गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

क्या हमने कश्मीर के अवाम के बारे में कभी सही ढंग से सोचा है ?


26 अक्टूबर को श्रीनगर में दिए गए एक भाषण में लेखिका और समाजसेवी अरुंधति राय ने कहा था कि ‘कश्मीर भारत का कभी अभिन्न अंग नहीं था और वर्ष 1947 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्थान भारतीय उपनिवेशवाद ने ले लिया।‘ बाद में उन्होंने सफाई दी कि - मैंने वही कहा है जो मैं और दूसरे बुद्धिजीवी कई सालों से कहते आ रहे हैं. कोई भी इंसान जो मेरे भाषण की लिखित कॉपी पढ़ने का कष्ट करेगा समझ जाएगा कि मेरी बातें मूल रूप से न्याय के पक्ष में एक गुहार है. मैंने कश्मीरियों के लिए न्याय के बारे में बात की है जो दुनिया के सबसे क्रूर सैन्य आधिपत्य में रहने के लिए मजबूर हैं. मैंने उन कश्मीरी पंडितो के लिए न्याय की बात की है जो अपनी जमीन से बेदखल किए जाने की त्रासदी भुगत रहे हैं. मैंने उन दलित सिपाहियों के लिए न्याय बात की है जो कश्मीर में मारे गए हैं और कूड़े के ढेर पर बनी जिनकी कब्रों को मैंने देखा है. मैंने भारत के उन गरीबों की बात की है जो इसकी कीमत चुका रहे हैं और अब एक पुलिस राज्य के आंतक तले जीवित रहने का अभ्यास कर रहे हैं. (?)'

अरुंधति राय की बात से सहमत असहमत हुआ जा सकता है. उनके बडबोलेपन को समझा जा सकता है और उनकी प्रतिबद्धताओं का उत्स भी जांचा परखा व ढूँढा जा सकता है, लेकिन उससे पहले कश्मीर का इतिहास देखना जरूरी है. हम जानते हैं कि राष्ट्र - राज्य की परिकल्पना एक आधुनिक घटना है. स्वतंत्रता पूर्व भारत उस तरह का राष्ट्र नहीं था जैसा कि आज है. कश्मीर और भारत का संबंध भी सदैव परिवर्तनशील रहा है. आज कश्मीर भारत का राज्य अवश्य है लेकिन भिन्न स्टेटस के साथ.


•1587 से 1739 ई. तक कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा। जहाँगीर और शाहजहाँ के समय के अनेक स्मारक आज भी कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट स्मारक माने जाते हैं। इनमें निशात बाग़, शालीमार उद्यान आदि प्रमुख हैं।

•1739 से 1819 ई. तक क़ाबुल के राजाओं ने कश्मीर पर राज्य किया।


•1819 ई. में पंजाब केसरी रणजीत सिंह ने कश्मीर को क़ाबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद से छीन लिया किन्तु शीघ्र ही पंजाब कश्मीर के सहित अंग्रेज़ों के हाथ में हाथ में आ गया।

•सिखों की अंग्रेजों से पराजय 1846 में हुई जिसका परिणाम था लाहौर संधि। 1846 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कश्मीर को डोगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों बेच दिया। इस वंश का 1947 तक वहाँ शासन रहा।

•गिलगित एजेन्सी, अंग्रेज राजनैतिक एजेन्टों के अधीन क्षेत्र रहा। कश्मीर क्षेत्र से गिलगित क्षेत्र को बाहर माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा जम्मू और कश्मीर में पुन: एजेन्ट की नियुक्ति हुई।

•महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 ई. में गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 ई. तक शासन किया।

ब्रिटिश इंडिया का विभाजन

•1947 में 560 अर्ध स्वतंत्र शाही राज्य अंग्रेज साम्राज्य द्वारा प्रभुता के सि्द्धांत के अंतर्गत संरक्षित किए गये।

•केबिनेट मिशन ज्ञापन के तहत, भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा इन राज्यों की प्रभुता की समाप्ति घोषित हुई, राज्यों के सभी अधिकार वापस लिए गए, व राज्यों का भारतीय संघ में प्रवेश किया गया। ब्रिटिश भारत के सरकारी उत्तराधिकारियों के साथ विशेष राजनैतिक प्रबंध किए गए।

•कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान और भारत के साथ तटस्थ समझौता किया। पाकिस्तान के साथ समझौता पर हस्ताक्षर हुए।

•भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर से पहले, पाकिस्तान ने कश्मीर की आवश्यक आपूर्ति को काट दिया जो तटस्थता समझौते का उल्लंघन था। उसने अधिमिलन हेतु दबाव का तरीका अपनाना आरंभ किया, जो भारत व कश्मीर, दोनों को ही स्वीकार्य नहीं था।

•जब यह दबाव का तरीका विफल रहा, तो पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। यह 24 अक्तूबर, 1947 की बात है।

•नेशनल कांफ्रेंस ने, जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था, व अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे; भी भारत से रक्षा की अपील की।

•हरि सिंह ने गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को कश्मीर में संकट के बारे में लिखा, व साथ ही भारत से अधिमिलन की इच्छा प्रकट की। इस इच्छा को माउंटबेटन द्वारा 27 अक्तूबर, 1947 को स्वीकार किया गया।

•भारत सरकार अधिनियम, 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत यदि एक भारतीय राज्य प्रभुत्व को स्वींकारने के लिए तैयार है, व यदि भारत का गर्वनर जनरल इसके शासक द्वारा विलयन के कार्य के निष्पादन की सार्थकता को स्वीकार करे, तो उसका भारतीय संघ में अधिमिलन संभव था।

•पाकिस्तान द्वारा हरि सिंह के विलयन समझौते में प्रवेश की अधिकारिता पर कोई प्रश्न नहीं किया गया। कश्मीर का भारत में विलयन विधि सम्मत माना गया। व इसके बाद पठान हमलावरों को खदेड़ने के लिए 27 अक्तूबर, 1947 को भारत ने सेना भेजी, व कश्मीर को भारत में अधिमिलन कर यहां का अभिन्न अंग बनाया।

•भारत कश्मीर मुद्दे को 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया। परिषद ने भारत और पाकिस्तान को बुलाया, व स्थिति में सुधार के लिए उपाय खॊजने की सलाह दी। तब तक किसी भी वस्तु परिवर्तन के बारे में सूचित करने को कहा। यह 17 जनवरी, 1948 की बात है।

•भारत और पाकिस्तान के लिए एक तीन सदस्यी संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) 20 जनवरी, 1948 को गठित किया गया, जो कि विवादों को देखे। 21 अप्रैल, 1948 को इसकी सदस्यता का प्रश्न उठाया गया।

•तब तक कश्मीर में आपातकालीन प्रशासन बैठाया गया, जिसमें, 5 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में अंतरिम सरकार द्वारा स्थान लिया गया।

•13 अगस्त, 1948 को यूएनसीआईपी ने संकल्प पारित किया जिसमें युध्द विराम घोषित हुआ, पाकिस्तानी सेना और सभी बाहरी लोगों की वापसी के अनुसरण में भारतीय बलों की कमी करने को कहा गया।

•जम्मू और कश्मीर की भावी स्थिति का फैसला 'लोगों की इच्छा' के अनुसार करना तय हुआ।

•संपूर्ण जम्मू और कश्मीर से पाकिस्तान सेना की वापसी, व जनमत की शर्त के प्रस्ताव को माना गया, जो- कभी नहीं हुआ।

•संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान के अंतर्गत युध्द-विराम की घोषणा की गई। यूएनसीआईपी संकल्प - 5 जनवरी, 1949। फिर 13 अगस्त, 1948 को संकल्प की पुनरावृति की गई। महासचिव द्वारा जनमत प्रशासक की नियुक्ति की जानी तय हुई।

•ऑल जम्मू और कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस ने अक्तूबर,1950 को एक संकल्प किया। एक संविधान सभा बुलाकर वयस्क मताधिकार किया जाए। अपने भावी आकार और संबध्दता जिसमें इसका भारत से अधिमिलन सम्मिलित है का निर्णय लिया जाये, व एक संविधान तैयार किया जाए।

•चुनावों के बाद संविधान सभा का गठन सितम्बर, 1951 को किया गया ।

•ऐतिहासिक 'दिल्ली समझौता - कश्मीरी नेताओं और भारत सरकार द्वारा- जम्मू और कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच सक्रिय प्रकृति का संवैधानिक समझौता किया गया, जिसमें भारत में इसके विलय की पुन: पुष्टि की गई।

•जम्मू और कश्मीर का संविधान, संविधान सभा द्वारा नवम्बर, 1956 को अंगीकृत किया गया। यह 26 जनवरी, 1957 से प्रभाव में आया।

•राज्य में पहले आम चुनाव अयोजित गए, जिनके बाद मार्च, 1957 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस द्वारा चुनी हुई सरकार बनाई गई ।

•राज्य विधान सभा में १९५९ में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया, जिसमें राज्य में भारतीय चुनाव आयोग और भारत के उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के विस्तार के लिए राज्य संविधान का संशोधन पारित हुआ।

•राज्य में दूसरे आम चुनाव १९६२ में हुए जिनमें शेख अब्दुल्ला की सत्ता में पुन: वापसी हुई।

ऐसे में अरुंधति राय की यह बात कि ‘कश्मीर भारत का कभी अभिन्न अंग नहीं था और वर्ष 1947 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्थान भारतीय उपनिवेशवाद ने ले लिया‘ सनसनीखेज तो हो सकती है लेकिन इसके पीछे विडम्बना यह है कि क्या हमने कभी कश्मीर के अवाम के बारे में सही ढंग से सोचा है ? उनके दुख, तकलीफ और भावनाओं को ठीक से समझने की कोशिश की है या सिर्फ़ अधिकार जताने को लालायित रहे हैं ? देखना यह भी होगा की हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति कितनी दृढ, पारदर्शी और विवेकपूर्ण रही है. तभी हम कश्मीर के बारे में कोई सही निर्णय ले पाने की स्थिति में पहुँच सकेंगे.

-शैलेन्द्र चौहान
पता : 34/242, प्रतापनगर, सेक्टर-3, जयपुर, (राजस्थान) 303033

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…