अभी हाल में


विजेट आपके ब्लॉग पर

बुधवार, 10 अगस्त 2011

जाओ इमरोज, तुम्हे तुम्हारी अमृता मुबारक हो !

-आवेश तिवारी

अमृता नहीं रही! इस बार उनकी स्मृतियों की मौत हुई है, बहुत मुमकिन है कि एक बार फिर वो कराही होंगी, एक बार फिर इमरोज को आवाज दी होंगी, एक बार फिर उन्हें अपनी नज्मों की कसम दी होगी| मगर शायद अमृता नहीं जानती कि स्मृतियों की एक उम्र होती है, वो या तो बिक जाती है या भुला दी जाती है| के-25, हौज़ ख़ास, भी बिक गया, अमृता के बच्चों ने उसे बेच दिया| क्यूँ बेचा? इमरोज के पास इसका जवाब नहीं है| रंगों से इमरोज अब भी खेलते हैं लेकिन कैनवस के पीछे से एक उदासी न चाहते हुए भी छन कर आ जाती है| जब मैं पूछता हूँ कि क्यूँ बेच दिया तो उनकी आवाज में हलकी सी तल्खी आ जाती है “अब जहाँ हूँ वो भी अच्छी जगह है”| मगर हम जानते हैं इमरोज के भीतर कहीं न कहीं पानी का एक कतरा भी साँसें ले रहा है| इमरोज के पास तो अमृता से जुड़ी उनके अपने हिस्से की यादें हैं, हमारे जैसे लोगों के पास तो अमृता के ईंट पत्थरों से बने मकान और चंद नज्मों के सिवा कुछ न था|



मुझे याद आती है वो खूबसूरत सी पंजाबी लड़की जो हमें अमृता के घर पर मिली थी “सुनिए ये मंदिर है हमारे लिए, गुरूद्वारे जाने से अच्छा है यहाँ आ जाऊं, अमृता के घर”| सच ही तो है समूचे हिंदुस्तान को प्यार सिखा रही थी ये इमारत| घर के हर एक कोने को देखकर लगता था अभी अमृता कहीं से आएँगी और कहेंगी “हाँ, ये हमारा घर है, मेरा और इमरोज का”| इमरोज घर से बाहर कम जाते थे उन्हें लगता था अमृता घर में अकेले हो जायेगी| मैं अभी भी सोच रहा हूँ क्या दिन या रात के किसी कोने में इमरोज को ये लगता होगा कि अमृता उन्हें बुला रही है? कैसे होते होंगे उस वक्त इमरोज के रंग जब वो चाह कर भी अमृता के बिस्तर के उस कोने पर नहीं पहुँच पाते होंगे जहाँ उन्होंने आखिरी साँसें ली थी| मुझे याद है वहाँ उस कोने पर उस एक वक्त जब मैं गया था, अमृता के हाथों से लिखा इमरोज के नाम का एक कागज़ भी एक किताब के नीचे साँसें ले रहा था|

इमरोज के वो शब्द मैं अब भी सुन सकता हूँ ”जानते हैं आप? उसकी मौत नहीं हुई, जब जी में आता है उससे बतिया लेता हूँ, आजकल वो मेरी नज्में पढकर बेहद मुस्कुराती है”| मैं अवाक था, 80 साल की उम्र में ये रुमानियत! अमृता की के-25 में मौजूदगी को लेकर इमरोज का ये विश्वास मुझे कहीं से भी आश्चर्यजनक नहीं लगा, वे देर तक हमें अपने घर को दिखाते रहे| “देखो, अब इस कमरे को अमृता के कहने पर थोडा बदल दिया है, अब अच्छा लग रहा है न?” मैंने कहा हाँ! मुझे याद है मैंने अगले ही पल इमरोज को वहीँ अमृता के कमरे के ठीक बाहर गले से लगा लिया था| पूरे घर में चारों ओर लगी अमृता की तस्वीर मानो इमरोज की निगहबानी कर रही थी, शायद इमरोज इस निगहबानी को पसंद भी करते थे| घर के एक एक कोने को अमृता ने खुद अपने हांथों से सजाया सँवारा था| वो रसोईघर जहाँ अमृता ने इमरोज के लिए पहली रोटी बनायीं थी का दरवाजा इमरोज के बिस्तर से साफ दीखता था, मैं सोच सकता था कि इमरोज शायद जागती आँखों से भी अमृता को आज भी उस एक दरवाजे से रोटियां लिए आते देखते होंगे|


हमें याद है लौटते वक्त हमने के-25 की दीवारों को हाथों से सहलाया इस उम्मीद में कि प्रेम का वो मकान हमें भी दुआएं देगा| आज सोचता हूँ कि शायद साहिर से अमृता इमरोज की शिकायत कर रही होंगी, मगर ये भी जानता हूँ इमरोज को ये शिकायत भी पसंद आएगी| दोस्त आदित्य मेरे फेसबुक की दीवार पर जब यह लिखते है “इमरोज़ ! ! ! ………दरअसल अनायास उस विस्मय लोक में पहुंचा दिए गए हैं जहाँ से वे उनकी ही हथेली पर पर लिखे अमृता नाम को चाह कर भी छू नहीं पा रहे हैं. ……….इश्क़ की यह तड़प ही इमरोज़ की वसीयत हैं…….जिसे अमृता जानबूझकर नहीं छोड़ गयी” तो मैं सोचता हूँ ,हाँ सच ही तो है! मगर हम क्यूँ उदास है? फिर यूँ लगता है कि हम भूल रहे थे अमृता को इमरोज को और उनके प्यार को| शायद यही सजा है हमारी कि वो स्मृतियाँ भी हमसे छिन ली गयी| 

 जाओ इमरोज, तुम्हे तुम्हारी अमृता मुबारक हो, हमारे हिस्से से तो दीवार भी छीन गयी ,और हाँ सुनो ,हमें प्यार करना कभी नहीं आएगा

2 टिप्‍पणियां:

  1. आवेश जी अगर सिसकियाँ लिखनी आती हैं तो उन्हें पढ़ सकते हैं आप भी हम भी. अमृता कि रूह हर आज़ाद लड़की में हैं. मै उस घर में गयी हूँ. उन दीवारों को छुआ है. इमरोज से बात की है...अमृता...ओह अमृता...हम तुम्हारा जिया सम्हाल क्यों नहीं पा रहे. घर बिक गया. घर अक्सर बिक ही जाते हैं. जाने क्यों लोग घर बनाते हैं... जाने किस घर, किस देह, किस वसीयत के लिए हम भागते फिरते हैं...हमारी अमृता को कोई हमारे दिल से दूर करके दिखाए तो. खुद साहिर भी आ जाएँ तो भी ये इश्क न होगा कम. आखिर इश्क अमृता ने ही तो सिखाया है...इमरोज की रग रग में अमृता हैं....
    मैं इस लेख को अपने ब्लॉग पर शेयर करना चाहती हूँ. इजाज़त दीजिये.

    जवाब देंहटाएं
  2. मुझे नहीं लगता ,प्रतिभा को आज या कभी इजाजत लेने की जरुरत है |आपका अधिकार है |

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…