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गुरुवार, 18 मार्च 2010

बाबा रामदेव, आप ही क्या तीर मार लेंगे?

भारतीय राजनीति में लोग उथल-पुथल की संभावना तलाशने में जुट गए हैं। उसकी वजह बने हैं योग गुरु बाबा रामदेव। कल को कुछ लोग उनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण की छवि भी देख सकते हैं। योग गुरु बाबा रामदेव ने अपनी पार्टी बनाने और राजनीति में कूदने की घोषणा की है।
रामदेव की इस घोषणा के बाद देशभर में बहस शुरू हो चुकी है। रामदेव ने अभी कुछ साल पहले ही योग को भारत में इस कदर लोकप्रिय बनाया कि वह फिल्म स्टारों और क्रिकेट खिलाड़ियों से भी बड़ा दर्जा पा गए। मीडिया ने भी उनकी छवि बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस वक्त बाबा रामदेव कई अरब रुपये की संपत्ति के मालिक हैं। उन्होंने आस्था अध्यात्मिक चैनल भी खरीद लिया है और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री उन पर मेहरबान हैं। तमाम राज्यों में उन्हें कौड़ियों के दाम जमीन सरकारें दे रही हैं।
बाबा के खिलाफ किसी मीडिया में खबर छापने या सवाल खड़ा करने की जुर्रत नहीं है लेकिन रामदेव ने अब जब राजनीति की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं तो जाहिर है कि उनके हर एक्शन और हर बात पर लोगों की नजर रहेगी।
इस योग गुरु से जब तक मैं नहीं मिला था तब तक मेरे मन में भी उनके लिए बहुत आदर था लेकिन जैसे ही मैंने उनके बारे में जानना शुरू किया तो मुझे उनमें और देश के बाकी बाबाओं या उलेमाओं में रत्तीभर फर्क नहीं आय़ा। अगर आप उनके पिछले चार साल के बयानों को ही निकालकर पढ़ लें तो उनमें और एक नेता में कोई फर्क आपको महसूस नहीं होगा। बहरहाल, उस पर अभी चर्चा नहीं। पहले बात उनकी जीवन शैली पर की जाए।
मेरे साथ पढ़े कई मित्र बहुत पैसे वाले हैं और इस समय उनका काफी बड़ा कारोबार है। सच कहें तो वे पूंजीपतियों की जमात में शामिल हैं। उनमें से कई सारे बाबा रामदेव के भक्त हैं। इसलिए बाबा को मैंने थोड़ा नजदीक से जानने की कोशिश की।
बाबा हर दिन दौरे पर रहते हैं। ज्यादातर ऐसा होता है कि वे किसी राज्य के सरकारी हवाई जहाज या किसी उद्योगपति के प्लेन से यात्रा करते हैं। चार दिन पहले रामदेव शिमला में थे। वहां उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उनकी बगल में हिमाचल प्रदेश के सीएम प्रेमकुमार धूमल बैठे थे। धूमल वैसे तो उद्योगपति हैं लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं। जालंधर और कुछ अन्य शहरों में उनके परिवार की फैक्ट्रियां हैं। यहां मैने परिवार शब्द इसलिए कहा कि वह इस आरोप का खंडन कर चुके हैं कि यह फैक्ट्रियां उनके नाम से नहीं हैं। बहरहाल, उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रामदेव को कई एकड़ जमीन देने की घोषणा धूमल ने की। यह जमीन सोलन में है और इसकी कीमत करोड़ों में है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनका पूरा परिवार रामदेव का अनन्य भक्त है। पिछले दिनों उन्हें मध्य प्रदेश में जमीन देने के फैसले से बीजेपी के ही कुछ विधायक नाराज हो गए। लेकिन चौहान ने विधायकों की नाराजगी की जरा भी परवाह नहीं की। मध्य प्रदेश में उनके कार्यक्रम में जिस तरह स्टेट मशीनरी जुटती है, उस पर कई बार उंगलियां उठ जाती हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ बीजेपी के ही मुख्यमंत्री उनके चेले चपाटे हैं, बल्कि कई कांग्रेसी सीएम भी उनकी हाजरी बचाते हैं। हरियाणा, राजस्थान के सीएम इसी लिस्ट में हैं।
अब बात करते हैं बाबा के अनुयायियों की। जिस शहर में रामदेव का कार्यक्रम होता है, उसके आयोजन में वहां के पैसे वालों की ही भूमिका होती है। सुबह-सुबह लगने वाले योग शिविर में सबसे आगे कौन सेठ या सेठानी योगा सीखने के लिए बैठेगी, उसका फैसला भी यही चंद लोग करते हैं। अगर गलती से कोई आम आदमी पहुंच गया तो उसे जगह मिलेगी ही नहीं या फिर किसी अंतिम पंक्ति में।
उस शहर में अब सीएम या किसी नेता का सेठों द्वारा बुलाना बीते जमाने का स्टेटस सिंबल बन गया है। अब अगर उसके घर रामदेव आ गए तो समझिए की पूरी सरकार ही आ गई। बाबा रामदेव ने वहां जितना समय दिया, उसी हिसाब से उस सेठ का कद भी घटना-बढ़ता रहता है। अब तो कई शहरों में रामदेव को बुलाने को लेकर राजनीति होती है। जिसे उन्होंने समय दे दिया, वह यह मानता है कि उसने धार्मिक रूप से कुछ कमाई कर ली है। ऐसे तमाम लोगों के घरों में भगवान की बड़ी तस्वीरों के बजाय बाबा रामदेव की तस्वीर लटक गई है। ऐसे विशालकाय घरों में ड्राइंगरूप में आपको बाबा तस्वीर के रूप में विराजमान मिल जाएंगे। दरअसल, बीच में शिऱडी वाले साईं बाबा की तस्वीरें लटकनी शुरू हो गई थीं लेकिन अब रामदेव उनके प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरे हैं। बाजी रामदेव ही मार रहे हैं।
शहर दर शहर होने वाले ऐसे आयोजनों में आम आदमी कहीं नहीं होता। नेता, अफसर और सेठों के समुदाय का पूरा कुनबा उनमें मौजूद होता है। लेकिन बाबा प्रसन्न हैं। मीडिया कवरेज और ऐसे लोगों की वाहवाही से उन्हें लग रहा है कि पूरा भारत उनके साथ है और जिस दिन उनके लोग चुनाव लड़ने मैदान में उतरेंगे, वह सारे राजनीतिक दिग्गजों को धूल चटा देंगे।
पर, बाबा रामदेव शायद कहीं चूक कर रहे हैं। हो सकता है कि भारत का तथाकथित मध्यम वर्ग उन्हें अपना नेता या स्टार मान रहा हो लेकिन देश के जिस किसान-मजदूर को दो वक्त की रोटी कड़ी मेहनत के बाद मिलती है और जिसके पास योगा करने की फुर्सत नहीं है, वह शायद ही रामदेव की भावी पार्टी को सपोर्ट करे। बाबा के बयान और हावभाव यही बता रहे हैं कि वह बीजेपी के काफी नजदीक हैं। हो सकता है कि कल को वह बीजेपी से गठबंधन कर लें या फिर पार्टी बनाकर उनमें अपना विलय कर लें और भारी संख्या में टिकट मांग लें। बहरहाल, मेरी एक बात मेरे पाठक याद रखें कि बाबा या तो बीजेपी को सपोर्ट करेंगे या फिर उससे गठबंधन करेंगे।
अब उनके बयान पर आते हैं। बाबा रामदेव ने राजनीतिक पार्टी या अभियान की घोषणा करते हुए कहा है कि वह कई सारे संगीन जुर्म करने वाले (जिसमें आतंकवाद भी शामिल है), दहेज मांगने वालों, बलात्कारियों, नशे का व्यापार करने वालों के लिए मृत्युदंड कानून बनवाएंगे। सुनने में तो यह बात बहुत अच्छी लगती है लेकिन बाबा ऐसा कर नहीं पाएंगे। अगर यहां हम लोग दहेज मांगने वालों की बात करें तो अभी बाबा जिन सेठों के यहां मेहमान बनते हैं या उनके यहां विभिन्न कार्यक्रमों में जाते हैं, वहां वह क्यों दहेज का आदान-प्रदान होते हुए देखते हैं। वह इतनी तड़क-भड़क वाली शादियों में क्यों जाते हैं, क्यों नहीं उसका बहिष्कार करते। अगर उनमें हिम्मत हो तो घोषणा करें कि वह ऐसे लोगों के समुदाय से मतलब नहीं रखेंगे जो दहेज लेता-देता है या शादी में बेपनाह पैसा खर्च करता है। बाबा ऐसी घोषणा की हिम्मत शायद ही जुटा पाएं।
अभी तक तो ऐसे जुर्मों की सजा सिर्फ अरब में ही सुनी जाती है और जहां के कानून को बीजेपी के सरपरस्त मुल्क अमेरिका वाले बर्बर कानून मानते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं बाबा रामदेव भारत को बर्बर कानून वाला देश बनाने का सपना देख रहे हों। अब उनकी जो भी मंशा हो लेकिन बाबा साहब आंबेडकर के लिखे संविधान को अगर वह बदलना चाहते हैं तो वह उनकी मर्जी है। कोई किसी को कैसे रोक सकता है।
बाबा ने राजनीतिक घोषणा करते हुए एक बात और भी कही है कि इन दिनों बाबाओं को जानबूझकर साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। हालांकि उन्होंने किसी एक बाबा का नाम नहीं लिया। लेकिन इधर तीन बाबा चर्चा में हैं। संत आसाराम बापू (स्वयंभू बापू) के गुजरात स्थित आश्रम में रेड पड़ रही है, वह अब गुजरात जाना नहीं चाहते। उनके आश्रम में बच्चों की लाशें मिलने के बाद केस दर्ज किया गया है।
संत कृपालु महाराज के आश्रम में भगदड़ मचने के दौरान कई बच्चे और महिलाएं मारे गए। उस घटना के बाद बाबा वहां से फरार हो गए। पुलिस ने उस केस में आगे क्या किया, किसी को नहीं मालूम।
एक बाबा दिल्ली में पकड़े गए हैं, जिनके नाम के आगे इच्छाधारी लगा हुआ है। इस बाबा को सेक्स रैकेट चलाने के जुर्म में पकड़ा गया है। पुलिस ने उसके ठिकानों से बरामद डायरियों को कोर्ट में पेश किया है जिसमें सैकड़ों ग्राहकों और लड़कियों के पते और टेलीफोन मिले हैं। दिल्ली पुलिस का कहना है कि बाबा ने देशभर में कई करोड़ की संपत्ति बना रखी है।
इनमें से किस बाबा के प्रति बाबा रामदेव का स्नेह जागा है, यह उन्होंने साफ नहीं किया। लेकिन जो बात साफ किया है, वह यह कि उनकी पार्टी का राज आने के बाद बाबाओं की पौ बारह हो जाएगी।


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11 टिप्‍पणियां:

  1. युसुफ़ भाई आपने सही विवेचना की है। धर्म और राजनीति के घालमेल से मलाई काटने की यह कोशिश नयी नहीं है। योग को एक रिपैकेज़्ड प्रोडक्ट के रूप में उपयोग करने के बाद अब धंधे को चोखा करने के लिये राजनीति में प्रवेश करने की जोड़-तोड़ हो रही है।

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  2. यूसुफ़ भाई, बाबा रामदेव को अभी शुरुआत तो करने दीजिये, अभी से मीन-मेख निकालने लगे? सभी लोग तो निराश कर चुके, एक कोशिश और सही…। जब पैराशूट से उतरे राहुल गाँधी को "युवाओं की आशा" बताया जा सकता है… तो रामदेव को भी एक कोशिश कर लेने दीजिये… काहे अभी से टाँग अड़ाते हैं। अधिक से अधिक क्या होगा, वे असफ़ल होंगे और उन्हें वोट देने वाले निराश होंगे… तो इसमे नया क्या होगा, 60 साल तो हो गये निराश होते-होते… एक नये प्रयोग को भी वोट देकर निराश हो लेंगे… :)
    भारत जिस स्थिति में पहुँच चुका है वहाँ 10-15 रामदेव, 8-10 राहुल गाँधी, 5-7 नरेन्द्र मोदी भी इस देश की दशा सुधार नहीं सकते…। क्योंकि लोगों के दिल में "राष्ट्र" नाम की बात ही नहीं बची। बचा है तो सिर्फ़ मैं, मेरा पैसा, मेरा परिवार, मेरी जाति… बस।

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  3. agar baba dahej lene-dene waloN aur kali kamaayi waloN ke yahaN aana-jana chhorh deN to 95% bhakt kam ho jayeNge.
    ye BJP se bhi zyada khatarnak saabit hone wale haiN.

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  4. बहुत महत्‍वपूर्ण सवाल है कि यह योगा उनके लिए है जिनका पेट भरा है उनके लिए यह जरूरी भी है पर जो आत्‍महंता जमात है भूखी उसे देखने का हुनर बाबा को कब आएगा, हुनर इसलिए कि उससे ज्‍यादा की गुंजाइश बाबा के यहां दिखती नहीं

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  5. बाबा रामदेव के कार्यक्रमों पर जो खर्च होता है, और उनके आयोजन जितने भव्य होते हैं, वो कम से कम भारतीय संस्कृति के संतों को तो शोभा नहीं देते। बाबा रामदेव को निर्जन स्थानों या फिर देश के दूर दराज इलाकों में शिविर लगाने चाहिए। अगर उनके करोड़पति शिष्य वहां तक पहुंचे तो हो सकता है इसी बहाने उन इलाकों के दिन फिर जाएं। शुरुआत छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा या बस्तर से करने का मेरा सुझाव है, क्योंकि छत्तीसगढ़ में तो बाबा का ज़बर्दस्त नेटवर्क है।

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  6. baba ramdev mansik aur sharirik roop se bimar logon ke liye yog karate hai. bharat ka aam adami sharirik roop se bimar nahi kamjor hai aur use koi mansik bimari nahi hai. ese aam adami ke liye baba ke pas kuch nahi hai.

    is desh me har charchit admi ko yah bhram ho jata hai ki gadi usike bharose chal rahi hai. vo nahi hoga to desh ka kya hoga? esiliye vo bechara jaldi se marata bhi nahi hai.

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  7. प्रीतीश बारहठ व सभी साथी,
    प्रीतीश आपकी टिप्पणी बहुत ही सटीक है। आपने बहुत बड़ी बात कही है जो इस सारे मामले का निचोड़ है। मैं हैरान हूं कि बाबा की इस पहल को कहीं से भी ठीकठाक समर्थन नहीं मिला है। फेसबुक और समाचारपत्रों में संपादकीय पेजों पर पाठकों के पत्र में सभी ने बाबा रामदेव की मंशा पर शक जताया है।

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  8. धन्यवाद युसुफ जी,
    आपको मेरी बात सही लगी। बाबा रामदेव के साथ हालांकि आम आदमी की भीड़ नहीं है लेकिन इस देश का आम मध्यम वर्ग बाबा का आदर इसलिये करता रहा है कि वे योग और आध्यात्म के क्षेत्र से आते हैं जिसके प्रति इस वर्ग में श्रद्धा पायी जाती है। अब उन्होंने कह दिया है कि नहीं मैं भी कीचड़ के कुण्ड में उतरूंगा तो लोगों की ठंड़ी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। यह तो सब जानते हैं कि राजनीति में कौन जाता है! जो दिल से राजनीति को सुधारने जाते हैं वे भी कैसे होकर आते हैं इसे भी सब जानते हैं ! बाबा अपने चेलों को कार्यकर्ता समझने की भूल कर रहे हैं शायद कुछ औद्योगिक घरानों ने उन्हें सपना दिखाया हो। आम भारतीय को उनकी राजनीतिक क्षमता का क्या भरोसा हो सकता है, कपाल भारती करने से देश थोडे ही चल सकता है!!!

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  9. क्या ब्लॉग लिखकर कुछ किया जा सकता है...?

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  10. विशुद्ध नासमझी के दौर में शामिल...
    धर्म तंत्र के भावी उदघोषक न हो जाएं...

    खैर...इस विषय पर राजनीति और धर्म के प्रासंगिक मसले छेड़ना दुरूह तो नहीं मगर उबाऊ और नीम करेला वाला काम है....मगर राजनैतिक क्रियाकलापों पर धार्मिक हस्तक्षेप अगर राष्ट्रवादी विचारधारा से सम्बद्ध कुछ कहलाता है...तो...रामदेव अंकल की मंशा समझने की चेष्टा ज्यादा न करें......ये रामानुजाचार्य, बादरायण और कुमारिल भट्ट से उतरकर बात करते ही नहीं...
    यह भी ठीक रहेगा..बस डर है कि
    कि राजनैतिक क्रियाकलापों में रामदेव बाबा कहीं...पतंजलि योग भाष्य न छेड़ दें...और सिर के बल न खड़ा कर दें...बची खुची दुनिया को...

    ...वाकई में आदमी "मोर डेमोक्रेटिक" हो रहा है...

    लेख पसंद आया...

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