हेम पांडे दुनिया का पहला पत्रकार नहीं था जिसको पुलिस ने कायराना तरीके से गोली मार दी। मैं नहीं जानता कि उसके माओवादियों से क्या संबंध थे…वह आज़ाद का कौन लगता था…लेकिन यह पक्के तौर पर जानता हूं कि उसके हाथ में बंदूक नहीं क़लम थी…और इस रिश्ते से वह मेरा हमपेशा था।
सत्ता को क़लम से इतना डर क्यूं लगता है? यह कौन सी व्यवस्था है जिसमें क़लम के बरअक्स बंदूक टिका दी जाती है? यह कौन सा लोकतंत्र है जिसमें विरोध यानि देशद्रोह है?
सवाल अपनी जगह हैं और जवाब कहीं नहीं…और जब तक जवाब नहीं आयेंगे क़लम चलती रहेगी…शायद बंदूक भी…और ऐसे तमाम हेम शिक़ार होते रहेंगे…
जनपक्ष की ओर से उसे सलाम…
बेहद शर्मनाक है यह।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
हेम को अपन का भी सलाम ..
जवाब देंहटाएंहेम एक ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर व्यवस्था के पास नहीं है !
हेम पाण्डेय को नमन.
जवाब देंहटाएंकितने कायर हैं , ये व्यवस्था को चलाने वाले और कितनी काली है इनकी करतूतें की उजागर किए जाने के डर से एक निर्भीक पत्रकार के जीवन का अंत कर देते हैं...बेहद बेहद शर्मनाक है यह.