(एन्तीपैत्रोस यूनान के सिसरो के काल के प्राचीनतम कवियों में से एक हैं. ये गीत उन्होंने अनाज पीसने की पनचक्की के आविष्कार पर लिखा था क्योंकि इस यंत्र के बन जाने के बाद औरतों को हाथ चक्की के श्रम से छुटकारा मिला था.
यह कविता श्रम-विभाजन से सम्बंधित प्राचीन काल के लोगों और आधुनिक काल के लोगों के विचारों के परस्पर विरोधी स्वरूप को भी स्पष्ट करती है. कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति "पूँजी" के पहले खंड पर इस कविता का उल्लेख किया है.)
आटा पीसने वाली लड़कियों,
अब उस हाथ को विश्राम करने दो,
जिससे तुम चक्की पीसती हो,
और धीरे से सो जाओ !
मुर्गा बांग देकर सूरज निकलने का ऐलान करे
तो भी मत उठो !
देवी ने अप्सराओं को लड़कियों का काम करने का आदेश दिया है,
और अब वे पहियों पर हलके-हलके उछल रही हैं
जिससे उनके धुरे आरों समेत घुम रहे हैं
और चक्की के भारी पत्थरों को घुमा रहे हैं.
आओ अब हम भी पूर्वजों का-सा जीवन बिताएँ
काम बंद करके आराम करें
और देवी की शक्ति से लाभ उठाएँ.
इस ज्ञानवर्धन का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील और प्रभावशाली कविता...
जवाब देंहटाएंयूनान मे कई तरह के देवी देवता हुए है जिस तरह के श्रम मनुष्य ने अपनी बेहतरी के लिए सीखे उतने ही देवता बन गए । वहाँ से बहुत सी कथाएँ यहाँ भी आई हैं ।
जवाब देंहटाएंकविता को अगर यूनान के इतिहास के साथ देखें तो बहुत अर्थ हैं इसमे ।
Marx ki bhi kavitayen hain kya? chipkaye ji
जवाब देंहटाएंDhiresh...Marx ki kavita maine apni kitab me dii hai...use jaldi hi yahan lagata hoon...
जवाब देंहटाएं`tere vade pe jiye...`wo kitab raste men kahi fans gayi hai?
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