पेरिस कम्यून के योद्धाओं को न केवल फ़्रांस के मजदूरों द्वारा बल्कि सारी दुनिया के सर्वहारा द्वारा सम्मानपूर्वक याद किया जाता है.क्योंकि कम्यून की लड़ाई किसी स्थानीय और संकीर्ण उद्देश्य के नहीं बल्कि समूची मेहनतकश कौम, सभी दलित और उत्पीड़ित जनों की मुक्ति के लिए थी. सामाजिक क्रान्ति के अग्रगण्य योद्धा के तौर पर कम्यून ने हर उस जगह पर सहानुभूति अर्जित की है जहाँ सर्वहारा तकलीफें उठा रहा है और संघर्ष में मुब्तिला है. कम्यून की ज़िन्दगी और मौत की महागाथा, विश्व की राजधानी पर दो महीने से ज्यादा समय तक कब्ज़ा जमाये रखने वाली कामगारों की सरकार का नज़ारा, सर्वहारा के शौर्यपूर्ण संघर्ष और पराजय के बाद उसके द्वारा झेली गई यंत्रणा का दृश्य - इन सभी बातों ने लाखों मजदूरों का हौसला बढ़ाया, उनकी उमीदें जगाईं और समाजवाद के ध्येय के प्रति उनकी हमदर्दी हासिल की. तोपों की गड़गड़ाहट ने पेरिस में सर्वहारा के सबसे पिछड़े हुए हिस्सों को उनकी गहरी नींद से जगाया, और हर तरफ क्रांतिकारी समाजवाद विचार के प्रसार को गति दी. इसीलिए पेरिस कम्यून का ध्येय मरा नहीं है. वह आज तलक हम सबों के अन्दर जीवित है.
कम्यून का ध्येय सामाजिक क्रान्ति का ध्येय है, मेहनतकशों की मुकम्मल राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति का ध्येय. यही सारी दुनिया के सर्वहारा का ध्येय है. और इन अर्थों में यह अमर है.
(पेरिस कम्यून के 140 साल पूरे होने पर लेनिन के लेख 'पेरिस कम्यून की याद में' का एक अंश; यह लेख रबोचया गज़्येता (मजदूरों का अखबार), संख्या 4-5, 15 अप्रैल 1911 में प्रकाशित हुआ था; तस्वीर है सोवियत संघ द्वारा कम्यून के सौ बरस पूरे होने पर 1971 में जारी किये डाक टिकट की)
पेरिस कम्यून आज भी परिवर्तनकामी जन के लिये प्रकाश स्तंभ है।
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