रामलीला मैदान में अभी-अभी खत्म हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने साफ़ और स्पष्ट जवाब देते हुए लोकपाल बिल के दायरे में NGO को भी शामिल किये जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है. विशेषकर जो NGO सरकार से पैसा नहीं लेते हैं उनको किसी भी कीमत में शामिल नहीं करने का एलान भी किया. ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधान तक सभी को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की जबरदस्ती और जिद्द पर अड़ी अन्ना टीम NGO को इस दायरे में लाने के खिलाफ शायद इसलिए है, क्योंकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, संदीप पाण्डेय ,अखिल गोगोई और खुद अन्ना हजारे भी केवल NGO ही चलाते हैं. अग्निवेश भी 3-4 NGO चलाने का ही धंधा करते है. और इन सबके NGO को देश कि जनता की गरीबी के नाम पर करोड़ो रुपये का चंदा विदेशों से ही मिलता है.इन दिनों पूरे देश को ईमानदारी और पारदर्शिता का पाठ पढ़ा रही ये टीम अब लोकपाल बिल के दायरे में खुद आने से क्यों डर/भाग रही है.भाई वाह...!!! क्या गज़ब की ईमानदारी है...!!!
इन दिनों अन्ना टीम की भक्ति में डूबी भीड़ के पास इस सवाल का कोई जवाब है क्या.....?????
जहां तक सवाल है सरकार से सहायता प्राप्त और नहीं प्राप्त NGO का तो मैं बताना चाहूंगा कि
भारत सरकार के Ministry of Home Affairs के Foreigners Division की FCRA Wing के दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2008-09 तक देश में कार्यरत ऐसे NGO's की संख्या 20088 थी, जिन्हें विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा चुकी थी.इन्हीं दस्तावेजों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान इन NGO's को विदेशी सहायता के रुप में 31473.56 करोड़ रुपये प्राप्त हुये. इसके अतिरिक्त देश में लगभग 33 लाख NGO's कार्यरत है.इनमें से अधिकांश NGO भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के परिजनों,परिचितों और उनके दलालों के है. केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अतिरिक्त देश के सभी राज्यों की सरकारों द्वारा जन कल्याण हेतु इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है.एक अनुमान के अनुसार इन NGO's को प्रतिवर्ष न्यूनतम लगभग 50,000.00 करोड़ रुपये देशी विदेशी सहायता के रुप में प्राप्त होते हैं. इसका सीधा मतलब यह है की पिछले एक दशक में इन NGO's को 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक मदद मिली. ताज्जुब की बात यह है की इतनी बड़ी रकम कब.? कहा.? कैसे.? और किस पर.? खर्च कर दी गई. इसकी कोई जानकारी उस जनता को नहीं दी जाती जिसके कल्याण के लिये, जिसके उत्थान के लिये विदेशी संस्थानों और देश की सरकारों द्वारा इन NGO's को आर्थिक मदद दी जाती है. इसका विवरण केवल भ्रष्ट NGO संचालकों, भ्रष्ट नेताओ, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों, भ्रष्ट बाबुओं, की जेबों तक सिमट कर रह जाता है. भौतिक रूप से इस रकम का इस्तेमाल कहीं नज़र नहीं आता. NGO's को मिलने वाली इतनी बड़ी सहायता राशि की प्राप्ति एवं उसके उपयोग की प्रक्रिया बिल्कुल भी पारदर्शी नही है. देश के गरीबों, मजबूरों, मजदूरों, शोषितों, दलितों, अनाथ बच्चो के उत्थान के नाम पर विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's की कोई जवाबदेही तय नहीं है. उनके द्वारा जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के भयंकर दुरुपयोग की चौकसी एवं जांच पड़ताल तथा उन्हें कठोर दंड दिए जाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है. लोकपाल बिल कमेटी में शामिल सिविल सोसायटी के उन सदस्यों ने जो खुद को सबसे बड़ा ईमानदार कहते हैं और जो स्वयम तथा उनके साथ देशभर में india against corruption की मुहिम चलाने वाले उनके अधिकांश साथी सहयोगी NGO's भी चलाते है लेकिन उन्होंने आजतक जनता के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के दसियों हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लूट लेने वाले NGO's के खिलाफ आश्चार्यजनक रूप से एक शब्द नहीं बोला है, NGO's को लोकपाल बिल के दायरे में लाने की बात तक नहीं की है.
इसलिए यह आवश्यक है की NGO's को विदेशी संस्थानों और देश में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न सरकारी विभागों से मिलने वाली आर्थिक सहायता को प्रस्तावित लोकपाल बिल के दायरे में लाया जाए. (कृपया इस पोस्ट को जितने ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकते हों उतने ज्यादा लोगों तक पहुंचाइये.) cortsey :- by Satish Chandra Mishra
http://www.facebook.com/note.php?note_id=267971263215480
एकदम सही कथन है।
जवाब देंहटाएंaapaki bat 100% sahi hai,aakhir kyon nahin isamain n.g.o ko samil kiya jana chahiye.aaj n.g.o dhesbhar main loot-khasot ke sabase bade madhyam hain.
जवाब देंहटाएंaapaki bat 100% sahi hai,aakhir kyon nahin isamain n.g.o ko samil kiya jana chahiye.aaj n.g.o dhesbhar main loot-khasot ke sabase bade madhyam hain.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी. जब अन्ना के ख़ास सहयोगी इससे प्रभावित होंगे, तो ज़ाहिर है, इसे शामिल नहीं किया जाएगा.एक जो तीसरा बिल विचारार्थ आनेवाला है--अरुणा रॉय का, उसमें यह प्रावधान है. हमारी कामना है कि वह बिल ज़्यादा समर्थन प्राप्त कर सके क्योंकि वह संसदीय प्रक्रियाओं के असम्मान के भी खिलाफ है,ज़्यादा तर्क संगत और व्यावहारिक है.ज़्यादा व्यापक भी है.
जवाब देंहटाएं.Lakhon kee taadat mein NGO hone ke baavjood bhi aam janta to NGO kya hote hai yah tak nahi jaanti, we kya kaam karte hai iske vishay mein batana to koson door kee baat hai....
जवाब देंहटाएं,....gambhir vicharniya vishay ko aam logon tak pahuchane ka aapka yah prayas sarhaniya aur anukarniya hai....
90 percent se bhi jyada log nahi jante ki lokpal kya he aur janlokpal kya he. filhal iski jagah to CAG ko thoda aur mazboot kar diya jaye to vah jyada asardar rahega, jo log bhid ka nazayaz fayda uda rahe he, yaad rakheN bhid inhe bhi nahi chhodegi, bas use pata bhar chal jaye ki NGO ka kya mamla he...
जवाब देंहटाएंachchi post padhvane k liye dhanyavad.
बडे-बडे एनजीओ मालिक लोकपाल विधेयक के दायरे में NGOs को नही लाना चाहते। सवाल है कि इनको लोकपाल विधेयक के दायरे में क्यों नही लाना चाहिए? सार्वजनिक पैसो पर चलने वाले इन NGOs पर कोई लगाम नही है। ये किसी के प्रति उतरदायी नही होते। उनके प्रति भी नही जिनके लिए ये तथाकथित NGO काम कर रहे है। इन दलित-गैरदलित NGO में कार्यरत कार्यकर्ताओं का खुलेआम शोषण होता है, किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा से उन्हे वंचित रखा जाता है, श्रम कानूनों की धज्जियाँ उडती है और मालिकगण खूब पैसा कमाते है - और उडाते है। ये बडी-बडी गाडियों में घूमते है, होटलो में पार्टियाँ होती है, और उनकी संपत्ति किसी उच्च वर्ग के उद्यमी के समान हो जाती है । इस भ्रष्टाचार को हमारे आदरणीय अन्ना हजारे और उनकी टीम छूना क्यों नही चाहती? क्या इसलिए कि वे सब भी बडी-बडी NGO के मालिक है ? अनिता भारती
जवाब देंहटाएंबडे-बडे एनजीओ मालिक लोकपाल विधेयक के दायरे में NGOs को नही लाना चाहते। सवाल है कि इनको लोकपाल विधेयक के दायरे में क्यों नही लाना चाहिए? सार्वजनिक पैसो पर चलने वाले इन NGOs पर कोई लगाम नही है। ये किसी के प्रति उतरदायी नही होते। उनके प्रति भी नही जिनके लिए ये तथाकथित NGO काम कर रहे है। इन दलित-गैरदलित NGO में कार्यरत कार्यकर्ताओं का खुलेआम शोषण होता है, किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा से उन्हे वंचित रखा जाता है, श्रम कानूनों की धज्जियाँ उडती है और मालिकगण खूब पैसा कमाते है - और उडाते है। ये बडी-बडी गाडियों में घूमते है, होटलो में पार्टियाँ होती है, और उनकी संपत्ति किसी उच्च वर्ग के उद्यमी के समान हो जाती है । इस भ्रष्टाचार को हमारे आदरणीय अन्ना हजारे और उनकी टीम छूना क्यों नही चाहती? क्या इसलिए कि वे सब भी बडी-बडी NGO के मालिक है ?
जवाब देंहटाएंसार्थक व् सटीक बात कही है आपने .क्या यही अन्ना टीम की ईमानदारी का सबूत ?आभार
जवाब देंहटाएंBLOG PAHELI NO.1
अगर टीम अन्ना एन जी ओ को लोकपाल के दायरे रखने कि बात करेगी तो उनके तथाकथित सहयोगी और मीडिया वहाँ से ऐसे गायब हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सिंग.
जवाब देंहटाएंanna team ngo and private sector ko isliye janlokpal k under nhi le rhi coz..yhi NGO and bde bde industrialist hi toh ye movement sponsor kr rhe hai. agr inhe bhi iske under le liya toh ye log support nhi krege ...is sb k liye money kaha se arrange hogi aur media ko kaun manage krega...is saare movement ko abhi ye sb log hi manage kr rhe hai..wrna bechare anna g ..unki hlth dekh kr ni lg rha ki wo 2 din bhi bhookhe rh skte hai..jaha tk mje lgta hai kiran g is movement ko isliye support kr rhi ki wo gov. k aganst hai coz is gov. ne unhe delhi ka commissioner bnane se mna kr diya tha..saare corrupt log toh is movement mai samil hai sayd isiliye ki unke against koi law na bne.. sare corrupt log isme samil ho kr apne ko shi sabit krna chahte hai ..kaisa public ko misguide kr rkha hai...isme sbse jyda media ki glti hai jo shi baat nhi btati..aur public ko misguide krti hai...same on u medi..ye koi mjak nhi ho rha isse country ka future juda hai ab toh smhl jaoo...kya is desh mai democracy khtm krke tanashahi lana chahte ho..
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