बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

मलाला, तुम इतनी मासूम लगी मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते है! - कैलाश वानखेड़े


कैलाश वानखेड़े को हम एक कहानीकार के रूप में अधिक जानते हैं. इस कविता में भी शिल्प के तौर पर वह कहानीपन भरपूर है. लेकिन जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह है स्वात की मलाला को हरियाणा की प्रियंका या गुवाहाटी की इरोम के साथ जोड़कर इस उपमहाद्वीप में औरत की गुलामी और उस पर जारी सामन्ती-पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध प्रतिबद्ध आवाज. मलाला के साथ एकता प्रदर्शित करते हुए जनपक्ष इस कविता के माध्यम से उसके समर्थन में अपनी आवाज़ दर्ज कराता है 



गुल मकई
                            
पीर बाबा की मजार पर दुआओं की कतार में भेड़ बनने की बजाय तुम घूमती रही

आकर्षक नकली जेवर लुभा न सके तुम्हें

बंद स्कूल में गुलाबी कपड़ों में खेले गए आखरी दिन की यादें

सहेली ,वह टीचर जिसे कर्फ्यू के बाद आना था ..

किसकी तलाश में गई थी गुल मकई,पीर बाबा की मजार पर  ?


''सच -सच बताओं कि क्या हमारे स्कूल पर तालिबान हमला  करेगा ?''

सवाल रख दिया  तुमने जमाने के सामने अपनी सहेली का .

नहीं लिखा जवाब डायरी में ,

तुम्हारे जवाबी  शब्द

बुद्ध  के पास अपनी खोई ताकत के लिए चले गए थे क्या  ?

या तुमने रख लिया था उसे  अपने  गुल्लक में ताकि बुरे वक्त में काम आये ?

कहाँ है वे जवाबी  शब्द ,गुल मकई ....




मलाला, तुम इतनी मासूम लगी मुझे कि तुम्हारे भीतर  बुद्ध दिखते है

बामियान में तोपों से ध्वस्त न  हो सके थे बुद्ध ,

कौन मिटा सका धरती से बुद्ध को

 तो तुम्हें  भी  ध्वस्त नहीं कर नहीं पायेगा कोई , गुल मकई .

तुम्हारे साथ की लडकिया जानती है फरवरी में खुल नहीं पायेगे स्कूल

वे चली जाएगी स्वात की घाटी छोड़कर बेनाम कस्बों में

नहीं मिल पाएंगी ,यह जानती है लडकिया और खेलती है मैदान में

जबकि फिजा में बिखरा है तालिबान ..तालिबान ..तालिबान ..

तालिबान हमारे यहाँ शास्त्रों से पुराणों से निकला हुआ

समाज की रग रग से दिमाग में है ,जबान पर ,छिपकर करता है

गुरिल्ला हमला ..न जाने कितनी बार मारे जाते है

फिर जी उठते है .



मलाला तुम्हारे दिमाग में गोली मारकर 
सोचते है वे कि मार दिया तुम्हे ,

एक  सी रणनीति है तुम्हारे और हमारे तालिबानों की .

दिमाग पर वार करो ,बाकि  युद्ध ..वार जीत लेंगे यू ही ...

युद्ध भूमि बना दी गई जगह पर पढ़ती हो ..खेलती हो ..

कितना मुश्किल होता है जब पता हो  कि आज स्कूल का आखिरी दिन है

दुबारा नहीं खुलेगा स्कूल तुम  सब जानती हो

और खेलती हो

आखरी दिन स्कूली जिन्दगी का ...



....कौन सा खेल है तुम्हारा  देशी विदेशी तालिबानियों ?

मलाला ,खेल का नाम  मालुम है  मुझे

उस

इस... खेल का

एक टांग से खेलती होगी दुसरे को छूने का खेल

बनाकर कपड़ों की गेंद ,लगाती होगी निशाना

चंद पत्थरों को एक दुसरे पर जमाकर ,गिराती होगी

हंसती होगी ,ढेर सारे प्यार और खुलेपन के साथ

गूंज उठती होगी स्वात की घाटी

टकराते होंगे कई पहाड़

आखरी दिन की हंसी से भरी ख़ुशी से

डरते होंगे ,रूह कांपती  होगी तालिबानियों की .



गुल मकई ,

हमारे यहाँ भी  जी भरकर हंसती नहीं है लडकिया

खेलती है

मुस्कुराती है

और अखबार से पता चलता है कि मारी जाती है

हो जाता है बलात्कार

इससे बचने के लिए फतवा जारी होता है तालिबानियों का  ,मलाला

कि कर दो पन्द्रह की उमर में शादी

छः साल की आठ की ग्यारह साल की लड़की बच नहीं पाती

हैवानों से ,

उनका क्या करे  तालिबानियों  ?



गुल मकई

भूल जाता हूँ  कि महा ज्ञानी ,विश्व के पथ प्रदर्शक  देश का हूँ

जहाँ सब कुछ जानते है

तभी तो लड़कियों को कोख में ही मारते है

बड़ी हो जाये तो दहेज़ के लिए जलाते है

जी आया तो बलात्कार कर नहर में फेंक देते है

पिता ,पति या पुत्र  के अधीन रहने का हुक्म है ...

और सबसे पालन करवाया जाता है .

तभी तो मंदिर प्रवेश वर्जित है

कोई नहीं बोलता क्यों हो रहा है तालिबानी आदेश का पालन

कि मंदिर प्रसाद का काम महिलाओं के समूह को नहीं दिया जाता है

कि वे अपवित्र होती है ,पवित्र देश के पावन पुरुषों के देश में .

हैवानों ,तालिबानियों  को

पैदा करने वाली माँये

संरक्षणकर्ता पिता दादाओं ...



न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव के हरियाणा में ज़ारी यौन हिंसा
के खिलाफ धरने के दौरान मुकुल दुबे की खींची तस्वीर  
कब और कैसी बच पायेगी गुल मकई ..

क्यों नहीं जीने देते हो उन्हें मन मौज से

मनमानी करने

खुलकर हंसने से

कि गूंज उठे

कटकटपूरा से स्वात की घाटी .

क्यों डरते हो ..?



मलाला ,

तुम्हे और तुम्हारी माँ को पसंद है ,गुल मकई नाम

लेकिन स्कूल में दर्ज होता है  मलाला ..

नाम क्या हो ?

यहाँ भी तय नहीं करती माँए अपनी लाडली का .

पसंद का नाम भी रखे जाने से डरते है .

तभी रखते है मलाला ,जिसके मायने है ,

''शोक में डूबा हुआ इंसान .''



गुल मकई ,

हमारे यहाँ खैरलांजी से लेकर मिर्चपुर में

मारी जाती है लडकिया प्रियंका हो या सुमन ..

गुहाआटी की लड़की से इरोम तक ..

चुप रहते है कि उनकी लड़की नहीं है वह

उस लड़की से क्या लेना देना

विकास के आंकड़े ,हाई वे ,रोप वे के बीच

किस वे की बात कर रहा हूँ ..?



 गुल,

मुझे समझ नहीं आ रहा है

डायरी मै भी लिखना चाह रहा हूँ

दर्ज करना है मुझे भी

प्रताड़ना के तमाम तीर

अभी कल ही दुर्गा से बात की थी

फेसबुक के संसार में

दसवी पास नहीं कर सकी थी

जिसका जितना जी चाहे उतना पढ़े

का ख्वाब देखता हू कि आज पता चला

तुम्हारा सपना देखा मैंने .

बुखार में

लगता है अभी भी नहीं उतरा  ताप मेरा

बना रहे ताउम्र बुखार मेरा



मगर

गुल मकई

तुम्हारा ज़िन्दा रहना जरुरी है.



मलाला युसुफजई ,स्वात घाटी की चौदह साल की लड़की है .तालिबान ने विद्यालय बंद कर दिए थे .2009 में मलाला ने गुल मकई के नाम से बी बी सी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया. सातवी में पढ़ रही मलाला ने तालिबान के फतवे का असर को दर्ज किया था .9 अक्टूबर 2012 को स्कूल जाते वक्त शहर मिंगोरा में तालिबानी ने  उसके सिर में गोली मारी .वह अभी लन्दन के एक अस्पताल में है.

*सभी तस्वीरें गूगल से साभार

21 टिप्‍पणियां:

  1. वीर मलाला-

    उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
    बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
    उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
    पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहिं वीर मलाला ।।

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  2. सच में, यह कविता पूरे एशिया महाद्वीप में औरतों की अपने अस्तित्व की लड़ाई का एक दस्तावेज है. आभार आपका और कैलाश जी को धन्यवाद इस कविता के लिए.

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  3. कैलाश जी की इस कविता ने कितने प्रश्न खड़े कर दिये हैं ..... झकझोर देने वाली रचना ....

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  4. एक सी रणनीति है तुम्हारे और हमारे तालिबानों की .

    दिमाग पर वार करो ,बाकि युद्ध ..वार जीत लेंगे यू ही ...

    इससे बचने के लिए फतवा जारी होता है तालिबानियों का ,मलाला

    कि कर दो पन्द्रह की उमर में शादी

    कि वे अपवित्र होती है ,पवित्र देश के पावन पुरुषों के देश में .

    सारा दर्द इस तरह बह रहा है कि छू कर गुजरता है हर पाठक के दिल को

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  5. '.. वे अपवित्र होती है ,
    पवित्र देश के पावन पुरुषों के देश में .
    हैवानों ,तालिबानियों को
    पैदा करने वाली माँये
    संरक्षणकर्ता पिता दादाओं ...
    क्यों नहीं जीने देते हो उन्हें मन मौज से?'
    -
    कौन उत्तर देगा !

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  6. इस रक्तबीज की तरह तालिबानी मानसिकता का संहार भी नारी-शक्ति के हाथों से होना चाहिए . पर हाय ! अबला तेरी कैसी कहानी ?

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  7. शब्‍द .. शब्‍द एक सवाल उठाता है ...
    सार्थकता लिये सशक्‍त लेखन आभार आपका

    सादर

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  8. रौंगटे खडे करती सच्चाई के हर पहलू को उजागर करती इस कृति को नमन है।

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  9. एक एक शब्द दिल को छू जाता है..कब खत्म होगी यह तालिबानी मानसिकता.....बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

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  10. sach aaj bhi kya stithi hai samaaj me ladkiyon kee ..Malaala kee ladai abhi jaari hai... in prasno ko hal hona hoga

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  11. कैलाश जी की सीधे दिल में उतरने वाली इस मर्मस्पर्शी कविता के लिया आभार...
    सुन्दर सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका आभार

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  12. Very good and heart touching poem, bar bar man main sawal aata hain, kab badlegi ye mansikta?

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  13. आप सबका आभार .मिलकर बदलेगी मानसिकता

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  14. man mastishk ko jhakjhorne waali kavita....kavita kya sachchai....bahut bahut badhia....minakshi jijivisha

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  15. जिनसे बड़े बड़े देशों की ताकतवर फौज नहीं लड़ पायी, उसे १४ साल की बच्ची ने धुल चटा दी. आतंकवाद का अंत बंदूकें नहीं कर सकती.
    जिस दिन हर हाथ में कलम आ जाएगी उसी दिन दुनिया से आतंकवाद ख़त्म हो जायेगा.
    मलाला की फैलाई हुयी जन चेतना, इंशाल्लाह जल्दी इस धरती को फिर से जन्नत बना देगी.

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  16. wo Ramayan mujh ko abhisht ,seeta na jahaan nirvasit ho,wo mahabhatrat hai mera swapn ,jahan dropdi na nirvastrit ho,main valmiki_o_vyas putri nav_ gatha gane aai hoon,
    Ardhnarishwar ki wo kalpna satya karane aai hoon!

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स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…