( यह लेख चौथी दुनिया से लिया गया है। डा मनीष कुमार के इस लेख में योग गुरु रामदेव के इतिहास और वर्तमान को खंगालते हुए तमाम छिपे-अनछिपे पहलूओं को उजागर किया गया है। विदेश में रखे काला धन के मुद्दे को दिन रात उछालकर एक राष्ट्रवादी उन्माद पैदा करने में लगे रामदेव और उनके संगी-साथी देश के भीतर के काले धन पर जानबूझकर एक मौन बनाये रखते हैं। यह लेख उसके कारणों की पड़ताल करता है)
यह कार्टून यहाँ से |
राजनीति काजल की काली कोठरी है. ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं, जो इस काली कोठरी में घुस जाएं और बेदाग़ निकल जाएं. बाबा रामदेव राजनीति की इस काली कोठरी में घुसे नहीं कि उनके दामन पर दाग़ लगने लगे हैं. पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्विजय सिंह ने बाबा को मिलने वाले काले धन की जांच की मांग की. अब बाबा रामदेव संत समाज के निशाने पर आ गए हैं. हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि जब-जब राजनीति का सामना संतों से हुआ, राजनीति हारी है, संत हमेशा जीते हैं. दिग्विजय सिंह के बयान के बाद बाबा रामदेव ने हुंकार भरी और यह बोल गए कि वह आज हज़ारों करोड़ के ब्रांड बन चुके हैं. क्या संत ब्रांड बन सकते हैं? क्या धर्म का धंधा किया जा सकता है? क्या योग की मार्केटिंग हिंदू धर्म की परंपरा के मुताबिक़ है? देश और धर्म से जुड़े इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए हमने अखिल भारतीय संत समिति के उत्तर भारत के अध्यक्ष एवं श्री कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम से बात की. बातचीत के दौरान आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बाबा रामदेव के बारे में कई ऐसी बातें बताईं, जिन पर भरोसा करने में डर लगता है.
पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्विजय सिंह ने बाबा को मिलने वाले काले धन की जांच की मांग की. अब बाबा रामदेव संत समाज के निशाने पर आ गए हैं. हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि जब-जब राजनीति का सामना संतों से हुआ, राजनीति हारी है, संत हमेशा जीते हैं. दिग्विजय सिंह के बयान के बाद बाबा रामदेव ने हुंकार भरी और यह बोल गए कि वह आज हज़ारों करोड़ के ब्रांड बन चुके हैं. क्या संत ब्रांड बन सकते हैं? क्या धर्म का धंधा किया जा सकता है? क्या योग की मार्केटिंग हिंदू धर्म की परंपरा के मुताबिक़ है?
बाबा रामदेव ने हरिद्वार के एक आश्रम में योग की शिक्षा ली. यह आश्रम गुरु शंकरदेव का था. कहा जाता है कि बाबा रामदेव और गुरु शंकरदेव एक ही कमरे में रहते थे. वह जाने-माने संत थे. भारत के शीर्षस्थ संतों के संपर्क में थे. अच्छे साधक थे. एक दिन वह अचानक ग़ायब हो गए. गुरु शंकरदेव कहां गए, यह किसी को पता नहीं है. न तो उनकी लाश मिली और न ही यह पता चल पाया है कि उनके साथ आ़खिर क्या हुआ. बाबा रामदेव ने गुरु शंकरदेव को खोजने का कोई प्रयत्न नहीं किया. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने सीधा-सीधा आरोप लगाया है कि पूरे देश का संत समाज यह मानता है कि शंकरदेव की हत्या बाबा रामदेव ने की, ताकि वह ज़मीन उन्हें मिल जाए और जो उन्हें मिली. एक उच्चस्तरीय जांच का गठन होना चाहिए. इतने बड़े ॠषि शंकरदेव ग़ायब हो गए, लेकिन उनके साथ रहने वाले बाबा रामदेव से किसी ने पूछताछ नहीं की. आचार्य का कहना है कि यह बाबा रामदेव का प्रभाव है कि आज तक इस मामले में कोई तहक़ीक़ात नहीं हुई. अब सवाल यह है कि शंकरदेव कहां गए, उनकी लाश कहां है, उनकी मौत कैसे हुई? अगर वह ज़िंदा हैं तो उनको सामने क्यों नहीं लाया जाता. उनका अचानक ग़ायब हो जाना एक गंभीर विषय है. अखिल भारतीय संत समिति इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग करती है. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि उन्हें यह आशंका है कि गुरु शंकरदेव कहीं किसी साज़िश का शिकार तो नहीं हो गए.
बाबा रामदेव के इतिहास को जानने लिए हमने वैष्णव संप्रदाय के सर्वोच्च जगतगुरु से बात की. जगतगुरु ने खुलकर सारी बातें बताईं, लेकिन अपना नाम सार्वजनिक करने से मना कर दिया. जगतगुरु के कहने पर हम उनका नाम नहीं लिख रहे हैं. इस बातचीत से यह पता चला कि बाबा रामदेव से संत समाज न स़िर्फ निराश है, बल्कि डरता भी है. कई संत ऐसे हैं, जो बाबा रामदेव के क्रियाकलापों को धर्म के विरुद्ध बताते हैं, लेकिन देश के सामने आकर बाबा के खिला़फ बोलने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है. वैष्णव संप्रदाय के सर्वोच्च जगतगुरु की शंकरदेव से भी निकटता थी. जगतगुरु ने फोन पर बताया कि बाबा रामदेव 1994 में मेरे आश्रम में बैठा रहता था, एक्यूप्रेशर वगैरह करता था. टूटे से स्कूटर से आता था, तबसे मैं उसे जानता हूं. साधु भी बनने को मैंने ही उसे कहा था. गुरुकुल कांगड़ी में छटे हुए लड़कों में गिना जाता था. एक प्रॉपर्टी है दिव्य योग मंदिर. उसे धोखे से लिखवाया गया था स्वामी शंकरदेव जी से, जिनका आज कोई अता-पता नहीं है. हत्या भी कराई होगी तो उसी ने कराई होगी न. वह तो बहुत दुखी थे. इसने लिखवा लिया तो बहुत रोते थे हमारे पास आकर. हमें पता तब लगा था, जब इसने लिखवा लिया. हम पूछना चाहते हैं कि वसीयत है तो दिखाए हमें. उसने बहुत बड़ा झूठ बोला कि आश्रम की ज़मीन कब वह उसके नाम कर गए, पता ही नहीं. लेकिन वह तो डिग्री है, कोर्ट से सूचना के अधिकार से तो मिल सकती है. कोई भी आदमी ग़ायब हो जाए तो खबर तो करता है, मर गया तो श्राद्ध तो करता है. यह आदमी तो पैदा ही बेईमान हुआ था. मैंने इसे एक दिन उठाया और दो-चार थप्पड़ लगाए, फिर पूछा कि यह बता भाई, महात्मा से तूने जो लिखापढ़ी कराई, कैसे कराई. फिर वह मेरे पैर पकड़ कर बैठ गया. स्वामी अमलानंद जी के आश्रम में. कहने लगा कि मुझे क्षमा कर दो, अब मैं आपके ही अनुसार चलूंगा, सारा जीवन अब मैं अच्छे काम करूंगा. शंकरदेव के मामले में बिल्कुल सीबीआई जांच होनी चाहिए. एक आदमी लापता है तो खोजो और मर गया तो सरकार इसकी घोषणा करे. कुछ तो करे. इस आदमी ने सरकार को भी नहीं लिखा कि उनकी खोज हो. जगतगुरु ने दु:ख के साथ कहा कि इसने न जाने कितने लोगों को मरवा दिया. यह लोगों को मरवा देता है. मैंने तो देखा है न, इसकी भाषा को. अगर कोई भी विरोधी है तो कहता है कि खत्म कर दो काम.
उत्तर भारत के संतों, आश्रमों और मठों में खलबली मची है. हर कोई बाबा रामदेव के बारे में बात कर रहा है. मीडिया में छाए रहने और प्रसिद्धि की दृष्टि से तो यह अच्छा माना जा सकता है, लेकिन बाबा रामदेव के लिए यह परीक्षा की घड़ी है. विडंबना यह है कि पितातुल्य संत, धर्माचार्य, गुरु एवं साथी, जिनके साथ बाबा रामदेव ने बचपन बिताया, जिनकी छड़ी खाकर और डांट सुनकर बड़े हुए, वही लोग आज बाबा रामदेव के खिला़फ खड़े हैं. बाबा रामदेव पर हत्या जैसा एक और आरोप है. अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष का मानना है कि अपने योग की साख बचाने के लिए रामदेव ने देश के एक होनहार विद्वान राजीव दीक्षित की बलि चढ़ा दी. राजीव दीक्षित जब जीवित थे तो वह हमेशा बाबा रामदेव के साथ नज़र आते थे. उनके शिविरों में वह भाषण देते थे. बाबा रामदेव के योग से हर तरह के रोग के इलाज के दावों का तर्क देते थे. उनकी उम्र चालीस साल की थी. माना जाता है कि राजीव दीक्षित की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई. बाबा रामदेव पूरी दुनिया के हृदय रोगियों का इलाज करते हैं तो क्या बाबा रामदेव को यह पता नहीं था कि उनके साथी को ही हार्ट की बीमारी है. अगर पता था तो उनका इलाज क्यों नहीं किया गया और अगर रामदेव अपने साथी का ही इलाज नहीं कर सकते तो दुनिया के सामने यह कैसे दावा करते हैं कि उनके योग से हार्ट की बीमारी ठीक हो जाती है.
आचार्य ने कहा कि सूत्र बताते हैं कि राजीव दीक्षित और उनके रिश्तेदार मेडिकल ट्रीटमेंट चाहते थे, लेकिन बाबा रामदेव ने परिवारवालों को फोन करके या बात करके यह कहा कि तुम अगर अंग्रेजी दवाइयों का सेवन करोगे तो इस देश में खराब मैसेज जाएगा. आचार्य का कहना है कि बाबा रामदेव के लिए मैसेज देने का मामला था, लेकिन राजीव दीक्षित की जान चली गई. सोचने वाली बात यह है कि राजीव दीक्षित का अंतिम संस्कार जल्दबाजी में क्यों किया गया. उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया. आचार्य बताते हैं कि जिन लोगों ने राजीव दीक्षित की शवयात्रा में हिस्सा लिया, वे कहते हैं कि उनके होंठ नीले पड़ चुके थे. अब संत यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या हार्ट अटैक से मरने वाले व्यक्ति की होंठ नीले पड़ते हैं? यह इतना ज्वलंत प्रश्न है, जिससे यह शंका पैदा होती है कि राजीव दीक्षित और शंकरदेव को रास्ते से हटाने वाले बाबा रामदेव और उनके इर्द-गिर्द वे लोग हैं, जिनकी जांच होना बहुत आवश्यक है.
एक कंपनी थी आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड, जो अब वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड बन चुकी है. यह कंपनी आस्था नामक धार्मिक टेलीविजन चैनल चलाती थी. इस चैनल पर बाबा रामदेव के योग कार्यक्रमों का प्रसारण होता था. आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के हेड किरीट सी मेहता हुआ करते थे. रामदेव तीन साल से इस चैनल पर कार्यक्रम कर रहे थे, जिसका पैसा आस्था चैनल को दिया जाना था. जब यह राशि बढ़कर बहुत ज़्यादा हो गई तो रामदेव और उनके लोगों ने किरीट सी मेहता का अपहरण किया और बंधक बना लिया. आचार्य प्रमोद कृष्णम का आरोप है कि किरीट सी मेहता को बंधक बनाने वालों में एक नाम है तीजारेवाला, दूसरे खुद स्वामी रामदेव हैं और तीसरे एक उद्योगपति हैं, जिनका उन्होंने नाम नहीं बताया. किरीट सी मेहता को बंधक बनाकर उनसे एक एग्रीमेंट साइन कराया गया. इसी के ज़रिए आस्था ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड को वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड में बदल दिया गया. किरीट सी मेहता से एक सादे काग़ज़ पर हस्ताक्षर कराकर उन्हें छोड़ दिया गया. आचार्य प्रमोद ने खुलासा किया कि इसके बाद किरीट सी मेहता और उनके परिवार को यह धमकी दी गई कि अगर वे हिंदुस्तान में रहे तो उनकी हत्या करा दी जाएगी. आचार्य प्रमोद कृष्णम का दावा है कि ये बातें खुद किरीट सी मेहता ने उनसे कही हैं. वह बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दौरान दिशा नामक एक धार्मिक चैनल पर वह लाइव कार्यक्रम में शामिल थे. आचार्य प्रमोद इस चैनल के स्टूडियो में थे. देश भर से लोग आचार्य से सवाल पूछ रहे थे. उसी कार्यक्रम में किरीट सी मेहता ने लंदन से फोन किया और बताया कि वह सारी दुनिया को एक संत के कारनामों के बारे में बताना चाहते हैं. आचार्य कहते हैं कि इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण चल रहा था, जिसे पूरी दुनिया ने सुना. इस कार्यक्रम के एंकर थे माधवकांत मिश्र, जो इस वक्त दिशा टीवी चैनल के हेड हैं. आचार्य कहते हैं कि बाबा रामदेव की धमकी से डरकर किरीट सी मेहता आज तक भारत वापस नहीं लौटे. कभी दुबई तो कभी लंदन में छुपते फिर रहे हैं. मुंबई में उनके घर पर ताला लगा हुआ है. आचार्य प्रमोद कृष्णम बताते हैं कि उस लाइव कार्यक्रम में उन्होंने जब भारत वापस आने को कहा तो किरीट सी मेहता ने कहा कि उन्हें इस बात का डर है कि अगर वह भारत लौटे तो उनकी हत्या कर दी जाएगी. बाबा रामदेव पर यह आरोप हैरान करने वाला है. आस्था चैनल ने बाबा रामदेव को ख्याति दिलाने में, पूरे देश में पापुलर करने में बड़ा योगदान किया है. मीडिया के कुछ लोग बताते हैं कि किरीट सी मेहता की वजह से ही रामदेव आज योग गुरु बाबा रामदेव बने हैं. अ़फसोस इस बात का है कि जिस शख्स ने बाबा की इतनी मदद की, वह आज दर-दर की ठोकरें खा रहा है. आचार्य से जब हमने इन आरोपों का सबूत मांगा तो उन्होंने दिशा चैनल के एंकर माधवकांत मिश्र को फोन किया और फोन के स्पीकर से हमें पूरी बातचीत सुनाई. फोन पर हुई बातचीत के दौरान माधवकांत मिश्र ने इस पूरी घटना की पुष्टि की और कहा कि वे सारे टेप चैनल के पास आज भी मौजूद हैं.
संतों ने बाबा रामदेव पर स़िर्फ हत्या, अपहरण और धमकी देने का ही आरोप नहीं लगाया, बल्कि यह भी कहा कि बाबा रामदेव संत समाज में भ्रष्टाचार फैला रहे हैं. आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि बुरे से बुरा आदमी भी संतों को छोड़ देता है. अत्याचारी और दुराचारी भी संतों को नहीं लूटते, लेकिन बाबा रामदेव आस्था चैनल के ज़रिए संत समाज को लूट रहे हैं. अब आस्था चैनल बाबा रामदेव की देखरेख में चल रहा है. आचार्य ने बताया कि आस्था चैनल पर जितने भी प्रवचन दिखाए जा रहे हैं, किसी से पांच लाख तो किसी से सात लाख रुपया महीना लिया जा रहा है. यह पैसा संतों से ओबी वैन के नाम से लिया जा रहा है. एक दिन का ओबी वैन का खर्च 2 लाख बताकर पैसा लिया जाता है. समझने वाली बात यह है कि जो संत पांच लाख रुपये चैनल को देगा तो वह खुद 15 लाख कमाने की क्यों नहीं सोचेगा. कोई संत अगर पांच लाख रुपये आस्था चैनल को देता है तो वह पैसा कहां से आएगा. ज़ाहिर है, यह पैसा उद्योगपतियों और काले धन के ज़रिए ही इकट्ठा किया जाता है. आचार्य कहते हैं कि क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है, जो व्यक्ति संतों को लूट रहा है, वह देश की लूट के विषय में कैसे बात कर सकता है. बाबा रामदेव को वह चुनौती देते हैं कि उन्होंने जो तीन हज़ार एकड़ ज़मीन में बना यूरोप में एक टापू खरीदा है, उन्हें उसका खुलासा करना चाहिए.
देश के बड़े-बड़े धर्माचार्य और जगतगुरु बाबा रामदेव से निराश हैं. उनका आरोप है कि रामदेव ने धर्म को धंधा बना दिया. कुछ संतों ने कहा कि यह संत का कैसा रूप है, जो गौमूत्र बेचकर मुना़फा कमाता है. एक संत ने बताया कि महर्षि पतंजलि ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि उनके नाम की ब्रांडिंग हो जाएगी और कलयुग में योग भारत की धरती पर साधना से हटकर व्यापार बन जाएगा. बाबा रामदेव कोई भी शिविर लगाते हैं तो वह 31 लाख रुपये लेते हैं. जबसे उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की है, तबसे वह मुफ्त में शिविर लगाने लगे हैं. आचार्य प्रमोद कृष्णम का यह आरोप है कि बाबा रामदेव ने संत परंपरा को प्राइवेट लिमिटेड बना डाला. पतंजलि फूड प्राइवेट लिमिटेड को सरकार से पैसे मिले, जिसका इस्तेमाल वह बिजनेस में कर रहे हैं. देश के संत सवाल कर रहे हैं कि क्या यही देशभक्ति है? क्या यही भ्रष्टाचार से लड़ने का सही रास्ता है?
जहां तक बात उनकी राजनीति की है तो संत समाज को इससे कोई आपत्ति नहीं है. अखिल भारतीय संत समिति का कहना है कि उनकी राजनीति से किसी को भी कोई मतभेद नहीं है. बाबा रामदेव ने देश के हज़ारों लोगों का अपने योग से इलाज किया. देश भर में घूम-घूमकर शिविर लगाए. योग को फिर से जीवित किया और इसका पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया. अपने शिविरों में कपालभांति और प्राणायाम के दौरान राजनीतिक और सामाजिक संदेश भी दिया. वह देशभक्ति, स्वदेशी और ईमानदारी की बातें करते थे. लोगों को अच्छा लगता था. पूरे देश में इसके लिए बाबा रामदेव की जय-जयकार हुई. फिर बाबा रामदेव ने राजनीति में सक्रिय होने का ऐलान कर दिया. उन्होंने घोषणा भी कर दी कि अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी 543 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. राजनीति और धर्म में अंतर होता है. संत की जवाबदेही धर्म से होती है. राजनेताओं को जनता को जवाब देना पड़ता है. क़ानून और न्यायालय किसी भी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं मानता, जब तक उसे सज़ा न मिल जाए. बाबा रामदेव पर लगे आरोप स़िर्फ आरोप ही हैं. सच्चाई क्या है, इसका फैसला अदालत करेगी. बाबा रामदेव को याद रखना चाहिए कि क़ानून की निगाहों में ए राजा आज भी निर्दोष हैं, लेकिन जनता की अदालत ने उन्हें दोषी मान लिया है. संत और राजनेता में यह भी एक अंतर है, संत मौन धारण कर सकते हैं, यह छूट नेताओं को नहीं है. रामदेव संत से राजनेता बन चुके हैं. उन्हें अब सारे सवालों और आरोपों का जवाब देश की जनता को देना होगा.
धर्माचार्यों का बाबा रामदेव पर आरोप
- गुरु शंकर देव की हत्या का आरोप
- राजीव दीक्षित, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सचिव, की मौत के ज़िम्मेवार
- आस्था चैनल को ज़ोर-ज़बरदस्ती और धोखाधड़ी से हथियाने का आरोप
- आस्था चैनल के हेड किरीट सी मेहता के अपहरण और जान से मारने की धमकी देने का आरोप
- संत समाज को भ्रष्टाचार की आग में झोंकने का आरोप
- धर्म को धंधा बनाने का आरोप
छोटी-छोटी सफाइयां चाहिए…
आचार्य बालकृष्ण भारत के नागरिक नहीं हैं
बाबा रामदेव के दाहिने हाथ माने जाने वाले आचार्य बालकृष्ण भारत के नागरिक नहीं हैं. देश के संतों का आरोप है कि वह नेपाल के नागरिक हैं. उनका जन्म नेपाल में हुआ. उनका पूरा परिवार नेपाल का नागरिक है, लेकिन उनके पासपोर्ट पर यह लिखा है कि वह जन्म से भारतीय हैं. आचार्य बालकृष्ण पहले बाबा रामदेव के शिविरों और उनके कार्यक्रमों का ध्यान रखते थे. जबसे बाबा रामदेव दवाइयां बेचने लगे और बिज़नेस करने लगे तो आचार्य बालकृष्ण ने बाबा का पूरा साम्राज्य संभाल लिया. बाबा रामदेव ने जबसे राजनीति में आने का फैसला किया है, तबसे बाबा के राजनीतिक मोर्चे की कमान आचार्य बालकृष्ण ने संभाल ली है. अब जबकि बाबा रामदेव ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी है तो आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता पर सवाल उठना लाज़िमी है. बाबा रामदेव को आज नहीं तो कल, इस सवाल का जवाब देना ही होगा.
बाबा रामदेव के नाम ज़मीन नहीं तो क्या उनके भाई और रिश्तेदारों के नाम पर तो है
बाबा रामदेव पर यह आरोप लगा कि वह देश और विदेश में सैकड़ों एकड़ ज़मीन के मालिक हैं. बाबा रामदेव मीडिया के सामने आए. उन्होंने सा़फ-सा़फ कहा कि उनके नाम एक भी इंच ज़मीन नहीं है. साधु-संतों को ज़मीन की क्या ज़रूरत है. बाबा रामदेव का खंडन सराहनीय है. लेकिन संत समाज के लोग इसे बाबा रामदेव की एक चाल बता रहे हैं. उनका सवाल है कि बाबा रामदेव के नाम से ज़मीन नहीं है तो क्या हुआ, उनके सगे भाई और रिश्तेदारों के नाम से तो करोड़ों की संपत्ति है, सैकड़ों एकड़ ज़मीन है. उनकी मांग है कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि वर्ष 2000 से पहले बाबा रामदेव के सगे भाई और उनके रिश्तेदारों के पास कितनी ज़मीन थी और कितनी संपत्ति थी और अब 2011 में उनके पास क्या है. इस जांच से दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा.
बाबा रामदेव और मीडिया
संतों ने यह स़फाई मांगी है कि बाबा रामदेव का देश के एक बड़े मीडिया घराने और उसके मुख्य कार्यकर्ता से क्या रिश्ता है? और इस कार्यकर्ता ने बाबा रामदेव की अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग में इतना बड़ा रोल क्यों निभाया?
नोट : यह पूरी रिपोर्ट धर्माचार्यों और जगतगुरुओं से हुए इंटरव्यू पर आधारित है. इसके बावजूद हमने बाबा रामदेव पर लगे आरोपों के बारे में उनसे बात करने की कोशिश की. उनके सहायकों को फोन किया तो उन्होंने अजय आर्य का नंबर दे दिया. कई बार डायल करने के बाद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया. फिर जब उन्होंने फोन उठाया तो कहा कि बाबा रामदेव ने अपनी तऱफ से सारी बातें 23 तारी़ख को कह दी हैं. हमने जब यह कहा कि बाबा रामदेव पर नए आरोप लग रहे हैं तो उन्होंने कहा कि आप बाबा रामदेव के मीडिया प्रभारी एस के तीजारेवाला से बात कीजिए. तीजारेवाला के नंबर पर हम फोन करते रहे, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. हम बाबा रामदेव की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में हैं.
अच्छा काम. मैंने एकाध ग्रूप्स मे यह अग्रेषित कर दिया है. क्या हम और अधिक ठोस तथ्यों के साथ यह सामग्री प्र्स्तुत कर सकते हैं?
जवाब देंहटाएंसारी समस्या की जड़ है बाबा के कपड़े…
जवाब देंहटाएंबाबा रामदेव यदि सफ़ेद कपड़े पहने होते और गले में क्रास होता तो इतनी उठापटक न होती… :) :)
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जो भी कांग्रेस को चुनौती दे उसके करीबियों की जाँच होनी चाहिये, लेकिन अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह और विंसेंट जॉर्ज की जाँच नहीं होनी चाहिये, क्योंकि वे "त्याग की देवी" के करीब हैं… :) :)
पाण्डेय जी की जय हो…
आप कई बार "संत समाज" और "संतो ने" शब्द का प्रयोग कर रहे हैं पर आप ने ये क्यूँ नहीं बताया की किस संत ने कहा ये सब ??? आप नाम क्यूँ नहीं बता रहे हैं ??? और वैसे ये आप लोगों के मन में संतों के प्रति सम्मान कब से शुरू हो गया ?
जवाब देंहटाएंकुमार अर्थात् commented on your post.
जवाब देंहटाएंअर्थात् wrote "जी सही कहा.. और आजकल ये भी कहा जा रहा है कि..अगर सीपीएम की नेता बृंदा करात की हड्डियों में दवा मिलने के मामले में रामदेव पर हमला गलत होता तो रामदेव तब सत्ता में मजबूत रहे लालू यादव की शरण में क्यों गए...2- पंतजलि योगपीठ की स्थापना की दरकार क्यों थी जबकि सारा कथित काम तो आश्रम कर ही रहा था...3- क्या कोई बता सकता है उत्तराखंड में महाधिवक्ता की दौड़ में आगे रहे वचन सिंहजी की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है.. (उनका इलाज रामदेव ने किया)...4- वहां के (आश्रम) में वर्करों से मीडिया के लोग सीधे रूबरू क्यों नहीं हो सकते..। जनता रोगों से डरकर इस तरह के लोगों के पास जाती है- और सरकार इन जैसे लोगों से इसलिए कड़ाई नहीं बरतती क्योंकि उसे हिंदू वोटों के खिसकने का उसे डर रहता है।"
अंकित…गौर से देखेंगे तो सब दिख जायेगा…नाम तमाम हैं…मुझे न किसी संत/मौलाना/पादरी के प्रति कोई सम्मान था न है…वैसे अफवाहों पर पलने वालों को कबसे तथ्यों की चिंता होने लगी?
जवाब देंहटाएंशुरू हो गए निजी आक्षेप ...........आप से हमें यही आशा थी
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम
मत कहो आकाश में कुहरा घना है
जवाब देंहटाएंयह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है!
योग मिटावै रोग नै, योग करो सब कोय
जवाब देंहटाएंयोगी जद भोगी बणै, रोगी ओ जग होय
बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद ने सबको अपनी गिरफ़्त में ले लिया है.. जीवन कोई भी क्षेत्र इसके दंश से अपने को नहीं बचा पाया है, धर्म भी उसमें एक हैं..नए नए कई मजमा गुरु पैदा हो गए हैं और धर्म की आड़ में अपनी दूकानदारियां चला रहे हैं..इनके कारनामें भी सामने आ ही रहे हैं..समय साक्षी हैं..पिक्चर अभी बाकी है...
किसी भी व्यक्ति की पहचान इन 4 बातों से करनी चाहिए कि वह महान है या नहीं।
जवाब देंहटाएंयथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते
निघर्षण-च्छेदन-ताप-ताडनैः।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते
त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।चाणक्य।।
अर्थात् जिस प्रकार सोने की परीक्षा 4 प्रकार से की जाती है- घिसकर, काटकर, तपाकर व पीटकर। उसी प्रकार मानव की भी चार प्रकार से परीक्षा की जाती है- त्याग, शील, गुण व कर्मों से।
हिन्दी की कहावत है-सब धान बारह पसेरी। लोगों ने बाकी बाबाओं की तरह ही स्वामी रामदेव को भी बारह पसेरी में तोल दिया है। अरे अपने दिमाग रूपी तराजू में जरा इन बातों को तोलो-
1. क्या बाबा में त्याग की प्रवृत्ति है। यदि नहीं तो उन्होंने उन्हें मिलने वाला धन अपनी तिजोरी में क्यों नहीं रखा।
2. शील अर्थात् स्वभाव। क्या आपको उनके स्वभाव में कोई खोट नजर आता है।
3. स्वामी रामदेव में किस गुण का अभाव है?
4. कर्म तो आप रोज सुबह की शुरुआत से देखते ही हैं।
संस्कत की सूक्ति है- विद्वानेव विजानाति विद्वज्जन परिश्रमम्।
स्पष्ट है कि आलोचक में कमी है, आलोच्य में नहीं। आलोचक को हमेशा 21 होना चाहिए तब आलोचना सराहनीय होती है।
3.
कांग्रेस का नया propeganda है.अशोकजी कितना धन मिला है इसके लिए . वैसे सारी बाते काल्पनिक हैं और इनमे तर्क भी नहीं है . और राजीवजी की म्रत्यु के बारे मैं तो ऐसे लिखा है जेसे सबसे बड़े फोरेंसिक विज्ञानं के पंडित हैं आप.राजीवजी के साथ जो हुआ उसे चिकत्सा विज्ञानं मैं sudden cardiac death कहते हैं.और ह्रदय सरीर मैं oxygen युक्त रक्त का प्रवाह करता है rakt oxygen युक्त न हो पाय तो वह गाढ़ा लाल हो जाता है जिससे त्वचा नीली दिखाई देती है . आप जेसे लोग मीर जफ़र और जय सिंह के जीते जागते उधाहरण है अगर इतना दिमाग भ्रस्टाचार के खिलाफ लगते तो ज्यादा अच्छा होता.देश मैं तुम जैसे गद्दारों की कमी नहीं है जिनकी वजह से हम जसे युवाओं का भविष्य खतरे मैं है . आज की तो मीडिया भी बिक चुकी है जो की राजनीतिज्ञों का कुत्ता बन गयी है . कोई विस्वास नहीं करता आज मीडिया की ख़बरों पर . बाबा कोई नया कम नहीं कर रहा य तो हमरे देस मैं सदियों से होता आया है की बाबाओं ने जीवन जीना ,सासन को चलाना और बहुत सी बातें सिखायीं है यहाँ तक की हत्यिआर भी उठाये हैं जैसे परसुराम जी न किया . तुम्हारी बातों से पता चल गया मीरजाफर जी की तुम्हारी असलियत क्या है .
जवाब देंहटाएंकुछ लोग ऐसे होते हैं जो पैसों के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं |
जवाब देंहटाएंपर एक प्रश्न है .......अगर कोई नकली दवाई बनता है तो क्या वो उस पर लिख देता है की उसे "अशोक कुमार पाण्डेय" या उसके परिजनों को न बेचा जाये , जब कोई घूस लेकर कमजोर पुल बनाएगा तो क्या वो लिख देगा की उससे "अशोक कुमार पाण्डेय या उनके परिजन"नहीं निकलें ??
अगर नहीं तो इन लोगों को ये बात क्यूँ नहीं समझ में आती है ??? जब इनप बीतेगी तभी समझ में आएगा क्या ?
महेन्द्र पाल सिंह्…आपका अपने ऊपर नियंत्रण कितना है यह आपकी भाषा से पता चलता है। ख़ैर बस इतना जान लीजिये कि हमें ख़रीदने वाला कोई अभी पैदा नहीं हुआ…रामदेव एक धंधेबाज है जिसने सरकारों और नेताओं से अकूत धन अलग-अलग तरीकों से हथियाया है और अब तो यह साफ़ हो गया कि उसने पिछले चुनाव में बी जे पी को पैसे भी दिये थे। हम उसके ख़िलाफ़ बोलेंगे ही…जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है तो चाहो तो यही ब्लाग देख लो आप…हम उस पर ही नहीं हर मुद्दे पर लिखते हैं। लेकिन जब गोडसे की प्रशंसा करने वाले फ़ासिस्ट और दुष्प्रचारक अंकित जैसे लोग (जो अपनी मूर्खता को रियल स्कालर समझते हैं) तो बस हंसी आती है।
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