आपको हार्दिक बधाई !

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