चुम्बन
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क्या है खजुराहो के बुतों में
निर्लज्ज यौनता
बलात्कृत मुद्राएं
मदभीने एकाग्र चुम्बन
एक औरत अपनी इच्छा से नहीं गई होगी बुतों के बीच
न अपनी इच्छा से होने दिया होगा उसने
जो घटता दिखता है चार-चार पत्थरों से घिरा अमानुषिक
किसी पशु के नीचे अपनी इच्छा से नहीं लेटी होगी
हमेशा देखें उसकी इन विवशताओं को लोग उसने कभी नहीं चाहा होगा
हमेशा देखें उसकी इन विवशताओं को लोग उसने कभी नहीं चाहा होगा
एक समाज था वह भी
उसमें धर्म, अर्थ काम और मोक्ष के
दर्शन के
जनता को भरमाने
उसके अजस्त्र जुझारूपन को सोख जाने के
अपने रास्ते और औज़ार थे
आज वही समाज नहीं हैं
तो वही स्त्री और वही पुरुष क्यों है
उस समाज में उस स्त्री की आत्मा और देह के लिए प्रेम हो
लगाव हो
आकर्षण हो
ज़रूर चाहा होगा उसने
पर उसका एक अनावृत्त
यौनरत स्थापत्य और इतिहास हो
ऐसी इच्छा तो नहीं ही रही होगी
उसकी
यह सोचना ग़लत नहीं
कि कुछ मादक चुम्बन ज़रूर लिए और दिए होंगे
उसने अपनी इच्छा से
अपनी अग्नि और अपनी वर्षा में जीते हुए
पर कैसा विकास यह समाज का
बलात्कार होते ही जा रहे हैं
गुनाह करार दे दिए गए
चुम्बन
और लज्जा?
हां, वो तो ज़रूरी ही है उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है मनुष्यता
जिसके न होने पर
बात ही नहीं की जा सकेगी लज्जा के बारे में
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आत्मा का आवारा
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बचने का प्रसंग चलता है तो जानता हूं
तू बचा है मेरी आत्मा में
तो एक आवारग़ी बची है मुझमें मेरी आत्मा होकर
पहाड़ पर
एक ढलान से सड़क पर आयी मिट्टी
डाल दी जाती है दुबारा
सड़क के पार दूसरे ढलान पर
राह बनाने के लिए यह करना ज़रूरी है
मेरी आत्मा का आवारा वही मिट्टी है
वहीं मैं हूं एक से दूसरा ढलान
ढलानों का पूरा सिलसिला
राह वही दुनिया है जिसमें बसे हम
सरलता की कठिन कामना में
कोशिश भर अपने होने के झोल-झाल को
किसी के न होने के कुछ नाज़ुक टांकों से कसे
टांकों में प्रेम है
जो दिखता नहीं देह में ही गल जाता है
उसे जोड़ता है
ज़्यादा बड़े चीरों और घावों के लिए
प्रेम की तरह एक विचार है
दशकों से धड़कता
वह हर सड़न का भीतरी उपचार है
रुग्णता के प्रतिरोध में बढ़ने वाले कणों और कोशिकाओं में
उसी के कुछ रूपक हैं
जीवन को बचाते बसाते अनाचारों के सीमान्तों तक
प्रेम और विचार में सधी
एक आवारा धुन
गीत से वंचित बजती रहती है जब शरीर में
तो परिचित कहते हैं
तुम ख़ुश हो
सेहतमंद हो आजकल
सच है
हर किसी की आत्मा में एक आवारा रहता है
अफ़सोस
कि प्रेम और विचार रहते नहीं
हर आवारा आत्मा में
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बहुत बढ़िया और सार्थक कविताएं हैं।
जवाब देंहटाएंयह सोचना ग़लत नहीं
कि कुछ मादक चुम्बन ज़रूर लिए और दिए होंगे
उसने अपनी इच्छा से
अपनी अग्नि और अपनी वर्षा में जीते हुए
पर कैसा विकास यह समाज का
बिलकुल सही लिखा है
सच है
हर किसी की आत्मा में एक आवारा रहता है
अफ़सोस
कि प्रेम और विचार रहते नहीं .
हर आवारा आत्मा में
प्रेम प्रेम तो अनुभूति है। प्रेम शब्द जितना गलत समझा जाता है, उतना शायद भाषा में कोई दूसरा शब्द नहीं! प्रेम के संबंध में जो गलत समझते हैं, उसका ही वजह इस दुनियां के सारे उपद्रव, हिंसा, कलह, द्वंद्व और संघर्ष हैं।