अभी बात लिव इन की हो रही थी और वर्षा मिर्ज़ा ने बताया कि जयपुर में एक आदमी ने अपनी बीबी को बस इसलिये मार डाला कि उसके मेंहदी के बीच मे R लिखा था और पति को शक़ था कि यह उसके प्रेमी के नाम का पहला अक्षर था…इधर टीवी पर एक शो 'इमोशनल अत्याचार' बाक़ायदा लायल्टी टेस्ट करा रहा है…बाज़ार है तो फिर कुछ भी बाज़ारु बनाया जा सकता है…प्यार, शक़, विश्वास…पढ़िये डेली न्यूज़ की इसी आशय की रिपोर्ट
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पूरा लेख तो नहीं पढ़ा. सिर्फ़ वर्षा मिर्ज़ा को पढ़ा. शक एक मनो वैज्ञानिक विकार है, जो स्त्री-पुरुष दोनों में से किसी को भी हो सकता है. पर इसका परिणाम अलग होता है. औरतें जहाँ अपने पार्टनर पर शक करके कुढ़-कुढ़कर खुद ही मरती रहती हैं. पति हो तो छोड़ा जा ही नहीं सकता क्योंकि हमारे समाज में तलाक के बाद औरत को ही भुगतना पड़ता है. पर प्रेमी को भी औरत इसलिये नहीं छोड़ पाती क्योंकि हमारे यहाँ लड़कियों को अत्मनिर्भर नहीं बनाया जाता. यहाँ बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि सफेद घोड़े पर चढ़कर एक राजकुमार आयेगा और उन्हें अपने साथ ले जायेगा क्योंकि ये घर तो उनका है नहीं. लड़कियाँ जब किसी तरह अपने राजकुमार को पा जाती हैं, तो छोड़ने की कल्पना नहीं कर पातीं. हमारे समाज की बनावट ऐसी है कि उन्हें अकेले रहने में ही डर लगता है.
जवाब देंहटाएंदूसरी तरफ प्रेमी जब शक करता है, तो उसके अहं पर चोट लगती है, जैसा कि वर्षा ने कहा है कि वह अपनी प्रेमिका या पत्नी को अपनी संपत्ति समझता है और किसी भी तरह का शक उसके पौरुष को चुनौती देता है. परिणामस्वरूप वह हिंसक हो जाता है. वो भी छोड़ता नहीं, पर उसका कारण असुरक्षा नहीं, अपमान होता है. ऐसे कैसे छोड़ दे बिना सबक सिखाये.
और भी विसंगतियाँ हैं समाज में जिनकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक विकारों से होती है, पर परिणाम स्त्री-पुरुष दोनों के लिये अलग-अलग होते हैं.
पहले सरसरी तौर पर यह लेख पढ़ा था,और मुझे लगा यह शायद उस हादसे की रिपोर्ट भर है...पर यहाँ तो अच्छा खासा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है. शक के बिना पर ना जाने कितनी मासूम जिंदगियां तबाह हुई हैं.. इतना ज्यादा पजेसिव होना किसी मानसिक बिमारी का ही द्योतक है कि जान लेने पर ही उतारू हो जाएँ. कितनी सारी कुंठाएं जीवन भर पलती रहती हैं और उनका प्रतिफल इस रूप में देखने को मिलता है.
जवाब देंहटाएंऔर उस इमोशनल अत्याचार जैसा disgusting दूसरा प्रोग्राम नहीं देखा. . देखा तो मैंने वह भी नहीं .बस प्रोमोज देखे थे. पर बिलकुल मानसिक दिवालियेपन का सबूत है वह प्रोग्राम .और आज यहाँ देखा कि बिशन सिंह बेदी के बेटे का प्रोग्राम है.इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.पर एक जाने पहचाने नाम का इस से जुड़ा होना..more disgusting
फिर भी यह सब वो है जो दिखाई दे रहा है....अदृश्य अभी इससे भी अधिक है...
जवाब देंहटाएंखैर..मनोवैज्ञानिक विकार कहने की बात से सहमत हूँ...मगर इस बात को थोडा और दूर जाकर छोड़ना पड़ेगा.....ये आस पास भटकने वाले मसले हैं... और इन सबकी मूल कड़ी...निदान के लिए इस मूल कड़ी में मट्ठा डालने की अकेली वैचारिक नीति सही नहीं है....आगे आगे देखिये होता है क्या... आप खुद डरेंगे आप पक्षधर किसके हैं..और किसके विपक्ष में...
Nishant kaushik
www.taaham.blogspot.com
इस विषय पर इससे बेहतर विश्लेषण नामुमकिन है। वर्षा को लख-लख बधाई।
जवाब देंहटाएंइस विषय पर इससे बेहतर विश्लेषण नामुमकिन है। वर्षा को लख-लख बधाई।
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