अभी हाल में


विजेट आपके ब्लॉग पर

शनिवार, 2 नवंबर 2013

लता आत्या दिवाळी च्या शुभेच्छा - बादल सरोज

यह टिप्पणी सी पी एम के मध्यप्रदेश के सचिव कामरेड बादल सरोज की फेसबुक वाल से ली गई है. लता मंगेशकर के हाल के मोदी समर्थक बयान के मद्देनज़र बादल भाई ने थोड़ा इतिहास खंगाला है, थोड़ा वर्तमान.


आपकी आवाज में जो माधुर्य है. वह अब डिजिटल क्रान्ति के बाद लाखों साल तक अमर रहेगा.

रेडियो सीलोन के जमाने में आपकी आवाज ने मुझ जैसे करोड़ों लोगो को जगाया है. आपकी लोरी ने सुलाया है. इन दिनों भी रात के सन्नाटे में, अँधेरे कमरे में, विविध भारती पर नौशाद अंकल से लेकर प्रीतम तक की स्वरलहरी में  जब आपकी आवाज गूंजती है तो लगता है कि आत्या को छोड़ बाकी सब कुछ ठहर गया है. देश-दुनिया के हिंदी-मराठी जानने वालों को आपने जो जीवन-रस दिया है उसका चुकारा कभी नहीं किया जा सकता. एक नामुमकिन सी कामना है और वह यह है कि आप हमेशा बनी रहें. हमेशा गाती रहें. इसी तरह मधुर-मधुर और मधुर.

एक नागरिक के नाते आपको अपनी राय रखने और उसे सार्वजनिक करने का अधिकार है. 

जो लोग इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया जता रहे हैं वे असल में उतनी ही तीव्रता और शिद्दत से आपसे प्यार करते हैं. आप पर गर्व करते हैं.  जिस तरह आपको अपनी राय बनाने का अधिकार है उसी तरह हम सबको भी उस से असहमत या अप्रसन्न होने का हक़ है. मुझे आपके कहन पर आपत्ति नहीं है- कुछ मित्रों की प्रतिक्रिया के लहजे पर एतराज है. 

कलाकार की कलाकृति,उसकी रचनाधर्मिता और उसकी सार्वजनिक उपादेयता एक बात है-दीगर मसलों पर उसकी राय एक अलग मुद्दा है. . जो इसे गड्ड-मड्ड करते हैं वे ठीक नहीं करते.   तनाव के भीषणतम दौर में भी मेहँदी हसन या नूरजहां -मेहँदी हसन और नूरजहां ही रहते हैं. उसी तरह जैसे आप या आशा जी या रफ़ी साब-मुकेश-मन्ना डे-किशोर कुमार रहते हैं.



आत्या, आपकी "कौन बनेगा प्रधानमंत्री" टीप उन्हें ही बुरी लगी होगी जिन्हे आपकी पहली वाली टीपों की माहिती नहीं है. मुझे आश्चर्य नहीं हुआ-बल्कि उलटे कल रात भर काम करते में यू-ट्यूब पर आपको ही सुनता रहा. 

क्यों??? 

  • क्योंकि अभी कल ही तो बाल ठाकरे की मौत पर आपने कहा था कि आप अनाथ हो गई हैं.
  • उसके पहले की वर्षों में भी आप पूरी तरह ठाकरे के साथ रही. लोगो की स्मृति कमजोर है-उन्हें नहीं पता क़ि ठाकरे गिरोह का जन्म ही गुजराती व्यवसायियों की दुकानो पर हमले के साथ हुआ था. मद्रासियों और कम्युनिस्टों पर तो उनकी निगाह बाद में पड़ी थी. यूपी-बिहारियों की ठाकरे-ठुकाई तो उस कुनबे का ताजा शगल है. 
  • 1993 के मुम्बई के नरसंहारी दंगो के वक़्त -मुझे याद नहीं- क़ि आप कुछ बोल पाई थीं. 1992 के लंका काण्ड और उसके बाद देश भर में हुए अयोध्या दहन पर भी आपने कोई राय जाहिर नहीं की थी. शान्ति-वान्ति की अपील भी नहीं की थी.
  • आप तो 1984 की हिंसा के वक़्त भी कुछ नहीं बोल पाई थी. 
  • आपके घर से थोड़ी ही दूरी पर बनी भंडारकर लाइब्रेरी की दुर्लभ पांडुलिपियों को जब कुछ अपढ़ उत्पाती फूंक रहे थे या दिलीप साब के घर जाकर पथराव कर रहे थे, आत्या,  आप ने तो तब भी कुछ नहीं कहा था.
  • आत्या,  मरे हुए वली दकनी और जीवित  मल्लिका साराभाई के बारे में भी तो आप बोलना भूल गई थी. 

जब आपके इतनी बार "न बोलने" से आपके गायन की अद्भुत-अपूर्व-अतुलनीय शक्ति के प्रति हमारा लगाव कम नहीं हुआ तो भला अब आपके एकाध बार "बोलने" से दुखी क्यों हुआ जाए ?? यूँ भी इस तरह के कहने सुनने में आप न पहली हैं न आखिरी. एक थे भूपेन हजारिका. बाबा रे, क्या गाते थे. कितना जगाते थे. वे तो चुनाव तक लड़ पड़े थे. मगर क्या इससे "गंगा बहती हो क्यों" या "डोला रे" या " दिल हूम हूम करे" की मधुरता कम हो जायेगी?? एक थे अमिताभ बच्चन-इलाहाबाद से कांग्रेस की टिकिट पर लड़े, अमरसिंह के साथ सपा की सभाओं में नाचे-गाये. भैया अब गुजरात के ब्रांड अम्बेसेसडर हैं, भाभी यूपी से सांसद. चित्त भी मेरी-पट्ट भी मेरी:अंटा मेरे बाप का. एक थे सदाबहार दिलीप कुमार - ताउम्र कांग्रेसी रहे. एक हैं सलमान खान. एक सीट पर कांग्रेस-एक पर एन सी पी और ज्यादा पैसा मिला तो किसी भी पार्टी के लिए वोट मांग आयें. सूची लम्बी है-पापी पेट का सवाल है. कुछ भी करा देता है. रोटियों के लाले पड़े रहते हैं बेचारों के यहाँ. मगर इस सबसे उनकी एक्टिंग की महानता या लोकप्रियता कम थोड़े ही हो जाती है.


आदर्श समावेश विरल होता है. हर किसी का मैराडोना, चार्ली चैप्लिन,उत्पल दत्त, पॉल रॉब्सन या  सफ़दर हाश्मी होना मुश्किल भी है और थोडा जोखिम भरा भी.



लता आत्या-  


बादल सरोज 
हम सबकी ओर से दिवाळी च्या शुभेच्छा स्वीकार कीजिये.और वादा कीजिये कि हमारी बाकी बची दीवालियों में भी आप हमारे साथ बनी रहेंगी. बाकी सब विदूषक-खलनायक-नालायक-प्रतिनायक तो फिलर हैं. कल सब भूल जायेंगे. ये इतिहास में कभी शुमार नहीं होने वाले, घटना भर बनकर रह जायेंगे. आप रहेंगी. मिले सुर मेरा तुम्हारा गाती हुई.

----------

12 टिप्‍पणियां:

  1. लता जी केवल गायिका नहीं हैं। उन का इतिहास देखें तो परिवार उन के लिए प्राथमिकता रहा है। कंठ तो उन्हें प्रकृति ने दिया। लेकिन सारी साधना उन की परिवार के लिए हुई। आज भी वे परिवार के लिए जीती हैं। न ठाकरे उन की स्वाभाविक पसंद हो सकते थे और न ही मोदी। पर उन्हें सदैव ही एक विनायक चाहिए था जो आकस्मिक विघ्नों का हरण करने की भूमिका अदा कर सके। पहले उन्हें वह ठाकरे में दिखाई देता था और अब मोदी में। विनायक को विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति बना डालने की परंपरा भारतीय जनमानस में रची बसी है, महाराष्ट्र में तो कुछ अधिक ही।

    जवाब देंहटाएं
  2. सिर्फ मैराडोना, चार्ली चैप्लिन,उत्पल दत्त, पॉल रॉब्सन या सफ़दर हाश्मी ही आदर्श समावेश क्यों? क्या आदर्श समावेश के लिए किसी ख़ास विचारधारा में बंधना जरूरी है?

    जवाब देंहटाएं
  3. आदर्श समावेश विरल होता है. हर किसी का मैराडोना, चार्ली चैप्लिन,उत्पल दत्त, पॉल रॉब्सन या सफ़दर हाश्मी होना मुश्किल भी है और थोडा जोखिम भरा भी.

    जवाब देंहटाएं
  4. आदर्श समावेश विरल होता है. हर किसी का मैराडोना, चार्ली चैप्लिन,उत्पल दत्त, पॉल रॉब्सन या सफ़दर हाश्मी होना मुश्किल भी है और थोडा जोखिम भरा भी.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस आईना के लिए आभार ...तार्किक , सटीक और दमदार ...|

    जवाब देंहटाएं
  6. गायन में महारथ हो इसका मतलब यह नहीं कि समाज और राजनीती पर भी बराबर की पकड़ हो ....मुम्बईया कलाकारों की प्रतिबद्धताएं बड़ी क्षुद्र होती है ..ठीक लता के जैसी ...

    जवाब देंहटाएं
  7. लता मंगेशकर की आवाज़ मिठास कभी कम नहीं होगी .... चाहे हम उनके राजनीतिक विचारों से सहमत न हों .

    जवाब देंहटाएं
  8. लता मंगेशकर की आवाज़ की मिठास कभी कम नहीं होगी... चाहे हम उनके राजनीतिक विचारों से सहमत न हों .

    जवाब देंहटाएं
  9. जो लोग जात-पात, धर्म-सम्‍प्रदाय की भावना से निरपेक्ष उनके महान गायन के लिए उन्‍हें चाहते हैं, उनको ठेस न पहुँचे, कम से कम यह सोचकर लता जी इस मुद्दे पर खामोश ही रहतीं तो बेहतर होता। ये उनका महान योगदान ही है जो वे देश के हर एक इन्‍सान की चहेती है, मगर मोदी काे उनकी संकीर्ण दृष्टि के वजह से लोग नापसंद करते हैं । लेकिन फ‍िर भी आखिरकार यह लता जी का प्रजातांञिक अधिकार है उन्‍हें अपनी पसंद ज़ाहिर करने का पूरा हक है।

    जवाब देंहटाएं
  10. जो लोग जात-पात, धर्म-सम्‍प्रदाय की भावना से निरपेक्ष उनके महान गायन के लिए उन्‍हें चाहते हैं, उनको ठेस न पहुँचे, कम से कम यह सोचकर लता जी इस मुद्दे पर खामोश ही रहतीं तो बेहतर होता। ये उनका महान योगदान ही है जो वे देश के हर एक इन्‍सान की चहेती है, मगर मोदी काे उनकी संकीर्ण दृष्टि के वजह से लोग नापसंद करते हैं । लेकिन फ‍िर भी आखिरकार यह लता जी का प्रजातांञिक अधिकार है उन्‍हें अपनी पसंद ज़ाहिर करने का पूरा हक है।

    जवाब देंहटाएं
  11. एकदम ठीक कहा है, कामरेड बादल आपने ।

    जवाब देंहटाएं
  12. लता मंगेशकर कई बार शिवसेना के मजदूर संगठन(!) शिव उद्योग सेना में गाने गयी हैं. पब्लिक स्फीयर में वे महान हैं, लेकिन दरअसल महान नहीं. उन्होंने अपने समय की सारी गायिकाओं को दबाया है. अपनी बहनों तक को भी.उनके कोई सामाजिक सरोकार नहीं रहे और उनके पास अपनी आवाज़ के अलावा कुछ नहीं है है. मसलन, उन्होंने कभी कुछ मौलिक रूप से कंपोज़ नहीं किया.मोहम्मद रफ़ी का जीवन और गायन उनसे कहीं बेहतर था.आशा भोसले ने अपने पिता हृदयनाथ कि स्मृति में लता से कहीं बड़े काम किये हैं.वह सुर की व्यापारी हैं.

    मंगलेश डबराल (ऍफ़ बी से)

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…