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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

शैलेन्द्र चौहान की दो कवितायें

जीत का क्या !

उस दिन
शिवराम जी ने कहा था
हार का क्या मतलब
हार गए तो हार गए

इस बात की चिंता
खेलने न दे खेल
तो भी कहाँ है जीत
और जीत का भी
क्या भरोसा
कि कायम रहे हमेशा

निरंतर कोशिश
जारी रखने का नाम है
जीवन
जीतें न जीतें
करते रहें अपना कर्म सोद्देश्य
रहें सक्रिय
औरों के लिए हो
हमारी संवेदना

मित्र
यह भी किसी
जीत से कुछ कम नहीं

-------


हमें उस दुनिया से क्या

आओ
कुछ उथली उथली बातें करें
आओ
खूबसूरत चेहरों की आरती उतारें
आओ
नामवरों की प्रशस्ति में गाएँ
आओ
धनपति कुबेरों के चरणों में लोट जाएँ
मौज मनाएं
फूहड़ गीत गाएँ

हमें उस दुनिया से क्या
जो सबके सुखी होने की राह जोहती है
दुखियों की आँखों से आंसू पोंछती है
जो बलात्कारियों को सजा देने की बात करती है
कमजोरों के हक की वकालत करती है

कोई
कुछ भी करे-सोचे
हम तो
अपनी मस्तियों में हैं मस्त
बजा रहे हैं बांसुरी

जले देश
जले गाँव
जले आसपास
हमें क्या !

रविवार, 3 अक्टूबर 2010

ये आंधी नहीं थमेगी

रंगकर्मी, मार्क्सवादी चिंतक और जननेता शिवराम 
को नम आँखों से विदाई दी

अंतिम दर्शन


पुत्र रविकुमार और पौत्री चीया



तुम रहोगे इन निशानों में

भास्कर से एक रिपोर्ट.....

शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

कवि , रंगकर्मी , नाटककार, अभिव्यक्ति के सम्पादक शिवराम नहीं रहे

कल शाम अचानक यह दुखद समाचार मिला कि कोटा में कवि नाटककार और 'अभिव्यक्ति ' के सम्पादक शिवराम का निधन हो गया है । एक पल के लिये विश्वास नहीं हुआ । कोटा में श्री दिनेशराय द्विवेदी जी से सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन सम्पर्क नहीं हुआ । कुछ ही देर में प्रेमचन्द गांधी का संदेश मोबाइल पर मिला और फेसबुक पर रमेश कुमार उपाध्याय जी ने यह सूचना दी । फिर द्विवेदी जी के ब्लॉग अनवरत पर यह खबर देखी । जो सच था उस पर विश्वास करना ही पड़ा ।
शिवराम जी का परिचय : शिवराम जी का जन्म 23 दिसंबर 1949 को राजस्थान के करौली नगर में हुआ था । उन्होने गढ़ी बांदुवा, करौली और अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात वे दूर संचार विभाग में तकनीशियन के पद पर नियुक्त हुए । मार्क्सवाद के संपर्क में आने के बाद अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होने नाटक और विशेष रूप से नुक्कड़ नाटक को सब से उत्तम साधन माना । वे नुक्कड़ नाटक लिखने और आसपास के लोगों को जुटा कर उन का मंचन करने लगे । उन का नाटक 'जनता पागल हो गई है' हिन्दी के प्रारंभिक नुक्कड़ नाटकों में एक है। यह हिन्दी का सर्वाधिक मंचित नाटक है। इस नाटक और शिवराम के अन्य कुछ नाटक अन्य भाषाओं में अनुदित किए गए और देश भर में खेले गए। वे नाट्य लेखक ही नहीं थे , अपितु लगातार उन के मंचन करते हुए एक कुशल निर्देशक और अभिनेता भी हो चुके थे । वे पिछले 33 वर्षों से हिन्दी की महत्वपूर्ण साहित्यिक लघु पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का संपादन कर रहे थे।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सांगठनिक काम के महत्व को वे अच्छी तरह जानते थे । आरंभ में प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे। जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से वे एक थे। लेकिन जल्दी ही सैद्धान्तिक मतभेद के कारण वे अलग हुए और अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा 'विकल्प' के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । वर्तमान में वे 'विकल्प' के महासचिव थे। मूलतः सृजनधर्मी होते हुए भी संघर्षशील जन संगठनों के निर्माण को वे समाज परिवर्तन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे और संगठनों के निर्माण का कोई अवसर हाथ से न जाने देते थे । वे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ प्रभावशाली वक्ता , कवि , अध्येता और चिंतक भी थे । श्रमिक-कर्मचारी आंदोलनों में स्थानीय स्तर से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न नेतृत्वकारी दायित्वों का उन्हों ने निर्वहन किया। अनेक महत्वपूर्ण आंदोलनों का उन्होंने नेतृत्व किया ।
दूरसंचार विभाग से सेवानिवृत्त होने के उपरांत उन्हों ने भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) {एमसीपीआई (यू)}की सदस्यता ग्रहण की और शीघ्र ही वे पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य हो गए।

उन की प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं ---
  • जनता पागल हो गई है (नाटक संग्रह)
  • घुसपैठिए (नाटक संग्रह)
  • दुलारी की माँ (नाटक)
  • एक गाँव की कहानी (नाटक)
  • राधेया की कहानी (नाटक)
  • सूली ऊपर सेज (सेज पर विवेचनात्मक पुस्तक)
  • पुनर्नव (नाट्य रूपांतर संग्रह)
  • गटक चूरमा (नाटक संग्रह)
  • माटी मुळकेगी एक दिन (कविता संग्रह)
  • कुछ तो हाथ गहो (कविता संग्रह)
  • खुद साधो पतवार (कविता संग्रह)
आज दो अक्तूबर को प्रात: दस बजे कोटा में उनका अंतिम संस्कार किया गया । जनपक्ष की ओर से कवि नाटककार , रंगकर्मी और मजदूरों के जुझारू नेता कामरेड शिवराम को शत शत नमन और लाल सलाम ।