गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

शैलेन्द्र चौहान की दो कवितायें

जीत का क्या !

उस दिन
शिवराम जी ने कहा था
हार का क्या मतलब
हार गए तो हार गए

इस बात की चिंता
खेलने न दे खेल
तो भी कहाँ है जीत
और जीत का भी
क्या भरोसा
कि कायम रहे हमेशा

निरंतर कोशिश
जारी रखने का नाम है
जीवन
जीतें न जीतें
करते रहें अपना कर्म सोद्देश्य
रहें सक्रिय
औरों के लिए हो
हमारी संवेदना

मित्र
यह भी किसी
जीत से कुछ कम नहीं

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हमें उस दुनिया से क्या

आओ
कुछ उथली उथली बातें करें
आओ
खूबसूरत चेहरों की आरती उतारें
आओ
नामवरों की प्रशस्ति में गाएँ
आओ
धनपति कुबेरों के चरणों में लोट जाएँ
मौज मनाएं
फूहड़ गीत गाएँ

हमें उस दुनिया से क्या
जो सबके सुखी होने की राह जोहती है
दुखियों की आँखों से आंसू पोंछती है
जो बलात्कारियों को सजा देने की बात करती है
कमजोरों के हक की वकालत करती है

कोई
कुछ भी करे-सोचे
हम तो
अपनी मस्तियों में हैं मस्त
बजा रहे हैं बांसुरी

जले देश
जले गाँव
जले आसपास
हमें क्या !

5 टिप्‍पणियां:

  1. कोई कुछ भी करे
    हमें क्या?
    इतनी आसान सी बात. मगर कितनी खूबी से कहा है..

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  2. कोई कुछ भी करे
    हमें क्या?
    इतनी आसान सी बात. मगर कितनी खूबी से कहा है..

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  3. कोई कुछ भी करे
    हमें क्या?
    इतनी आसान सी बात. मगर कितनी खूबी से कहा है..

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  4. कोई कुछ भी करे
    हमें क्या?
    इतनी आसान सी बात. मगर कितनी खूबी से कहा है..

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