(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर क्रांतिकारी अभिनन्दन के साथ प्रसिद्ध लेखिका माया एंजेलो पर यह आलेख अहा ज़िन्दगी के ताज़ा अंक से साभार. )
- विपिन-चौधरी
इन्सान का जीवन एक ऐसी किताब हो़ता है जिसको वह कभी सार्वजनिक नहीं करना चाहता
पर क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन में कई तरह
के उतार-चढाव आते हैं और कुछ ऐसी भी परिस्तिथियाँ बन जाती है जो समाज की परिपाटी
पर खरी नहीं उतरती ऐसे में इंसान अपने जीवन के अनुभवों को निजी ही बने रहने देता
है. बावजूद इसके इसी संसार में कुछ विभूतियाँ ऐसी भी हैं जो अपने जीवन के कारण ही पूरे
संसार के लिए एक मिसाल बन जाती हैं. ऐसे लोगों का जीवन एक खुली किताब की तरह होता
हैं जिस के हर हर्फ़ से गुज़रते हुए पाठक को इंसानी जीवन की विविधता से साक्षात्कार
होता है, ठीक इसी तरह के जीवन को भरपूर जिजीविषा से जिया और अपने जीवन के अनुभवों
को समूची दुनिया के साथ साँझा भी किया है प्रसिद्ध अश्वेत लेखिका माया-अन्जेलों
ने.
८५ वर्षीय विश्व प्रसिद्ध अमेरिकी लेखिका माया अन्जेलो जब अपने पिछले जीवन का भोगा हुआ इतिहास उठा कर देखती है तो इतिहास के ढेर से उन्हें सुख की किरचें ढूँढ-ढूँढ कर निकालनी पड़ती हैं. तमाम उम्र वे दुःख की
परछाईयों से ही लड़ती रही सुख की रोशनी उनकें हिस्सें कम ही आई. दुःख-दर्द-संघर्ष ही
उनके जीवन की व्यथा गाथा रही. संघर्षों की उबड-खाबड़ डगर पर मीलों पैदल चलने के बाद ही माया अन्जेलों को संसार भर में लोकप्रियता मिल सकी.
माया अन्जेलो के कर्मशील जीवन के सूत्र वाक्य हैं
‘उपलब्धियों का अपना दुखांत होता है’
और
‘किसी भी प्रभावी कार्यवाही की परिणिती हमेशा अन्याय में ही खत्म होती है.’
ये उदगार उसी इंसान के हो सकते हैं, जिसने जीवन का ताप अपनी हथेलियों पर नहीं बल्कि अपनी पीढ पर सहा हो. अपने जीवन में लोगों की अपमानजनक गालियों, करीबियों
द्वारा दी गयी पीड़ाओं और परिस्तिथियों से उपजी दुर्भावनाओं को चुपचाप सहन कर किया हो.
जीवन रुपी किताब का पहला अध्याय
४ अप्रैल १९२८ के दिन कैलिफोर्निया,
अरकंसास सेंट लुइस, मिस्सौरी के लॉन्ग बीच में रहने वाले जोहानसन दम्पति के घर खुशी
का माहौल था. इस खुशगवार माहौल का एक बड़ा कारण था, डॉक्टर विवियन (बैक्सटर) के. जॉनसन जो एक अचल
संपत्ति एजेंट थे और उनकीं पत्नी ,जो एक प्रशिक्षित शल्य
नर्स थी के घर बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों वाली एक बच्ची
का जन्म हुआ था. घर में इक नये सदस्य के आने से बच्ची का एक साल बड़ा भाई बैले बेहद
प्रसन्न था. नन्हीं बच्ची अपने से एक साल बड़े भाई ‘बैले’ और अपने माता-पिता से ढेर सारा प्यार बटोर रही थी. बच्ची
का नाम रखा गया मर्गुएरिटे. नाम थोडा सा कठिन था सो अपनी तुतलाहट की वजह से बच्ची
का भाई बैली इस कठिन नाम को ठीक से उच्चारित करने में असफल था सो वह अपनी छोटी बहन
को पहले माय सिस्टर के नाम पर माय कहना शुरू किया फिर धीरे-धीरे माय, माया में
परिवर्तित होता चला गया. घर में सब चीजें
सामान्य गति से चल रही थी, चारों और का माहौल भला-चंगा था. दिन थे कि फुदकते ही
चले जा रहे थे. फिर अचानक से घर के भीतर का माहौल अपना रूप बदलने लगा. बच्ची माया
के माता और पिता के आपसी संबंध तनाव और खींचातानी की लपेट में आ गए. फलस्वरूप जब
माया तीन साल की ही थी और उसका भाई बैली चार साल का हो चुका था तब माँ-पिता के बीच
की तना-तनी के कारण दोनों के बीच तलाक हो गया. अब दोनों अलग रहने का सोचने लगे
जिसके कारण दोनों को बच्चों की जिम्मेदारी भारी लगने लगी. जिसके परिणामस्वरूप माया
के पिता ने माया और उसके भाई बैली को उनकी दादी एनी जोहनसन के पास स्टम्प्स,
अर्कांसस भेज दिया. माया की दादी का घर काफी खुले हुए लगभग जंगली इलाके में था.
कर्लिफोर्निया में माया के घर के मकाबले दक्षिण अमेरिका में स्तिथ इस शहर का
वातावरण काफी खुला हुआ था. दादी एनी, नीग्रो संप्रदाय के बीचों-बीच एक छोटी से
दूकान चलाती थी. वह एक मजबूत, धर्मपरायण और शिष्ट महिला थी, जो अपने ग्राहकों के
साथ बेहद सहजता से पेश आती. फिर भी उनकी दूकान पर आये श्वेत ग्राहक कई बार दादी से
दुर्वव्यवहार कर बैठते तब दादी के आस-पास ही मौजूद बच्ची माया को उन श्वेत ग्राहकों का बुरा बर्ताव
खूब खलता लेकिन माया की दादी अपने साथ हुए इस बर्ताव को हमेशा चुपचाप सह जाती. दादी एनी की दुकान जिसका नाम था ‘जॉनसन जनरल स्टोर’ था उसमें ग्राहकों के भोजन की सामग्री के साथ-साथ मुर्गियों के लिए मक्का, कोयला, लैम्प के लिए तेल,
अमीर लोगों के लिए प्रकाश बल्ब, जूतों के लिये फीते, हेयर ड्रेसिंग की चीजें, गुब्बारे, और फूल के बीज,
रंगीन धागे की अच्छी किस्में थी इसके अलावा ढेर सारी दैनिक जरूरतों की सामग्री उपलब्ध
रहती थी.
दादी और चाचा के साथ स्टोर के पीछे के घर रहने लगे माया और
बैली. थोड़े ही समय में माया और उसका भाई बैली दादी
के साथ स्टोर के इस कोलाहल भरे वातावरण में रच-बस गए उन्हें समझ में आने लगा कि यह स्टोर किसी और का नहीं उनका अपना है और उनकी दादी एनी भी उनकी
अच्छी दोस्त है इसलिए वे दोनों यहाँ, उनके साथ रह रहे हैं. दोनों बहन भाई दिन भर, दादी के साथ दूकान में घुमतें और अपनी दादी की मदद
करते. दोनों बच्चों ने दादी एनी को ‘मोम्मा’ नाम से पुकारना शुरू कर दिया. दिन बीतते गए और दोनों बच्चें इस खुले वातावरण
में रमते चले गए. दादी एनी
भी बच्चों के साथ खूब प्रसन्न रहती. कैलिफोर्निया का वह घर जिसमें माया
का जन्म हुआ था माया के अरकंसास के उस दादी के घर से लगभग एक दुनिया जितनी दूरी पर था जिसमें माया बड़ी हुई थी. दोनों महिलाएं जैसे
दो धुरियों पर रहने वाली महिलाएं थी. माया की माँ अपने सीधे बालों को एक स्टाइलिश बॉब में बांधती थी. जबकि माया की दादी, माहिलाओं के खुले घुंघराले बालों में विश्वास नहीं करती थी. इसलिए माया अपने प्राकृतिक बालों से गुंथी हुई चोटियों के साथ बढ़ती गयी. घर में अक्सर दादी माँ रेडियो चला देती जिस पर समाचार, धार्मिक संगीत, गिरोह के दर्द, और लोन रेंजर के गीत चल रहे होते और कैलिफोर्निया में रहने वाली माया की माँ एक आधुनिक महिला
थी वह लिपस्टिक और रुज लगाती और रिकार्ड प्लेयर पर जोर से ब्लूज़ संगीत और जाज़ संगीत चलाती. माया की माँ का
घर बहुत से लोगों से भरा होता था जो बहुत हंसते और जोर-जोर से बातें करते. जिनमे बच्ची माया निश्चित तौर पर शामिल नहीं होती थी. उस वक्त माया अपने हाथों को अपनी पीठ के पीछे लगाते हुए अपने बालों की चोटियों को पीछे कर एक ईसाई गीत गाते हुए अपने संसार में चली जाती.
पाँच साल के बाद, लगभग
वर्ष १९३५ में एक दिन अचानक माया और बैली के पिता स्टाप्स में उन दोनों बच्चों कों
लिवाने आये, लेकिन दोनों की बच्चों ने अपने पिता का स्वागत हंसी खुशी नहीं किया और
फिर इतने साल बाद अपने पिता से नजरें मिला पाना दोनों बहन- भाई के लिए कतई सुखदाई नहीं
था. पिता उन्हें फिर उनकी माँ के पास सेंट लौईस ले आये. इस बार घर में माँ के अलावा भी कई तरह के
लोग थे और अब तक माँ भी माया की स्मृति में धुंधली हो चुकी थी. इस माँ से माया और उसका भाई का कोई खास परिचय नहीं था और
इस घर में माँ की दादी बैक्सटर और माँ के तीन बिगडैल भाई भी घर में थे. इस नए घर के वातावरण और घर के नए सदस्यों
से परिचित होने में माया को काफी समय लगा.
इस बार अपने पिता की जगह घर में एक नया आदमी मौजूद था, जिसने माया कभी पहले
नहीं मिली थी. इस अपरिचित आदमी का नाम ‘मिस्टर फ्रीमन’ था. पहले दिन से फ्रीमन नाम का यह अजनबी, बच्ची माया को अपना सा कभी नहीं
लगा. माया अब ज्यादा वक्त अपने भाई बैली के साथ ही रहती. दोनों ही दूसरे को जानते
थे बस और बाकी के घर से अलग हो वे साथ-साथ खलते-कूदते. इन दिन माँ के इस नए प्रेमी
ने माया को अकेला पा कर उसके साथ दुर्व्यवहार किया. बच्ची माया उस आदमी की हरकत पर
बुरी तरह से सकपका गयी. उस दिन के बाद माया उस आदमी से दूर-दूर रहने लगी.
एक दिन, जब माया अपने बैड पर अकेली थी मिस्टर फ्रीमन नामक उसी आदमी ने माया के
साथ बलात्कार किया और माया को धमकी देते हुए कहा कि यदि उसने किसी को इस घटना के
बारे में बताया तो वह उसके प्यारे भाई बैली की हत्या कर देगा.
माया इस धमकी से बुरी तरह से डर गयी. एक खौफ माया के मन-मस्तिष्क पर हावी होता
चला गया. वह भीतर ही भीतर डर से काँपने लगी.
कई दिनों तक माया डर के कारण मानसिक और शारीरिक सदमे में रही, बिल्कुल चुपचाप
सहमी, सिमटी सी. जबकि पूरा का पूरा घर अपने में व्यस्त था, दूसरी और माया के मन
में उथल पुथल मच रही थी, डर ने उसे और भी अकेला बना दिया था. वह पहले की तरह बैली
की साथ उछल-कूद नहीं मचाती थी. जब बच्ची माया की परेशानी ज्यादा बढ़ने लगी तो एक
दिन माया ने अपने साथ घटी उस डरावनी रात की घटना को अपने भाई बैली के साथ साँझा
किया. भाई बैली, जो खुद भी एक बच्चा था ने सबसे पहले अपनी माँ को बताया.
लगातार कई दिनों से इस घटना के बोझ को सहने के कारण माया इस कदर बीमार और
जख्मी हो गयी थी की उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ा और तब हस्पताल में बलात्कार की
पुष्टि हो सकी. इस पुष्टि से माया की माँ को गहरा सदमा लगा घर आकर माया की माँ और और
भाई ने माया के पहने हुए उन पुराने कपड़ों को खोजा जो माया ने बलात्कार के दिन पहन
रखे थे.
माँ ने फ़ौरन पुलिस को इस घटना की जानकारी दी. लेकिन मिस्टर फ्रीमन को महज एक
साल और एक दिन की सजा हुई. किसी तरह से उसके वकील ने उसे दांव-पेच लगा कर छुडा
लिया था. जेल से वापिस लौटने के कुछ ही दिन बाद मिस्टर फ्रीमन पीछे के कसाईखाने में
मृत पाया गया. सबको यही संदेह था कि माया के अंकलों में मिलकर मिस्टर फ्रीमैन की
हत्या की है.
मिस्टर फ्रीमेन की लाश मिलने पर घर में सभी लोगों के मन में भय व्याप्त हो गया
सबसे ज्यादा असर पड़ा बच्ची माया के दिलों-दिमागमन पर. हँसती गाती खेलती माया एकदम
से गूंगी गुड़ियां बन गयी. सहेलियों की
ठिठोलियां, भाई बैली की चुहलबाजी, माँ का दुलार कोई भी माया के मन में भय से
लिपटी उदासी को दूर ना कर सका.
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कुछ
ही दिनों बाद माया और उनके भाई बैली को दादी एनी के पास स्टम्प्स, अर्कांसस भेज दिया गया. तब तक माया एक चुलबुली बच्ची से पत्थर में तब्दील हो चुकी थी.
यही वक्त था जब माया अन्जेलों को अपने भाई ‘बैली’ से सबसे जायदा भावनात्मक सहारा मिला. उसी समय माया अपनी अश्वेत शिक्षिका मिसिज़ बर्था फ्लोवेर से रूबरू हुई, साढ़े
बारह साल की बेजुबान हो चुकी माया को मिसेज़ फ्लोवेर ने, साहित्य से परिचय करवाया.
वे माया को प्रेरित करवाने वाली कवितायें ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने को कहती, लगातार इस प्रक्रिया
को दोहराते-दोहराते माया के भीतर आत्मविश्वास बढ़ता गया और वे जीवन के रंग में फिर
से घुलने लगी. मिसेज़ बर्था फ्लोवेर्स ने डिकइंस, शेक्सपीयर, डग्लास जोहानसन, जेमस
वेल्डन, डब्लू. ई. बी डू बोईस और पौल लावरेंस दुन्बेर और अश्वेत महिला कलाकार जैसे
फ्रांसेस हार्पर, एनी स्पेंसर एंड जेस्सी फौसेट के साहित्य से माया कों परिचत
करवाया, माया की साहित्य में रूचि बढ़ती गयी. १९४० में लाफयेत्ते काउंटी ट्रेनिंग
स्कूल, से माया के स्नातक किया. बड़ी होने के बाद मे माया ने वर्ष १९८६ में मिसेज फ्लोवेर्स कों समर्पित करते हुए बच्चों पर
एक भी किताब लिखी.
सन १९४१ के दौर में माया अन्जेलों के घर के बाहर और घर के भीतर दोनों तरफ एक
अराजक माहौल जन्म ले चुका था. विश्व युद्ध हो चुका था. उस समय माया की उम्र १४ साल
की थी. एक बच्चे के हिसाब से यह उम्र खेलने कदने की थी, जीवन से टक्कर लेने की
नहीं. अपनी दादी के साथ माया खूब घुलमिल गयी थी. दादी से माया ने अपूर्व साहस की
शिक्षा ली. अपने बचपन का काफी समय अपनी दादी के पास बिताने के फलस्वरूप माया के सहज संबंध अपनी माँ के साथ उस तरह से विकसित नहीं हो पाये थे जितने कि अपनी दादी मिसेस एनी हेन्डरसन के साथ. दादी के साथ माया
के खूबसूरत संबंध थे बिलकुल एक अनुभवी सखी की तरह खुशनुमा. बचपन में अपनी दादी ‘मिसेज़ हेन्डरसन’ से माया ने कर्मठता का जो पाठ सीखा वह उनके आगे आने वाले जीवन में भी हमेशा काम आता रहा. इसके बावजूद माया की माँ ने छाया पूरी उम्र माया के साथ-साथ चलती हैं क्योंकि माँ ही थी जिन्होंने माया के जीवन में आई जटिल
परिस्तिथियाँ से लड़ने की हिम्मत दी थी और जीवन के लिए कैसे खुद को तैयार किया जाता
है यह भी माँ ने ही बतलाया. बाद में जब माया अन्जेलो ने अपने बचपन को एक बार फिर से जीते
हुए सिलसिलेवार अपने आत्म संस्मरण लिखे तो इन दोनों महिलाओं के अपने जीवन में योगदान
को कई बार रेखांकित किया.
यह भी सच है कि बचपन की छाया पूरी उम्र आपके साथ-साथ चलती हैं और हम तमाम उम्र उस परछाई के दबाव में ही रहते हैं. अपनी आने वाली पूरी उम्र में माया अपने बचपन की उस काली परछाईं से दूर नहीं
जा पाई, जिस ने माया को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया था और माँ-पिता का
रिश्ता टूटने के बाद माया का बचपन एक विस्थापित जीवन जैसा ही रहा. इन दोनों घटनाओं का माया के मस्तिक्ष पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा.
बाद में कुछ समझदार होने पर माया को पता चला कि उनकें बचपन के उन दिनों ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ में रहने वाले लगभग सभी अश्वेत लोग अपने बच्चों को कहीं दूर के रिश्तेदारों के पास भेज दिया करते थे क्योंकि उस समय अमरीका बुरी तरह से आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया था.
जैसे-जैसे माया बड़ी हो रही थी वैसे-वैसे उसने अपने अश्वेत
होने के दंश को बार-बार सहती चली
जाती थी. कई अवसरों पर माया को उनके अश्वेत
होने
का अहसास करवाया जाने लगा. जब बच्ची माया ने शहर की एक श्वेत महिला मिसेज़ कल्लियन के घर काम
कारना शुरू
किया
जो उसे अश्वेत होने के कारण हीनताबोध करवाया जाने लगा. मिसेज़
कल्लियन
एक अशिष्ट महिला
थी जो माया के नाम ‘मर्गएरिते’ को बिगाड
कर बोलती
थी जिससे
माया को बेहद बुरा लगता था. एक दिन इसी बात पर नाराज़ हो, माया
ने मिसेज़ कल्लिनन की पसंदीदा कटलरी तोड़
दी. माया
की योजना
सफल हुई
और फिर
मिसिज़ कल्लिनन ने माया का नाम ठीक
से उच्चारित करना
शुरू कर दिया और एक बार जब माया के दांतों में ज्यादा मिठाई
खाने से दो छेद
हो गए थे और उनमे दर्द होने लगा था. उस वक्त स्टम्प्स में
कोई
अश्वेत दंत चिकित्सक नहीं था तो दादी मोम्मा, माया
को श्वेत
दंत चिकित्सक के पास
ले कर गई लेकिन
दर्द से पीड़ित माया
के इलाज के लिए उस
श्वेत डॉक्टर ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मैं एक कुत्ते का इलाज कर सकता हूं परन्तुं
एक नीग्रो का नहीं.
इस तरह उस श्वेत डॉक्टर के साफ़ इनकार और प्रताडना के बाद
मोम्मा को कोसों दूर टेक्सस, तेक्सार्काना के एक अश्वेत दंत चिकित्सक के पास माया
को ले जाने को मजबूर हो जाना पड़ा.
स्कूल में पढते समय भी माया ने रंगभेद को सबसे ज्यादा नजदीक से
महसूस किया, विद्यार्थी माया के लिए वह एक कठिन समय था. वह जिस जॉर्ज
वॉशिंगटन हाई स्कूल में पढ़ा करती थी वहाँ सिर्फ तीन
अश्वेत छात्र थे. उस स्कूल में एक उत्कृष्ट शिक्षिका थी जिनका नाम था मिस किर्विन जिन्होंने माया
को प्रतिकूल प्रभावों से बचाते हुए आगे बढ़ने को प्रेरित किया और माया
को नृत्य और नाटक की
कक्षाएं लेने के लिए
भी मिस किर्विन ने ही प्रेरित किया.
एक बार स्कूल में माया की कक्षा का एक छात्र जिसका नाम हेनरी
रीड था "नीग्रों का वह राष्ट्रीय
गान, गाने लगा जिस पर प्रतिबंध लगा हुआ था. लोग इस गीत हो सुनते ही उत्तेजित हो कर
ग्रुप में शामिल होकर गाने लगे. तभी वहाँ मौजूद सभी लोग खासे उत्साहित हो गए. अपने
स्कूल में घटी इस घटना से संभवतः पहली बार माया को लगा
कि वह भी अश्वेत समुदाय का एक हिस्सा है.
ऐसा ही एक अवसर उस वक्त आया जब माया आठवीं कक्षा में थी. तब
विदाई दिवस पर स्कूल में एक अधीक्षक, श्री एडवर्ड डोंनलीवी आये और अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि अश्वेत स्कूल की कुछ स्नातकों में खिलाडी बनने
की योग्यता है और अश्वेत लड़के अच्छा काम कर सकते हैं.
लड़कियों के
बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा. माया और दूसरी लड़कियां अधीक्षक के इस बर्ताव से स्तब्ध
रह गयी. उस दिन के जश्न समारोह ने माया को एक बार फिर से यह अहसास दिलवाया कि अश्वेत लोगों के लिए सब चीजें पहले से ही तय की
हुई हैं. माया और उनका भाई बैली यह नहीं समझ पाते कि ये श्वेत लोग, काले
लोगों से इतना नफरत क्यों करते हैं. अश्वेत लोगों ने गोरे लोगो का क्या बिगाड़ा है.
दोनों बच्चे मोम्मा और अपने चाचा विल्ली से इस तरह के असामान्य बर्ताव के बारे में
प्रश्न पूछते जिसका जवाब देने से दादी और
चाचा दोनों ही कतराते क्योंकि दोनों खुद ही नहीं जानते थे की उनके साथ दोयम दर्जे
का बर्ताव क्यों होता है. बढ़ती उम्र के साथ माया में धार्मिक- संस्कार, शिष्टाचार
के साथ-साथ अफ्रीकन-अमेरिकन जीवन के परपरागत ढर्रे पर आस्था गहरी होती चली गयी.
जब स्टम्प्स, में हालत बिगड़ने लगे मोम्मा और चाचा विल्ली ने दोनों बच्चों को रेलगाड़ी से कैलिफोर्निया भेजने का फैसला किया. माया तब तक अपने जीवन के चौदहवें वर्ष पूरे कर चुकी थी. दोनों भाई बहन फिर से अपनी माँ के पास रहने आ गए. इस बीच माया की माँ ने दूसरी शादी कर ली थी. यही वह पिता था जिसे माया ने एक पिता के
रूप में अच्छी तरह से जाना. माया ने वर्ष १९४२ में कैलिफोर्निया लेबर स्कूल में रातकालीन विद्यार्थी के रूप में दाखिला ले लिया.इसी स्कूल में पढते हुए माया ने छात्रवृत्ति प्राप्त कर सेंट लेबर स्कूल में डांस और ड्रामा सीखा . लेबर स्कूल में पढते हुए माया प्रगतिशील विचारधारा से दो चार हुई.
केर्लिफोर्निया में कुछ समय बिताने के बाद माया के माता-पिता ने स्थान परिवर्तन का
निर्णय लिया और पूरा परिवार सन फ्रांसिस्को चला गया और कुछ समय के लिए माया का परिवार ऑकलैंड
में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहने लगा.
जीवन भर माया अपने भाई की चहेती बहन बनी रही. भाई बैली देखने में आकर्षक था और वही माया अपने
आप को अनाकर्षक समझती थी. माया अपनी कलपनाओं
में खुद को खूब गौरी और सुंदर दिखाई युवती के रूप में देखती. माया और बैली दोनों एक दूसरे के स्वभाव की अच्छाई और बुराई दोनों से
परिचित थे.
माया खूब लगन से पढ़ती रही और कक्षाये पास करती रही, उसने
अपने आने वाले जीवन में अपनी दादी के विचारों पर खूब अमल किया,
उनकी दादी कहा करती थी ‘जब तुम किसी से कुछ लेते हो तो, बदले में उसे कुछ
दो’ और यह भी कहती ‘तुमने कुछ सीखा है तो तुम दूसरों को सिखाओ’. इन उच्च विचारों ने ही माया को सबल बनाया.
माँ के पास लौटने के बाद माया का मन अपने जन्मदाता पिता विवियन जोहंसान से
मिलने को मन किया. तब माया गर्मियों के दिनों में दक्षिणी
कैलिफोर्निया जाने के लिए ट्रेन से अपने पिता के पास चली जाती है जहाँ पिता अपनी प्रेमिका, डालोरेस के साथ रह रहे होते हैं. तब पिता, माया के साथ मेक्सिको जाने का कार्यक्रम बनाते हैं जिससे उनकी प्रेमिका डालोरेस चिड जाती है. वह पिता के अपनी बेटी से दुलार से ईर्ष्या करने लगती है.
वे तीनों एक छोटे से पहाड़ी शहर में ड्राइव करते हुए पहुंचते है, जहाँ माया के पिताजी पिकनिक से अचानक गायब हो कर
एक शराबखाने में पहुंच जाते हैं और जब वापस आते है तो नशे में बुरी तरह से धुत होते हैं जिस कारण वापसी के वक्त गाड़ी माया
को चलानी पड़ती है और इस क्रम में माया को चोट लग जाती है. घर वापिस आने पर पिता की
प्रेमिका तूफ़ान मचा देती है और कहती है कि वह माया को अपने
आस-पास भी नहीं देखना चाहती और इसी गुस्से में वह माया की माँ के लिए अपशब्द बोलती
है तो माया उसे जवाब में थप्पड़ मारती है और वहाँ
से जल्द ही निकल जाती है. इस घटना से माया जान
लेती है की उसके पिता अब दूसरे जीवन में लौट गए हैं और अपनी बेटी के साथ जयादा दूर
नहीं चल सकते.
माया एन्जेलो के जीवन का दूसरा युवा और संघर्षपूर्ण अध्याय
माया सत्रह साल की युवती बन चुकी थी. छह फुट लंबी युवती के रूप में माया के पास
ढेरों सपने थे जिन्हें वे एक एक कर पूरा होते हुए देखना चाहती थी. इस उम्र की ढेर
सारी उलझनें भी माया के साथ थी और ढेर सारे सवाल भी थे. अपने युवावस्था के ढेरों
सवालों से माया खुद ही जूझ रही थी. युवा माया महसूस कर रही थी की उसका कद बढता ही
चला जा रहा है और शरीर एक जवान युवती के रूप में ढल नहीं पा रहा है. माया का युवा
शरीर उससे कुछ अनबुझे सवाल कर रहा था और
माया का ज्यादा समय इन सवालों से जूझते हुए ही बी़ता चला जा रहा था. एक वक्त तो माया
यह भी सोचने लगी की कहीं वह लेस्बियन तो नहीं है. एक दिन माया ने अपनी माँ से अपनी
शरीर को लेकर कुछ प्रश्न भी किये पर माँ
से भी माया को कोई माकूल जवाब नहीं मिला.
इधर माया युवा हो रही थी और उधर उनकी जैसी अश्वेत युवतियों को अफ्रीकी- अमेरिकी समाज में जो श्वेत लोगों का समाज था वह
जायदा से जायदा मार्मिक तथ्य
पेश करता चला जा रहा था जिसके कारण यूरोपीय मूल
की लड़ाई में पहले से स्थापित भव्य और विलासी मूल्यों को अश्वेतों पर
जबरन लागू करने का सिलसिला बढ़ता चला जा रहा था.
वर्ष १९४४ माया के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ क्योंकि इस
वर्ष माया आत्मनिर्भर हो कर उभरी और उन्होंने सेन
फ्रांसिस्को की पहली अश्वेत महिला ट्राम
कंडक्टर के रूप
में काम किया. इससे माया के भीतर आत्मविश्वास की बढ़ोतरी हुई. इसी वर्ष माया
की मुलाकात अपने पड़ोस के एक लड़के से हुई, एक दो बार की बातचीत के
बाद एक दिन पड़ोस के उस लड़के के आमन्त्रण को स्वीकारते हुए माया उसके बताए कमरे में
चली गयी और लड़कपन में गुजरे उस दिन के बाद ही माया के जीवन ने करवट लेनी शुरू कर
दी और वह दिन भी आया जब उस रात के परिणामस्वरुप माया के शरीर में परिवर्तन उजागर
होने लगे.
इसी अजीबो-गरीब अवस्था में माया के दिन असमंजस से बी़त रहे
थे कि माया ने इस बार भी अपने भाई बैली को अपना राजदार बनाते हुए उसे इस बात का
रहस्य उजागर किया कि वह गर्भवती है. तब भाई बैली ने माया को यह वयस्क सलाह देते
हुए कहा कि वह पहले अपनी पढाई पूरी कर ले फिर घर पर सबको इस परिस्थिति की खबर दे. माया ने अपने भाई की सलाह
मानते हुए ऐसा ही किया.
वह दिन भी आया जब माया ने इस घटना की जानकारी अपने
माता-पिता को देने का मन बनाया. जिस दिन माया ने अपने गर्भवती होने की खबर दी उस
दिन माया के दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी उन्होंने डरते- डरते अपने गर्भवती होने की
सूचना एक पत्र में लिख कर अपने सौतेले पिता के तकिये के नीचे रख दी. पिता ने अथाह शांति
से उस पत्र को पढ़ा और माया की माँ को माया का लिखा वह पत्र दिखाया. माया को इस बात
से सुकून मिला की माँ और पिता, दोनों ने माया के लिखे पत्र की जानकारी पर कोई
हंगामा नहीं किया.
उसी वर्ष यानि १९४५ में माया ‘सन फ्रांसिस्को’ के ‘जॉर्ज वाशिंगटन हाई स्कूल’ से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुकी थी
और १७ साल की वय में स्कूल पूरा
करने तीन हफ्ते में माया एक प्यारे से बेटे की माँ भी बन गयी थी.
प्रसव के दौरान माया की माँ
जो की एक प्रशिक्षित नर्स थी, ने का हौंसला बढ़ाया और माया की हर तरह से मदद की, अपूर्व धर्य के साथ माया अपने
प्रसव काल से बाहर निकली. १९४४ की गर्मियों में जन्मे इस ने बच्चे का नाम ‘क्लाइड बेली जॉनसन’ रखा गया. आने वाले समय में माया ने एकल माँ के रूप में जीवन की कई सीढिया चढ़ीं.
अपनी राह खुद चुनने के लिए माया ने अपने बेटे के साथ अपनी माँ कर घर छोड दिया.
सत्रह साल से उन्नीस साल की उम्र के बीच का जीवन गरीबी और अपराध की सामाजिकता के अधीन रह कर और एक एकल
माँ के रूप में माया ने जिया.
अपने बल पर जीवन का निर्माण करती माया ने अपनी उम्र के इस
महतवपूर्ण पड़ाव में कई रोज़गार अपनाये. यहाँ तक की वेश्याओं के
लिए बिजनेस मैनेजर और फ्रंट-वुमन के रूप
में भी माया को काम करना पड़ा, रेस्टोरेंट में भोजन पकाने का काम किया. कई
नौकरियों की तलाश में वे भटकी उसी श्रृंखला में वे कई शहरों में गयी. ये नौकरियां उनके जीवन संघर्ष का ही परिणाम थी. क्लब सिंगर, पत्रकार और शिक्षिका बनीं बन जीवन और दुनियादारी को और नजदीक से जाना. लेकिन संघर्ष के इन दिनों में भी माया कभी अपने
संगीत, नृत्य और कविताओं से अलग नहीं हुई.
इस दौर में माया ने सबसे ज्यादा संकटों का सामना किया. अपने निडर होने और अपने जुझारूपन की वजह से माया अन्जेलो ने हर नए काम में अपनी किस्मत आजमाई. अपनी नई-नई नौकरियों की वजह से माया को कई स्थान बदलने पड़े.
कुछ समय तक किसी एक नौकरी की वजह से माया
एक जगह टिकती तो फिर किसी नई नौकरी के सिलसिले में उन्हें अपनी रिहाइश बदलनी पड़ती. इसी वजह से माया के व्यक्तितव में और भी मजबूती आती चली गयी. एक बार जब माया ने अपनी कमर कस् ली तो उनका भाग्य उन्हे सेंट लुएस (अमेरिका), मिस्सौरी( अमेरिका), स्टंप्स, अरकंसास( अमेरिका), सन फ्रांसिस्को (कैलिफोर्निया), ईजिपट, घाना, ब्रूक्ल्यं (न्यू योर्क), लोस एंजल्स (कैलिफोर्निया), नोर्थ कैरोलिना लेकर गया और हर जगह माया अन्जेलो ने अलग-अलग जिम्मेदारी संभाली. १७ से १९ साल की उम्र एकल माँ के रूप में माया अन्जेलो ने अपने जीवन में कई उतार-चढाव सहे. बिना किसी औपचारिक शिक्षा और किसी स्थाई नौकरी के माया ने अपने बेटे का पालन-पोषण किया. माया के जीवन की हैरतअंगेज कहानी एक बार फिर से एक महिला के जीवन की कटु सच्चाई को दर्शाती है
कि प्रेम और शारीरिक संबंधों के मामलों में एक महिला अपने जीवन में बहुत कुछ सहती है जबकि उसी संबंधो से उपजी घटना का पुरुष पर रत्ती भर भी असर नहीं पड़ता. अपनी आत्म-कथाओं में तमाम खुलासे करने के बावजूद कभी माया अन्जेलो ने अपने बेटे के पिता का नाम जग जाहिर नहीं किया. शायद इसलिए भी कि उन्हें उसकी जरुरत कभी नहीं लगी हो और सच में जरुरत थी भी नहीं. उन्होंने एकल माँ की तरह अपने बच्चे का पालन-पोषण किया. माया अन्जेलो ने अपने जीवन के
तमाम उतार-चड़ाव के बावजूद अपने बेटे पर पूरी तरह से निगरानी रखी.
अपने बेटे के पालन पोषण के लिए माया-अन्जेलो रात के क्लब
में नर्तकी बनी, ‘क्रियोल कैफे’ में रसोइया बनी और एक बॉडी शॉप में पैंट उतारने का काम किया 1953 में, माया अन्जेलो ने सैन फ्रांसिस्को के क्लब में प्रदर्शन के दौरान अपना नाम माया -अन्जेलो रख लिया.
१९५४ से लेकर १९५५ तक ‘एवेरी मेन’ ओपेरा कंपनी के साथ
अंतरराष्ट्रीय स्तर का दौरा किया,
माया को जिंदगी,
जीने के नए-नए गुर तो सीखा ही रही थी साथ-साथ माया एन्जेलो ने तीन शादियाँ की और तीनों ही कुछ समय के
बाद
टूट गयी. पहली
शादी उन्होनें
१९५० में
श्वेत व्यक्ति ‘टॉस अन्गेलोस तोष” से की, तोष ग्रीक के बिजली मिस्त्री और एक नाविक भी रह चुके थे. रचनात्मक
दृष्टी से वर्ष १९५० काफी अच्छा था इस वर्ष के दौरान माया अन्जेलो, हार्लेम राएटर
गिल्ड से जुडी यहाँ माया की मुलाकात जेमस बल्डविन और दूसरे प्रमुख लेखकों से हुई.
जिससे माया को लेखन में रूचि बढ़ी कविता पढ़ना तो उन्हें शुरू से ही प्रिय था. लेखन
और पठन-पठान के साथ-साथ नृत्य भी माया के जीवन को
गति देता था. १९५० में माया अपना नृत्य ग्रुप बनाने में सफल
हुई. लंबे समय से नृत्य की उपासिका, माया ने अपने अथक प्रयासों से इस नृत्य ग्रुप को बनाया, १९५० में माया ‘काल्य्प्सो शैली’ के गीत और नृत्य
की क्लबों में प्रसिद्ध हो चुकी थी. उन्होंने कई क्लबों के लिए काम करने के दौरान लगभग २२ देशों का दौरा किया. इसके बाद माया फिर से रात्री कालीन क्लब में सक्रिय हो गयी. एक कुशल नर्तकी के
रूप में माया ने खूब प्रसिद्धि पाई. उनका ग्रुप ‘द ब्लैकस’ जिसका शुभारंभ १९६१ को हुआ था, ने ऑफ-ब्रोडवे नाटक का पुरूस्कार जीता.
माया एन्जेलों ने सयुक्त राष्ट्र और बहार के सिविल अधिकारों सम्बन्धी
गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया और उसी वक्त १९६१ में माया अफ्रीका के नागरिक
अधिकार कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी ‘वुसुम्जी मके’ के संपर्क में आई. इन दोनों के बीच की नजदीकी प्रगाढ़ हुई और ये दोनों विवाह बंधन में बंध गए लेकिन इस रिश्ते की
समय-सीमा सिर्फ एक साल की ही थी. इसी समय के आस- पास माया एन्जेलो ने सक्रिय राजनीति में भी अपने पाँव बढ़ाने शुरू कर दिए.
दरअसल हुआ ये कि एक बार माया अपनी सहेली के साथ ‘मार्टिन लुथर किंग’ के भाषण सुनने गई थी . इस भाषण के प्रमुख वक्ता थे जुनियर मार्टिन
लुथर किंग. मार्टिन लुथर के ओजस्वी भाषण से माया-अन्जेलो ‘बहुत प्रभावित हुई. इसके बाद माया ने अफ्रीकन-अमेरिका और अफ्रीकन रैलियों में भाग लेना शुरू किया. मार्टिन लुथर किंग जूनियर ने माया एन्जेलो की राजनीति
और समाज सेवा के प्रति रुझान को देख कर उनसे सिविल अधिकारों में रूचि के साथ-साथ माया ने लिखना शुरू किया और उन्होंने
संपादक के रूप में काम करना किया.
‘दक्षिण क्रिस्टियन लीडरशिप कांफेरेंस’ की समन्वयक बनने का आग्रह किया.’ माया राजनीति में दिलचस्पी ले रही थी कि १९६८ में मार्टिन लुथेर किंग की माया एन्जेलो के जन्मदिन ४ अप्रैल को हत्या हो गयी जिस का सदमा माया को भीतर तक भेद गया. तब उस दौरान माया के सबसे नजदीकी दोस्त लेखक ‘जेम्स बल्डविन’ के उन्हे सहारा दिया.
वर्ष १९६८ माया एन्जेलो के लिए बेहद त्रासद से भरा हुआ साल था जब पूरे वर्ष वे गहरे दुःख, उदासी के आवरण में वे लिपटी रहीं. फिर इस बुरे समय से बाहर आ कर माया एन्जेलो ने बिना किसी तजुर्बे के फिल्म निर्माण की और कदम बढ़ाया. यहाँ भी उन्होंने जम कर काम किया और सफलता पाई. उन्होंने ‘ब्लाकेस’, ‘ब्लुएस’, ‘ब्लैक’ नाम की दस श्रंखलाओ का वृतचित्र बनाया. जिनमें ‘ब्लू म्यूजिक’ और ब्लैक अमेरिकन-अफ्रिकनस विरासत को रेखांकित किया था.
माया एन्जेलो के करीबी मित्रों में ज्यादातर अश्वेत लोग थे जिनकी समस्याए माया को अपनी ही समस्या लगती थी यही कारण भी रहा कि माया के लेखन के विषयों में परिवार, रंगभेद, अस्मिता के संकट साफ़ तौर पर रेखांकित किये जा सकते हैं.
वर्ष १९६९ का वह दिन माया के जीवन में अद्भुत मोड़ ले कर आया था जब एक डिनर पार्टी- जिसमे माया एन्जेलों के करीबी दोस्त ‘जेम्स बाल्डविन’, कार्टूनिस्ट ‘जूल्स फेइफ्फेर’ और उनकी पत्नी, प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान ‘रेण्डम हाउस’ के मालिक ‘रोबर्ट लूमिस’ एकत्रित थे.वहीँ रेण्डम हाउस के मिस्टर रोबर्ट ने माया एन्जेलो के विविधता से भरे जीवन को जानते हुए उन्हें अपनी आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया और इस तरह १९६९ में माया अन्जेलो की पहली आत्मकथा (मैं जानती हूँ एक बंदी पक्षी क्यों गाता है) प्रकाशित हुई. इस आत्मकथा के अस्तित्व में आते ही माया एन्जेलो की ख्याति रातों-रात चारों कोनों में फ़ैल गयी. इससे माया को अपने लेखन के प्रति आश्वस्ति मिली और उन्होंने एक के बाद एक कर पाँच आत्म कथाओं की लंबी श्रंखला लिख डाली. ये माया के जीवन का सुनहरा और समृद्ध मोड था जिस के प्रति माया खूब लालायित
भी थी.
संयुक्त अमेरिका में लौटते ही माया
ने टेलीविज़न के लिए सीरीज़ लिखी और साथ में कई गीत भी लिखे.
लेकिन कुछ की समय में माया के शादीशुदा जीवन में बिखराव आता चला गया. अपने दूसरे
पति से माया कई दूरी बढने लगी और अन्ततःदोनों के बीच में अलगाव हो गया.
माया के निजी रिश्तों में ठहराव कभी नहीं आया. १९७३ में ऑस्ट्रलियन लेखिका ‘जर्मैने ग्रीर’ के पति मिस्टर ‘पुल दू फ़ू’
से विवाह किया और ये नव दम्पति बर्कले में एक छोटे से घर में चले गए. पर ये रिश्ता भी पहले दो रिश्तों की तरह अल्पकालीन निकला इन
सभी निजी संबंधों ने माया को एक तरफ तो सम्रद्ध किया पर दूसरी तरफ जब ये रिश्ते टूटे तो माया एन्जेलो को भावनात्मक रूप से काफी धक्का लगा.
१९७८ में माया गहरी अवसाद की मरीज़ बन गयी. इसी अवस्था में माया ने अपने मैनेजर
को नौकरी से निकाल दिया और अपने तीसरे पति से तलाक ले लिया. माया की जिंदगी का यह
सबसे दुखी समय था. जब माया अपनी निजी जीवन में चोट पर चोट खाए चली जा रही थी.
लेकिन माया एंजेलो को खुद ही अवसाद की
दुनिया से बाहर निकलने की कोशिश की और माया सफल भी हुई. हर रिश्ते की टूटन ने माया
को और मजबूत बनाया और दुनिया से लड़ने का साहस भी प्रदान किया.
इस बार जब माया एंजेलो कई सालों के गहरे
अवसाद से बाहर आई तो उन्होंने अपने दूसरे आत्मसंस्मरण पर काम करना आरंभ कर दिया और
माया एन्जेलो ने १९७४ में अपनी दूसरी आत्मकथा पूरी कर ली. इस दूसरे आत्मसंस्मरण ने
भी खूब प्रसिद्धि पाई और इसके प्रतियाँ भी हाथों-हाथ बिकी. इससे माया के भीतर के
रचनाकार को मजबूती मिली और फिर माया ने अपनी जीवन की बची हुई कतरनों को समेटा और
तीसरे संग्रह की तैयारी के लिए अपनी कमर कस ली. आत्म संस्मरण के साथ ही माया कविता
में भी अपने लेखन की धार तेज़ कर रही थी. वर्ष १९७६ में माया एंजेलो का तीसरा कविता
संग्रह भी बाजार में आ चुका था.
१९८१ में माया अन्जेलो के नाम को अमरीका
की सौ प्रभावशाली महिलाओं में शुमार किया गया.
माया एन्जेलो ने अपनी आत्मकथाओं को लिखते हुए अपनी आशा,
निराशा और उनके विमोचन का अच्छी तरह से ख्याल रखा. उन्होंने अपनी भाषा को दिशाज्ञान के तौर पर स्पष्ट रूप से उकेरा. अपनी इन सशक्त आत्मकथाओं ने उन्हें ‘सयुक्त राज्य अमेरिका’ की अनुकरणीय रोल मॉडल बना दिया.
माया एन्जेलो का स्वयं यह मानना है कि विगत के अनुभव आपकी पहचान को विस्तृत आकार देते हैं. विश्व भर में माया एन्जेलो की इन अनूठी और
बुलंद आत्मकथाओं प्रचार-प्रसार से साहित्य की इस अनूठी विधा को और भी व्यापक पहचान और मजबूती मिली.
जब माया ने उनकी पहली आत्मकथा (१९६९) में माया अन्जेलों के जीवन के तीन से लेकर सोलह साल तक के जीवन की कहानी दर्ज करने का साहस उठाया और अपने बचपन की तमाम घटनाओं का लेखा-जोखा उन्होंने अपनी इस आत्मकथा में लिखा तो सब चकित रह गए. अपने
जीवन का एक-एक कोना दुनिया के सामने पूरी तरह से खोल दिया. लेखन की इस अनोखी विधा
से लोग अचंभित रह गये और पाठकों ने माया द्वारा लिखे आत्मकथा के इस पहले खंड से माया को विश्वव्यापी लोकप्रियता दिलवाई. पहली बार किसी अश्वेत महिला ने अपने जीवन की निजी घटनाओं को दुनिया के सामने रखा था. माया समूचे संसार की अश्वेत महिलाओं के लिए एक आदर्श महिला के रूप में उभर कर आईं. अपनी इस पहली आत्मकथा में उन्होंने आत्मकथाओं की पारंपरिक सरंचनाओं को अपनाने से इनकार करते
हुए आत्मकथा का आलोचनात्मक पक्ष उभारा और आत्मकथा के छोटे से मैदान को और अधिक विस्तृत किया.
यह भी सच है कि माया एन्जेलों की पाँचों आत्मकथायें अतीत की झाड़-पोंछ नहीं हैं,
बल्कि अतीत का रूपांतरण हैं. खुद एक निडर महिला की तरह माया एन्जेलो अतीत से कभी नहीं भागी बल्कि उन्होंने बार-बार अतीत में प्रवेश किया ताकि उन्हें अतीत से कुछ सबक मिल सके.
उनका लेखन साफ़ और
पारदर्शी है क्योंकि वे अपने किसी अनुभव को छुपाती नहीं है बल्कि अपने अतीत से आत्म ज्ञान का अनुभव लेती हैं.
जीवन के इन्हीं व्यापक अनुभवों के कारण माया एन्जेलो एक अंतर्मुखी और शर्मीली लड़की से खोल से निकल कर, एक मजबूत और आत्मविश्वासी लड़की बन कर उभरीं. जब माया एन्जेलो छोटी बच्ची थी तो वह एक लम्बी सुनहरे बालों वाली श्वेत लडकी बनना चाहती थी पर जीवन के पूर्वार्थ में वह एक ऐसी स्वाभिमानी अश्वेत लडकी के रूप में विकसित हुई जिसे अपने काले रंग और अपनी जाति पर बेहद गर्व था.
लेकिन समाज का वह हिस्सा जो हर नयी चीज़ को खदेड देना चाहता
है उसने माया को भी निराश कर देना चाहा. तभी माया के पहले आत्मकथा पर खासा विवाद भी हुआ. लेकिन विवाद के क्या कारण
थे, सेंसर बोर्ड द्वारा प्रतिबद्ध और सूचीबद्ध कारणों में विवाद की इस व्याख्या का खुलासा भी नहीं किया गया. इसके बावजूद इस पहले आत्मकथा खंड को आशातीत सफलता मिली. क्योंकि इस में जातिगत सवालों को मार्मिक ढंग से उठाया गया है. दक्षिण में तो यह आत्मकथा संस्करण ज्यादा विवादित रहा जहाँ का नस्लीय तनाव उस समय ऐतिहासिक था.
१९७३ में ऑस्ट्रलियन लेखिका ‘जर्मैने ग्रीर’ के पति मिस्टर ‘पुल दू फ़ू’
से विवाह किया. पर ये रिश्ता भी पहले दो रिश्तों की तरह अल्पकालीन
निकला इन
सभी निजी संबंधों ने माया को एक तरफ तो समृद्ध किया पर दूसरी तरफ जब ये रिश्ते टूटे तो माया एन्जेलो को भावनात्मक रूप से काफी धक्का लगा.
उसी तर्ज़ पर माया एन्जेलो ने अपनी दूसरी आत्मकथा में १७ से लेकर १९ साल तक के अपने युवावस्था के जीवन को उजागर किया. इस समय तक माया एन्जेलों एक ख्यातिनाम लेखिका बन चुकी थी. आत्मकथा के इस खंड में माया एन्जेलो ने अपने युवाकाल के संघर्षों की बानगी प्रस्तुत की जिसे खासतौर पर युवा महिलाओं ने बेहद सराहा.
जब पहली बार माया एन्जेलो ने अपनी पहली आत्मकथा लिखने के लिए कलम उठाई थी तब वे नहीं जानती थी कि वे आत्मकथाओं की लंबी श्रंखला लिखेगी, लेकिन उनके पास जीवन के ढेर सारे खट्टे-मीठे अनुभव थे जिन्हे सिर्फ एक आत्मकथा के खंड में नहीं लिखा जा सकता था सो उन्होंने एक के बाद एक करके पांच आत्मकथा खंड लिखे.
अपने लेखन में आपार सफलता के बावजूद माया एन्जेलो का मानना था कि एक अश्वेत लडकी के लिए समाज में आगे बढ़ने की दास्ताँ काफी
दर्दनाक है,
अपने पाँव पर खड़ी होने को आतुर एक अश्वेत लड़की का विस्थापन उस्तरे पर लगे जंग के समान है और यह उस लड़की
के लिए बेहद अपमान का विषय है. माया एन्जेलों कहती हैं कि पंद्रह साल की उम्र में
समर्पण करना भी प्रतिरोध की तरह ही माननीय था क्योंकि उस नाजुक उम्र में इंसान के पास दूसरा कोई चारा भी नहीं होता. ‘साहस’ को माया एन्जेलो मनुष्य का सबसे बड़ा गुण मानती हैं.
अपने जीवन के मध्य में जब वे महिला कार्यकर्ताओं से जुड़ीं तो उन्होंने महसूस किया कि उनके आन्दोलन में उदासी की छाया इसलिए है क्योंकि वे सभी महिलाएं अपने आन्दोलन में ‘प्रेम और स्नेह’ की आवश्यकता को सिरे से नकार देती हैं. लेकिन माया का मानना था कि वह आन्दोलन कभी कोई क्रांति नहीं ला सकता जिसमें प्रेम
के लिये कोई जगह नहीं है.
रंगभेद का असर अमेरिका में तब व्यापक स्तर पर था. बचपन में और उसके बाद के जीवन में माया एन्जेलो ने रंगभेद को कई मौकों पर सहा,
फिर उन्होंने इन सभी सामाजिक व्यवहारों के परिपेक्ष में इस बात को रेखांकित करते हुये यह कहा भी था कि '' श्वेत लोग वास्तव में हमें नफरत नहीं करते. दरअसल वे हम अश्वेत लोगों को जानते नहीं है तब वे हमसे कैसे नफरत कर सकते हैं?
इसलिए श्वेत लोग हम अश्वेत लोगों
से ज्यादातर डरे हुए रहते हैं.
"
माया एन्जेलो नाम की इस शख्सियत में ऊर्जा बहुतायात में है इसी उर्जा ने माया को विपरीत हालतों में भी आगे बढने को प्रेरित किया. यह उनके व्यक्तितव की खूबी थी कि उन्होने कभी पकी-पकाई चीजों पर विश्वास नहीं किया बल्कि उनकी रूचि हमेशा ही खोजने, खेलने ओर निर्माण करने में ही रही.
वे भाग्यशाली थी कि वे सामान्य से अलग हट कर करने में बहुत कुछ नया रचने में सक्षम रही.
हालाँकि बाधायें ओर समस्यायें
माया एन्जेलों की राह में मुहं बाये खड़ी रही. दुनियादारी की अनेक मांगों के साथ मुकाबला करने में माया को जरूर थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा पर वे डटी रही ओर अंततः सफल भी हुई.
दिनचर्या की जिम्मेदारी माया पर भारी पड़ती रही फिर भी वे जुटी रही.
माया ने अपने जीवन को लेकर जो सपने देखे थे उन्हें पूर्ण करने के लिये माया ने दिन रात संघर्ष किया जिसके लिये माया को जीवन की सरंचना, जीवन की स्थिरता और जीवन के अनुसाशन के साथ जुड़ना पड़ा. यह सच था कि अपने भविष्य को लेकर माया एन्जेलो के पास विचार, प्रतिभा, सहयोग, द्रष्टि और उम्मीदें थी पर उसे मूर्त रूप देने के लिए माया एन्जेलो के पास दुनियादरी की कोई भी सामग्री नहीं थी.
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती धरती पर टिके रहने की थी.
क्योंकि अक्सर देखा गया है कि जिसके पास धाह सपने होते हैं वह उड़ने
लगता है. पर माया एंजेलो ने अपने सपनों को धरती पर बोया और उन्हें सींचा तभी उन्हे अपने सपनों की लहलहाती फसल तैयार मिली. जीवन के इन्ही संघर्षशील दिनों में माया
एन्जेलो ने अपना धैर्य और विनम्रता को बनांये रखा जैसे-जैसे हम माया एन्जेलो के बारे में जानते जाते हैं वैसे-वैसे हमे पता चलता है कि
उनके भीतर अटूट लगन और मेहनत का खजाना है.
ऐसा इसलिए भी है कि माया एन्जेलो खोजने और निर्माण करने में विश्वास रखती हैं ख़ासकर युवावस्था के उन कशमकश भरे दिनों में, माया एन्जेलो ने अपनी शारीरिक जरूरतों को अनदेखा किया और अपने शरीर को काम-काज में इतना अधिक व्यस्त रखा कि उनके पास आराम के लिये समय ही नहीं रहा.
१९४० में जिन दिनों माया छोटी और मासूम बच्ची ही थी तब उन्होने काले और गोरे लोगों के बीच काफी अलगाव और जातीय तनाव देखा और महसूस किया और बाद में उसे अपने समूचे लेखन में भी उतारा.
माया एन्जेलों का मानना है कि रंगभेद हर जगह पर आज भी दिखाई देता है चाहे वो किसी विश्वविधालय में हो या बैले का मंच पर. दुर्भाग्य से फिल्मों में तो रंगभेद और शारीरिक शोषण चरम पर है. उन्होंने कैमरे को और नजदीक से समझने के लिए स्वीडन में सिनेमाटोग्राफी का कोर्से किया यहाँ तक की उन्होंने फिल्मो के लिए स्क्रीनप्ले लिखा फिर भी उन्हें फिल्म निर्देशक बनने का कोई अधिकार नहीं दिया गया. उनकी फिल्म ‘जोर्जिया, जोर्जिया’ के निर्देशक स्वीडन के थे और उन्होंने भी खुद स्वीकार किया कि माया एन्जेलो से मिलने से पहले किसी अश्वेत इंसान से हाथ भी नहीं मिलाया था.
इन सारी सामाजिक जकड़नो के बावजूद माया ने अपने बूते फिल्म बनाई .ये माया की अदभूत जिजीविषा का ही परिणाम था की उनकी शिक्षा माया एन्जेलो का प्रमुख विषय था लेखन के आलावा माया एन्जेलो के अन्य बहुमुखी आयाम हैं जो उनके तिलिस्म को और गहरा करते हैं.
हरफनमौला माया एंजेलो
माया एन्जेलो के कई अवतार लोगों के समाने आते चले गए. उनका लेखन तो काफी समृद्ध था ही
(नौ काव्य संग्रह,सात आत्मकथा संग्रह, पाक-कला पर भी
पुस्तक लिखी) इसके अलवा उन्होंने उस समय की मशहूर अश्वेत गायिका ‘रोबेर्ता फ्लैक’ के लिये गीत भी लिखे जो बाद में उनकी करीबी दोस्त भी बन गयी थी. माया एन्जेलो ने हर विधा में अश्वेत माहिलाओं की भावनाओं को उकेरा चाहे वो लेखन हो,
गीत हो या फिल्म या वृतचित्र हो.
माहिलाओं की शक्ति और गरिमा को उन्होंने सर्वपरि रखा.
माया एन्जेलो एक कवि,
शिक्षक, इतिहासकार, अभिनेत्री, नाटककार, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, निर्माता और निर्देशक के रूप में जानी जाती हैं.
जहाँ बचपन और युवा अवस्था में माया एन्जेलो ने मजबूरन कई काम किये वहीं अपने जीवन के उतरार्थ में उन्होने अपनी
सारी
रचनात्मक रुचियों को पूरा किया.
१९९८
में उन्होंने एक फिल्म ‘ डाउन टू द डेल्टा ‘बनाई.
सन १९९३ में डायरेक्टर
‘जॉन- सिंग्लेतों’ के साथ माया एन्जेलो ने फिल्म ‘पोएटिक जस्टिस’ में काम किया. कालजयी फिल्म "दि ब्लैक कैंडल " में माया एन्जेलो ने अपनी आवाज़ दी.
माया ने अपनी कृत संकल्पता के कारण ही विविध रचनात्मक कामों को अंजाम दिया. वे
कहती हैं कि, “मैं चाहती हूँ कि मेरी सभी इन्द्रियां व्यस्त रहें
ताकि मैं दुनिया की सारी
विविधताओं और विशेषताओं
को अवशोषित कर सकूँ.
माया ने पाक कला पर
भी दो किताबे लिखी. माया के कोई बेटी नहीं थी पर उनके मन में संसार भर ही बेटियों
के लिए असीम प्रेम था यही कारण था की माया एंजेलो ने बेटियों में नाम पत्र नामक
किताब लिखी जिसे दुनिया भर की लड़कियों ने खूब चाव से पढ़ा.
कला के लिए माया को २००८ में लिंकन मेडल मिला और पिछले ही
वर्ष यानी २०११ में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने माया एंजेलो को ‘मेडल ऑफ फ्रीडम’
का पुरूस्कार दिया.
माया अन्जेलो के लेखन में काफी विविधता देखने को मिलती है.
उनकी कविताओं में ताल और लय की प्रचुरता का समावेश दिखाई देता है. अमरीकी अश्वेतों के जीवन अनुभवों, उनके साथ
भेदभाव, शोषण, और उनके कल्याण को केंद्र में रखकर माया एन्जेलो ने नौ कविता संग्रह लिखे. माया एन्जेलो ने अमेरिका में अपने परिवेश के आस पास
क्रूर नस्लवाद, यौन शोषण और बेपनाह गरीबी देखी थी और उसे अपने लेखन में बखूबी दर्ज किया. अपने लेखन में इन्ही विशेषताओं के कारण ही माया एन्जेलो ने समकालीन लेखकों में ऊँचा और विशिष्ट स्थान पाया है.
जिन लेखको ने सबसे जायदा प्रभावित किया वे थे
श्वेत लेखक “एडगर अलान पोए’ और
‘ विलियम शेक्सपियर’. उन्होंने पी बी एस के लिए टेलीविजन सीरीज़ भी लिखी. अपने लेखन में वे खुद को ढूंढती है बार-बार तलाशती हैं. लेखन में अपने शिल्प की तरफ बहुत ज्यादा ध्यान देती हैं. रंगभेद का असर लेखन में भी माया ने देखा. अमेरिकी समाज में सबसे पहले एक श्वेत पुरुष को प्राथमिकता दी जाती है उसे सबसे ऊँचा स्थान मिलता है उसके बाद ही श्वेत महिला का नंबर आता है फिर कहीं जाकर अश्वेत पुरुष की जगह निर्धारित होती है और फिर एक अश्वेत महिला की. इस तरह से सबसे नीचें का पायदान अश्वेत महिला के लिए है ये सारी बाते माया अन्जेलो ने अपने तथाकथित आधुनिक अमरीकी समाज में देखी, अपने भीतर महसूस की और अपने लेखन में शिद्दत से उतारी.
हर लेखक का एक मनपसन्द समय होता है जिसमें वह आराम से सभी दुनियादारी के कामकाजों से समय निकाल कर सिर्फ अपने लेखन के लिए रखता है. माया एन्जलो के लिए वह पसंदीदा समय सुबह-सवेरे का होता है जब वे आराम से लिखना पसंद करती हैं. भोर के उजले समय में वे नई उर्जा महसूस करती है जो उन्हे लिखने की अद्भुद प्रेरणा देता है. सुबह के इसी सुहावने समय को साक्षी रख कर माया एन्जेलो ने विपुल साहित्य रचा.जो समूचे संसार के लिए प्रेरणा का वायस बना.
अपनी उम्र में ६५ पड़ाव में माया एन्जेलों
राष्ट्रीय पहचान बन चुकी थी.१९९१ में एन्जेलो को वाके फोरेस्ट विश्विद्यालय में
अमेरिकन शिक्षा में रेनोल्ड्स की प्राध्यापकीय सेवा प्रदान करने को कहा गया. सब
कुछ ठीक चल रहा था पर इस उम्र तक आते-आते माया एन्जेलों गठिया की मरीज़ बन चुकी थी,
उनके पांवों में भयंकर पीड़ा रहने लगी थी. फिर भी वे लेखन का अपना काम निरंतर करती
रही. लेखन के उन्हें शोहरत और पैसा खूब दिया.
माया के जीवन में एक और एतिहासिक पल उस वक्त जुड़ा जब . २० जनवरी १९९३ का दिन माया एन्जेलो के लिये एक उजली सुबह की तरह था जब संसारभर के अरबों खरबों लोगों ने माया को अपने टेलीविज़न पर देखा और सुना, अवसर भी खासा महत्त्वपूर्ण था: तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के आगमन पर माया ने अपनी कविता सुनाने का. इस एतिहासिक अवसर के बाद वे पहली अश्वेत महिला बनी जिन्हे अपनी लिखी हुई कविता को देश के सामने सुनाने
का अवसर मिला था. इससे पहले ‘रोबेर्ट फ्रोस्ट’ ने १९६१ में उस समय के राष्ट्रपति के सम्मुख
अपनी कविता सुनाई थी.
किसी भी प्रसिद्ध इंसान के जीवन में कई विवादों से चोली दामन का रिश्ता जुड़ा होता है. माया एन्जेलो की प्रसिद्धि ने भी उनके लिए कई दुश्मन खड़े किये. माया के निजी जीवन के सनसनीखेज़ खुलासे दुनिया पर नागवार गुजरे और उन्होंने माया पर कई आरोप लगाये. इसके बाद माया का साहित्य जब स्कूल कॉलेज में पढ़ाया जाने लगा तो भी कई स्कूल कॉलेजों में उनके लिखे पर पाबंदियां लगा दी और आज के दिन भी उनके लेखन के प्रति उंगली उठाने वाले लोगों की कमी नहीं है.
आज भी संघर्षशील है माया एन्जेलों.
आज भी माया एन्जेलो पूर्व केरोलिना के ‘वाके फोरेस्ट विश्वविध्यालय’ में पढ़ा रही हैं, और साथ-साथ अंतरिक्ष रेडियो की संचालिका भी हैं.
83 वर्ष की उम्र में,
वह एक समृद्ध और विविध कलाओं में माहिर कवि,
उपन्यासकार, निबंधकार, चलचित्र कथानक लेखिका और अभिनेत्री और एक जुझारू महिला के रूप में जानी जाती हैं.
माया एन्जेलों का जादू आज भी फीका नहीं पड़ा है. उनका लिखा साहित्य,स्कूलों में पढ़ाया जाता है और
संसार भर में उन्हे अपने लेखों को पढ़ने के लिए आमंत्रित किया जाता
है. माया एन्जेलो
अमेरिका की एक महान आवाज़ हैं और अपनी अनेकों अनेक विशिष्टताओं के कारण वे आज जीते जी एक किंवदंती बन गयी हैं.
ery inspiring.............was reading for last 35 minutes...................... “प्रेम और शारीरिक संबंधों के मामलों में एक महिला अपने जीवन में बहुत कुछ सहती है जबकि उसी संबंधो से उपजी घटना का पुरुष पर रत्ती भर भी असर नहीं पड़ता”…………………….
जवाब देंहटाएं….“माया का मानना था कि वह आन्दोलन कभी कोई क्रांति नहीं ला सकता जिसमें प्रेम के लिये कोई जगह नहीं है”…
(तारा शंकर, फेसबुक से)
Padha maine ..Very motivating indeed for every women in today's prospective .Thanx Vipin ji n Ashokji for sharing !
जवाब देंहटाएंSehar