हमारे संविधान की उद्देशिका कहती है कि भारत एक समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक
गणराज्य है। संविधान के अनुसार राजसत्ता का कोई अपना धर्म नहीं होगा। संविधान भारत
के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की
समानता का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन कुछ राज्यों में पहले से मौजूद राज्य
सरकारें और अब केंद्र में पूर्ण बहुमत की नरेंद्र मोदी सरकार लगातार प्रशासनिक
संस्थाओं, शिक्षा और संस्कृति के भगवाकरण का प्रयास कर रही
है. हालांकि नरेंद्र मोदी कहते हैं कि 'भारत इक्कीसवीं सदी
में विश्वगुरु बनेगा', लेकिन लक्षण इसके विपरीत दिख रहे हैं.
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद एक तरफ तो देशभर के शिक्षण संस्थानों में एक खास
तरह का राजनीतिक एजेंडा बड़ी खामोशी से लागू करने का प्रयास किया जा रहा है,
तो दूसरी ओर प्रशासन पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के नियंत्रण की
कोशिश के क्रम में संघ के हिंदूवादी कार्यक्रमों में मंत्रियों व अधिकारियों को
शामिल किया जा रहा है.
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ हमेशा यह दावा करता रहा है कि वह सरकारों
के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता। लेकिन संघ की ओर से एक नई पहल चर्चा में है.
केंद्रीय मंत्रियों के सभी निजी स्टाफ को सप्ताह में एक दिन संघ की शाखा में शामिल
होने को कहा गया है. मीडिया में आई खबरों में कहा गया कि हाल ही में संघ के
कर्ता-धर्ताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच मीटिंग हुई, जिसमें संघ ने मंत्रियों से कहा कि वे अपने निजी
स्टाफ को रविवार को संघ की शाखा में जरूर भेजें. संघ के इस प्रस्ताव पर मंत्री
राजी भी हैं. मंत्रियों के निजी स्टाफ को हर रविवार सुबह संघ की शाखा में पहुंचना
होता है. इसके लिए उन्हें एक दिन पहले मोबाइल से जानकारी दे दी जाती है.
दिल्ली में वर्ल्ड हिंदू फाउंडेशन के तत्वावधान में शुक्रवार को
तीन दिवसीय विश्व हिंदू कांग्रेस शुरू हुई, जिसमें विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल ने घोषणा की कि 'दिल्ली में 800 साल बाद पहली बार दिल्ली में हिंदू
स्वाभिमानियों के हाथ सत्ता आई है.' सिंघल ने कहा कि विहिप
का उद्देश्य निर्भीक अजेय हिंदू बनाना है। हिंदू राष्ट्र की घोषणा करने वाले इस
सम्मेलन में दलाई लामा और संघ प्रमुख मोहन भागवत व अन्य लोगों के अलावा सड़क एवं
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति
ईरानी, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण को भी शिरकत करनी है.
दूसरी तरफ संघ और केंद्र सरकार के बीच समन्वय के लिए एक समिति बनाई
गई है और उस समिति की हाल ही में बैठक हुई। बैठक में सरकार का नेतृत्व कृषिमंत्री
राधा मोहन सिंह ने किया। श्रम मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ऊर्जा
मंत्री पीयूष गोयल, कृषि राज्य मंत्री संजीव कुमार बालियान
केंद्र की ओर से शामिल होने वाले अन्य मंत्री थे। आरएसएस की ओर से बैठक में संघ और
भाजपा के बीच समन्वय के लिए हाल ही में नियुक्त कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ संघ पदाधिकारी सुरेश सोनी, भाजपा महासचिव राम
लाल, राम माधव और पी मुरलीधर राव मौजूद थे। बैठक में संघ से
जुड़े संगठनों स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, लघु उद्योग भारती और सहकार भारती के पदाधिकरियों ने भी हिस्सा लिया। खबरों
के मुताबिक, सरकार और संघ के बीच समन्यव की दिशा में पहल की
जा चुकी है। बैठक में आर्थिक गतिविधियों से जुड़े मंत्रियों और संघ पदाधिकारियों
के बीच नीतिगत पर चर्चा हुई. मंत्रियों ने संघ पदाधिकारियों के मशविरों को नोट
किया. बैठक में शामिल एक पदाधिकारी का कहना था कि हाल में सरकार के कई फैसले संघ
की नीतियों के अनुरूप नहीं रहे, ऐसे मुद्दों पर संघ की
नीतियों को लेकर समझ बनाने के लिए यह बैठक हुई और आगे भी होती रहेगी।
शिक्षा की बात करें तो हालत और बदतर हैं. शिक्षा के लिए ऐसे ऐसे
तर्क और ज्ञान पेश किए जा रहे हैं कि कोई हाईस्कूल पास व्यक्ति भी अपना सिर पीट
ले. हरियाणा में भाजपा सरकार बनते ही बच्चों से बीस—बीस रुपये लेकर गोसेवा पर लिखी गई दो किताबें बांटी गई हैं. बीते 30 जून को गुजरात सरकार ने सर्कुलर जारी कर राज्य के 42,000 सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया कि वह पूरक साहित्य के तौर पर दीनानाथ
बत्रा की नौ किताबों के सेट को शामिल करें। इन्हें पढ़ना सब बच्चों के लिए
अनिवार्य होगा। दीनानाथ बत्रा संघ से जुड़ी संस्था विद्या भारती के मुखिया हैं। ये
किताबें पूरी तरह संविधान की उस भावना की धज्जियां उड़ाती हैं कि सरकार वैज्ञानिक
चेतना को बढ़ावा देगी. यह किताबें घोर अज्ञान को बढ़ावा देने वाली और बेहद
हास्यास्पद हैं. किताब की कुछ बानगियां देखें— 'भारत के
नक्शे में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल,
भूटान, तिब्बत, बांगलादेश,
श्रीलंका और म्यांमार अर्थात बर्मा भी शामिल है। ये सब 'अखंड भारत' का हिस्सा हैं।'
बत्रा साहेब की किताब ‘तेजोमय भारत’ का एक हिस्सा देखें—'अमेरिका आज स्टेम सेल रिसर्च का श्रेय लेना चाहता है, मगर सच्चाई यह है कि भारत के बालकृष्ण गणपत मातापुरकर ने शरीर के हिस्सों
को पुनर्जीवित करने के लिए पेटेंट पहले ही हासिल किया है. आपको यह जानकर आश्चर्य
होगा कि इस रिसर्च में नया कुछ नहीं है और डा मातापुरकर महाभारत से प्रेरित हुए
थे. कुंती के एक बच्चा था जो सूर्य से भी तेज था. जब गांधारी को यह पता चला तो
उसका गर्भपात हुआ और उसकी कोख से मांस का लंबा टुकड़ा बाहर निकला. व्यास को बुलाया
गया जिन्होंने मांस के उस टुकड़े को कुछ दवाइयों के साथ पानी की टंकी में रख
दिया. बाद में उन्होंने मांस के उस टुकड़े को 100 भागों में
बांट दिया और उन्हें घी से भरी टंकियों में दो साल के लिए रख दिया. दो साल बाद
उसमें से 100 कौरव निकले. महाभारत में इस किस्से को पढ़ने के
बाद मातापुरकर को अहसास हुआ कि स्टेम सेल की खोज उनकी अपनी नहीं है बल्कि वह
महाभारत में भी दिखती है. (पृष्ठ 92-93)
इसी किताब में वे दावा करते हैं कि 'हम जिसे मोटरकार के नाम से जानते हैं उसका अस्तित्व वैदिक काल में बना हुआ
था. उसे ‘अनश्व रथ’ कहा जाता था. अनश्व
रथ ऐसा रथ होता था जो घोड़ों के बिना चलता था, यही आज की
मोटरकार है, ऋग्वेद में इसका उल्लेख है.' (पृष्ठ 60) बत्रा की यह किताब ऐसे हास्यास्पद
आख्यानों से भरी है. यह विश्वगुरु बनने की तैयारी कर रहे देश के बच्चों को दी जानी
वाली अनिवार्य शिक्षा की बानगी है. यह संयोग नहीं है कि संघ परिवार से संबंधित
तमाम साहित्य ऐसे असाधारण ज्ञान विज्ञान से भरा पड़ा है. क्या स्मृति ईरानी जैसी
कम शिक्षित टेलीविजन अदाकारा को इसीलिए मानव संसाधन मंत्रालय दिया गया ताकि संघ
परिवार बेरोकटोक ऐसी पोंगापंथियों का प्रसार कर सके?
संघ की स्थापना से ही उसका सपना रहा है कि इतिहास को हिंदूवादी
नजरिये से लिखा जाए. केंद्र में नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के बाद येल्लाप्रगदा
सुदर्शन राव को भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद का अध्यक्ष बनाया गया. राव
इतिहासकार के तौर पर इस बात के हिमायती हैं कि महाभारत और रामायण को 'ऐतिहासिक घटनाएं' सिद्ध किया
जाए. अध्यक्ष बने राव ने हास्यास्पद दुस्साहस दिखाते हुए ‘भारतीय
जाति व्यवस्था’ की अच्छाइयां खोज लीं और घोषणा भी कर डाली कि
उनका एजेंडा महाभारत की घटनाओं की तारीख निश्चित करने के लिए शोध कराने का है.
यह सब इत्तेफाक नहीं है. गुजरात और मध्य प्रदेश में भाजपा की
सरकारें पहले से ही ऐसी कोशिश करती रहीं हैं. करीब एक दशक से मध्य प्रदेश के
मिस्टर क्लीन मुख्यमंत्री शिवराज चौहान शिक्षण संस्थानों के भगवाकरण की कोशिश में
लगे हैं. अगस्त 2013 में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने राजपत्र के
जरिये अधिसूचना जारी कर मदरसों में भी गीता पढ़ाया जाना अनिवार्य कर दिया
था. इसमें प्रदेश मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त सभी मदरसों में कक्षा तीन से आठ
तक सामान्य हिंदी की तथा पहली और दूसरी की विशिष्ट अंग्रेजी और उर्दू की
पाठ्यपुस्तकों में भगवतगीता में बताए प्रसंगों पर एक एक अध्याय जोड़े जाने की
अनुज्ञा की गई थी और इसके लिए राज्य के पाठ्य पुस्तक अधिनियम में बाकायदा जरूरी
बदलाव भी किए गए थे. विवाद पैदा हुआ तो अपने को भाजपा के अटल विहारी वाजपेयी साबित
करने की कोशिश कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह निर्णय वापस ले लिया.
इसके पहले 2011
में ही शिवराज सरकार स्कूलों के पाठ्यक्रम में गीता लागू करवा कर चुकी थी. शिवराज
सरकार ने शासकीय स्कूलों में योग के नाम पर ‘सूर्य नमस्कार’
भी अनिवार्य किया था, बाद में उसे ऐच्छिक विषय
बना दिया गया. स्कूल शिक्षकों को ऋषि कहकर संबोधित करना हो या मिड डे मील के पहले
भोजन मंत्र पढ़ाने का आदेश, यह सब संस्थानों के भगवाकरण की
ही कड़ी थे. वर्ष 2009 में मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की पत्रिका देवपुत्र को सभी स्कूलों में अनिवार्य तौर पर पढ़ाए जाने
का फैसला लिया था. संघ और भाजपा की प्राथमिकता शिक्षा का स्तर सुधारने और उसे
वैज्ञानिक बनाने के बजाय हिंदू शिक्षा देने की है जिसकी वकालत आए दिन दीनानाथ
बत्रा या बाबा रामदेव करते रहे हैं.
शिक्षा का अधिकार कानून अब तक पूरे देश में लागू नहीं हो सका है.
पूरे देश के बच्चे कुपोषण और अशिक्षा से जूझ रहे हैं. ऐसे में संघ के रिमोट से चल
रही केंद्र और राज्य सरकारें देश भर के संस्थानों में हिंदू एजेंडा लागू करने में
जुटी हैं. यह देश के सौ सालों के स्वतंत्रता संघर्ष की विरासत और भारतीय संविधान
की आत्मा को ध्वस्त करने की कोशिशें हैं. कालांतर में इनके परिणाम भयावह होंगे.
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लेखक युवा पत्रकार हैं तथा सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर नियमित लिखते हैं.
बढ़िया पोस्ट
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