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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

सोनी सोरी को उत्पीडित करने वाले पुलिस अधिकारी को वीरता पदक प्रदान करने के विरोध में राष्ट्रपति से नागरिक अपील का एक प्रारूप.


महामहिम राष्ट्रपति जी,

''अमर रहे गणतंत्र हमारा ''

दुःखभरे  ह्रदय से आप को यह पत्र लिखते हुए हमें ध्यान है कि देश और दुनिया के अनेक चिंतित नागरिक समूहों, स्त्री अधिकार संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने  दंतेवाडा के पुलिस सुपरिटेन्डेंट अंकित गर्ग को वीरता पदक दिए जाने के फैसले से जुडी हुयी चिंताओं की ओर आप का ध्यान आकर्षित किया  है . हमें यकीन है कि आप इन चिंताओं पर गहराई से विचार करने की प्रक्रिया में हैं . हमें विश्वास है कि इस प्रसंग में आप के द्वारा लिया गया निर्णय राष्ट्र के गौरव  , नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और उन की मानवीय गरिमा को मज़बूत बनाने वाला सिद्ध होगा.

इस प्रसंग में राष्ट्र  के जिम्मेदार और सरोकार -सजग नागरिकों के बतौर हम खास तौर पर जिन विन्दुओं को आप के ध्यान में लाना चाहते हैं , वे इस प्रकार हैं -

१- आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी  ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखे अनेक पत्रों में यह बात दुहराई है कि दंतेवाडा पुलिस स्टेशन में ०८ अक्टूबर २०११ को अंकित गर्ग की उपस्थिति में  उन की  आज्ञा से उन्हे  शारीरिक यातनाये दी गयीं .इन यातनाओं में अमानवीय यौन हिंसा भी शामिल थी. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर कलकता के एन  आर एस सरकारी अस्पताल द्वारा की गयी मेडिकल जांच में इन आरोंपों को सही पाया गया है . अस्पताल द्वारा जारी जांच- रपट में पीडिता के गोपन अंगों  में पत्थर के टुकड़ों की मौजूदगी को दर्ज किया गया है . इस रपट का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पीडिता को दंतेवाडा पुलिस की अभिरक्षा में सुरक्षित न मान कर उन्हे रायपुर केन्द्रीय कारागार में स्थानांतरित करने के आदेश जारी किये हैं . इस से स्पस्ट है कि  आरोपित किन्तु पुरस्कृत एस पी के खिलाफ मानवाधिकारों , संवैधानिक दायित्वों , राष्ट्रीय गरिमा और सरकारी सेवा नियमों के गंभीर उल्लंघन का मामला ठोस प्रमाणों पर आधारित है .इस प्रसंग में यह तथ्य भी आप के ध्यान में होगा कि मीडिया द्वारा  एक स्थानीय पुलिस अधिकारी का वह टेप भी जारी किया गया  है , जिस में उस ने   स्वीकार किया है  कि शिक्षिका के खिलाफ  सक्रिय माओवादी कार्यकर्ता होने के  आरोप  निराधार और मनगढंत हैं . शिक्षिका और उस का परिवार अतीत में स्वयं माओवादी हिंसा का शिकार रहा है.लेकिन इस सिलसिले में सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी महिला के साथ  किसी भी परिस्थिति में इस तरह का दुर्व्यवहार हमारे  सांस्कृतिक मूल्यों और संवैधानिक आदर्शों का घनघोर अवमूल्यन है.

२- ऐसी परिस्थिति में आरोपित पुलिस सुपरिटेन्डेंट को राजकीय सम्मान देने का निर्णय राष्ट्र की गरिमा और सुरक्षा दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत हानिकारक है , क्योंकि इस घटना के निहितार्थीं  को निम्नलिखित रूपों में पढ़ा जा सकता है --

क) भारतीय राज्य एक आदिवासी नागरिक की मानवीय गरिमा , उस के संवैधानिक अधिकारों और न्याय की उस की आकांक्षा के अवमूल्यन को वह महत्व देने के लिए राजी नहीं है , जिस की अपेक्षा किसी भी आधुनिक लोकतांत्रिक  राज्य से की जाती है . यह एक ऐसा अवांछित सन्देश है , जो  भारतीय राज्य - राष्ट्र  और उस के वंचित नागरिकों के बीच  एक शत्रुतापूर्ण रिश्ते का संकेत देता है.

ख) भारतीय राज्य राजकीय निकायों से सम्बंधित  दमन , उत्पीडन , असंविधानिक आचरण और भ्रष्ट व्यवहार के आरोपों पर आवश्यक गंभीरता के साथ ध्यान देने के लिए राजी नहीं है .

ग )भारतीय राज्य  सरकारी अफसरों द्वारा एक स्त्री के स्त्रीत्व को क्रूरतापूर्वक अपमानित करने के खालिस पितृसत्ताक आचरण के विषय में सम्यक रूप से चिंतित नहीं है .

घ) इस देश के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक मूल्यों  और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक मान्यताओं की हिफाजत की अपनी  जिम्मेदारी के प्रति  भारतीय राज्य की गंभीरता  संदेह के परे नहीं है.

३- ऐसी स्थिति हमें जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश हाउस आव लॉर्ड्स द्वारा जनरल डायर को सम्मानित करने की उस घटना की याद दिलाती है , जिस की स्मृति  भारतीय जन साधारण के लिए  उस ह्त्या कांड से भी  कहीं अधिक  दुखदायी रही है .  उसे एक औपनिवेशि सत्ता द्वारा एक जीवित राष्ट्र की आत्मिक ह्त्या के रूप में देखा गया , जिस का उद्देश्य निकृष्टतम नस्ली वर्चस्व को स्थापित करना था. राष्ट्रीय अपमान की इसे चेतना ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को वह क्रांतिकारी आवेग प्रदान किया , जिस ने हमें आज़ादी की मंजिल तक पहुंचाया. आज़ाद भारत में एक स्त्री नागरिकके  अपमान   और यौन उत्पीडन के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे पुलिस अफसर को  व्यापक जनविरोध के बावजूद राजकीय सम्मान देना हमारी आज़ादी और हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति -दोनों के विषय में गंभीर चिंताएं और बेचैनियाँ उत्पन्न करता है .

अतएव हमारी प्रार्थना है कि आप एस पी अंकित गर्ग को वीरता पदक प्रदान करेने के निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए इसे निरस्त करने की कृपा करें .


आपके सुझाव आमंत्रित हैं...


  • साथी वैभव सिंह की फेसबुक वाल से साभार...

1 टिप्पणी:

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