शनिवार, 29 सितंबर 2012

प्रो. बनवारी लाल शर्मा : एक आन्दोलनकारी का अचानक चले जाना




  • ए.के. अरुण 



राजनीतिक अस्थिरता और सहयोगियों के खुले विरोध के बावजूद मौजूदा केन्द्र सरकार जहां खुदरा व्यापार में एफडीआई को लागू करने के लिये हर तरह की ‘कुर्बानी’ देने का स्वांग कर रही है वहीं देश के खुदरा व्यापार में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ आन्दोलन खड़ा कर रहे आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक तथा अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के गणितज्ञ प्रो. बनवारी लाल शर्मा ने आज (26 सितंबर 2012) प्रातः 6.00 बजे पी.जी. आई चन्डीगढ़ में मौत के जुझते हुए दम तोड़ दिया। डा. शर्मा विगत एक हफ्ता से एफ डी आई, परमाणु खतरे, सेज एवं जन विरोधी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लोगों-किसानों के बुलावे पर हरियाणा-पंजाब के दौरे पर थे। हरियाणा के कुरूक्षेत्र तथा करनाल में किसानों-ग्रामीणों की सभा को संबोधित करने के दौरान उन्हें छाती में दर्द और कमजोरी की शिकायत हुई। स्थिति गम्भीर होने पर उन्हें पी.जी.आई चन्डीगढ़ में विगत 23 सितंबर 12 को भर्ती कराया गया। पी.जी.आई के विशेषज्ञों के अनुसार उनका हृदय बहुत कमजोर हालत में था और स्थिति काफी गम्भीर थी। जीवन रक्षक यंत्रों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और आज (26 सितम्बर 12) को तड़के 6.00 बजे उनकी मृत्यु हो गई।

प्रो. बनवारी लाल शर्मा 77 वर्ष के थे। वे इलाहाबाद विश्व विद्यालय में गणित के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष होते हुए अकादमिक तौर पर जहां अन्तराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात थे वहीं सन् 1974 में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले देशव्यापी सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में रहे। प्रो. शर्मा ने 5 जून 1989 को इलाहाबाद में सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के सेनानियों को लेकर ‘‘लोक स्वराज अभियान’’ की स्थापना की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहयोग से देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गतिविधियों का अध्ययन अनुसंधान शुरू किया। बाद में देश भर के सक्रिय समाजकर्मी, वैज्ञानिकों, पत्रकारों, छात्र-युवाओं को लेकर उन्होंने 8-9 जनवरी 1991 को वर्धा (नागपुर) स्थित सेवाग्राम में ‘आजादी बचाओ आन्दोलन’ की स्थापना की।

उल्लेखनीय है कि भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सक्रियता बढ़ रही थी। निजीकरण, वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के बढ़ते दुःप्रभाव के खिलाफ देश में लोगों-युवाओं-छात्रों केा संगठित करने वाला सम्भवतः यह पहला अहिंसक आन्दोलन है जो आज भी उसी तेवर और उत्साह से सक्रिय है। प्रो. बनवारी लाल शर्मा 1991 से अब तक नेतृत्व में आजादी बचाओ आन्दोलन ने सन् 1994 में देश भर से बहुचर्चित ‘‘डंकल प्रस्ताव’’ के खिलाफ एक करोड़ हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपा था और मांग की थी कि ‘‘डकंल प्रस्ताव’’ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गुलामी में देश को फसाने की साजिश है अतः भारत इस पर हस्ताक्षर न करे लेकिन सरकार ने आन्दोलन की मांग खारिज कर दी और डकंल प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिया। इस हार के बावजूद प्रो. शर्मा ने देश के अनेक जनपक्षीय अर्थशास्त्री, समाजकर्मी एवं योजनाकारों को लेकर लगातार सक्रिय रहे। प्रो. शर्मा के उस दौर के सहयोगियों में प्रो. कमल नयन काबरा, प्रो. अरुण कुमार, प्रो. यशपाल, श्री एस.पी. शुक्ला, श्री बी.के. कैला, डा. वन्दना शिवा, डा. मीरा शिवा, प्रो. धर्मपाल, प्रो. अरुण घोष, निखिल चक्रवर्ती, कुलदीप नैयर,, जस्टिस राजिन्दर सच्चर, किशन पटनायक, सिधराज ठढा, प्रो. ठाकुर दास बग, डा. वी.डी. शर्मा, मेधा पाटकर, जैसे सैंकड़ों जन सरोकारी लोग मिलकर आन्दोलन चला रहे थे।
डा. शर्मा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारनामों के खुले दस्तावेज थे। वे अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अकादमिक गतिविधियों के साथ साथ विकासशील कहे जाने वाले देशों के आत्मनिर्भरता और खुशहाली के लिये प्रतिबद्ध थे। डा. शर्मा ने विकासशील देशों के अर्न्तराष्ट्रीय गणित परिषद के कार्यकारी सचिव की जिम्मेवारी भी निभाई। वे 1986 से 1992 तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहे। उन्होंने गणित के टोपोलोजी के अनेक कठिन इक्वेशन भी हल किये। कहते हैं कि 1990 में एक रशियन गणितज्ञ द्वारा दिये गए कठिन चुनौती को उन्होंने सुलझाकर काफी प्रशंसा और सम्मान हासिल किया था।

आजादी बचाओ आन्दोलन के साथ साथ डॉ. शर्मा देश में चल रहे लगभग सभी अहिंसक जन-आन्दोलनों का एक मंत्र पर लाने के लिये काफी प्रयासरत रहे। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर तथा समाजवादी जन परिषद के नेता किशन पटनायक एवं गांधी वादी नेता सिधराज ढढा के साथ मिलकर उन्होंने "जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’’ (एन.ए.पी.एम.) को बनाने में अहम भूमिका निभाई। सन् 2001 में प्रो. शर्मा के नेतृत्व में आजादी बचाओ आन्दोलन ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के खिलाफ पहले 300 कि.मी. लम्बी मानव श्रृंखला, फिर वर्ष 2003 में 1000 कि.मी. वृत्ताकार मानव श्रृंखला बनाकर ऐतिहासिक विरोध दर्ज किया। उल्लेखनीय है कि इस विशाल आयोजन में लाखों लोगों की भागीदारी के बाववजूद कहीं कोई हिंसा नहीं हुई।

प्रो. बनवारी लाल शर्मा नई आजादी उद्घोष नामक पत्रिका के सम्पादक थे। नई आजादी पत्रिका देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के खिलाफ आन्दोलन की सर्वाधिक प्रसार वाली पत्रिका है जिसे हिन्दी के अलावे अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया गया। प्रो. शर्मा ने बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के खिलाफ दुनियां में चल रहे आन्दोलनों के कई साहित्य का भी अनुवाद किया है। उनके पसन्द की पुस्तकों में ग्लोबल कान्सपिरेसी ;लेखक.निकोला एम निकोलोवद्ध, ह्नेन कारपोरेशन रूल्स द वर्ल्ड ;लेखक. डेविड कार्टनद्ध आदि प्रमुख हैं। प्रो. शर्मा ने इन पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद भी किया और आज यह पुस्तकें देशभर में आन्दोलनकारियों की पसन्दीदा पुस्तकों में शुमार है।

प्रो. शर्मा ने देश में भारतीयता और भारतीय शिक्षा संस्कृति की स्थापना के लिये सन् 2004 में स्वराज विद्यापीठ की भी स्थापना कि। यह विद्यापीठ देश के युवाओं के मस्तिष्क को स्वदेशी एवं स्वाधीन बनाने के लिये अनेक निःशुल्क पाठ्यक्रम चलाता है। प्रो. शर्मा का मानना था कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने हमारी शिक्षा संस्कृति को इस कदर प्रभावित कर लिया है कि उससे निकला छात्र भगत के पक्ष में सोच ही नहीं पा रहा और वह योग्य और तेजस्वी ज्ञान का मालिक होकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गुलामी में लग जाता है।
आजादी बचाओ आन्दोलन ही नहीं अन्य आन्दोलनों के लिये भी प्रो. शर्मा का असमय जाना एक बड़ी गहरी क्षति है। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अन्तिम समय में प्रो. शर्मा के अन्तिम वाक्य थे- ‘‘धोखेबाजों में सावधान रहना, देश के स्वाभिमान की रक्षा अपने प्राणों से भी ज्यादा जरूरी हैं।’’ निःसन्देह प्रो. शर्मा का अचानक चले जाना देश के स्वदेशी आन्दोलन के लिये एक बड़ा आघात है। आजादी बचाओ आन्दोलन के अन्य कार्यकर्ताओं को अब उनके सपनों को पूरा करने की जिम्मेवारी उठानी होगी।


*लेखक एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता, जन स्वास्थ्यकर्मी तथा युवा संवाद नामक पत्रिका के सम्पादक हैं.

4 टिप्‍पणियां:

  1. एम् पी में पिछले साल बेटमा की किसानो को सेज से उनका हक दिलाने के लिए तगड़ा आंदोलन किया था ,जो आज भी जरी हे उनके चले जाने से किसान आंदोलन को गम्भीर क्षति हुई हे ..लाल सलाम कामरेड बनवारी लाल

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  2. बनवारी लाल ने जो अलख जगाई वह जलती रहेगी और उनके नारों, विमर्शों और व्याख्यानों की आवाज देर तक गूंजती रहेगी। वह आवाज इसलिए भी गूंजती रहेगी कि उसके पीछे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए हो रहे वैश्वीकरण की अमानवीय नीतियों का विरोध ही नहीं मानवता के पक्ष में वैश्वीकरण किए जाने का मुकम्मल आह्वान है।

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  3. एक ये भी गणित वाले थे ,जिनका फार्मूला वंचितों के पक्ष में था , और एक वे सब भी गणित वाले ही हैं , जो देश को ही हल कर देना कहते है ...विनम्र श्रधांजलि ...

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  4. बनवारी लाल ने जो अलख जगाई वह जलती रहेगी और उनके नारों, विमर्शों और व्याख्यानों की आवाज देर तक गूंजती रहेगी।

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