(अक्सर संघ परिवार सरदार पटेल को हिन्दुत्व के नायक के रूप में प्रस्तुत करता रहा है और मोदी, आडवाणी को छोटा-मोटा सरदार पटेल साबित करने की कोशिश करता रहा है। सरदार पटेल न तो प्रगतिशील थे न ही नेहरु की तरह धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक। फिर भी आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय उस गांधीवादी को धार्मिक कट्टरपंथ और इसके नाम पर होने वाला क़त्लोगारत मंज़ूर नहीं था। वह संघ को क्या समझते थे या संघ को लेकर शुरु में जो थोड़ी-बहुत ग़लतफ़हमी उनके मन में थी वह कैसे दूर हुई इसका पता 19/09/1948 को गोलवलकर को लिखे उनके एक पत्र से मिलता है। इसे आर एस एस के ही एक प्रकाशन 'जस्टिस आन ट्रायल : डाक्यूमेण्ट्स आफ़ गुरुजी-गवर्नमेण्ट करेस्पांडेंस, आर एस एस, बेंगलूर के पेज़ 26-27 से लिया गया है।)
''हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक प्रश्न है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे और लाचार औरतों ,बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रश्न है।
उनके अतिरिक्त यह भी था कि उन्होंने कांग्रेस का विरोध करके और इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख़्याल,न सभ्यता व विशिष्टता का ध्यान रखा, जनता में एक प्रकार की बैचैनी पैदा कर दी थी, इनकी सारी तक़रीरें सांप्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबंध करने के लिये यह आवश्यक न था कि वह ज़हर फैले । उस ज़हर का फल अंत में यह हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की क़ुर्बानी देश को सहनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति ज़रा भी आर एस एस के साथ नहीं रही, बल्कि उनके ख़िलाफ़ हो गयी। उनकी मृत्यु पर आर एस एस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया और मिठाई बांटी उस से यह विरोध और भी बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आर एस एस के ख़िलाफ़ कार्यवाही करना ज़रूरी ही था।
तब से अब 6 महीने से ज़्यादा हो गये। हम लोगों को आशा थी कि इतने वक़्त बाद सोच-विचार कर के आर एस एस वाले सीधे रास्ते पर आ जायेंगे। परंतु मेरे पास जो रिपोर्टें आती हैं उनसे यही विदित होता है कि पुरानी कार्यवाहियों को नई जान देने का प्रयत्न किया जा रहा है। ''
yh ek adhura sach hai. ankh bandhne wala. Gandhi ki hatya men ve paroksh roop se shamil the. RSS ki gatividhiyon ko jante hue bhi unhone use majboot karne, sarankshan dene ka kam kiya.yh khat Gandhi hatya ke baad likhna pada hai. ve Nehru ke secular agenda ko bhi lagatar badhit karte rahe
जवाब देंहटाएंसच कड़वा भले हो...उसे सामने लाना ही चाहिए...
जवाब देंहटाएंअतीत के प्रति आलोचनात्मक रवैया ही श्रेष्ठ है...
आम मानस में फैलाए गये भ्रमों की पड़ताल होनी ही चाहिए...आभार...
पटेल के वर्गीय चरित्र और उनके कथित सांप्रदायिक दृष्टिकोण को किसी एक खत के माध्यम से स्पष्ट करना अथवा इसका प्रयत्न करना अपने आप में कोई बहुत गंभीर प्रयास नही है...सादर
जवाब देंहटाएंहिन्दुत्ववादी यह कभी स्वीकार नहीं करेंगे पर सच यही है की हिन्दू धर्म एक बहुत ही भ्रष्ट, फंडामेंटलिस्ट, और अन्यायपूर्ण व्यवस्था है. संघ, भाजपा, शिवसेना जैसे संगठन जो सालों से राजनैतिक मुखौटे के पीछे अपराध, आतंकवाद, सामाजिक षड़यंत्र, और अल्पसंख्यकों के धर्मांतरण का तानाबाना बुन रहे हैं, उसपर सरकार और (अ)न्यायपालिका ने आँखे क्यों मूँद रखी हैं? यह देश जब तक हिन्दू धर्म नामक एक पिछड़ी, उग्रवादी और प्रतिगामी समाजव्यवस्था और सोच से मुक्त नहीं हो जाता, इसका विकसित देशों से कदम मिला पाना संदिग्ध है.
जवाब देंहटाएंपर्याप्त तो नहीं लेकिन जरूरी तो है ही यह लेख!
जवाब देंहटाएंपटेल की टिप्पणियों को और बारीकी से पढ़ें तो आर एस एस के प्रति उनकी सहानुभूति, मगर उसकी कार्रवाइयों के चलते प्रतिबन्ध लगाने की बाध्यता सामने आती है। पटेल को आरएसएस के विरुद्ध देखना मूर्खता है। तेलंगाना में हजारों निर्दोषों का कत्लेआम करा, किसान विद्रोह को कुचलने वाले पटेल की हमें कड़ी आलोचना करनी चाहिए।
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