रविवार, 25 अगस्त 2013

शास्त्र सम्मत नहीं है अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा

(अरुण जी का यह लेख आज आगरा से निकलने वाले दैनिक कल्पतरु एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ है. यह लेख धर्म के अपने टूल्स से हालिया घटनाक्रम की विवेचना कर स्पष्ट बताता है कि किस तरह इस कथित धार्मिक यात्रा का उपयोग आगामी लोकसभा चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है)






अरुण कुमार त्रिपाठी



 विश्व हिंदू परिषद की तरफ से प्रस्तावित अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा न तो शास्त्र सम्मत है न ही वह 18 वीं सदी  में शुरू हुई परंपरा के अनुरूप।  उसका मकसद गलत समय पर गलत परंपरा डालना है और आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर राजनीतिक ध्रुवीकरण करना है। इसलिए यह परंपरा के नाम पर एक नया विवाद खड़ा करने की कोशिश  है।  यह बात  धर्माचार्यों  और राजनीतिज्ञों ने महसूस की है। 

ब्रजाचार्य पीठाधीश गोस्वामी स्वामी दीपकराज भट्ट का मानना है कि अयोध्या के चौरासी कोस की परिक्रमा की परंपरा न तो प्राचीन है न ही शास्त्र सम्मत।  इसे 18 वीं सदी में रामानंद संप्रदाय के लोगों ने शुरू किया। जब से कुंभ में नागा साधुओं के स्नान की परंपरा शुरू हुई और अयोध्या में हनुमान गढ़ी की स्थापना हुई लगभग उसी से जुड़ कर निकली अयोध्या के चौरासी कोस की परिक्रमा।  ब्रज उद्धारक नारायण भट्ट की 18 वीं पीढ़ी के आचार्य दीपक राज जी का कहना है कि  रामनंदियों और रामानुजों ने न सिर्फ अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा शुरू करवाई बल्कि मिथिला की में भी इसी तरह की परिक्रमा शुरू की।  आज लोकजीवन में किसी को इसका स्मरण भीनहीं है।  अयोध्या की भी परिक्रमा को भी किसी धर्माचार्य की मान्यता नहीं है।  नारायण भट्ट जी, माधवाचार्य जी और बल्लभाचार्य जी किसी ने भी इसे मान्यता नहीं दी है।  दरअसल चौरासी कोस परिक्रमा की परंपरा ब्रज में रही है।  वही प्राचीन है और वही शास्त्र सम्मत है। इसका जिक्र ग्राउस, ग्रियर्सन और गिलक्राइस्ट ने भी किया है।  तवारीखे फिरोजशाही में भी इसका वर्णन है। यह परंपरा कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाथ ने शुरू की थी।  दीपक राज भट्ट जी का मानना है कि राम नाम का महत्व तो  प्राचीन समय से रहा है लेकिन अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम को भगवान की मान्यता बहुत बाद में मिली है।  चौरासी कोस की यह परिक्रमा उसी राम के ईश्वरीय महत्व को स्थापित करने का प्रयास था।  अयोध्या की इस परिक्रमा का महत्व उसी तरह का नहीं बन नहीं पाया जैसे तमाम साईं हुए लेकिन सिरडी वाले के अलावा सभी का वैसा महत्व नहीं बना।  पहले तो यह महज पांच कोस की होती थी और बाद में सात फिर चौदह कोस की हो गई।  यह सब धर्मांधता बढ़ने और धर्म में राजमनीति का घालमेल होने से हुआ। जबकि अयोध्या नए घाट के निवासी धर्माचार्य रघुनाथ दास त्रिपाठी का कहना है कि अयोध्या की चौरासी कोस परिक्रमा का जिक्र अयोध्या महात्म्य में है।  यह अनादिकाल से भगवान राम से जुड़ी है।  श्री त्रिपाठी का कहना है कि वह परंपरा तो अक्षय तृतीया से जानकी नवमी के बीच होती है।  वह इस साल 25 अप्रैल से 20 मई के बीच  संपन्न हो चुकी है।  यह परिक्रमा फैजाबाद, बस्ती, गोंडा से गुजरती है। इसकी शुरुआत बस्ती जिले के मखौड़ा नामक स्थान  से होती है और रास्ते में परशुरामपुर और  विक्रमजोत वगैरह इसके पड़ाव हैं।  इसमें व्यापक तौर पर संत समाज शामिल होता है और थोड़े बहुत गृहस्थ भी।  विहिप अभी जिस परिक्रमा की बात कर रही थी उसका मकसद अलग है। राज्यमंत्री और अयोध्या के पूर्व विधायक जयशंकर पांडे का कहना है कि विहिप की इस प्रस्तावित परिक्रमा पर रोक लगाकर ठीक किया गया, क्योंकि यह धार्मिक नहीं, राजनीतिक यात्रा थी।  यह भारतीय दर्शन और परंपरा को छोड़कर नई परंपरा शुरू करने का प्रयास था। बल्कि विहिप के ज्ञापन में ही लिखा था कि वे राम मंदिर निर्माण के लिए जनजागरण के मकसद से यह करना चाहते हैं।  उनका प्रयास इस इलाके में पड़ने वाले फैजाबाद, गोंडा, बस्ती आंबेडकर नगर समेत चार-पांच लोकसभा क्षेत्रों को प्रभावित करने का है।  पर यह तो बड़बोलापन है। आखिर कोई काम शास्त्र सम्मत ही किया जाएगा ? अब कार्तिक पूर्णिमा अमावस्या के दिन तो नहीं पड़ेगी।  रामनवमी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नहीं पड़ेगी।  चौदह कोसी परिक्रमा संत समाज की  है उसमें गृहस्थ नहीं जाते रहे हैं।  अब उसे आम जनता से जोड़ने का उद्देश्य कुछ और है।  सवाल उठता है कि जब भाजपा की सरकार थी, तब विहिप ने क्यों नहीं की यह परिक्रमा। दूसरी तरफ शहीद शोध संस्थान फैजाबाद के प्रबंध निदेशक सूर्यकांत पांडे का कहना है कि मुलायम सिंह और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक तो विहिप के नेता अशोक सिंघल से मिलकर गलती की और फिर इस परिक्रमा पर पाबंदी लगाकर।  अब रोक लगाने से विहिप अपने  मकसद  में कामयाब हो गई है।  सपा को इस काम में अपने कार्यकर्ताओं को लगा देना था। इसके विहिप विफल हो जाती।  उनका कहना है कि यह परिक्रमा उस समय से हो रही है जब भगवान राम का जन्म होने वाला था और संतों को उसका अहसास हो गया था, लेकिन इसमें आम जन नहीं जाता।  इसकी खत्म होने की तारीख तय है, इसलिए इसे हर समय नहीं किया जा सकता। जाहिर है विहिप का उद्देश्य मंदिर आंदोलन को फिर से गरमाना है।

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लेखक जाने माने पत्रकार हैं और लोहियावादी विचारक. सम्प्रति कल्पतरु एक्सप्रेस के सम्पादक हैं.

संपर्क - tripathiarunk@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. लेख सामयिक है और तथ्यपूर्ण भी.मुलायम सिंह ने हमेशा अपने अटपटे फैसलों से भाजपा को फायदा पहुँचाया है ..आखिर दमन चोली का साथ जो है...पाबंदी लगाने से पूरे भारत में लोग जान गए कि विहिप जाने कौन सा बम चलाने वाली है? इन पाखंडियो की यात्रा के बाद इन्हें अपनी औकात का पता चल जाना चाहिए साथ ही मुलायम सिंह जैसे रंगे सियारों का भी पर्दाफाश हो गया. लेख में कुछ त्रुटियाँ है जिन्हें ठीक किया जा सकता है.

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  2. इन धूर्तो की कोशिशो के बाद भी जनता सजग हो गयी है|वोटर को मूर्ख बनाने से इनका और नुक्सान होने वाला है|अच्छा लेख|

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  3. अयोध्या के आस पास ५ कोसी , १४ कोसी और ८४ कोसी परिक्रमा बरसों से चली आ रही है और मैं बचपन से इसे देख रहा हूँ ! ८४ कोसी परिक्रमा केवल साधू संत करते आये हैं , आम नागरिक चाहे शहरी हो या ग्रामीण , इसमें इक्का दुक्का ही जाता है ! जहाँ तक मुझे ज्ञात है इस साल की ८४ कोसी परिक्रमा पहले ही हो चुकी है ! विहिप का इस समय मुद्दा उठाना सिर्फ एक शरारत है और ऐसा लगता है कि इसकी रणनीति मुलायम और विहिप ने अपनी बैठक में तैयार की है ! फर्जी में हज़ारों की फ़ोर्स लगाकर और फर्जी यात्रा रोक कर सरकार ने ध्रुवीकरण किया है ! विहिप भी भावनाओं को भुनाएगी ! यही चाल है ! अभी भी लोगों को यदि नहीं दीख रहा है तो क्या कहा जाय !

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  4. अयोध्या के आस पास ५ कोसी , १४ कोसी और ८४ कोसी परिक्रमा बरसों से चली आ रही है और मैं बचपन से इसे देख रहा हूँ ! ८४ कोसी परिक्रमा केवल साधू संत करते आये हैं , आम नागरिक चाहे शहरी हो या ग्रामीण , इसमें इक्का दुक्का ही जाता है ! जहाँ तक मुझे ज्ञात है इस साल की ८४ कोसी परिक्रमा पहले ही हो चुकी है ! विहिप का इस समय मुद्दा उठाना सिर्फ एक शरारत है और ऐसा लगता है कि इसकी रणनीति मुलायम और विहिप ने अपनी बैठक में तैयार की है ! फर्जी में हज़ारों की फ़ोर्स लगाकर और फर्जी यात्रा रोक कर सरकार ने ध्रुवीकरण किया है ! विहिप भी भावनाओं को भुनाएगी ! यही चाल है ! अभी भी लोगों को यदि नहीं दीख रहा है तो क्या कहा जाय !

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  5. अच्‍छा और जरूरी लेख. इस तरह से तथ्‍यात्‍मक विश्‍लेषण द्वारा हमें धार्मिक उन्‍मादों की साजिश का पुरजोर विरोध करना चाहिए. शुक्रिया.

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