सुबह-सुबह अदम साहब के गुजर जाने की खबर मिली... कल कितने लोगों से बात की थी...कोशिश में था कि इलाज के लिए ज़रूरी पैसों का एक बड़ा हिस्सा मित्रों से जुटा लिया जाय लेकिन उस खुद्दार शायर को शायद किसी की इमदाद मंजूर नहीं थी. वह कल के लिए के पहले अंक से जुड़े रहे थे...बल्कि कहा जाना चाहिए कि कल के लिए बुधवार जी के साथ मिलकर उन्होंने निकाली थी..जनकवि को कविता समय, कल के लिए,दखल विचार मंच, और जनपक्ष के साथियों की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि...लाल सलाम!
उन्हीं की एक गज़ल
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी
डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
ख़्वाब के साये में फिर भी बेख़बर है ज़िन्दगी
रोशनी की लाश से अब तक जिना करते रहे
ये वहम पाले हुए शम्सो-क़मर है ज़िन्दगी
अश्रुपूर्ण नमन.... हमेशा यादो मे सर्वोपरी रहेगे.
जवाब देंहटाएंlal salam
जवाब देंहटाएंनमन अदम साहब को!
जवाब देंहटाएंएडम गोंदवी जी को लाल सलाम
जवाब देंहटाएंअदम साहब को हार्दिक श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंअदम जी को अदब के साथ सलाम।
जवाब देंहटाएंअदम गोंडवी को लाल सलाम!
जवाब देंहटाएंविदा लेखनी के सपूत को !
जवाब देंहटाएंसलाम...
जवाब देंहटाएंलाल सलाम. इक क़हर है जिंदगी कहने की हिम्मत रखने वाले कवि को.
जवाब देंहटाएंadam ji ko bhagwa salaam
जवाब देंहटाएंश्र्धा सुमन ...
जवाब देंहटाएंआप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंभुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी
अदम जी को अदब के साथ सलाम। A.K.Arun