अभी हाल में


विजेट आपके ब्लॉग पर

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

असाधारण होते ही कविता बस मायावी सरोवर की तरह अदृश्य हो जाती है - एकान्त श्रीवास्तव

(ये हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि एकांत श्रीवास्तव की पंक्तियां हैं, रचना समय के हालिया प्रकाशित शमशेर जन्मशती विशेषांक में छपे उनके लेख की अंतिम पंक्तियां। पत्रिका मिलने के बाद पता नहीं कितनी बार पढ़ गया हूं इसे…और हर बार और-और व्यग्र हुआ हूं। एक कवि अग्रज इससे बेहतर क्या बता सकता है? न उनसे मिला हूं न कभी बात ही हुई … पर इन पंक्तियों के बाद इच्छा तीव्र हो गयी है…आप भी देखिये)



शायद कोई कवि जान-बूझकर और सायास कवि होने का विकल्प नहीं चुनता। यह एक स्थिति है जो जन्म के साथ मिलती है। कवि बस इसे विकसित करता है- एक साधारण जीवन जीते हुए- क्योंकि कवि एक साधारण मनुष्य है और साधारण जीवन जीकर ही कविता को पाया जा सकता है। असाधारण होते ही कविता बस मायावी सरोवर की तरह अदृश्य हो जाती है और हाथ में बस मिट्टी और रेत रह जाती है। हम चाहें तो इस मिट्टी और रेत को कविता मानने की खुशफ़हमी पाल सकते हैं। पर सच्ची कविता का मार्ग तो कठिन है, कांटों भरा, दुर्गम और सर्पगंधा भी और 'कवि का बीज' बकौल शमशेर 'कटु तिक्त'।

11 टिप्‍पणियां:

  1. bhai Ashok ji,Janpaksha ki post par text ki jagah box dikhayee dete hain, kyon. kya koi font download karna parega.

    जवाब देंहटाएं
  2. अंक तो नहीं पढ़ पाया परन्‍तु आपने अंक के प्रति लालच पैदा कर दिया. एकांतजी मेरे भी प्रिय कवियों में हैं. यहां जो थोड़ी सी पंक्तियां आपने दी हैं, अद्भूत है...

    जवाब देंहटाएं
  3. अंक तो नहीं पढ़ पाया परन्‍तु आपने अंक के प्रति लालच पैदा कर दिया. एकांतजी मेरे भी प्रिय कवियों में हैं. यहां जो थोड़ी सी पंक्तियां आपने दी हैं, अद्भूत है...

    जवाब देंहटाएं
  4. बड़ी अच्छी बात कही है,एकांत जी ने..."पर सच्ची कविता का मार्ग तो कठिन है, कांटों भरा, दुर्गम और सर्पगंधा भी और 'कवि का बीज' बकौल शमशेर 'कटु तिक्त'।"

    मुझे भी किसी शायर की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं...

    "जागता ज़ेहन गम की धूप में था
    छाँव पाते ही सो गया जैसे "

    जवाब देंहटाएं
  5. अशोक भाई पूरा आलेख उपलब्ध करवाना संभव है क्या ?
    रचना समय वालों से टाइप्ड किया हुआ मांग कर देखो यार।

    जवाब देंहटाएं
  6. सही बात कही है एकांत जी ने। मगर दुर्भाग्य यह है कि इस असाधारण समय में असाधारण कवियों और असाधारण कविताओं की ही भरमार है। दिमागी भट्टी में पकी असाधारण रचनाएं। अनुभव की चाशनी में पगी सीधी-सादी, सरल और दिल को छू जाने वाली रचनाएं कालबाह्य-सी होने लगी हैं या कर दी गई हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. सोलह आने सच बात.... साधारण के पास तीसरी आँख, अँगुलियों में शब्दों की नदी और आत्मा में प्रकृति के लिए प्रेम ... ख़ुशी, प्रेम, कसक, प्यास, कमी, विरह, अन्नाय, मज़बूरी, दर्द इन सभी को कवि साधारण जिंदगी में जीता है फिर इसका स्वाद पाठकों को चखाता है ... असाधारण लोगों को यह सौभाग्य नसीब नहीं!

    जवाब देंहटाएं
  8. कवि और कविता साधारण कैसे हो सकते हैं ?

    मुक्ति बोध और टैगोर और कबीर और निराला क्या साधारण मनुष्य थे ? कामायनी और अँधेरे में , और गीतंजलि और मेघदूतम जैसी रचनाएं क्या साधारण रचनाएं हैं ?
    हद करते हैं यार आप लोग ! :)

    जवाब देंहटाएं
  9. निःशुल्क विज्ञापन
    साथियों ,नमस्कार
    यहाँ अपनी माटी मंच ने एक नवीन प्रयास किया है,जिसे आप सभी के सहयोग की ज़रूरत रहेगी.''अपनी माटी'' पठन-पाठन मंच ने हमारे लेखक,सम्पादक और प्रकाशक साथियों द्वारा प्रकाशित पत्र,पत्रिकाओं सहित सभी प्रकार की साहित्यिक-सांस्कृतिक पुस्तकों के पर्याप्त प्रचार-प्रसार करने हेतु उनका निःशुल्क विज्ञापन करने का मन बनाया है.यहाँ एक योजना अपनाई है जिसमें परस्पर संवाद भी बन पड़ेगा.कुछ बिन्दुवार जानकारी इस तरह है';-

    * ये मंच अपनी माटी मंच के पाठक साथियों हेतु एक अनौपचारिक पुस्तकालय संचालिन करने जा रहा है .जहां संग्रहित सामग्री एक दूजे को चक्रवार देते हुए पाठकीयता बढ़ाने का मन रखती है.
    * इस योजना में चित्तौडगढ और आस-पास के इलाके में साहित्यिक गतिविधियाँ चल सके और .इस निशुल्क विज्ञापन योजना के सहयोग से उसे गति देने का मन बनाया है.
    * मंच के द्वारा की जाने वाली चर्चाओं और परिसंवाद में हमें प्राप्त पत्रिकाओं और पुस्तकों पर यथासंभव चर्चा और उनकी समीक्षा कराने का मन है.
    * इस योजना में प्रतिभागिता हेतु हमें पुस्तक/पत्रिका की एक प्रति निःशुल्क रूप से हमारे पते पर भेजनी होगी.
    * अपनी माटी पर पुस्तक/पत्रिका की ज़रूरी जानकारी और आवरण चित्र पोस्ट किया जाएगा जो लगातार बना रहेगा.

    * पुस्तक/पत्रिका भेजने का पता है;-

    माणिक,
    सम्पादक,अपनी माटी,
    17,शिवलोक कोलोनी,संगम मार्ग,
    चित्तौडगढ,राजस्थान-312001
    मोबाइल-०09460711896

    * ये योजना पूर्ण रूप से गैर व्यावसायिक और स्वयंसेवा की भावना से आरम्भ की जा रही है.
    * हम आशा करते हैं कि आप इस सद प्रयास को समझ कर इसकी कहबर अपनों तक पहुंचाएंगे .
    * योजना से जुडी कोइ शंका/समाधान हेतु आप संपर्क ईमेल apnimaati.com@gmail.com पर कर सकते हैं.


    सादर
    सम्पादक
    अपनी माटी
    http://apnimaati.com

    जवाब देंहटाएं
  10. एकांत जी आपने सही कहा...कविता एक साधारण मनुष्य एक साधारण जीवन जी कर ही कर सकता है.

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है समर्थन का और आलोचनाओं का भी…