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सोमवार, 21 जून 2010

हर जगह मारे जा रहे हैं ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता

ट्रेड यूनियनों के अंतर्राष्ट्रीय महासंघ (ITUC) द्वारा करवाए गए वार्षिक सर्वेक्षण में सामने आया है कि वर्ष 2009 में दुनिया भर में यूनियन कार्यकर्ताओं की हत्याओं में भारी बढ़ोतरी हुई है- 2009 में हुई हत्याओं की संख्या 101 है जो वर्ष 2008 के मुकाबले तीस प्रतिशत अधिक है.सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि रोज़गार की स्थितियों पर वैश्निक आर्थिक संकट के बढ़ते असर के फलस्वरूप दुनिया भर में मजदूरों के मूलभूत अधिकारों पर भी दबाव बढ़ा है. 

इन 101 हत्याओं में  कोलम्बिया में 48, ग्वाटेमाला में 16, होंदुरस में 12, मेक्सिको में 6, बांग्लादेश में 6, ब्राज़ील में 4, डोमिनिकन गणराज्य में 3, फिलिपीन्स में 3 और भारत, इराक और नाइजीरिया में हुई एक-एक हत्या शामिल है. कोलम्बिया में पूर्ववर्ती सालों की तरह खूनखराबा जारी रहा, वहां मारे गए लोगों में 22 वरिष्ठ मजदूर नेता थे और पाँच महिलाएँ थीं.

महासंघ के महासचिव गाइ राइडर (Guy Ryder) के अनुसार कोलम्बिया एक बार फिर वह  देश साबित हुआ जहाँ मजदूरों के मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ने का मतलब मारे जाने का खतरा उठाना है जबकि वहां की सरकार का समूचा प्रचार तंत्र इस बात का जोर-शोर से खंडन करता है; ग्वाटेमाला, होंदुरस और अन्य देशों में बिगड़ती स्थिति को वे गहन चिंता का विषय मानते हैं.
140 देशों में श्रमिकों के हितों की रक्षा हेतु संघर्ष कर रहे यूनियन नेताओं द्वारा उठाई गई तकलीफों और अवहेलनाओं की विस्तृत सूची इस वर्ष की रिपोर्ट में भी मौजूद है. कई अन्य मामले तो इसलिए दर्ज भी नहीं हो पाते क्योंकि कामगारों को अपनी बात सामने रखने से रोका जाता है. इसके अलावा नौकरी खोने या अपनी शारीरिक सलामती का डर भी लगा होता है. हत्याओं की भयावह सूची के अलावा रिपोर्ट में उत्पीडन, डराने-धमकाने और यूनियन-विरोधी प्रताडनाओं के अन्य स्वरूपों का विस्तृत ब्यौरा रिपोर्ट में मौजूद है.

कोलम्बिया और ग्वाटेमाला में हत्या के प्रयास के दस और जान से मारने की धमकी के पैंतीस मामले भी दर्ज किये गए. इन देशों में कई यूनियन कार्यकर्ता जेलों में बंद रहे और लगभग सौ कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया गया. विशेषकर ईरान, होंदुरस, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, तुर्की और ज़िम्बाब्वे में भी कई कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया. 

लोकतंत्र-विरोधी शक्तियां इस बात से वाकिफ हैं कि लोकतंत्र की रक्षा में श्रमिक संगठन अक्सर सबसे आगे होते हैं, इस वजह से उन्होंने यूनियन गतिविधियों को निशाना बनाना जारी रखा. होंदुरस में तख्ता-पलट के पश्चात हुई हिंसा और 28 सितम्बर को गिनी में सैनिक शासन के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ भीषण नरसंहार  इस बात का प्रमाण हैं.

हर क्षेत्र में हड़तालें तोड़ने और हड़ताली मजदूरों के दमन के अनेकों मामले दर्ज हुए हैं. अल्जीरिया, अर्जेंटीना, बेलारूस, म्यांमार, आइवरी कोस्ट, भारत, ईरान, केन्या, नेपाल, पाकिस्तान और तुर्की सहित अन्य देशों में मजदूरी प्राप्त करने के लिए, काम की बदतर स्थितियों का विरोध करने अथवा वित्तीय और आर्थिक संकट के दुष्प्रभावों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हज़ारों मज़दूरों को मार-पीट, गिरफ्तारियों और कारावास का सामना करना पड़ा. यूनियन गतिविधियों के कारण नौकरी से निकाले जाने के मामले कई देशों में दर्ज हुए. बांग्लादेश में पुलिस की दखलंदाज़ी के बाद वेतन बढ़ाने और बकाया राशि के भुगतान के लिए हड़ताल कर रहे कपडा उद्योग के छह मजदूरों की मौत हो गई.

मालिकों द्वारा यूनियनें तोड़ने और दबाव बनाने का काम बड़े पैमाने पर जारी रहा. कई देशों में कंपनियों ने मजदूरों को उनके संगठित होने या यूनियनें बनाने पर उत्पादन संयंत्र को बंद करने या स्थानांतरित करने की धमकी दी. अक्सर तो कंपनियों ने मजदूरों के वास्तविक प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने से ही मना कर दिया जबकि प्रशासन ने चुप्पी साधे रखी. कुछ और 'लचीलापन' लाने एवं सामाजिक कल्याण व्यवस्थों में तब्दीली लाने के लिए कुछ श्रम कानूनों को बदला गया जिसका प्रभाव वर्तमान औद्योगिक संबंधों पर पड़ा, जिस से ट्रेड यूनियन अधिकारों में कटौती हुई.

अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त श्रम मानकों को कमज़ोर बनाने की वजह से ज्यादा से ज्यादा श्रमिकों को काम की जगहों पर असुरक्षा और जोखिम का सामना करना पड़ा, विश्व भर के श्रमिकों में लगभग पचास प्रतिशत जोखिम भरी स्थितियों में काम करते हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य अमेरिका के एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन में काम करने वाले मजदूरों, मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के घरेलू श्रमिकों, प्रवासी मजदूरों और खेतिहर मजदूरों पर इसका काफी बुरा असर पड़ा. बुरी तरह प्रभावित इन क्षेत्रों में महिला श्रमिकों की संख्या अधिक है. इसके अलावा, अनौपचारिक रोज़गार में बढोतरी और रोज़गार के 'असामान्य' स्वरूपों का विकास हर भौगोलिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में देखा गया. 

जहाँ ट्रेड यूनियन अधिकारों को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है उन जगहों पर अधिकारों को लागू करने की कानूनी और प्रशासनिक अक्षमता ने पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रमिकों की स्थिति को और असुरक्षित बनाया है. कई सारे देशों में या तो कड़े प्रतिबन्ध हैं या सीधे-सीधे हड़तालों पर रोक लगी हुई है.

रिपोर्ट ने ध्यान दिलाया है कि वर्ष 2009 में संगठन और सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार (Right to Organize and Collective Bargaining) से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 98 वें समझौते को साठ साल हो गए हैं पर अब तक कनाडा,चीन, भारत, ईरान, मेक्सिको, थाईलैंड, दक्षिण कोरियाई गणराज्य, सं.रा.अमेरिका और वियतनाम जैसे देशों ने उसे अंगीकार नहीं किया है. इस तरह दुनिया की आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी का लगभग आधा हिस्सा इस समझौते के दायरे से बाहर है.

सर्वेक्षण की सम्पूर्ण रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है.

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