स्त्री सशक्तीकरण की प्रक्रिया में
शिक्षा की भूमिका प्रेरक, साधन और साध्य तीनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी गयी
है. उसी तरह समाज के विकास में भी शिक्षा का अहम स्थान है. समाज और देशों की भौतिक
उनत्ति में ही नहीं बल्कि सामाजिक विकास में भी शिक्षा भूमिका निभाती है. हालांकि
जब मानवीय चेहरे के विकास की बात उठ रही हो और विकास की संकल्पना कई प्रश्नचिह्नों
से घिरी हो तो जाहिर है कि इस प्रश्न के कई सिरे सामने आयेंगे. विकास के अनेक
आयामों के साथ शिक्षा की प्रकृति, पद्धति और पहुँच ये सभी धागे उलझते नज़र आयेंगे.
इस लेख में राजस्थान में महिला साक्षरता व बाललिंगानुपात इन दो सिरों को गूंथकर
कुछ सवाल उठाने का प्रयास किया गया है. इन दो पक्षों को आमने सामने रखते हुए यह
जानने का प्रयास है कि साक्षरता जिसे शिक्षा का एक पक्ष माना जाता है, उसका समाज
में स्त्रियों की प्रस्थिति, जिसका एक सूचक बाललिंगानुपात है उससे किस प्रकार का
संबंध है. २०११ की जनगणना के आंकड़े मार्च में प्रकाशित हुए उन्हें आधार बनाते हुए
पिछले दशक में इन सबंधों में आए परिवर्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है. इन
परिवर्तनों की व्याख्या करते हुए यह समझने की कोशिश की गयी है कि शिक्षा और खासकर
स्त्री शिक्षा जेंडरगत चेतना का समाज में संचार कर पाती है या वह पितृसत्तात्मक
विकास के एजेंडा संरचनात्मक स्तर पर लागू करने का एक ज़रिया बनकर रह जाती है.
विकास,
शिक्षा और स्त्रियाँ: राष्ट्र-निर्माण और चेतना के स्वर.
१९ वीं शताब्दी में भारत में जब स्त्रियों
के लिए सार्वजनिक शिक्षा के द्वार खोल दिए गए तो ज्ञानोदय की रोशनी में वह राह
राष्ट्रीयता, मध्यम वर्गीय और जातिगत चेतना के घुमावदार मोडों से होकर गुज़रती थी.
यहाँ तक कि स्त्री के शिक्षित होने को राष्ट्रनिर्माण में शिक्षित और संस्कारित
राष्ट्रवीरों की परवरिश करने के लिए माओं को शिक्षित करने की गरज के तौर पर देखा
गया था. ऐसे में स्त्री चेतना या स्त्री मुक्ति के चिह्न शिक्षा में ढूँढना मुश्किल
ही था. परन्तु फिर भी स्त्री शिक्षा से उठते चेतना के कई स्वर उस समय में भी देखे
जा सकते है. जैसे जैसे विकास में स्त्री शिक्षा का महत्व अधोरेखित किया जाने लगा
वैसे वैसे स्त्री शिक्षा की मुहिम सार्वत्रीकरण की ओर बढने लगी. स्त्रियाँ शिक्षा
से रोज़गार के क्षेत्र में आयीं. यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण था कि स्त्रियों के
श्रम सार्वजनिक क्षेत्र में अवैतनिक नहीं रहे. शिक्षा ने स्त्रियों के लिए औपचारिक
उद्योगों और ज्ञान के क्षेत्र में पैर जमाने के रास्ते बना दिए. विकास में
स्त्रियों को दृश्यमान बनाने की कोशिश में हमने केवल शिक्षित स्त्रियों की संख्या बढाने पर जोर दिया. पर सवाल आज भी
कायम है की क्या शिक्षा जेंडर संवेदनशील चेतना का विकास कर पाई है?
विकास को नापने के लिए जब पैमाने
निर्धारित किए जा रहे थे तब मानव विकास सूचकांक १९९० में तैयार किया गया और उसके
पांच साल बाद ही (1995) इसे जेंडर संबंधित विकास सूचकांक (GDIGDI) तथा जेंडर
सशक्तीकरण मानदंड (GEMGEM)
की जोड़ दी गयी ताकि मानवीय क्षमता और ‘समृद्धि’ का सर्वांगीण आलेख प्रस्तुत किया
जा सके. जहाँ GDIGDI
स्त्री-पुरुषों के बीच जीवन-प्रत्याशा, आय और स्कूली नामांकन तथा वयस्क साक्षरता
के आधार पर तुलना प्रस्तुत करता हैं वहीं GEMGEM स्त्रियों की
आर्थिक और राजनैतिक सहभागिता के पैमाने पर विकास को परखता है. यहाँ यह दर्ज करना
ज़रूरी है कि इसी दौरान बीजिंग संम्मेलन में
सभी
देशों ने महिला सशक्तीकरण की वकालत करते हुए महिलाओंकी की सहभागिता और निर्णय
क्षमता को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया था और उसके लिए शिक्षा की प्रेरक के
भूमिका को चिन्हित किया था (सक्सेना, साधना १९९५). यह परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन
था. विकास में महिलाएं (WIDWomen in Development) और महिला और विकास (WADWomen
and Development) इन दो परिप्रेक्ष्यों से हटकर यह परिप्रेक्ष्य जेंडर आधारित
मुद्दों को विकास के विमर्श में मुख्यधारा में लाने के सन्दर्भ में दृढ़ था. इसी
दौर में आशियाई देशों में एक तरफ ‘कार्य’ के परिभाषा में परिवर्तन लाकर महिलाओं के
श्रम को मुख्यधारा में दृश्यमान करने के प्रयास हो रहे थे और दूसरी तरफ में
औद्योगिकीकरण और आर्थिक उदारीकरण की तेज और व्यापक प्रक्रियाओं के बरक्स वहाँ
बालालिंगानुपात का पौरूषीकरण बढता जा रहा था. जनसंख्या से ‘गुमशुदा लडकियाँ’ एक
आशियाई परिघटना के रूप में सामने आयी. अमर्त्य सेन कहते है कि जब सामान्यतः सभी
समान परिस्थितियां
रखने पर लड़कों के मुकाबले लडकियों की जीवन प्रत्याशा अधिक होती है तो गिरता हुआ बालालिंगानुपात
और वहाँ से झांकती ‘100 मिलियन गुमशुदा लडकियां’ विकास के अलग ही आयाम पेश कर देती
हैं. (सेन, अमर्त्य 1990) ऐसे में आशियाई समाजों में आर्थिक (अ)विकास के चलते क्षमतावर्धन
ही नहीं बल्कि ज़िंदा रहने के अवसर लडकियों के हिस्से में असमान आते हो वहाँ शिक्षा
की उपलब्धता और अनुपलब्धता उनके अस्तित्व, प्रस्थिति और चेतना पर कैसे प्रभाव डाल
रही है इसकी पडताल जरूरी हो जाती है.
विकास की राजनीति की पार्श्वभूमि
में आशियाई देशों में विकास के केन्द्र (Centre)
और
परिधि (Periphary) के
प्रदेशों में इन प्रभावों की तीव्रता तथा बुनावट अलग होगी. एक रिपोर्ट के अनुसार
पूरी दुनियाँ से 10 करोड बच्चियां गायब हैं उसमें से एशिया से गायब 6 करोड लडकियों
में से 3.05 करोड चीन से, भारत से 2.28 करोड,पाकिस्तान से 31 लाख, बांग्लादेश से
16लाख, और नेपाल से 2 लाख लडकियां गायब है. अगर इन देशों के 2011 के मानव
विकास सूचकांक के आंकड़े ( अनुक्रम से 0.687, 0.547, 0.504, 0.500, और 0.458) देखें
तो यह बात चीन का अपवाद को छोड़कर उभरकर आती है कि कैसे विकास और जेंडर प्रस्थिति
में नकारात्मक सहसंबंध है. इस लेख में
राजस्थान की चर्चा इसी
दृष्टिकोण से की जा रही है. मानव विकास के आधार पर राजस्थान मध्यम स्तर के सब से
नीचले पायदान पर 0.537 अंकों के साथ 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों
में 28 वें स्थान पर
है. आर्थिक दृष्टी से देखा जाएँ तो राजस्थान में प्रति व्यक्ति घरेलु सकल उत्पाद
43,641.2 रुपये है और आय सूचकांक 0.640 है.
वहीं शिक्षा का सूचकांक 0.755 तो स्वास्थ्य संबंधी 0.735 है. इन सभी दृष्टी से
राजस्थान को प्रसिद्ध जनांकिकीविद् आशीष बोस ने ‘बीमारू’ राज्यों की कोटी में रखा
था. अब इन राज्यों को थोडा परिष्कृत संबोधन दिया गया है: ‘एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप’
(EAG)[i]
. संबोधन बदलने से परिस्थिति में परिवर्तन नहीं आता. उसके लिए ज़रूरत होती है,
नज़रिया बदलने की और उसके आधार पर प्राथमिकताएं निर्धारित करने की. इस समय जब
राजस्थान की पाठ्यचर्या निति बन रही है तब यह पडताल और भी सामायिक बन जाती है कि
शिक्षा और जेंडर सूचकांक में कैसा परस्पर संबंध है.
2011
की जनगणना: भारत के सन्दर्भ में कुछ तथ्य
भारत
में 2011 की जनगणना में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि १९५१-६१ के बाद से सब से कम
(१७.६४) रही है. परन्तु 2001 की जनगणना में साक्षरता दर में आये उछाल को बरकरार
रखने में हम असफल रहें हैं. साक्षरता में जेंडर अंतराल को निरंतर रूप से कमी आयी
है. दूसरी तरफ भले ही पिछले दो दशकों से
स्वास्थ्य
सेवाओं के सुधार से कुल जनसंख्या के लिंगानुपात में निरंतर बढोत्तरी हो रही है[ii],
परन्तु 1961 से लगातार बालालिंगानुपात गिर रहा है. होना
तो यह चाहिए था कि साक्षरता में जेंडर अंतराल कम होने के साथ समाज में जेंडर आधारित
अन्य असमानताएं कम होनी चाहिए थी. परन्तु 2011 की जनगणना के आंकड़े कुछ और ही कहानी
बयान करते हैं. हालांकि यह चित्र केवल राजस्थान का ही नहीं पुरे भारत के सन्दर्भ
में लागू होता है.
इन दोनों मानदंडों के सन्दर्भ में
विषयान्तर का खतरा उठाते हुए यह बात जोड़ देना चाहूंगी कि जनगणना की मुख्य तालिकाएं जब प्रकाशित हुई तो पहली
बार जनसंख्या वृद्धि, साक्षरता और लिंगानुपात के साथ बाललिंगानुपात के आंकड़े एक
साथ प्रस्तुत किए गए. यह अनायास ही नहीं था. दरअसल शासन साक्षरता में हुई प्रगति
को उजागर करने के लिए यह चाहता था कि साक्षरता दर में +7 की जनसंख्या की साक्षरता
दर को प्रधानता से दिखाया जाए. ऐसे में 0-6 उम्र की जनसंख्या और उनके अनुपात को
प्रस्तुत करना आवश्यक था सो प्राथमिक तालिका में सामने आया बाललिंगानुपात का गिरता
ग्राफ. निचली तालिका में यह बात स्पष्ट है कि 1981-91 के दशक में बाललिंगानुपात
में 17 बिंदुओं की गिरावट दर्ज हुई थी और लिंगानुपात में 7 बिंदुओं की. इसी समय
साक्षरता दर में हो रही वृद्धि की रफ़्तार कम हुई थी (1961 से लेकर 2011 तक
साक्षरता दर में दशकीय परिवर्तन अनुक्रम से इस प्रकार है: 6.15, 9.12, 8.64, 12.62 और 10.81) इसलिए
साक्षरता कार्यक्रमों को 1991 के बाद प्राथिमिकता दी गयी थी ताकि साक्षरता दर को
बढ़ाया जा सके. स्वाभाविक है कि सरकार के लिए शिक्षा के क्षेत्र में हासिल की गयी
उन्नत्ति को दर्ज करना पहली प्राथमिकता थी. चूँकि लिंगानुपात में वृद्धि थी तो
इसका अर्थ था कि स्त्रियों की मृत्यु दर जिसमें सब से अधिक हिस्सा मातृत्व मृत्यु
का होता है उसे कम करने में भी शासन सफल रहा है. जनसंख्या की वृद्धि दर को घटाने
में भी सफलता पायी गयी है. परन्तु शासन 1991 में बाललिंगानुपात में आयी भारी
गिरावट के प्रति उदासीन था[iii].
ऐसे में शासकीय नीतियों और योजनाओं से हासिल हुए विकास और उन्नत्ति की राह पर
गुमशुदा हुई लडकियां खामोशी में ही दर्ज कर गयी अपने गुमशुदा होने की रिपोर्ट.
तालिका १: भारत में साक्षरता दर व
जनसंख्या के जेंडर अनुपात तथा उनके दशकीय परिवर्तन.
साक्षरता दर
|
साक्षरता दर में दशकीय परिवर्तन
|
जेंडर अंतराल
(Gender Gap)
|
लिंगानुपात
|
लिंगानुपात
में दशकीय परिवर्तन
|
बाललिंगानुपात
(0-6)
|
बाललिंगानुपात
में दशकीय परिवर्तन
|
|||
पुरुष
|
स्त्री
|
पुरुष
|
स्त्री
|
||||||
1951
|
27.16
|
08.86
|
-----*
|
-----*
|
18.30
|
946
|
01
|
----*
|
------*
|
1961
|
40.4
|
15.35
|
13.24
|
06.49
|
25.05
|
941
|
-05
|
976
|
------*
|
1971
|
45.96
|
21.97
|
05.56
|
06.62
|
23.98
|
930
|
-11
|
964
|
-08
|
1981
|
56.38
|
29.76
|
10.42
|
08.79
|
26.62
|
934
|
04
|
962
|
-02
|
1991
|
64.13
|
39.29
|
07.75
|
09.53
|
24.84
|
927
|
-07
|
945
|
-17
|
2001
|
75.26
|
53.67
|
11.13
|
14.38
|
21.59
|
933
|
06
|
927
|
-18
|
2011
|
82.14
|
65.46
|
06.88
|
11.79
|
16.68
|
940
|
07
|
914
|
-13
|
1. 1951,
1961 और 1971 में साक्षरता दर पांच साल और उससे ज्यादा उम्र की जनसंख्या का है
जब की 1981, 1991, 2001 और 2011 की
जनगणना में सात साल और उससे अधिक उम्र की जनसंख्या के आधार पर नापी गयी है.
2. 1981 के साक्षरता के दर में असम के साक्षरता दर शामिल नहीं है. 1991 की जनगणना में जम्मू-कश्मीर के आंकड़े शामिल नहीं है.
3. --------* आंकड़े उपलब्ध नहीं है.
जनसांख्यिकी और शिक्षाविदों ने पुरजोर
ढंग से सरकार का ध्यान इस तथ्य पर लाया कि 2001 की जनगणना के आधार पर गिरता हुआ
बालालिंगानुपात यह शिक्षित वर्ग में दिखनेवाली परिघटना है. यही कारण है कि जब
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (रापारू) बनाई गयी तो शिक्षा के माध्यम से जेंडर
संवेदनशीलता निर्माण करने पर जोर दिया गया. रापारू में इस तथ्य को रेखांकित किया
गया कि शिक्षा नीति में पिछले तीन दशकों से जेंडर समानता लाने के लक्ष्य को रखा
जाने के बावजूद शिक्षा की पहुँच अभी भी जेंडर असमानता बरकरार रख रही है. दूसरी तरफ
पाठ्यचर्या से जेंडर के मुद्दे नादारद है और यह भ्रान्ति बना दी गयी है कि जेंडर
के मुद्दे यानी महिलाओं के मुद्दे है पुरे समाज के मुद्दे नहीं. ( राष्ट्रीय शैक्षिक
अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, 2006) जिस तरह यह मान लिया जाता है कि असमान
लिंगानुपात और बाललिंगानुपात यह केवल महिलाओं का प्रश्न है, पुरे समाज या देश के
विकास से इसका ताल्लुक नहीं है. अगला सेक्शन इस भ्रान्ति को दूर करने का एक प्रयास
है. शिक्षा, विकास और समताधिष्टित तथा हिंसा मुक्त समाज यह परस्पर गुथे हुए प्रश्न
है. खासकर उन समाजों में ये प्रश्न और भी महत्वपूर्ण बन जाते हैं, जहां सामंती
संरचना के अंदर असमान विकास कि एकरेखीय
सोच
शिक्षा को शोषण, दमन और हिंसक मूल्यों को समाज में पनपाने का जरिया बन जाती है.
राजस्थान
2011 जनगणना: जेंडर संरचना
2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान का लिंगानुपात 1901 (905) के बाद से सब से अधिक रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर सामने आयी प्रवृत्ति
का प्रतिबिंब राजस्थान की जनगणना के लिंगानुपात में भी दीखता है, पिछले दो दशकों
से लिंगानुपात बढ़ा है. पर राष्ट्रीय औसत से 14 अंक नीचे राजस्थान (926) EAG राज्यों
में बिहार (916) और उत्तर प्रदेश (908) के बाद तीसरे स्थान पर है. इस जनगणना में
ग्रामीण और शहरी लिंगानुपात का अंतर भारत और राजस्थान दोनों में ही 21 अंकों से
घटा है. परन्तु इस वृद्धि के बावजूद यह बात दर्ज करनी होगी कि पिछली जनगणना में दो
जिले- डूंगरपूर और राजसमन्द में लिंगानुपात 1000 से अधिक था परन्तु इस दशक में
किसी भी जिले का लिंगानुपात 1000 के आंकड़े को छू नहीं पाया. यहाँ तक कि राष्ट्रीय
प्रवृत्ति के विपरीत डूंगरपुर, जालोर राजसमन्द, उदयपुर, चुरू, सीकर और सिरोही इन 7
जिलों में लिंगानुपात में गिरावट आयी है. चिंता की बात यह है कि इनमें से अधिकतर
वे जिले हैं जो अपने ज्यादा लिंगानुपात के लिए जाने जाते रहे हैं. और यह गिरावट
मामूली अंकों की नहीं है. जैसे डूंगरपुर, जो पिछली जनगणना में लिंगानुपात में सब
से शीर्ष स्थान पर रहा है वहाँ 32 अंकों की गिरावट दर्ज हुई है. इसका अर्थ है कि इन
जिलों में विकास के असमान प्रतिरूपों के चलते हुए पलायन, कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं
की अनियमित पहुँच और उपलब्धता इनके परिणाम स्वरुप लिंगानुपात गिरा है. इन जिलों
में से सीकर और चुरू को छोड़ बाकी पांच जिलों में स्वास्थ्य सूचकांक न्यूनतम दर्जे
का रहा है जिसमें डूगरपुर का सूचकांक 0.282 तो दूसरी तरफ जालोर का 0.497 रहा है.
(आर्थिक एवं सांख्यिकीय निदेशालय तथा विकास अध्ययन संस्थान, जयपुर 2008)
राजस्थान
में बाललिंगानुपात
1981 के बाद 71 अंक गिरकर 883 पर आया है. न्यूनता की तरफ बाललिंगानुपात जाने की
प्रवृत्ति राजस्थान के कई जिलों में फ़ैल चुकी है 2001 की जनगणना में केवल गणगानगर,
धौलपुर और हनुमानगढ ये तीन जिले थे जिनका बाललिंगानुपात न्यूनतम श्रेणी यानी 862 से
नीचे था जबकि 2011 की जनगणना में 10 जिले इस श्रेणी में आ चुके हैं. राज्य के औसत
के आधार पर विभाजन देखें तो 2001 की जनगणना में उस समय के 32 जिलों में से 23 जिले
राज्य के औसत से अधिक बाललिंगानुपात रखते थे और 2011 में केवल 9 जिले राज्य के औसत
से ऊपर की रेखा को छू पा रहे हैं. (देखे तालिका २)
2011
की जनगणना के आधार पर राजस्थान में अंतर-राज्यीय स्तर पर बाललिंगानुपात के सन्दर्भ
में निम्न प्रवृत्तियां देखने को मिलती हैं:
Ø राजस्थान
के आदिवासी आँचल के सभी जिले जिनमे वैसे तो उच्चतम बाललिंगानुपात का स्तर दीखता हो पर इस सभी जिलों
में बाललिंगानुपात में पिछले दशक में खांसी गिरावट हुई है. देश के अन्य आदिवासी
इलाकों में भी यह प्रवृत्ति इस जनगणना में उभरकर आयी है.
तालिका
२: राजस्थान बालालिंगानुपात और महिला साक्षरता दर : दशकीय परिवर्तन
जिले का
नाम
|
बाललिंगानुपात
(०-६ वर्ष की उम्र के बच्चों के सन्दर्भ में)
|
बाललिंगानुपात में दशकीय परिवर्तन
|
महिला साक्षरता दर
|
महिला साक्षरता दर में दशकीय
परिवर्तन
|
||||||||||
|
2001
|
2011
|
2001-11
|
2001
|
2011
|
2001-11
|
||||||||
|
कुल
|
ग्रामीण
|
शहरी
|
कुल
|
ग्रामीण
|
शहरी
|
कुल
|
कुल
|
ग्रामीण
|
शहरी
|
कुल
|
ग्रामीण
|
शहरी
|
कुल
|
राजस्थान
|
909
|
914
|
934
|
883
|
886
|
869
|
-26
|
43.85
|
37.33
|
64.67
|
52.66
|
46.25
|
71.53
|
8.81
|
गंगानगर
|
850
|
861
|
814
|
854
|
859
|
841
|
+4
|
52.44
|
47.19
|
67.81
|
60.07
|
55.65
|
71.78
|
7.63
|
हनुमानगढ़
|
872
|
876
|
854
|
869
|
875
|
845
|
-3
|
49.56
|
46.27
|
62.57
|
56.91
|
53.48
|
70.76
|
7.35
|
बीकानेर
|
916
|
921
|
917
|
902
|
902
|
901
|
-14
|
42.45
|
30.27
|
64.76
|
53.77
|
44.81
|
70.12
|
11.31
|
चुरु
|
911
|
910
|
898
|
896
|
897
|
893
|
-15
|
54.36
|
52.37
|
59.14
|
54.25
|
51.13
|
62.00
|
-0.11
|
झुंझुनु
|
863
|
865
|
852
|
831
|
825
|
852
|
-32
|
59.51
|
59.25
|
60.53
|
61.15
|
59.86
|
65.54
|
1.64
|
अलवर
|
887
|
894
|
837
|
861
|
864
|
844
|
-26
|
43.30
|
38.56
|
70.35
|
56.78
|
52.69
|
75.22
|
13.48
|
भरतपुर
|
879
|
882
|
864
|
863
|
867
|
840
|
-16
|
43.56
|
39.06
|
60.95
|
54.63
|
50.85
|
69.43
|
11.07
|
धौलपुर
|
860
|
863
|
839
|
854
|
858
|
837
|
-6
|
41.84
|
38.89
|
54.19
|
55.45
|
53.23
|
63.51
|
13.67
|
करौली
|
873
|
871
|
890
|
844
|
842
|
855
|
-29
|
44.43
|
42.81
|
53.78
|
49.18
|
47.05
|
60.79
|
04.75
|
स.माधोपुर
|
902
|
901
|
906
|
865
|
866
|
862
|
-37
|
35.17
|
29.52
|
58.45
|
47.8
|
42.65
|
67.80
|
12.63
|
दौसा
|
906
|
908
|
880
|
859
|
861
|
842
|
-47
|
42.25
|
39.95
|
61.58
|
52.33
|
49.85
|
69.14
|
10.08
|
जयपुर
|
899
|
911
|
884
|
859
|
865
|
852
|
-40
|
55.52
|
43.86
|
67.13
|
64.63
|
52.07
|
75.82
|
09.11
|
सीकर
|
885
|
882
|
898
|
841
|
836
|
860
|
-44
|
56.11
|
55.27
|
59.34
|
58.76
|
56.75
|
65.26
|
02.65
|
नागौर
|
915
|
916
|
913
|
888
|
886
|
894
|
-27
|
39.67
|
36.85
|
53.41
|
48.63
|
45.92
|
60.03
|
08.96
|
जोधपुर
|
920
|
926
|
902
|
890
|
889
|
895
|
-30
|
38.64
|
24.75
|
64.34
|
52.57
|
41.99
|
71.85
|
13.93
|
जैसलमेर
|
869
|
870
|
860
|
868
|
868
|
871
|
-1
|
32.05
|
27.26
|
58.10
|
40.23
|
36.06
|
66.81
|
08.18
|
बाडमेर
|
919
|
920
|
896
|
899
|
900
|
891
|
-20
|
43.45
|
42.04
|
60.22
|
41.03
|
38.92
|
67.45
|
-02.42
|
जालोर
|
921
|
922
|
910
|
891
|
891
|
888
|
-30
|
27.80
|
26.18
|
47.80
|
38.73
|
37.03
|
57.32
|
10.93
|
सिरोही
|
918
|
931
|
847
|
890
|
895
|
859
|
-29
|
37.15
|
31.29
|
64.12
|
40.12
|
33.02
|
67.41
|
02.97
|
पाली
|
925
|
927
|
914
|
895
|
899
|
876
|
-30
|
36.48
|
31.65
|
54.65
|
48.35
|
43.74
|
64.55
|
11.87
|
अजमेर
|
922
|
930
|
906
|
893
|
898
|
883
|
-29
|
48.90
|
32.66
|
72.15
|
56.42
|
41.87
|
77.48
|
07.52
|
टोंक
|
927
|
929
|
920
|
882
|
882
|
887
|
-45
|
32.15
|
25.66
|
56.03
|
46.01
|
40.14
|
65.54
|
13.86
|
बूंदी
|
912
|
916
|
888
|
886
|
886
|
887
|
-26
|
37.79
|
32.46
|
60.04
|
47.00
|
41.56
|
68.16
|
9.21
|
भीलवाडा
|
949
|
959
|
903
|
916
|
921
|
894
|
-33
|
33.43
|
26.16
|
61.97
|
47.93
|
41.08
|
73.40
|
14.5
|
राजसमन्द
|
936
|
939
|
911
|
891
|
893
|
880
|
-45
|
37.68
|
33.10
|
68.29
|
48.44
|
43.77
|
72.95
|
10.76
|
डूंगरपुर
|
955
|
959
|
877
|
916
|
919
|
850
|
-39
|
31.77
|
28.86
|
67.82
|
46.98
|
44.75
|
78.29
|
15.21
|
बांसवाड़ा
|
964
|
967
|
868
|
925
|
928
|
863
|
-39
|
29.22
|
25.05
|
76.59
|
43.47
|
40.47
|
80.28
|
14.25
|
चित्तोडगढ
|
929
|
930
|
904
|
903
|
907
|
881
|
-26
|
35.99
|
28.95
|
68.87
|
46.98
|
40.68
|
74.80
|
10.99
|
कोटा
|
912
|
922
|
901
|
889
|
899
|
881
|
-23
|
60. 43
|
49.85
|
69.39
|
66.32
|
54.23
|
74.28
|
05.79
|
बाराँ
|
919
|
921
|
910
|
902
|
906
|
887
|
-17
|
41.56
|
37.66
|
60.33
|
52.48
|
48.24
|
68.25
|
10.92
|
झालावाड़
|
934
|
941
|
885
|
905
|
909
|
888
|
-29
|
40.02
|
35.25
|
68.16
|
47.06
|
42.01
|
72.84
|
07.04
|
उदयपुर
|
948
|
957
|
879
|
920
|
927
|
872
|
-28
|
44.49
|
36.26
|
77.49
|
49.10
|
40.46
|
82.02
|
04.61
|
प्रतापगढ़
|
953
|
959
|
876
|
926
|
929
|
883
|
-17
|
31.77
|
27.48
|
73.54
|
42.40
|
39.05
|
77.61
|
10.63
|
Ø दूसरी
तरफ 2001 की जनगणना में जिन जिलों में बाललिंगानुपात
का न्यूनतम स्तर था वहाँ गिरावट में तेज़ी की प्रक्रिया कम हुई है. यहाँ तक कि
गगानगर में बाललिंगानुपात में बढोत्तरी हुई है हालांकि उसके बावजूद वहाँ
बाललिंगानुपात का स्तर काफी कम है.
Ø जनसंख्या
में दशकीय वृद्धि जिन तीन जिलों में सब से कम है; गंगानगर (10.06), झुंझुनू (11.81)
और पाली (11.99) वे बाललिंगानुपात
के स्तर पर न्यूनतम श्रेणी में आते हैं. यानि हमारी जनसंख्या नियंत्रण के लिए हो
रहे परिवार नियोजन हमारे बाललिंगानुपात असंतुलित कर रहा है.
Ø पिछली जनगणना में शहरी क्षत्रों में
बाललिंगानुपात अधिक गिरा था परन्तु इस जनगणना में यह प्रवृत्ति ग्रामीण इलाकों में
अपने पैर पसार रही है. हालांकि राज्य स्तर पर देखें तो शहरी क्षत्र में 65 अंकों
की गिरावट है तो ग्रामीण क्षेत्र में 28 अंक. ग्रामीण क्षेत्र में 30 अंकों से
अधिक गिरावट बाललिंगानुपात में दर्ज करने वाले जिलों की संख्या 20 है जब कि शहरी
क्षेत्र में ऐसे जिलों की संख्या केवल 8 है. गंगानगर में तो शहरी क्षेत्र में 27
अंकों की बढोत्तरी है. सिरोही (12), जैसलमेर (11)और अलवर (09)इन जिलों के भी शहरी
क्षेत्र में बाललिंगानुपात में बढोत्तरी दर्ज हुई है.
Ø वह
जिले जिनमें साक्षरता की दर ज्यादा हैं वहाँ बाललिंगानुपात तेज़ी से गिर रहा है जैसे जयपुर,
झुंझुनू, और सीकर. दूसरी तरफ वे जिलें हैं, जहां साक्षरता की दर कम है और
बाललिंगानुपात अधिकतम है जैसे प्रतापगढ़, डूंगरपुर, और बांसवाडा. पर ध्यान लेने
लायक बात यह है कि इस दशक में जिन जिलों में महिला साक्षरता दर में सर्वाधिक
वृद्धि पायी गयी है वहाँ बाललिंगानुपात तेज़ी से गिर रहा है जैसे डूंगरपुर (15.21) और
बांसवाडा (14.25).
Ø मानव विकास सूचकांक जिन जिलों में
सर्वाधिक रहा हैं वहाँ बाललिंगानुपात का स्तर न्यूनतम रहा है जैसे गंगानगर,
हनुमानगढ, झुंझुनू और अलवर. ये ध्यान देने लायक है कि ये जिले पारंपरिक रूप से
असंतुलित लिंगानुपात और बाललिंगानुपात के लिए कुप्रसिद्ध जिले
नहीं है जैसे जैसलमेर, धौलपुर, भरतपुर, करौली
या सवाई माधोपुर- जहां लिंगानुपात
कभी 900 के आंकड़े को पार नहीं कर पाता हो. ये वे जिलें हैं जहां आर्थिक सूचकांक,
साक्षरता का सूचकांक और स्वास्थ्य सूचकांक उच्च स्तरीय रहा है. इसका अर्थ स्पष्ट है
कि ज्यों समृद्धि और शिक्षित मध्यम वर्ग का इन जिलों में विस्तार हुआ है
बाललिंगानुपात का स्तर गिर गया है.
साक्षरता
दर के संबंध में 2011 की जनगणना में राजस्थान का परिवेश:
साक्षरता दर के सन्दर्भ में
राजस्थान ने पिछले पचास सालों में काफी प्रगति हासिल की है. राष्ट्रीय स्तर की तरह
यहाँ भी १९९१-२००१ के दशक में जो प्रगति हसिल की गयी वह अभूतपूर्व थी. परन्तु इस
दशक में राज्य का निरक्षरता को मिटाने के सन्दर्भ में सर्वाधिक नकारात्मक योगदान (-3.
41) रहा है. पुरुषों की साक्षरता दर के सन्दर्भ में राजस्थान का
स्थान देश के 35 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में २७ वां है परन्तु जैसे ही
महिला साक्षरता दर की बात आती है, राजस्थान सबसे नीचले स्थान पर खडा मिलता है. यह
संयोग नहीं है कि 2001 में बाललिंगानुपात
के सन्दर्भ में देश में सब से निम्न श्रेणी में आंठवे स्थान को प्राप्त करनेवाला
यह राज्य 2011 में 26 अंकों की गिरावट के साथ पांचवे स्थान पर आ जाता है. हरियाणा,
पंजाब, जैसे राज्य और चंडिगढ़, दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेश भले ही बाललिंगानुपात में न्यूनतम स्तर हो
पर पिछले दशक में उन्होंने अपने स्तर को सुधरा है. जबकि राजस्थान में यह स्तर और
भी नीचे गिरा है. जैसे ही जेंडर असमानता की बात आती
है वैसे ही राजस्थान का विकास का भ्रम काफूर हो जाता है. शहरी क्षेत्रों में
साक्षरता का जेंडर अंतराल (Gender
Gap)पिछले दशक में 4.15 से कम हुआ वहीं ग्रामीण
क्षेत्र में यह अंतराल कम (3.58) होने की प्रक्रिया अभी भी थोड़ी धीमी है. यही वजह
है कि इन दोनों क्षेत्रो में साक्षरता वृद्धि के जेंडर अनुपात पर होने वाले परिणाम
अलग अलग दिखाई देते हैं.
ग्रामीण क्षेत्र में जहां झुंझुनू,
सीकर और कोटा साक्षरता दर के मामले में क्रमश: शीर्ष स्थानों पर हैं वहीं शहरी क्षेत्र
की साक्षरता दर में राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र ने बढ़त ली है इस श्रेणी में
क्रमश: उदयपुर, बासवाडा और डूंगरपुर में शीर्षस्थ हैं. यह थोड़ा उलझन पैदा करता है
क्योंकि शिक्षा को शहरी से ग्रामीण क्षेत्र की तरफ विस्तार के रूप में आम तौर पर
देखा जाता है तो जिन क्षेत्र में ग्रामीण इलाके साक्षरता में उन्नत्ति कर रहे हो
वहाँ के शहरी क्षेत्र में साक्षरता दर फैलाव उतनी तेज़ी से क्यों नहीं रह पाता? और
कैसे फिर इन्ही ग्रामीण सुशिक्षित क्षेत्र में बाललिंगानुपात घटता है? कैसे कम बाललिंगानुपात
के लिए कुख्यात जिलों के साथ डूंगरपुर के शहरी क्षेत्र का बाललिंगानुपात न्यूनता
की श्रेणी में जा बैठता है? यहाँ पर शिक्षा के समता और चेतना लाने के उद्देश्यों
पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है.
ऐसे कहा
जाता है कि आदीवासी समाजों में प्रकृति के सहअस्तित्व पर टिकी न्यूनतम जीवन
निर्वाह आधारित अर्थव्यवस्था में सरलतम श्रम विभाजन के चलते विषमतामूलक जेंडर
संबंध कम पाए जाते हैं और यहीं कारण है कि जिन जिलों में आदिवासी जनसंख्या का
बाहुल्य है, वहाँ लिंगानुपात तथा बाललिंगानुपात में असंतुलन कम पाया जाता है.
परन्तु इन क्षत्रों में साक्षरता प्रसार के साथ ही जब गिरते बाललिंगानुपात के
साक्ष्य मिलते हैं तो लगता है कि या तो आदिवासी समाज में जेंडर समतामूलकता के
मूल्य होना यह एक मिथक है अथवा हमारी शिक्षा में जेंडर विषमता फैलानेवाले तत्त्व
कूटकूटकर भरे हैं जिन्होंने आदिवासी मूल्य व्यवस्था का ह्रास किया है.
शहरी क्षेत्र
में साक्षरता और खासकर महिला साक्षरता में न्यूनतम परिवर्तन दिखता है. तीन कारण
है- एक तो यहाँ पहले ही साक्षरता दर का स्तर ऊँचा है तो इसके फैलाव की गुजाइश कम
है और इसका अर्थ है कि साक्षरता का सार्वत्रीकरण हमेशा ही एक दिवास्वप्न रहने वाला
है. दूसरा यह कि नगरीकरण की प्रक्रिया के कारण शहरों का फैलाव ग्रामीण क्षेत्र में
जिस तेज़ी से हो रहा है उतनी तेज़ी से नागरी मूल्य व्यवस्था (urbanism) का फैलाव
नहीं हो रहा है. या फिर यूं कहे कि नगरीकरण आजीविका का केंद्र बनता हुआ हमेशा
पलायन को बढ़ावा देता है और यह पलायन करनेवाले समूह कि निरक्षरता शहरी क्षेत्र के
साक्षरता दर को नीचे खींचती है. पर ये तीनों ही कारण कुलमिलाकर विकास, आजीविका और
साक्षरता के बीच सह्संबधों पर प्रश्नचिन्ह लगाते है.
साक्षरता
बराबर विकास और आधुनिकीकरण का संरचनावाद से प्रेरित सिद्धांत तब चित हो जाता है जब
साक्षरता के जरिए विषमता और सामंती पितृसत्तात्मक मूल्य अपनी जड़े मज़बूत कर लेते
हैं. या विकास का पहिया उल्टा घुमने लगता है. झुंझुनू, सीकर और जयपुर इन जिलों में
बाललिंगानुपात की गिरावट का सिलसिला पिछले दो दशकों से निरंतर रूप से चला आ रहा
है. और इसका प्रभाव इस दशक में सामने आ रहा है. अब यहाँ जनसंख्या से लडकियां केवल
गायब ही नहीं हो रही आपतु शिक्षा से भी महरूम होती जा रही हैं. झुंझुनू और सीकर के
ग्रामीण क्षेत्र में महिला साक्षरता दर पिछले दशक में मात्र 0.61 और 1.48 बड़ी है.
फिर से याद कर ले, ये दोनों ही वे जिलें है जहां शिक्षा सूचकांक काफी ऊँचा यानि
क्रमश: 0.850 और 0.837 रहा है.(डीईएस और आयडीएस, 2008) 1991 में इन जिलों की
ग्रामीण क्षेत्र में महिला साक्षरता दर अनुक्रम में 22. 00 और 15.47 तो 2001 में
यहीं दर अनुक्रम में 59.25 तथा 55.27 रही है. इसका अर्थ है कि जब 2001 में इन
जिलों के बाललिंगानुपात में भारी गिरावट आने का चलन शुरू हुआ तभी ग्रामीण क्षेत्र
की महिला साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि आयी पर 2011 में यह रफ़्तार ही लगभग रुक
गयी. जब कि झुंझुनू में शहरी क्षेत्र में जहां बाललिंगानुपात में कोई गिरावट नहीं
हुई वहीं महिला साक्षरता की दर में पांच अंक की वृद्धि दर्ज हुई. यहीं चित्र
बाड़मेर और सिरोही में दिखता है जहां 2011 में ग्रामीण क्षेत्र में बाललिंगानुपात
के गिरने के साथ महिला साक्षरता दर में गिरावट आयी या वृद्धि न्यूनतम थी परन्तु
शहरी क्षेत्र में जहां बाललिंगानुपात में गिरावट का अनुपात तुलनात्मक दृष्टी से कम
था वहाँ उसी अनुपात में महिला साक्षरता में वृद्धि पायी गयी है.
ये साक्ष्य
किसी भी सामान्यीकरण और निष्कर्ष पर पहुँचाने के लिए न काफी है यह मानते हुए भी इन
तथ्यों से अनदेखी नहीं की जा सकती. वे भविष्य में संभावित प्रवृत्तियों की और
इशारा कर रहे हैं. राजस्थान मानव विकास रीपोर्ट बताती है कि जिन जिलों में मानव
विकास सूचकांक सबसे अधिक है वहाँ पर भी अधिकतम 35 प्रतिशत स्कूलों में लडकियों के
लिए शौचालय की व्यवस्था है. हमारे विकास की दृष्टि में ये प्राथमिकताएं नहीं है.
मूलभूत सुविधाओं में इतनी विषमता रखकर हम कैसे साक्षरता को पा सकते हैं और ऐसी
पायी साक्षरता स्वाभाविक ही समता मूलक खासकर जेंडर समतामूलक चेतना का विकास नहीं
कर पायेगी.
मूलभूत
सुविधाओं के साथ ही शिक्षा के विषयवस्तु की पडताल होना आवश्यक है. स्कूली शिक्षा
और अधिकाधिक रूप से उच्च शिक्षा जेंडर विषमताओं को पाटने में नाकामियाब रही है.
पूर्वाग्रह के आरोप लगने के खतरे को उठाते हुए भी यहाँ कहना होगा कि हमारी शिक्षा
तकनिकी के ऐसे प्रयोग का प्रसार करने का माध्यम बनती जा रही है जिसमें लडकियां
जन्म से पूर्व लिंगाधारित गर्भपात से इसलिए खत्म की जाती हैं क्योंकि उनका जन्मना
परिवार के लिए घाटे का सौदा है. जब परिवार नियोजन एक जीवन मूल्य की तरह प्रचारित
हो रहा है वहाँ लिंगाधारित नियोजन एक सामान्य भाव बनता जा रहा है. दूसरे बच्चे के जन्म के सन्दर्भ में
पारिस्थितिक बाललिंगानुपात के एक अध्ययन अनुसार जब पहला बच्चा लडकी थी तो
बाललिंगानुपात में खासी गिरावट दर्ज की गयी. सर्वाधिक चिंता का विषय यह था कि यह
गिरावट उन माताओं के सन्दर्भ में कहीं अधिक थी जिन्होंने 10 या उससे अधिक साल तक
शिक्षा पायी थी बनिस्पत उन माताओं के जो निरक्षर थी. और इसी तर्ज पर यह गिरावट
गरीब परिवारों की अपेक्षा समृद्ध परिवारों में कहीं अधिक थी. जब कि अगर पहला बच्चा
लडका था तो दूसरे बच्चे के समय किसी भी लिंगपरिक्षण की भी आवश्यकता परिवार महसूस
नहीं करते थे और न ही किसी प्रकार की उल्लेखनीय गिरावट बाललिंगानुपात में देखी गयी
(झा, 2011)
ऐसे में
सीरे से विचार करना होगा कि विकास की दिशा क्या है और उस में शिक्षा की भूमिका
क्या रहेगी. जेंडर समता व न्याय के बिना न शिक्षा अपनी सार्थक भूमिका निभा पायेगी
और ना ही विकास अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगा. जेंडर आधारित मुद्दों को महिलों के प्रश्न के
रूप में विमर्श की दहलीज़ के बाहर एक झरोके से उन्हें केवल झांकने की अनुमति देकर
प्रतीकात्मक उपस्थिति से न ही इन समस्यों का हल निकलेगा और न ही विकास का रथ आगे
जा पायेगा. हमें राज्य के स्तर पर इसे प्राथमिकता देनी होगी कि जेंडर न्याय व समता
के मूल्यों को पाठ्यचर्या और शिक्षा की आधारभूत संरचना में कैसे शामिल किया जाए ताकि
जेंडर संवेदनशीलता एक जीवन शैली की रूप में समाज के हर एक तबके पनपे. साक्षरता
शिक्षा का एक चरण है वैसे ही प्री कन्सेप्शन प्री नटाल डायग्नोस्टिक टेस्ट
एक्ट (PCPNDT Act) को सख्ती से लागू करना
गिरते बाललिंगानुपात के असंतुलन को कम करने की तरफ एक कदम भर है. राजस्थान के समाज
में जहां संरचान्त्म्क र्रोप से इन कुप्रथाओं की जड़े हो वहाँ शिक्षा और विकास के
अन्य घटकों को अपनी जिम्मेवारी उठानी होगी. समाज में स्त्रियों के लिए अगर सम्मान
होगा, समान अवसर होंगे, समान मूल्य होंगे हिंसा रहित जीवन होगा तभी विकास और
सशक्तीकरण की संभावनाएं अपने आकाश और जमीन पा सकेंगी.
[i] EAG राज्यों में
बिहार,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, राजस्थान,उडीसा,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ये सात
राज्य शामिल है.
[ii] संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी किए गए आंकड़ों
के अनुसार भारत में महिलाओं में जीवन प्रत्याशा 1990 में 59.6 से बढकर 2011
में 65.4 हो गयी है. साथ ही यह भी दर्ज
करना होगा जब भारत में मातृत्व मृत्यु दर (301– 2006 )में कमी आयी है. चिकित्सा
सेवाओं का विस्तार और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में वृद्धि के कारण यह संभव हुआ
है जिसका सीधा प्रभाव लिंगानुपात में निरंतर दो दशकों में आयी वृद्धि के र्रोप में
देखा जा सकता है.
[iii]
भारत सरकार के योजना आयोग के द्वारा
प्रकाशित 11 वी योजना के दस्तावेजों में जब लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे थे तो
स्वस्थ्य संबंधी लक्ष्यों में कहीं भी गिरते हुए बाललिंगानुपात से संबधित लक्ष्य
नहीं है. लिंगानुपात बढ़ाना है, मातृत्व मृत्यु दर में कमीं लाना है. गिरते
बाललिंगानुपात को बढाने का लक्ष्य आता है महिला और बाल विकास के मुद्दों में. साफ़
है कि इसे सरकार स्वास्थ्य संबंधित प्रश्न नहीं मानती और चूँकि इसे अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर केवल आशियाई समस्या के रूप में देखा जा रहा है तो सरकार पर विकास संबंधित
लक्ष्य निर्धारित करने में साक्षरता दर बढ़ाना, लिंगानुपात बढ़ाना, जनसंख्या वृद्धि
कम करना, मातृत्व मृत्यु दर कम करना इन मुद्दों पर जैसा अंतर्राष्ट्रीय दबाव है
वैसा दबाव इस प्रश्न पर नहीं है.
--------------------------------------------
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यु.एन.डी.पी.
(2011) ‘ह्यूमन
डेवलपमेंट रीपोर्ट, 2011’, http://hdr.undp.org/en/media/HDR_2011_EN_Tables.pdf (20.01.12 को देखा गया)
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प्रज्ञा जोशी
स्त्री मुद्दों पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
अच्छा रिचर्स है.
जवाब देंहटाएंआंकड़ा आधारित लेख से सार्थक सवाल उठाये है .
जवाब देंहटाएंआंकड़ों के साथ ठोस बातें। आगे के काम के लिए कई सूत्र निकलते हैं। प्रज्ञा जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशानदार, अच्छा विश्लेषण किया हैं जी, बधाई.
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