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सोमवार, 7 मई 2012

मार्क्स, बुद्ध और अनिल म्ह्माने

अनिल म्हमाने महाराष्ट्र की फुले-आम्बेडकरवादी-मार्क्सवादी परम्परा के पोएट-एक्टिविस्ट (एक्टिविस्ट-पोएट नहीं) हैं. वे जनवादी और प्रगतिशील साहित्य छापने वाला एक प्रकाशन निर्मिति संवादभी चलाते हैं.


27 अक्टूबर 2007 को नागपुर में बाबासाहब आम्बेडकर के स्मारक दीक्षा-भूमि पर अपनी किताबें बेचने जाते समय अजनी रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने अनिल म्हमाने, बाबासाहब सायमोते, दिनकर काम्बले और बापू पाटिल को नक्सलवादीहोने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया. उनके पास से बरामद पुस्तकों में एक भी प्रतिबंधित पुस्तक नहीं थी; बहुत सी किताबें डॉ. आम्बेडकर, महात्मा फुले, अन्ना भाऊ साठे, भगत सिंह की लिखी हुई थीं. मुक़दमा लगभग चार सालों तक चला और महाराष्ट्र में प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े तमाम लोगों ने इस उत्पीडन की केवल निंदा-भर्त्सना ही नहीं की, बल्कि मुक़दमा लड़ने के लिए हर तरह का सहयोग भी प्रदान किया. 30 जुलाई 2011 को नागपुर सत्र न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए चारों एक्टिविस्टों को निर्दोष मानते हुए बाइज़्ज़त बरी कर दिया.


इन चार सालों में छह महीने अनिल ने जेल में बिताये. कट्टर नक्सलवादीबताकर उन्हें जेल के आईसीयू में रखा गया था. उन छह महीनों में उन्होंने जो भुगता, जो अनुभव किया, वह लिखा- ऐसी छत्तीस कविताओं का संग्रह तुरुंगातील अस्वस्थ रात्रींच्या कविता’ (क़ैदखाने की बेचैन रातों की कविताएँ’) हाल ही में उनके अपने प्रकाशन से छपकर आया है. पाँच मई को कार्ल मार्क्स के जन्मदिन और छह मई को बुद्ध जयंती के अवसर पर पेश हैं अनिल के ज़िन्दांनामेसे दो कविताएँ. - भारत भूषण तिवारी

कार्ल मार्क्स

मार्क्स बाबा!
कहीं रह न जाए इसलिए लिख रहा हूँ
और तुम्हें छोड़ कर आगे जाया नहीं जाता इसलिए कह रहा हूँ
वैसे सभी मुझे मार्क्सवादी कहते हैं
मगर! सच कहूँ तो
मेरी समझ में तुम कभी आये ही नहीं

तुम्हारे दर्शन के ब्राम्हणीय विश्लेषक
तुम्हारे पूंजीवाद-विरोधी दर्शन को
मेरे भेजे में सीधे घुसने ही नहीं देते
तो फिर जाति के अन्त की बात छोड़ ही दो
तुम्हारे साम्यवादी घोषणापत्र की तो
इन्होने वाट ही लगा दी

तुमने भारत के बारे में कुछ तो लिखा
जो मुझ तक पहुँचा ही नहीं

मार्क्स बाबा! तुम भारत आते हुए
सीधे गाँव के बाहर की बस्ती में अगर आये होते
तो बाबासाहब के जिगरी दोस्त बन गए होते
मेरे बाबासाहब भी तुम जैसे ही सामर्थ्य वाले

तो बताओ?
भारतीय क्रान्ति होने में देर होती?

पर वैसा हुआ नहीं कहने की बजाय
होने नहीं दिया गया
तुम्हें खड़ा किया गया
बाबासाहब और बुद्ध के खिलाफ

आज तो बाबासाहब के कुछ अनुयायी
तुम्हारे खिलाफ खड़े हैं

पर मार्क्स बाबा!
ये स्वार्थपूर्ण दाँव-पेच
अब सभी की समझ में आ रहे है
इसलिए मैं बाबासाहब और तुम्हें देख रहा हूँ
समानता की नज़र से एक ही ऊँचाई पर पहुँचे हुए
तुम लोग दिखाई दे रहे हो
मुझे विचार-विनिमय करते हुए
विषय है
भारतीय क्रान्ति का!




गौतम!

गौतम तुम्हारे लिए एक सवाल?
तुम बुद्ध हुए मतलब वास्तव में क्या हुए?

तुम्हारे अनुयायी आवेगपूर्ण ढंग से से बताते हैं
कहते हैं तुमने बड़ी तपस्या की
विपश्यना करने से ही तुम्हें ज्ञान प्राप्ति हुई
तुम भौतिक जगत से पार के विश्व के
भविष्यवेत्ता थे

तुम्हें एक पीपल के पेड़ ने
ईश्वरीय शक्ति प्रदान की
तुमने क्रान्ति के लिए बस अहिंसा का ही मार्ग दिखाया
और तुम बुद्ध हो गए...

गौतम! यह सच है क्या?

तुम राजवैभव अस्वीकार कर रास्ते पर आये
इंसानों के दुख खत्म करने के लिए
अपनी सारी ज़िंदगी बिता दी
दुर्बलों को खड़ा करने के लिए
सारी ज़िंदगी रास्तों पर जीते रहे
रास्ते के क्रियाशील कार्यकर्ता के तौर पर
तुम खड़े रहे मानवी समता के पक्ष में

ब्राम्हणीय विषमतावादी व्यवस्था को नकार कर
लोकतंत्र के बारे में भी तुमने ही लिखा सर्वप्रथम
और धक्का दिया वैदिक यज्ञ संस्कृति को
तुमने नकारा दासप्रथा को
और खड़े रहे स्त्रियों के पक्ष में
उसे समाज में जीने का सम्मान देते हुए

तुमने बड़ी हिम्मत के साथ बताया
इस दुनिया में ईश्वर नहीं

तुम मनुष्य की स्वतंत्रता के बारे में बड़ी शिद्दत के साथ बोले
बंधुत्व भी तुम्हारे ही विचार का है एक तत्व
तुमने लिखा मानव मुक्ति के नए दर्शन पर
तुम्हारा कथन और व्यवहार एक सा था
बहुत अध्ययन किया तुमने
और तुम्हारे इंसानी मस्तिष्क की सीमाएँ फैलीं
तुमने मानवीय बुद्धि के विकास का शिखर अर्जित कर लिया
इसलिए मुझे लगता है कि
तुम बुद्ध हो गए!

मैं ठीक कह रहा हूँ न गौतम?

अध्ययन और प्रत्यक्ष जीवन का अनुभव
तुम्हें बुद्ध बना गया

मगर, कुछ अनुयायियों को यह मंज़ूर नहीं
भगवान बुद्ध कह कर
वे खड़ा करते हैं तुम्हें दैवीय अवतार के तौर पर
उनकी समझ में आता ही नहीं
तुम कौन थे और बुद्ध कैसे हुए?

तुम्हारा दर्शन कभी उनकी समझ में नहीं आया
पर गौतम मेरी समझ में आ गया है
इसलिए दृढ़ता से कह रहा हूँ
सारी दुनिया से
तुम कौन थे?

तुम बुद्ध कैसे हुए?



3 टिप्‍पणियां:

  1. ramji yadaw (mail se)
    अच्छी पोस्ट है
    अनिल की गिरफ्तारी ट्रेन मे हुई थी
    कविताओं के लिए आप भी साधुवाद के पात्र हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. दोनों कविताये बड़ी सहजता से बड़े सवाल उठाती है और मार्क्स को सिमित दायरे में रखनेवाले को सामने लाती है .अम्बेडकर के जिगरी दोस्त बनने के रास्ते को अब भी अवरुद्ध करने वाले की खबर लेती है .बुद्ध पर बड़ी ईमानदारी से वैचारिकता रखती है कविता .अनुवाद सहजता से भाषा की दिवार गिरा देती है .आपका भी शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं

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