(प्रो शम्सुल इस्लाम की किताब 'वी आर अवर नेशनहुड डिफाइण्ड - ए क्रिटिक' का अगला हिस्सा)
नस्लवाद का बचाव
गोलवलकर की हिन्दू राष्ट्रीयता का सबसे महत्वपूर्ण अवयव जाति या जातीय भावना थी जिसे उन्होंने ‘हमारे धर्म की संतान’30 के रूप में परिभाषित किया। उनके दृष्टिकोण के अनुसार
‘हिन्दुस्थान में एक प्राचीन हिन्दू राष्ट्र है और इसे निश्चित तौर पर होना ही चाहिये, और कुछ और नहीं – केवल एक हिन्दू राष्ट्र। वे सभी लोग जो राष्ट्रीय यानि कि हिन्दू जाति, धर्म, संस्कृति और भाषा को मानने वाले नहीं होते वे स्वाभाविक रूप से वास्तविक ‘राष्ट्रीय’ जीवन के खांचे से बाहर छूट जाते हैं।
हम दुहराते हैं- हिन्दुओं की धरती हिन्दुस्थान में हिन्दू राष्ट्र रहता है और रहना ही चाहिये- जो आधुनिक विश्व की वैज्ञानिक पांच ज़रूरतों को पूरा करता है। फलतः केवल वही आंदोलन सच्चे अर्थों में ‘राष्ट्रीय’ हैं जो हिन्दू राष्ट्र के पुनर्निर्माण, पुनरोद्भव तथा वर्तमान स्थिति से इसकी मुक्ति का उद्देश्य लेकर चलते हैं। केवल वही राष्ट्रीय देशभक्त हैं जो अपने हृदय में हिन्दू जाति व राष्ट्र के गौरवान्वीकरण की प्रेरणा के साथ कार्य को उद्धत होते हैं और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं। बाकी सभी या तो गद्दार हैं और राष्ट्रीय हित के शत्रु हैं या अगर दयापूर्ण दृष्टि अपनायें तो बौड़म हैं31
निस्सन्देह गोलवलकर की यह परिभाषा पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र के सावरकरीय माडल पर आधारित है और मुस्लिमों, इसाईयों, या अन्य अहिन्दू अल्पसंख्यकों के हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा होने के दावे को पूरी तरह ख़ारिज़ करती है। हिन्दुत्व के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वालों को न केवल भारतीय राष्ट्रीयता से बहिष्कृत किया गया अपितु ‘गद्दार’, ‘शत्रु’ और ‘बौड़म’ कहकर अपमानित किया गया है। यह भारत में रहने वाले अहिन्दुओं का क्रूर अपमान था लेकिन ब्रिटिश शासकों ने इस किताब के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की। * ऐसा इस तथ्य के बावज़ूद कि भारतीय दण्ड विधान की धारा 295 A ख़ासतौर पर ‘किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को, उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों को लिखित या मौखिक रूप से शब्दों के माध्यम से अपमानित करने या किसी दृश्य माध्यम से प्रदर्शित करने या किसी और तरीके से भड़काने को’ ग़ैरक़ानूनी साबित करता है।32
अपने दृष्टिकोण को और स्पष्ट करने के लिये वह निम्नलिखित प्रश्न उठाते हैं
‘अगर निर्विवाद रूप से हिन्दुस्थान हिन्दुओं की धरती थी और अगर केवल हिन्दुओं का ही फलना-फूलना निश्चित था तो इन सभी लोगों की क़िस्मत क्या होनी थी जो यहां रह रहे थे परंतु हिन्दू धर्म, जाति और संस्कृति से संबद्ध नहीं थे?33
और वह स्वयं ही उत्तर देते हैं कि जहां तक राष्ट्र का प्रश्न है
गुजरात-2002- नस्ली सफ़ाये के सिद्धांत का ज़मीनी प्रयोग? |
पूरी तरह से उनका हिंदूकरण या फिर नस्ली सफाया, भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या से निपटने के गोलवलकर ने यही मंत्र सुझाया था। 1925 में अपने निर्माण के बाद से ही आर एस एस ने कभी इसे अनदेखा नहीं किया। उनके अनुसार, पुराने राष्ट्रों ने अपनी अल्पसंख्यक समस्या को कभी भी उन्हें (अल्पसंख्यकों को) अपनी नीतिगत व्यवस्था में एक अलग पहचान की तरह स्वीकृति देकर हल नहीं किया। मुस्लिमों और इसाईयों को, जो कि बाहरी हैं, निश्चित तौर आबादी के प्रमुख जन, राष्ट्रीय नस्ल के साथ ख़ुद को पूरी तरह समाहित कर देना चाहिये। उन्हें निश्चित तौर पर राष्ट्रीय नस्ल की संस्कृति और भाषा को अपना लेना चाहिये और अपने विदेशी मूल को भूलकर अपने अलग अस्तित्व की संपूर्ण चेतना को त्याग देना चाहिये।
‘अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें राष्ट्र के रहमो-करम पर राष्ट्र की सभी संहिताओं और परंपराओं से बंधकर केवल एक बाहरी की तरह रहना होगा, जिनको किसी अधिकार या सुविधा की तो छोड़िये, किसी विशेष संरक्षण का भी हक़ नहीं होगा। विदेशी तत्वों के लिये बस दो ही रास्ते हैं , या तो वे राष्ट्रीय जाति में पूरी तरह समाहित हो जायें और यहां की संस्कृति को पूरी तरह अपना लें या फिर जब तक राष्ट्रीय जाति उन्हें अनुमति दे वे यहां उसकी दया पर रहें और राष्ट्रीय जाति की इच्छा पर यह देश छोड़कर चले जायें। अल्पसंख्यक समस्या पर यही एक पुख़्ता विचार है। यही इकलौता तार्किक और सही समाधान है। केवल यही राष्ट्रीय जीवन को स्वस्थ तथा अबाधित रखेगा। केवल यही राष्ट्र के भीतर राज्य के भीतर राज्य पनपने के कैंसर के ख़तरे से राष्ट्र को सुरक्षित रखेगा।35
उद्धरण-
[30] देखें,गोलवरकर की पूर्व उद्धृत किताब 'वी आर अवर नेशनहुड डिफ़ाइण्ड' का पेज़-22
[31] देखें, वही, पेज़-43f
* यहां यह भी देखा जाना चाहिये कि गोलवलकर का उक्त कथन अहिन्दू समुदायों के अतिरिक्त राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन भगत सिंह जैसे तमाम नायकों के प्रति भी अपमानजनक है जिनका लक्ष्य ऐसा कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं अपितु एक सेकुलर-समाजवादी व्यवस्था का निर्माण था- अनुवादक
[32] विस्तार के लिये देखें ‘आल इण्डिया मेज़र क्रिमिनल एक्ट्स’ प्रकाशक- सेन्ट्रल ला एजेन्सी, एलाहाबाद- 1991
[33] देखें, गोलवलकर की पूर्वोद्धृत किताब का पेज़ 45
[34] वही, पेज़-45f
[35] वही, पेज़-47
पूर्वाग्रह ग्रसित मानसिकता युक्त
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