सोमवार, 12 जुलाई 2010

यह एक तरह से विचारधारात्मक युद्ध है।

(यह नोम चाम्स्की के आलेख कितना मुक्त है मुक्त बाज़ार की दूसरी क़िस्त है। पहली क़िस्त यहां और पूरा आलेख यहां पढ़ा जा सकता है। जनपक्ष के लिये इसे उपलब्ध कराया है भाई अनूप सेठी ने।)





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इतना ही नहीं, जिसे व्यापार कहा जाता है वह कहने भर को ही है। वह कोई वास्तविक कारोबार नहीं है। यह तथाकथित व्यापार एक बड़े निगम (कारपोरेशन) का आंतरिक लेनदेन भर है। अमरीका द्वारा मैक्सिको को किया गया आधे से ज्यादा निर्यात मैक्सिको के बाजार में पहुंचता तक नहीं है। चीजों को जनरल मोटर्स की एक से दूसरी शाखा में स्थानांतरित भर किया जाता है, क्योंकि सीमा पार मजदूरी कहीं ज्यादा सस्ती है। ऊपर से आपको प्रदूषण की परवाह भी नहीं करनी होती है। लेकिन यह सही मानेमें तो कारोबार नहीं है। यह किसी राशन की दुकान में किसी डिब्बे को एक से दूसरे खाने में रख देने भर से ज्यादा बड़ी चीज नहीं है। संयोग है कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर ली जाती है लेकिन यह व्यापार तो नहीं है। असल में यह अनुमान है कि तथाकथित विश्व व्यापार का 40% हिस्सा निगमों के सामान की आंतरिक अदला बदली है। इसका अर्थ है केंद्रीय रूप से प्रबंधित कारोबार। बाजार की सभी प्रकार की गड़बड़ियों सहित, जिसका कर्ता धर्ता साफ साफ दिखता रहता है। कभी कभी इसे कहा जाता है निगमों या कंपनियों का करोबार। ऐसा कहना ठीक ही है।

गैट और नाफ्टा इन प्रवृत्तियों को बढ़ाते ही हैं। इससे मंडियों का  बेहिसाब नुकसान होता है। यदि हम और गहनता से देखें तो पता चलता है कि इस व्यापार की यह कथित खासियतें विचारधारा के बल पर ही निर्मित की गई हैं। उनका कोई सारगर्भित अर्थ नहीं है। मिसाल के तौर पर ऑटोमेशन से लोगों का काम खत्म होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन तथ्य यह है कि ऑटोमेशन इतनी बेकार की चीज है कि सरकारी क्षेत्र में, यानी अमरीकी सेना में इसे विकसित करने में दशकों लग गए। और इस सरकारी क्षेत्र में जो ऑटोमेशन विकसित हुआ, जिसमें जनता का बेशुमार पैसा लगा और बाजार की बहुत ज्यादा गड़बड़ियां हुईं, वह खास ही किस्म का था। यह इस तरह तैयार किया गया कि मजदूरों के कौशल की जरूरत न रहे और प्रबंधन (मैनेज) करने की ताकत बढ़े। इसका आर्थिक कार्यकुशलता से कुछ लेना देना नहीं है। यह तो सत्ता के संबंधों से जुड़ी हुई चीज है अकादमिक और प्रबंधन से संबंधित बहुत से ऐसे अध्ययन हुए हैं, जिन्होंने बार बार यह दिखाया है कि मैनेजरों ने तब भी ऑटोमेशन करवा दिया जबकि इससे खर्चे बढ़े और यह उतने काम का भी नहीं था। यह करवाया गया सिर्फ सत्ता के कारण। कन्टेनराइजेशन को ही लीजिए। इसे अमरीकी नौसेना ने विकसित किया। मतलब अर्थव्यवस्था में सरकारी क्षेत्र - बाजार की गड़बड़ियों को ढकने वाला। आमतौर पर बाजार की शक्तियां जब काम करना शुरू करती हैं तो उनमें काफी मात्रा में जालसाजी गुंथी रहती है। मानो यह कुदरत के नियम की तरह है। यह एक तरह से विचारधारात्मक युद्ध है। दूसरे विश्वयुद्धके बाद इसमें सभी उद्योग समाहित हैं।मसलन इलैक्ट्रानिक्स, कंप्यूटर्स, बायोटेक्नालोजी, फार्मासूटिकल्स वगैरह को शुरू करने और बाद में उन्हें चलाए रखने के लिए नामालूम कितनी सब्सिडी दी गई। दखलअंदाजी भी की गई वरना उनका अस्तित्व ही खत्म हो चुका होता।

कंप्यूटरों को ही लीजिए। सन् 50 से पहले, जब ये बिकने लायक हुए, असल में सो फीसदी कर-दाता की मदद पर ही खड़े थे। 1980 के वक्त में सारी इलैक्ट्रानिक्स का 85% सरकारीसहायता पर निर्भर था। कहने का मतलब यह है कि कीमत जनता कोअदा करनी पड़ती है। उसमें से कुछ निकल आए तो उसे कारपोरेशनों को दे दिया जाता है। यही कहलाता है मुक्त उद्यम!

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