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गुरुवार, 3 मार्च 2011

जामिया को अल्पसंख्यक दर्जे का असली खेल- शम्सुल इस्लाम



राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान आयोग की तीन सदस्यीय पीठ ने न्यायमूर्ति एमएस सिद्दिकी की अध्यक्षता में 22 फरवरी को एक विवादास्पद निर्णय द्वारा जामिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया है। समर्थकों का कहना है कि इस फैसले में कुछ भी असामान्य बात नहीं है, क्योंकि व्यवहार में जामिया (1920) अपने जन्म से ही एक मुस्लिम संगठन था।

कॉरपोरेट जगत की बड़ी हस्ती रह चुके जामिया के मौजूदा उपकुलपति नजीब जंग का कहना है कि इससे जमीनी हालात में कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि यहां पहले से ही मुसलमान शिक्षार्थियों की संख्या 31 प्रतिशत है। उन्होंने यह भी दावा किया कि आयोग की इस घोषणा से जामिया के सेकुलर स्वरूप पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।
इस मामले पर कोई भी पुख्ता राय बनाने से पहले इन दावों की पड़ताल जरूरी है। जो लोग जामिया को पैदाइशी मुसलमान अर्थात अल्पसंख्यक संस्थान मानते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि यह तो बुनियादी तौर पर अल्पसंख्यक संस्थान ही रहा है, तो उन्हें इस बात का जवाब देना होगा कि अगर जामिया पहले से ही मुसलिम संस्थान था, तो उसे एक बार फिर अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने की क्या जरूरत है।

एक और महत्वपूर्ण सवाल है, जिसका जवाब चाहिए। अगर हमारे देश के तमाम मुसलमानों के हित और उद्देश्य एक ही जैसे थे, तो गांधीजी के मशवरे पर मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल खान, जाकिर हुसैन, एमए अंसारी सरीखे मुस्लिम नेताओं ने एक और ‘मुस्लिम संस्थान’ अलीगढ़ कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) से संबंध विच्छेद करके, दक्षिणी दिल्ली के कीकर के जंगल में जामिया को स्थापित करने का फैसला क्यों किया था?

सच यह है कि अलीगढ़ कॉलेज मुसलमानों के बीच में शिक्षा का प्रसार करने से ज्यादा उन्हें कूप का मेंढक बनाने का काम कर रहा था। यह संस्थान मुसलमानों के बीच पनप रहे सामंती मूल्यों का गढ़ बन गया था। जो लोग और समूह मुसलमानों के बीच प्रगतिशील, जनवादी और न्याय पर आधारित शिक्षा का प्रसार चाहते थे, उन्होंने जामिया की बुनियाद रखी थी और उसको परवान चढ़ाया।


जामिया का अल्पसंख्यकीकरण दरअसल इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय को उसके असली उद्देश्य से भटकाकर शिक्षार्थियों को कूप का मेंढक बनाने का ही काम करेगा। इस सच्चाई को दरकिनार करना मुश्किल है कि उर्दू, फारसी, अरबी, इस्लामी अध्ययन में तो यहां मुसलमान शिक्षार्थियों का अनुपात 99 प्रतिशत से भी ज्यादा रहता है, लेकिन विज्ञान, इंजीनियरिंग आदि में मुसलमान कहां से लाए जाएंगे? उनको भरने के लिए अल्पसंख्यकों के मुसलमान ठेकेदार मेरिट में रियायत दिलाना चाहेंगे, जिसके नतीजे में कम पढ़े-लिखों का ही लश्कर तैयार होगा।

जो तत्व जामिया के अल्पसंख्यकीकरण का झंडा बुलंद किए हुए हैं, उन्हें जामिया की स्थापना के कारणों और उद्देश्यों को समझना होगा। यह याद रखना जरूरी है कि मुसलमानों के बीच भी पुरातनपंथी और प्रगतिशील विचारों के दरम्यान संघर्ष होता रहा है। न ही सब मुसलमान एक तरह सोचते हैं और न ही उनके समान हित हैं। अलीगढ़ कॉलेज मुसलमानों के कुलीन वर्ग की, जो अपने आपको अशरफ कहते हैं, जागीर था। दबे-कुचले मुसलमानों को शिक्षित करने के लिए जामिया की स्थापना हुई थी।


मुसलमान उच्चजातीय तत्वों को जामिया को अल्पसंख्यक संस्थान बनाने की बात उस समय याद आई, जब सरकार ने शिक्षा संस्थानों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। इसीलिए 2006 में जामिया को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने की अपील दाखिल की गई। यह याद रखना जरूरी है कि ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का बड़े पैमाने पर फायदा मुसलमानों के दबे-कुचले समूहों को ही मिलना था। यह ओबीसी आरक्षण ही था, जिससे मुसलमानों की अनेक बिरादरियां आरक्षण हासिल कर पाई थीं।

मुसलमानों का दम भरने वाले नेता जातिवादी हिंदू तत्वों से किसी भी मायने में अलग नहीं हैं। वे भी जातिगत कारणों से आरक्षण के विरोधी हैं। ये तत्व समस्त मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग तो करते रहते हैं, लेकिन जहां पर इनका दबदबा होता है, वहां एसी/एसटी की बात तो दूर रही, मुसलमानों की पिछड़ी जातियों को भी उनके संवैधानिक हक देने को तैयार नहीं हैं। दुख की बात यह है कि ऐसा करने के लिए वे संविधान की आड़ लेते हें। मुसलमानों के कुलीन वर्ग का यह रवैया कोई नई बात नहीं है। डॉ. अंबेडकर ने इसी रवैये पर कहा था कि मुसलमानों में हैसियत रखने वाले तत्व उतने ही जातिवादी हैं, जितने हिंदुओं में होते हैं। जामिया के अल्पसंख्यकीकरण पर जो जश्न मना रहे हैं, वे इस सच्चाई को ही एक बार फिर जी रहे हैं।



शमसुल इस्लाम सत्यवती कालेज में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं, निशांत नाट्य संस्था चलाते हैं और देश भर में सांप्रदायिकता और जातिवाद के ख़िलाफ़ अपने सक्रिय एक्टिविज़्म के लिये जाने जाते हैं।

यह लेख हिन्दुस्तान लाईव से साभार लिया गया है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. तर्क संगत सवाल हैं। जवाब तो खोजने ही होंगे।

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  2. बड़े कोफ़्त की बात है मुस्लिम उच्च वर्ग सविधान की आड़ में शिक्षा संस्थानों पर भी दीमग लगाने पर तुला है...

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