आदरणीय श्री अन्ना हजारे और उनकी टीम के सम्मानित सदस्य,
अभी बहुत समय नहीं बीता जब पूरा देश जन लोकपाल की मांग को लेकर आपके द्वारा किये गए आंदोलन तथा अनशन के समर्थन में सडकों पर उतर पड़ा था.आपके आंदोलन को जो प्रचंड जन समर्थन मिला,उसके मूल में भ्रष्टाचार से त्रस्त देश के आम आदमी की पीड़ा थी.आपने भी देश को बताया कि इस भ्रष्टाचार को खत्म करने का सबसे प्रभावी तरीका एक सशक्त लोकपाल ही है. हमारी पार्टी-भाकपा(माले)लिबरेशन, ये मानती है कि भ्रष्टाचार कोई नैतिक मामला नहीं है बल्कि राजनीतिक और नीतियों का मसला है ; आज जो चरम भ्रष्टाचार इस देश में व्याप्त है,उसके मूल में वो नवउदारवादी नीतियां हैं जिन्हें 1991 में केंद्र सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए डा.मनमोहन सिंह ने लागू किया और उसके बाद आने वाली हर पार्टी-जिसमे भाजपा सबसे प्रमुख है-की सरकार ने आगे बढ़ाया.इन नीतियों को उलटे बगैर भ्रष्टाचार का खात्मा संभव नहीं है. न्यायपालिका, सेना,कारपोरेट घरानों,स्वयंसेवी संगठनो,मीडिया को लोकपाल के दायरे में लाने की समझदारी के साथ हमारी पार्टी ने भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम आदमी के आक्रोश की अभिव्यक्ति वाले इस आंदोलन का समर्थन किया था.
हम समझते थे कि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दे के प्रति लड़ने के लिए आप प्रतिबद्ध हैं.परन्तु उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री(फ़ौज से दो दशक पहले सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे मेजर जनरल ही कहलाना पसंद करते हैं)भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा उत्तराखंड की विधान सभा में पेश किये गए-उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक,2011 पर आपने जिस तरह तारीफों की पुष्प वर्षा की,वो न केवल बेहद चौंकाने वाला है बल्कि अफसोसजनक भी है.जिस तरह आपने श्री खंडूड़ी का महिमामंडन किया ,उससे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे श्री खंडूड़ी ने वाकई कोई युगान्तकारी कारनामा कर दिया है.श्री अरविन्द केजरीवाल तो खंडूड़ी जी की ही तारीफ़ करके नहीं रुके बल्कि उन्होंने प्रमुख सचिव दिलीप कुमार कोटिया पर भी तारीफों के फूल बरसाए.
पर क्या वाकई खंडूड़ी जी द्वारा लाया गया-उत्तरखंड लोकायुक्त विधेयक,उतना ही चमत्कारिक है,जितना आप उसे बता रहे हैं? हमारी समझदारी ये कहती है कि नहीं,उक्त विधेयक इस तारीफ का हक़दार कतई नहीं है.बल्कि इसके उल्ट यह विधेयक ऊँचे पदों पर बैठ कर भ्रष्टाचार करने वालों के प्रति कार्यवाही तो दूर की बात है,शिकायत करना भी असंभव बना देता है.उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक,2011 का अध्याय- छ: जिसका शीर्षक है –उच्च कृत्यकारियों के विरुद्ध अन्वेषण और अभियोजन-उसकी धारा 18 कहती है कि
“निम्नलिखित व्यक्तियों के विरुद्ध कोई अन्वेषण या अभियोजन लोकायुक्त के सभी सदस्यों की अध्यक्ष के साथ पीठ,से अनुमति प्राप्त किये बिना प्रारंभ नहीं की जायेगी :-
(एक) मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद के कोई अन्य सदस्य ;
(दो) उत्तराखंड विधानसभा के कोई सदस्य “
महोदय,उक्त प्रावधान से यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री,मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ तभी शिकायत और कार्यवाही की जा सकेगी,जबकी लोकायुक्त की संपूर्ण पीठ और उसका अध्यक्ष इस बात पर एकमत हों कि ऐसा करना है.लोकायुक्त की पीठ के एक भी सदस्य का इनकार इसमें वीटो का काम करेगा और इस तरह मुख्यमंत्री,मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक,2011 के तहत बनने वाले लोकायुक्त के समक्ष शिकायत दर्ज करा पाना ही लगभग असंभव होगा.
अब जरा उत्तराखंड की राजनीतिक परिस्थितिओं की रोशनी में लोकायुक्त विधेयक में किये गए प्रावधानों का निहितार्थ समझने का प्रयास करें. कांग्रेस के भ्रष्टाचार और कुशासन के पांच साल बाद 2007 में उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनी और श्री भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बनाये गए.2009 में लोकसभा चुनाव में भाजपा की उत्तराखंड की पाँचों सीटों पर पराजय के बाद श्री खंडूड़ी को हटाकर,श्री रमेश पोखरियाल’निशंक’ को मुख्यमंत्री बनाया गया.अपने सवा दो साल के मुख्यमंत्री काल में निशंक पर लगातार घपले-घोटालों के आरोप लगते रहे,जिसमे कुम्भ आयोजन में घोटाले की तो कैग ने भी पुष्टि कर दी है.साथ ही 56 लघु जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में घोटाला,सिटुर्जिया बायोकेमिकल्स की जमीन स्टर्डिया डवेलपर्स को हस्तांतरण में घोटाला आदि भी उनके कार्यकाल के चर्चित घोटाले रहे.खनन माफिया के खिलाफ तो अनशन करते हुए स्वामी निगामानंद के प्राण चले गए पर निशंक और उनकी सरकार के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई.भ्रष्टाचार की बढती चर्चाओं,भाजपा की अंदरूनी उठापटक और 2012 की शुरुआत में होने वाले विधान सभा चुनाव को देखते हुए निशंक को हटा कर खंडूड़ी मुख्यमंत्री बना दिए गए.अब भ्रष्टाचार में डूबे हुए निशंक के खिलाफ कोई खंडूड़ी जी द्वारा बनाये गए लोकायुक्त से शिकायत करना चाहे तो ये उक्त विधेयक के प्रावधान के अनुसार असंभव है क्यूंकि निशंक आज मुख्यमंत्री भले ही न हों,परन्तु विधायक वे अभी भी हैं और विधायकों पर कार्यवाही के लिए तो लोकायुक्तों की पीठ के सभी सदस्यों की सहमति अनिवार्य है.इस तरह देखें तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा लाया गया लोकायुक्त विधेयक भ्रष्टाचार उन्मूलन के बजाय अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल’निशंक’ को किसी भी कार्यवाही से बचाने के लिए लाया गया विधेयक है.
खंडूड़ी जी ने 2007 में मुख्युमंत्री के अपने पहले कार्यकाल में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के 56 घोटालों की जांच की घोषणा की थी.ये जांच आज तक पूरी नहीं हो सकी है.बहरहाल यदि कोई इन घोटालों के मामले में भी खंडूड़ी जी के लोकायुक्त से कार्यवाही के अपेक्षा करे तो उन कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना ही संभव नहीं होगा,जो विधायक होंगे,यानि अपनी पार्टी के ही नहीं विपक्षी भ्रष्टाचारियों को बचाने का पुख्ता इंतजाम खंडूड़ी जी ने अपने लोकपाल में किया है.
इतना ही नहीं खंडूड़ी जी के लोकायुक्त विधेयक में तो नौकरशाही के खिलाफ शिकायत और कार्यवाही को भी मुश्किल बनाया गया है. ”जांच अथवा अन्वेषण की प्रक्रिया” शीर्षक के अंतर्गत धारा 7(7) कहती है “सरकार के सचिव एवं सरकार के सचिव से ऊपर के प्रकरण में अन्वेषण या अभियोजन केवल लोकायुक्त की पीठ, जिसमे न्यूनतम दो सदस्य और अध्यक्ष हों, से अनुमति प्राप्त करके संस्थित होंगे”.इस तरह देखें तो उच्च पदस्थ नौकरशाहों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा पाने को भी भरसक मुश्किल बनाया गया है.
जहाँ भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ शिकायत करने के प्रावधान इतने दुष्कर बनाये गए हैं,वहीँ शिकायतकर्ता के खिलाफ,शिकायत सिद्ध न कर पाने और साक्ष्य न दे पाने की स्थिति में यदि लोकायुक्त को यह महसूस हो कि शिकायत किसी प्राधिकारी के उत्पीडन के लिए की गयी है तो शिकायतकर्ता पर एक लाख रुपये तक के अर्थ दंड की व्यवस्था की गयी है (धारा 31).हमारी राजनीतिक व्यवस्था के मारे किस आम आदमी में हिम्मत है कि वो मुख्यमंत्री,मंत्री,विधायकों,बड़े-बड़े नौकरशाहों का उत्पीडन करने के लिए शिकायत कर सके? जितनी चिंता प्राधिकारियों का उत्पीडन न हो,इसकी है,यदि व्यवस्था चलाने वालों ने उतनी चिंता आम आदमी की, की होती तो भ्रष्टाचार,लूट,दमन आज इतने विकराल रूप में नहीं होता.ये प्रावधान भी एक तरह से भ्रष्टाचारियों के बचाव में ही काम आएगा क्यूंकि इन से त्रस्त आम आदमी शिकायत करने से पहले सौ बार सोचेगा कि यदि वह शिकायत सिद्ध नहीं कर पाया तो एक लाख रुपये के दंड का भागी भी बन सकता है.
महोदय,जन लोकपाल जैसी मांग का आंदोलन किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के चमत्कार से परवान नहीं चढा था,बल्कि उच्च पदों पर बैठे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ ठोस दंडात्मक कार्यवाही हो,इस आकांक्षा के चलते ही इस आंदोलन का जनता ने समर्थन किया था.लेकिन उस आंदोलन के नेतृत्वकारी-आप लोग,एक ऐसे विधेयक का,जो उच्च पदों पर बैठे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ शिकायत करने को भी लगभग असंभव बनाता है,उसका न केवल समर्थन करते हैं बल्कि मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा भी करते हैं तो इसको देश भर में सांप्रदायिक उन्माद फ़ैलाने वाली और उत्तराखंड में चरम भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी के समर्थन के रूप क्या नहीं देखा-समझा जाएगा ? क्या वजह है कि आप क़ानून के इतने बड़े ज्ञाताओं को ये मामूली बातें समझ में नहीं आ रही हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के नाम पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी,एक ऐसा लोकायुक्त विधेयक लाए हैं जिसमे भ्रष्टाचारियों को किसी भी कार्यवाही से बचाने की ठोस व्यवस्था की गयी है ?या फिर इसे भुवन चंद्र खंडूड़ी जी की चतुराई समझा जाये कि भ्रष्टाचारियों को बचाने का कानूनी इन्तजाम भी उन्होंने अपने लोकायुक्त विधेयक के जरिये कर लिया और आप जैसे भ्रष्टाचार विरोधियों और जन लोकपाल समर्थकों को भी शीशे में उतारने में कामयाब रहे ?
प्रश्न तो ये भी है कि जब क़ानून और संविधान की निगाह में सब सामान हैं तो किसी को उसके विरुद्ध होने वाली शिकायतों से सिर्फ इसलिए विशेष प्रावधानों से क्यूँ बचाया जाना चाहिए कि वह किसी उच्च पद पर बैठा है?
उक्त तमाम बातों के आलोक में भाकपा(माले) की उत्तराखंड राज्य कमिटी आप से ये मांग करती है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के प्रति जो समर्थन और प्रशंसा आपने लोकायुक्त विधेयक लाने पर जताई है,उसे आप वापस लें और आप की तरफ से भी उनसे ये मांग की जाये कि या तो वे सही मायनों में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने वाला लोकायुक्त बनायें या फिर देश और उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों को भ्रमित करने के लिए सार्वजानिक माफ़ी मांगते हुए अपने पद का त्याग कर दें.
सादर,
राज्य कमिटी,भाकपा(माले),उत्तराखंड
राजेंद्र प्रथोली,
केन्द्रीय कमिटी सदस्य,
भाकपा(माले)
राजा बहुगुणा,
राज्य प्रभारी-भाकपा(माले),
उत्तराखंड
पुरुषोत्तम शर्मा,
राज्य कमिटी सदस्य,
भाकपा(माले),उत्तराखंड
बहादुर सिंह जंगी
राज्य कमिटी सदस्य
भाकपा(माले),उत्तराखंड
के.के.बोरा
राज्य कमिटी सदस्य,
भाकपा(माले),उत्तराखंड कैलाश पाण्डेय,
राज्य कमिटी सदस्य
भाकपा(माले),उत्तराखंड
आनंद सिंह नेगी
राज्य कमिटी सदस्य
भाकपा(माले),उत्तराखंड
जगत मर्तोलिया
राज्य कमिटी सदस्य,
भाकपा(माले),उत्तराखंड
इन्द्रेश मैखुरी,
राज्य कमिटी सदस्य
भाकपा(माले),उत्तराखंड
खुशी है कि भाकपा (माले)का मोहभंग होगया, अन्ना से, चाहे उत्तराखंड के घटनाक्रम ने ही 'समझ के इस बदलाव' को संभव बनाया हो. बहुत तथ्यपरक पत्र है यह. इसके सारतत्व पर गौर करें तो यह अन्ना, उनकी टीम और भाजपा के खिलाफ आरोपपत्र भी है.कम्युनिस्टों की तो यह समझ होनी ही चाहिए कि भ्रष्टाचार जिस व्यवस्था की अनिवार्य देन है, उसे खरोंच तक लगाए बिना भ्रष्टाचार को दूर नहीं किया जा सकता. यही कारण था कि भ्रष्टाचार के पूरी तरह खिलाफ होते हुए भी हम अन्ना की नौटंकी का समर्थन नहीं कर पा रहे थे.अब इन साथियों से यह अपेक्षा है कि दुनिया भर में पूंजीवाद के खिलाफ जो माहौल बन रहा है उसके सारतत्व को समझकर भारतीय संदर्भ में भी कुछ सार्थक हो सके ऐसा माहौल बनाएं अन्य वामपंथी पार्टियों और समूहों के साथ मिलकर. इतिहास बार-बार ऐसे मौके नहीं देता.
जवाब देंहटाएंइस बयान का समर्थन है।
जवाब देंहटाएंलोकपाल कोई जादू की छड़ी नहीं है कि जिससे भ्रष्टाचार दूर हो जायेगा ! हाँ ! सार्थक दिशा में उठा एक व्यवहारिक कदम जरुर हो सकता है ! अन्ना टीम अपने आन्दोलन को अराजनैतिक बताती है तो फिर उसका व्यवहार भी वैसा होना चाहिए ! केवल केंद्र में कांग्रेस की सरकार पे हमला और राज्यों में हो रहे भ्रष्टाचार पर चुप्पी ! ये दोमुह्नी बाते हैं ! अन्ना टीम को इसका स्पष्टीकरण देना ही होगा ! साथ साथ भ्रष्टाचार नमक शब्द की समझ को भी विकसित करना होगा !
जवाब देंहटाएंऐसे लोकायुक्त कानूनों को अदालत में चुनौती देनी चाहिए !बहुत सारगर्भित लेख !
जवाब देंहटाएंअब सारा मामला साफ़ है कि अन्ना गैंग का छिपा हुआ एजेंडा क्या था.
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति, केन्द्र हो या राज्य हर जगह यही हाल है
जवाब देंहटाएंmohan ji baat itni nahin hai ki ab inki samjh me aa gaya hai. team anna kya hai. avasarvaad ka charam udahran hai ye party. janmat me jis tarah se sampadkiya likhe ja rahe the vo to apne bhi padhe honge. pura party or jansangathan(jo pata nahin kya hai, jansangathan or party kii khichdi)apna andolan kuch hai nahin. to karykartaon ko vyast rakhne ke liye kabhi anna ke peeche kabhi kisi ke peeche. avasarvaad ki intahan.
जवाब देंहटाएंइस पत्र का पब्लिक में प्रचार होना जरुरी है . कई महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर
जवाब देंहटाएंकिया गया है जिन से पब्लिक अपरिचित है .मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है
कि भ्रस्टाचार कि जड़ में सरकार कि पूंजीवादी नीतियाँ हैं. लोकपाल आने से
क्या सरकार कि इन पूंजीवादी नीतियों पर रोक लग जाएगी ? रिटेल में ऍफ़ डी
आ रही है अन्ना को कोई फर्क नहीं पड़ता . दरअसल अन्ना कि पूरी टीम पूंजीवाद
कि समर्थक है . जब तक इस देश में विदेशी पूंजी आती रहेगी चाहे वह केजरीवाल ,
किरण बेदी और रामदेव जेंसों के एन. जी . ओ के माध्यम से ही क्यों न हो कितने
लोकपाल आ जाएँ गरीब और गरीब होता जायेगा .
इस पत्र का पब्लिक में प्रचार होना जरुरी है . कई महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर
जवाब देंहटाएंकिया गया है जिन से पब्लिक अपरिचित है .मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है
कि भ्रस्टाचार कि जड़ में सरकार कि पूंजीवादी नीतियाँ हैं. लोकपाल आने से
क्या सरकार कि इन पूंजीवादी नीतियों पर रोक लग जाएगी ? रिटेल में ऍफ़ डी
आ रही है अन्ना को कोई फर्क नहीं पड़ता . दरअसल अन्ना कि पूरी टीम पूंजीवाद
कि समर्थक है . जब तक इस देश में विदेशी पूंजी आती रहेगी चाहे वह केजरीवाल ,
किरण बेदी और रामदेव जेंसों के एन. जी . ओ के माध्यम से ही क्यों न हो कितने
लोकपाल आ जाएँ गरीब और गरीब होता जायेगा .
बहुत ही चौंकानेवाले और विभत्स सच हैं, अन्ना को चमत्कृत कर देने वाले व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करनेवाले मीडिया का दायित्व है कि वह इस सच भी उसी भाव से देश के सामने लाए..
जवाब देंहटाएं