५ मई १८१८- १७ मार्च १८८३ |
कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर हान्स माग्नुस एंट्सेबर्जर की एक कविता , अनुवाद सुरेश सलिल का है.
कार्ल हाईनरिष मार्क्स
येहोवा जैसी दाढी वाले
ओ विराटकाय पितामह
भूरे डेगारो जैसे छायांकनों में
बर्फ सी सफेद पृष्ठभूमि में
देखता हूँ तुम्हारा चेहरा
निर्भीक और सहनशील
और लिनेन के छापे में तुम्हारे कागज़ात
बूचड़ के पे बिल
गिरफ्तारी वारंट-उदघाटन भाषण
देखता हूँ तुम्हारा संगीन हुलिया
फरारी रजिस्टर में
शातिर देशद्रोही- जलावतन शख्स
फतुही और पुछल्लेदार कोट में
बला का चौकन्ना
नामकी सिरके, शराब
और कडवे चुरुतों से झुलसा तुम्हारा आमाशय
देखता हूँ रयू डी एलआईस पर तुम्हारा घर
दीं स्ट्रीट, ग्राफ्टन टेरेस पर
एक दीर्घकाय बुर्जुआ
घिसे स्लीपरों में एक पारिवारिक तानाशाह
कालिख और 'तंगदस्ती'
सूदखोरी बदस्तूर
बच्चों की अर्थियां
और अफवाहें घिनौने प्रेम संबंधों की
तुम्हारे फ़रिश्ते से हाथों में
कोई मशीनगन नहीं
देखता हूँ पुरसुकून नज़रों से
ब्रिटिश म्यूजियम में
हरी चिमनी की रौशनी में
बेहद साढ़े हाथों से उजाडते अपना खुद का घर
दूसरे घरों की सेहतमंदी के लिए
जो कभी नहीं मिली तुम्हें
ओ महान संस्थापक
ओ महर्षि
देखता हूँ कि तुम्हारे अनुयायियों ने ही
छल किया तुम्हारे साथ
बेशक तुम्हारे दुश्मन वही बने रहे
जो थे हमेशा से
देखता हूँ 'अप्रैल बयासी' की
अंतिम तस्वीर में तुम्हारा चेहरा
एक लौह आवरण
मुक्ति का एक लौह आवरण !
Roshan Suchan facebook se- महान क्रांतिकारी चिन्तक कार्ल मार्क्स के 193 वें जन्म दिवस पर सभी मित्रों को बधाई , दुनिया भर में पूंजी (वित्तीय पूंजी) की बढ़ रही लूट-खसूट मानवता को गर्त में धकेल रही है | एक तरफ कुच्छ ही हाथों में पूंजी के बढ़ रहे ढेर और दूसरी तरफ दरिद्रता में वृद्धि , उत्पादन की अराजकता और वहीं महान आर्थिक मंदी , सूचना -तकनीकी क्रांति और बढ़ रहे मशीनीकरण के बावजूद इंसान का गधों की तरह काम करना , बढ़ रही बेरोजगारों की फोज़ , साम्राज्यवादी युद्धों का सिर्फ एक ही हल और इलाज़ है मार्क्सवादी दुनिया | मार्क्सवाद आज पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो गया है ........... आज भी मार्क्सवाद दुनिया को बदलने का सबसे बेहतर विचार है और दुनिया प्रतीक्षा कर रही है मार्क्स की वापसी की ..
जवाब देंहटाएंदेखता हूँ तुम्हारे अनुयायियों ने ही
जवाब देंहटाएंछल किया तुम्हारे साथ.
दुनिया को नयी सोच और रौशनी देने वाले महान विचारक देने वाले कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर हम सबको बधाई...!
ashok bhai ki baat se beshak sahmat hua ja sakta he ki marxism ki aaj jyada jarurat he. isme koi shak nahi ki marxism duniya ka sabse aadhunik, sabse jyada democratic aur samanta wala vichar he.
जवाब देंहटाएंlal salam k sath un tamam logoN ko karl marx k janmdin ki badhai jo samanta me bharosa rakte he aur shoshan ka virodh karte he.
बहुत सुन्दर , बहुत-बहुत आभार ....
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Very good and impressive. Full of motivations.
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 05/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
(कार्ल मार्क्स उनका जीवन और अवधारणा--हलचल का रविवारीय विशेषांक)
धन्यवाद!
जन्म कुंडली मे 'राज राजेश्वर योग' ने मार्क्स को 'बेताज बादशाह' बनायासत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रहऔर ब्रह्मचर्य के समुच्य का नाम है-धर्म.अब देखिये यह सोचने की बात है कि,धर्म की दुहाई देने वाले इन पर कितना आचरण करते हैं.यदि समाज में शोषण विहीन व्यवस्था ही स्थापित हो जाए जैसा कि ,मार्क्स की परिकल्पना में-
जवाब देंहटाएंसत्य-पूंजीपति शोषक वर्ग सत्य बोल और उस पर चल कर समृद्धत्तर नहीं हो सकता .
अहिंसा-मनसा-वाचा-कर्मणा अहिंसा का पालन करने वाला शोषण कर ही नहीं सकता.
अस्तेय-अस्तेय का पालन करके पूंजीपति वर्ग अपनी पूंजी नष्ट कर देगा.गरीब का हक चुराकर ही धनवान की पूंजी सृजित होती है.
अपरिग्रह-जिस पर वेदों से लेकर श्रीकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द सभी मनीषियों ने ज्यादाजोर दिया यदि समाज में अपना लिया जाए तो कोई किसी का हक छीने ही नहीं और स्वतः समानता स्थापित हो जाए.
ब्रह्मचर्य-जिसकी जितनी उपेक्षा पूंजीपति वर्ग में होती है ,गरीब तबके में यह संभव ही नहीं है.अपहरण,बलात्कार और वेश्यालय पूंजीपति समाज की संतुष्टि का माध्यम हैं.
आखिर फिर क्यों धर्म का आडम्बर दिखा कर पूंजीपति वर्ग जनता को गुमराह करता है?ज़ाहिर है कि,ऐसा गरीब और शोषित वर्ग को दिग्भ्रमित करने के लिए किया जाता है,जिससे धर्म की आड़ में शोषण निर्बाध गति से चलता रहे