इन दिनों हिन्दी साहित्य परिदृश्य में जो कुछ अरोचक, अवैचारिक तथा असाहित्यिक घट रहा है। दुखद है। उत्तेजित करने वाला है।
वरिष्ठ कथाकार तथा महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविधालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ बेवफाई सुपर विशेषांक के लिए ली गयी अपनी बातचीत में लेखिकाओं के प्रति आपत्तिजनक शब्द और उनके लेखन पर अपनी राय देते हुए जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं नाकाविल-ए-वर्दाश्त है।
मेरी दृष्टि में, विभूति नारायण राय से अधिक दोषी ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक होने के नाते रवीन्द्र कालिया जी हैं, जिन्होंने उनकी ऐसी टिप्पणी को बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना ढंग से छापा दरअसल, रवीन्द्र कालीया जी जबसे ज्ञानपीठ के निदेशक बने हैं, ज्ञानपीठ की गरिमा धूमिल हुई है। ‘नया ज्ञानोदय’ के जैसे-जैसे असाहित्यिक और बाजारू अंक उनके संपादन में आ रहे हैं, वेहद अफसोसनाक हैं ।
रवीन्द्र’ कालिया जी ‘ज्ञानपीठ’ जैसी गरिमामयी संस्था की शीर्ष पर बैठ कर न्याय नहीं कर पा रहे हैं । इसलिए मेरी मांग है कि रवीन्द्र कालिया जी को तुरत ज्ञानपीठ के निदेशक पद से इस्तीफा दे देना चाहिए तथा ऐसे कृत्यो मे शामिल उनके सहयोगियों को भी ज्ञानपीठ से निकाल-बाहर करना चाहिए।
-- शहंशाह आलम, युवा कवि
मो. - 09835417537
बामुलाहिजा होशियार अब शहंशाह आलम पधार रहे हैं ....................................................
जवाब देंहटाएंबात आप की सही है।
जवाब देंहटाएंभाई शहंशाह आलम की चिंता में हमारी चिंता भी शामिल है.
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