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मंगलवार, 19 जुलाई 2011

हम भारतीय भाषा परिषद के संघर्षरत कर्मचारियों का समर्थन करते हैं

भारतीय भाषा परिषद ,कोलकाता मे कर्मचारियों की वेतन बढोत्तरी को लेकर हड्ताल चल रही है. हम उसका समर्थन करते हैं. हमारा मानना है कि कर्मचारियों को उचित वेतन मिलना ही चाहिए. इस मुद्दे पर कवि नीलकमल का लेख उनके फेसबुक नोट्स से साभार

भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता में काम करने वाले कर्मचारी हमारे अपने लोग ही हैं । आज वे अपनी आर्थिक मांगों को लेकर धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं । लेखक बिरादरी की तरफ़ से इस धरने के प्रति समर्थन जताने की बेचैनी और तत्परता प्रशंसनीय है । इन कर्मचारी बन्धुओं में कुछ तो मेरे अति प्रिय और करीब के लोग भी हैं । इनका आर्थिक शोषण किसी भी प्रकार से जायज नहीं ठहराया जा सकता । मेरी संवेदना और नैतिक समर्थन इस आन्दोलन के प्रति है । लेकिन इस आन्दोलन से कुछ सवाल भी पैदा होते है जिन्हें नजर-अन्दाज नहीं किया जाना चाहिए । 

कवि एकान्त श्रीवास्तव जो परिषद की मासिक पत्रिका वागर्थ के सम्पादक भी हैं , को अकेले में घेर कर उनके खिलाफ़ नारेबाजी की गई , उन्हें मैनेजमेन्ट का आदमी कह कर उन्हें बिना पूर्व सूचना के अपदस्थ किया गया जिसके लिए कर्मचारियों को बाद में अधिकारिक रूप से दुख भी प्रकट करना पड़ा । यह किसी भी प्रकार से समर्थन योग्य नहीं है । हिन्दी के एक प्रतिष्ठित कवि पर निशाना साध कर हमारे ये साथी क्या संकेत देना चाहते हैं ? वे चाहते तो एकान्त श्रीवास्तव को विश्वास में लेकर अपने आन्दोलन को और ज्यादा व्यापक बना सकते थे । 

हम सभी जानते हैं कि हमारे ये साथी कर्मचारी दो से पांच हजार वेतन पर काम करते हैं । परिषद का सबसे पुराना कर्मचारी जो पिछले पच्चीस तीस वर्षों से वहां काम करता है वह भी अधिकतम पांच हजार ही पाता है । यह प्रवंचना लम्बे समय से चल रही है । राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ यह आन्दोलन जोर पकड़ने लगा । क्या यह संयोग ही है या इसके दूसरे कारण भी है ? लेखकों का काफ़ी समर्थन इस धरने को मिला है जिसमें कुछ स्टार लेखक भी हैं । दिल्ली , बंगलौर और भोपाल में बैठे साथी फ़ेसबुक पर अपनी व्यथा जता रहे हैं । कोलकता के साथी भी समव्यथी हैं । होना भी चहिए । लेकिन प्रश्न यह भी है कि क्या हम अपनी मोटी तनख्वाहों से कुछ भी त्याग कर इन कर्मचारी साथियों की सहायता करने के लिए तैयार है ? एक समिति बना कर भी यह काम किया जा सकता है । कुछ लोगों को इस बात का दुख ज्यादा है कि वागर्थ बन्द हो जाएगा । साहित्य का नुकसान होगा । ऐसा लगता है कि आन्दोलन पर बैठे साथियों  के प्रति संवेदना की जगह वागर्थ के बन्द हो जाने का दुख घेरता जा रहा है । मुझे विश्वास है कि आपसी बात चीत से रास्ता जरूर निकलेगा । मै तो कहूंगा कि वागर्थ को बन्द कर के भी यदि कर्मचारियों को आर्थिक लाभ दिया जा सकता है तो ऐसा ही किया जाना चाहिए । आखिर रोटी का सवाल साहित्य से बड़ा है

1 टिप्पणी:

  1. भारतीय भाषा परिषद ,कोलकाता मे कर्मचारियों की वेतन बढोत्तरी को लेकर हड्ताल चल रही है. हम उसका समर्थन करते हैं. हमारा मानना है कि कर्मचारियों को उचित वेतन मिलना ही चाहिए.

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