(दंतेवाड़ा घटना के तुरत बाद संघ के गोएबल्स ने यह प्रचार किया कि जे एन यू के छात्रों ने इस 'खुशी' में पटाखे छोड़े और ख़ुशियां मनाईं। गांधी की मौत पर जलसे मनाने वालों को वैसे भी दुष्प्रचार की आदत और लंबी प्रैक्टिस है, लेकिन इस बार मीडिया ने भी कन्फ़र्म किये बिना इस संवेदनशील मसले पर दुष्प्रचार में सहयोग किया। अब रेयाज़ उल हक़ ने जनसत्ता में एक पत्र लिख कर वस्तुस्थित से अवगत कराया है। ऐसे में संघी (दुष) प्रचारकों और ब्लाग भोपूओं को सामने आके अपने झूठ के पक्ष में तर्क देने चाहिये)
हिटलर और गोएबल्स अपने साथियों के साथ चित्र यहां से |
नमस्ते थानवी जी
उम्मीद है आप अच्छे होंगे। एक पत्रकार होने के नाते मैं जनसत्ता द्वारा स्थापित पत्रकारीय मूल्यों और उसूलों का कायल रहा हूं। जिस तरह यह अखबार पूरी गंभीरता और अधिकतम वस्तुगतता के साथ खबरें पेश करता है, वह भारत के मीडिया में (दुनिया भर में जारी प्रक्रिया के एक हिस्से के तौर पर) खत्म होता जा रहा है। जिस तरह आज सच्चाई जाने बगैर, पुष्टि किये बगैर केवल सरकारी, सत्ता या पुलिस या सिर्फ एक पक्ष द्वारा पेश किये गये नजरिये को ही खबर के रूप में रखने का चलन बढ़ता जा रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, जनता के – व्यापक जनता के – हितों, लोकतंत्र और उसके जानने के अधिकार के खिलाफ भी है। एसी स्थिति में हम जनसत्ता से उम्मीद करते रहे हैं कि यह इस प्रवृत्ति से जहां तक हो सकेगा खुद को दूर रखेगा। यह उम्मीद ठोस जमीन पर टिकी हुई है और आपके अखबार का इतिहास बताता है कि किसी भी विचारधारा की बात हो (भले ही वह अखबार की संपादकीय नीति के विरुद्ध भी हो), तब भी उसके बारे में खबरें पूरे संतुलन के साथ रखी जाती रही हैं।
लेकिन आज एक खबर में वर्णित तथ्य को देख कर अफसोस हुआ। यह खबर दिल्ली में हुई कुछ ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली स्थित विश्वविद्यालयों में सामने आये उनके कथित संपर्कों के संबंध में थी। मैं इस खबर के उस हिस्से पर आपत्ति जताना चाहूंगा, जिसमें यह कहा गया है कि जेएनयू में दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों की माओवादियों द्वारा की गयी हत्या की घटना के समर्थन में एक सभा बुलायी गयी थी।
यह किसी भी लिहाज से एक गलत सूचना है। मैं उस सभा में न सिर्फ मौजूद था, बल्कि उस आयोजन और उसकी तैयारियों के बारे में 20-25 दिन पहले से जानता था। ग्रीन हंट के नाम से कार्पोरेट लूट और आदिवासियों की जमीन छीनने के लिए चलाये जा रहे युद्ध को बंद करने की मांग करनेवाला यह आयोजन पहले तो 5 अप्रैल को होना था, लेकिन कुछ कारणों से इसे 9 को करना पड़ा। ये कारण कोई गोपनीय नहीं थे।
उन दिनों जेएनयू में आरक्षण के लगातार जारी उल्लंघन के विरोध में आंदोलन चल रहा था। 5 तारीख को विवि में हड़ताल थी और छह को ईसी मीटिंग के समय विरोध प्रदर्शन होना था। इन वजहों से इस कार्यक्रम को 9 तक टाल दिया गया, क्योंकि इन गतिविधियों में उन छात्रों को भी शामिल होना था, जिन पर जनता पर युद्ध के खिलाफ सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन की जिम्मेदारी थी। मेरे पास इस आयोजन के लिए छपे हुए पर्चे हैं – और जेएनयू के लगभग हर छात्र ने मेस और दूसरे ढाबों-कैंटीनों पर ये पर्चे पढ़े होंगे – जिसमें आयोजन की तारीख 5 अप्रैल छपी थी और जिसे हाथ से काट कर 9 किया गया था। इसके अलावा इस कार्यक्रम के आयोजक – जेएनयू फोरम अगेंस्ट वार ऑन पीपुल – की समन्वय समिति द्वारा इस कार्यक्रम के आयोजन की तारीख 5 से बढ़ा कर 9 किये जाने की सूचना देनेवाला 3 अप्रैल को भेजा गया एसएमएस भी मेरे मोबाइल में सेव है।
मुझे लगता है कि ये तथ्य इस बात के लिए काफी सबूत मुहैया कराते हैं कि यह आयोजन पहले से तय था और इसके बारे में कैंपस के अधिकतर छात्र जानते थे।
जहां तक सैनिकों की मौत पर जश्न मनाने का सवाल है – यह झूठ भाजपा और कांग्रेस के छात्र संगठनों ने फैलाया और मीडिया ने हाथोंहाथ लिया। उस आयोजन के दौरान लगभग 300 छात्र मौजूद थे और साथ ही जेएनयू के सुरक्षा गार्ड थे। वे वास्तविक स्थिति की सूचना दे सकते हैं। क्या मीडिया ने उनसे वास्तविक स्थिति के बारे में जानने की कभी कोशिश की? किसी ने भी एसी कोशिश नहीं की। एसी बातों का प्रचार भी मीडिया में किया जा रहा है कि ‘देशविरोधी नारों’ और ‘शहादत पर जश्न’ के कारण छात्र गुस्सा गये और उन्होंने विरोध किया। जबकि वास्तव में केवल 8-10 लोगों, जो एबीवीपी और एनएसयूआई से जुड़े हुए थे और उनमें से हो सकता है कि कुछ छात्र न भी हों, ने हंगामा किया। उस प्रोजेक्टर को तोड़ दिया जिस पर एक फिल्म दिखायी जानी थी। बिजली की लाइन काट दी और माइक तोड़ दिया। वे लगातार मंच पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे और इस कारण से आयोजन स्थल पर एक भगदड़ की स्थिति सी बन गयी थी। इस क्रम में हल्की हाथापाई जरूर हुई थी। इसके साथ ही एनएसयूआई के 4-5 लोगों ने आयोजन स्थल पर पत्थर भी फेंके। इसके बावजूद कार्यक्रम एक-डेढ़ बजे रात तक चला। हबीब तनवीर के नाटक सड़क का प्रदर्शन हुआ और जनवादी गीत गाये गये और तब तक सौ-दो सौ से अधिक संख्या में छात्रों की मौजूदगी बनी रही।
ऐसा लगता है कि किसी को इन तथ्यों से मतलब नहीं है।
लेकिन मुझे उम्मीद है कि जनसत्ता ने खुद जिस तरह की पत्रकारिता की मिसाल कायम की है, उसमें एसे तथ्यों के लिए जगह होगी। इसी उम्मीद से यह पत्र लिख रहा हूं।
रेयाज उल हक, 3 मई 2010
आश्चर्य हो रहा है कि अक्सर जबाब देने में उस्ताद इन वाम रुदालियों को इस बात का जबाब देने में इतना वक्त क्यों लग गया ? और बंधू एक बात और धुंवा बिना आग के नहीं उठता ये वाला मुहारावा अक्सर वामपंथी रुदालिया ही ज्यादा इस्तेमाल करती है and listen, though I'm not a sanghi bhonpu but i wanna ask you people some questions;
जवाब देंहटाएंNaxalism started in India in 1967 from West Bengal, just 20 yrs after independence. How can you expect Govt. or officer responsible for developement in such areas to do some dev. work where their own life are at stake?
Why the hell your Naxlite friends are blowing up school, hospitals etc, if they are so keen about developement of tribe people?
Communism is not about welfare of people.. its transforming people into animals.the maoists are not at all friends of the tribal people. They forcefully make the tribal people work for the maoists. They slit the throats of non abiding tribals saying that they are police informers (so much of a tribal sympathy). They blow up schools and kill the teachers to keep the people uneducated. They don’t allow medical facilities to reach the poor people. And the maoists are also involved in trafficking 300,000 tonnes/year of coal just from Jharkhand (So much of their commitment to preserve the natural resources). If tribal people are dying of hunger, its not because the state is against them. Its because the maoists are cutting them off from the main-stream. When land is acquired for industries, the tribals feel vulnerable for their future since they are not aware of the coming opportunities. And it is at this place that the maoists provoke them to fight against the state. See the example Of west bengal. You guy make progressive bengal to hell.
यह जानकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमुझे विश्वास है कि आप सभी ने इस सभा में दंतेवाड़ा में हत्यारे नक्सलवादियों द्वारा भारतीय जवानों की कायरतापूर्ण नृशंस हत्या का विरोध ही किया होगा. भारतीय सुरक्षा बलों की हत्या के विरोध में हम सभी आपके साथ है.
एक बात समझ नहीं आयी कि 300 छात्र थे, जे एनयू के गार्ड्स भी थे उनके बीच "केवल 8-10 लोगों, जो एबीवीपी और एनएसयूआई से जुड़े हुए और हो सकता है कि वे जेएनयू के छात्र भी न रहे हों" कैसे प्रोजेक्टर उलट सके, हंगामा मचा सके? क्या 300 छात्र और जेएनयू के गार्ड्स अपनी कांख में हाथ डाल कर बैठे रहे थे ?
'जेएनयू के छात्र भी न रहे हों..." !
जनसता को ये पत्र भेजने वाले रेयाज उल हक तो अवश्य जेएनयू के छात्र होंगे! हैं ना?
गांधी की मौत पर जलसा मनाने वालों में कसकर सौ सौ जूते मारने चाहिये.
जवाब देंहटाएंऔर निर्दोष भारतीय जवानों की कायरता पूर्ण हत्या पर खुशी मनाने वाले नक्सलवादियों के साथियों में भी सौ सौ जूते कस कर मारने चाहिये.
आप इन जवानों की हत्या के खिलाफ है, यह जानकर अच्छा लगा..
पी सी गोदियाल साहब
जवाब देंहटाएंहमें उत्तर देने से पहले अपने तथ्य दुरुस्त करने होते हैं। आय-बाय बकने वालों को अक्सर वक़्त नहीं लगता और धुआं बर्फ़ से भी उठता है।
और अच्छी-ख़ासी हिन्दी जानने वाले को अंग्रेज़ी में बोलने की ज़रूरत कब पड़ती है? मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि बस तभी जब उसे अपने कहे पर पूरा विश्वास नहीं होता। वैसे भी यहां बहस नक्सलवाद पर नहीं बल्कि संघी भोंपुओं के दुष्प्रचार की प्रवृति पर थी। आपको 'संघी भोंपू न होने के बावज़ूद' इतनी क्यों खली…पता नहीं!
अमित भाई,
जवाब देंहटाएंयह दुख उस घटना के अगले ही दिन हमने प्रकट किया था। पुलिस हो या नक्सलवादी किसी को निर्दोषों की हत्या करने का अधिकार नहीं होना चाहिये।
और दस लोग अगर तस्लीमा की सभा भंग कर सकते हैं, हुसैन की प्रदर्शनी बरबाद कर सकते हैं तो यह क्यूं नहीं? वे तोड़फोड़ करने आये थे किया पर सभा चलती रही।
nice post nice comments
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद के संस्थापक कानू सान्याल ने किस दुख के कारण आत्म हत्या की ? जे एन यू के दोस्तों को विचार करना चाहिए । विचारधारा के मूल बिन्दु से आन्दोलन भटक कर अपराधियों के हाथ मे चला गया है । जो लोग जनतंत्र मे विश्वास नही करते और भय का राज स्थापित करना चाहते हैं ।
जवाब देंहटाएंवैसे तो पूरी कम्युनिस्ट विचारधारा भय पैदा करने और विरोधियो की हत्या से संचालित है । स्टालिन से लेकर थियानमन चौक तक जुल्मो दी दास्तान भरी पड़ी है । भारत जैसे एक धार्मिक और सहिष्णु समाज के लिए अभिशाप होगा वह दिन जब लाल झण्डा लाल किले पर फहरायेगा ।
nice
जवाब देंहटाएंबेहतर हो बहस में हम यह देखें कि किसकी नीतियां जनविरोधी हैं और किसकी नहीं।
जवाब देंहटाएंएक आंख से देखने वालों की यही दिक्कत है। उन्हें न विश्व युद्ध दिखते है, न नागासाकी-हिरोशिमा,न गोधरा-गुजरात,न भागलपुर, न गांधी हत्या, न सब सहारा देशों में खेला गया विनाश का खेल,न इंडोनेशिया और इरान में वामपंथियों का क़त्लेआम,न हिटलर की एथनिक क्लिंसिंग और न ही दुनिया भर में धार्मिक कट्टरपंथ का फैलता भयावह संजाल। और तो और धर्म और जाति के आवरण तले हो रही खाप हत्यायें और दलितों के विरुद्ध अत्याचार भी आपकी हिंसा की परिभाषा में शामिल नहीं होता।
जवाब देंहटाएंसाफ़ है हिंसा भी आपके लिये सेलेक्टिव मामला है।
पाण्डेय साहब,
जवाब देंहटाएंक्षमा करें, यही प्राब्लम है वाम रुदालियों के साथ, चूँकि ज्यादातर रुदालियाँ जे एन यू से पढी होती है इसलिए वे अपने को श्रेष्ठ समझती है विद्वता के मामले में ! भाईसहाब, इतना तो एक गाँव के स्कूल का दसवीं कक्षा का विद्यार्थी भी समझता है कि चाहे आपने साल भर पहले ही क्यों न वो प्रोग्राम फिक्स कर लिया हो, चाहे उस पर लाख रूपये क्यों न खर्च कर डाले हों, अगर आप जैसे उच्च पड़े लिखे जे एन्योऊ के लोगो में ज़रा भी अक्ल होती, नैतिकता होती ( देशभक्ति की उम्मीद तो ज्यादती होगी) तो जब देश अपने ७६ जवानो की मौत का मातम मना रहा था , आप उस प्रोग्राम को एक महीने के लिए स्थगित कर सकते थे , आज मनाते उसे कोई आपको कुछ नहीं कहने वाला था , लेकिन जो समय आप लोगो ने चुना , वह गलत और संदेहास्पद था !
इस लिंक पर भी जाए - http://prasunbajpai.itzmyblog.com/
जवाब देंहटाएंहाय गोदियाल साहब! जे एन यू में पढ़ना तो दूर हम आज तक उसके भीतर भी नहीं गये। सारी पढ़ाई और ज़िंदगी देवरिया, गोरखपुर और ग्वालियर में गुज़र गयी। प्राब्लम शायद हीनताबोध की है संघी चम्पूओं में तो उसके लिये क्या किया जा सकता है भाई साहब!
जवाब देंहटाएंतो अब उस दिन मीटिंग करना भी गुनाह हो गया? मुझे उम्मीद है कि उसके अगले दिन कहीं संघ की शाखा नहीं लगी होगी। संघी जोकरों ने कहीं हिटलर के कच्छे और मुसोलिनी की टोपी पहनकर उछलकूद नहीं मचायी होगी। सारे सरकारी दफ़्तर बंद हो गये होंगे। सारे संघियों की दुकानें और आफ़िस बंद रहे होंगे… जिस दिन गांधी की हत्या हुई उस दिन तो नहीं थे…मिठाई जो बांटनी थी!
इनके पत्र में ही ढेर सारे विरोधाभाष है जिनपर गौर करना चाहिए. गोंदियाल साहब ने वक्त को लेकर सही सवाल उठाया है. जहां केवल एक आज़ाद नाम के नक्सली के सैर पर चले जाने पर प्रशांत भूषण जैसे लोग 'कान'को नहीं 'कौआ' को पकड़ना शुरू करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुच जाते हैं.बाद में वह आज़ाद नामक गुलाम अपने सही-सलामत होने का होने का फतवा जारी करता है और बेशर्म प्रशांत जैसों के चेहरों पर शिकन भी नहीं होती. इसी तरह अरुंधती पर कोई अनजान आदमी पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराता है और यही 'लाउड-स्पीकर' पुलिस के पास शिकायत पहुचने से पहले ही टनों अखबार काले कर देते हैं...ऐसे दर्ज़नों उदाहरण के होते हुए देश-द्रोह के इस मामले पर इतने दिनों बाद सफाई आना किसको पचेगा? साथ ही 'हिंसा' को अपना मूलमंत्र मानने वाले ये वाम-मार्गी इतने कमज़ोर कबसे हो गए कि केवल १०-१२ लोग, गार्ड समेत 300 लोगों पर भारी पर गए? हंसने का ही मन करता है ऐसे आरोपों पर. इसके अलावा अगर इनके बात को शब्दशः भी मान लिया जाय तब भी, अगर पहले से ही इनका कार्यक्रम नियत था तो भी ऐसी घटना हो जाने पर अगर इनके रगों में भी देश का ही खून दौडता है और हलाल भी है ये लोग तो इन्हें अपना कार्यक्रम स्थगित कर देना था. जिस नक्सल हिंसा में देश के 76 जांबाज़ शहीद हो गए हों, उसकी चर्चा के बदले ऐन मौके पर सरकारी हिंसा की बात करने वाले को काश जैसा इस पत्र में आरोप लगाया गया है वैसा ही व्यवहार किया जाता. और अगर ऐसा व्यवहार इनके साथ किया गया है तो प्रणम्य हैं कांग्रेस और बीजेपी के छात्र संगठन के लोग.
जवाब देंहटाएंपंकज झा.
पंकज जी
जवाब देंहटाएंअब पाचन शक्ति कमज़ोर हो तो कोई क्या कर सकता है? किसी हिन्दू आतंकवादी के पकड़े जाने पर क्या संघ और उसके चंपू मुस्लिम आतंकवाद की राग अलापना बंद कर देते हैं? तो जवानों के मारे जाने पर हिंसा के पूर खेल पर सवाल उठाना कैसे गलत हो गया।
आज़ादी की पूरी लड़ाई में अंग्रेज़ों की जी हूज़ूरी करने वालों से देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांग भी कौन रहा है।
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और मुझे कृतार्थ करें
जवाब देंहटाएंतीन दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम आज से
जवाब देंहटाएंब्यावर
First Published 01:48[IST](09/04/2010)
Last Updated 01:48[IST](09/04/2010)
काश्मीर प्रचारिका महासती उमराव कुंवर 'अर्चनाÓ की प्रथम पुण्यतिथि के उपलक्ष में पाश्र्व जैन नवयुवक मंडल, चंदना किशोर मंडल व भगवती मल्लि बहुमंडल के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय कार्यक्रम तप, त्याग व मानव सेवा के रूप में मनाया जाएगा। मंडल अध्यक्ष अभिषेक रूणीवाल ने बताया कि शुक्रवार को दोपहर डेढ़ बजे से ढ़ाई बजे तक संजय स्पेशल स्कूल में बच्चों को भोजन व ब्रज मधुकर भवन में नमोकार महामंत्र जाप का आयोजन किया जाएगा। शनिवार को पुण्यतिथि दिवस पर गुणानुवाद सभा के लिए सवेरे 6 बजे पीपलिया बाजार से पाली के लिए प्रस्थान करेगी। रविवार को पाश्र्वनाथ जैन चिकित्सालय में विशाल रक्तदान शिविर आयोजित किया जाएगा।
बाबा बालक नाथ जी का भंडारा आज
माहिलपुर
First Published 01:33[IST](09/04/2010)
Last Updated 01:33[IST](09/04/2010)
& गांव पंडोरी लद्दा सिद्ध श्री बाबा बालक नाथ मंदिर में भगत मोहारी लाल के नेतृत्व में 9 अप्रैल को वार्षिक भंडारा करवाया जाएगा। इस दौरान मूर्ति स्नान करवाया जाएगा और पूजा अर्चना होगी। इस मौके पर प्रमुख गायक कंठ कलेर बाबा जी की महिमा का गुणगान करेंगे।
दातारपुर में भंडारा व कव्वालियां 13 को
दातारपुर & दातारपुर—झीर दा खुई मुख्य रोड पर स्थित बाबा भागी शाह मस्ताना के दरबार अधी इट्ट में चौथा वार्षिक भंडारा 13 अप्रैल को करवाया जाएगा। दरबार के सेवक बोवी ठाकुर और सुमित भाखन ने बताया कि दरबार पर 13 अप्रैल को झंडा चढ़ाया जाएगा। इस दौरान नन्हा गायक नीरज सनियाल भेंटों मे बाबा जी की महिमा गुणगान करेंगे। इस मौके पर लंगर लगाया जाएगा।
गढ़शंकर में वार्षिक जागरण कल
गढ़शंकर & नौजवान सभा द्वारा चौथा वार्षिक जागरण १० अप्रैल को रात्रि शिव मंदिर निकट पुलिस स्टेशन के पास ग्राऊंड में करवाया जाएगा। इस जागरण में संत काली नाथ एैम्मा जट्टां, लुधियाना से विक्की बादशाह पार्टी और राहों से सुक्खा राम सरोआ पार्टी मां की भेंटों का गुणगान करेंगे।
ये कार्यक्रम भी उसी दिन थे और स्थगित नहीं किये गये…तो क्या आप इनके आयोजकों को भी देशद्रोह का सर्टिफ़िकेट देंगे? मैने बस भास्कर के आर्काईव्स में से यूं ही निकाल लिया है।
आप ढूढ़ कर बताईयेगा कि संघ या बीजेपी या किसी और दल ने अपने कितने कार्यक्रम उस दिन स्थगित किये थे। फिर तय कर लेंगे देशभक्ति वगैरह के बारे में।
@इस्लाम की दुनिया
जवाब देंहटाएंमुझे इस्लाम या हिन्दुत्व की नहीं इन्सान की दुनिया अच्छी लगती है भाई। मेरे लिये संघ की आलोचना का अर्थ इस्लाम की बड़ाई नहीं है। मुझे तो सारे धर्म इंसान के शत्रु लगते हैं
न्यौते के लिये आभार
"संघी जोकरों ने कहीं हिटलर के कच्छे और मुसोलिनी की टोपी पहनकर उछलकूद नहीं मचायी होगी। सारे सरकारी दफ़्तर बंद हो गये होंगे। सारे संघियों की दुकानें और आफ़िस बंद रहे होंगे… जिस दिन गांधी की हत्या हुई उस दिन तो नहीं थे…मिठाई जो बांटनी थी! "
जवाब देंहटाएंMr. ashok Kr. pandey,
I know,as usual, you people can't respond in a proper manner because you don't have the proper reply.
So, it is not worth to discuss anything further with you in this matter.Sorry to say that Hindu leftist are the lowest of the low.
Goodbye !
ओह अब आपको भाषा का ख़्याल आया! रुदालियों का सतत रुदन करते समय यह चेतना सो गयी थी शायद!॰
जवाब देंहटाएंवैसे फिर से अंग्रेज़ी वही कहानी कह रही है -- आत्मविश्वास का अभाव और तर्को का अकाल…शुभ विदा
इस बहस का कोई अंत नहीं है। यह चलती रहेगी। पहले यह तय किया जाए कि क्या दुनिया को बेहतर रीति से बदलना चाहिए? या फिर इंसान को वापस गुफा युग में पहुँच जाना चाहिए?
जवाब देंहटाएंजी हां, अशोक जी, आपसे सहमति
जवाब देंहटाएंसिर्फ अक्ल से काने लोग ही सेलेक्टिव हिंसा देखते हैं.
हम आम आदमियों के लिये तो नागासाकी - हिरोशिमा निंदनीय हैं तो हत्यारे माओ द्वारा थ्यानमन चौक पर मासूम छात्रों पर चलायीं गोलियां भी निंदनीय हैं, गुजरात गोधरा, हैदराबाद, बरेली के आंसू, सारे दंगे हत्या है,.. गोधरा गुजरात और बरेली के अपराधी समान अपराधी हैं. काश्मीर में हिन्दुओं का कत्लेआम भी उतनी ही जघन्य और वहशीभरी हत्या है. इनमें फर्क सिर्फ कुछ गधे सूअर ही कर सकते है.
हिन्दू आतंकवाद और बाटला छाप आजमगढियों का आतंकवाद दोनों जूते जमाने लायक है. सिर्फ आंख और अक्ल के काने लोग ही इनमें फर्क करते हैं.
पाकिस्तान से हथियार लेकर इस देश पर हमला करनेवाला कसाब अपराधी है तो चीन में मिलिटृी ट्रेनिंग पाया, चीनी हथियारों से इस देश के खिलाफ युद्ध लड़ने की कोशिश करने वाला कनु सान्याल भी उतना ही अपराधी है. दोनों ही देशद्रोह है..
आपसे सहमति है.
सिर्फ अक्ल से काने लोग ही सेलेक्टिव हिंसा देखते हैं.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअशोक जी,संघ क्या करते हैं नहीं करते हैं इससे हमें ज्यादा मतलब नहीं. ना ही यह मामला संघ बनाम कुसंग का है. सीधे तौर पर यह मामला 'वाम बनाम अवाम' का है. लोकतंत्र बनाम नक्सलवाद का है. रुदालियाँ लाख शोर मचाये, आपको मौके की नजाकत समझनी ही होगी. अगर भारत और चीन का युद्ध शुरू हो जाय तो 'चीन के चेयरमेन हमारे चेयरमेन हैं' कहने की इजाज़त किसी कीमत पर नहीं दी जायेगी. लाख बुराइयों के बावजूद लोकतंत्र सबसे कम बुरी प्रणाली है.और इस तंत्र की आज की सबसे बड़ी चुनौती नक्सलियों को निर्मूल करना है. यही आज की प्राथमिकता है.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंपंकज झा.
Pandey ji,
जवाब देंहटाएंYou did not answer my question , why Kanu Sanyaaal comitted suicide ?
Whether more people died during second world war or by Stalin,s regime ? What was crme or sin of students of Thianman Square, why they were crushed under wheels ?
गम्भीर मामला है।
जवाब देंहटाएंजिन लोगों का इतिहास इतना कमज़ोर है कि वे यह भी नहीं जानते कि थ्येन अन मन स्क्वेयर जब हुआ था तो चीन में माओ नहीं थे उनसे क्या कहा जाय।
जवाब देंहटाएंयह संघ के दुष्प्रचार का मामला है। यह सच बनाम झूठ का मामला है। और इसका कोई जवाब संघ के इन भोंपूओं के पास नहीं है। स्थगन के मामले पर मेरा जवाब न देकर यह जय महोदय ट्रैक क्यूं बदल रहे हैं? जिन हथियारों से संघी आतंकवादी जनता का ख़ून बहा रहे हैं उन पर बात करने में इतनी शर्म क्यूं आ रही है?
हाम गालियों पर मेरा एतराज़ है और ऐसी टीपें हटा दी जायेंगी।
Sharm karo pande ji.. insaniyat ki maut par sangh aur vaam ke gane gakar apne aap ko pandit mat siddh karo.
जवाब देंहटाएंदीपक शर्म उनको आनी चाहिये जो झूठी अफवाहें फैलाकर सैनिकों की लाश पर राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं।
जवाब देंहटाएं