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सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

सूरज को चुगता कवि बर्फ की चट्टान पे


सूरज को चुगता कवि बर्फ की चट्टान पे

वह सूरज को चुगता था. वह भी दुपहरी के लाल तपते सूरज को, उसकी कलम ने चुनौति दी हर किसी को, जो अपने गर्व मे मगरूर रहा। उसकी जीभ पर तेजाब की एक बून्द टिकी रहती थी, जिसे वह हर दम देशी ठर्रे से सूखने नहीं देता, वह अन्य महान केरलीय कवियों की तरह शानदार गाड़ियों में नहीं घूमता, विशाल मकान में नहीं रहता, किसी संस्था का सफेद हाथी बन सुख सुविधाएँ नहीं कमाता, किसी अध्यापन की दूकान में नौकरी नहीं करता था, वह आजाद था, गलियों का बादशाह, फकीरों का राजा... उसकी कविताएँ उन छात्रों को पढ़ाई जाती, जिन्हें अक्षरों से भी मोह नहीं, वह किसी अवार्ड के पीछे नहीं भागा, और अवार्डों ने भी उसे अनदेखा कर दिया...

फिर भी वह मलयालम कविता के इतिहास में आधुनिक कवि के रूप में दर्ज है.

फिर भी उसके बिना मलयालम कविता की यात्रा पूरी नहीं हुई

केरल में आए दिन होने वाले जलसों में, सभी कवि भाग लेते, किन्तु वह कभी कभार ही बुलाया जाता, बुला ले, तो पता नहीं किस की पोल खोल दे, किस को फटकार दे,

ऐसा नहीं कि वह माँगता नहीं था, किन्तु अवार्ड या गद्दी नहीं, बस थोड़ी सी चाय, या फिर देसी ठर्रे का दाम,

लेकिन वह उन कंगले साहित्यकारों के बीच राजा था, जो माँग माँग कर अवार्ड लेते हैं. जो हर गद्दी को अपनाना चाहते है।

उसने अपना कोई साहित्यिक मठ नहीं बनाया. कोई शाखा नहीं खोली, फिर भी कविता को प्यार करने वाला हर युवा उससे प्यार करता था।

वह अपनी शर्तो पर जीया, और अपनी शर्तों पर मर गया।

रात में किसी को लावारिस लाश दिखी तो अस्पताल भेज दिया गया, वही शिनाख्त करने से पता चला कि ये तो कवि अय्यपन हैं। फिर क्या था, आनन फानन अखबार , सूचना संचार की भीड़ जमा हो गई, फकीरों का राजा साहित्य का मसीहा जो था। सरकारी तन्त्र भी सजग, केरल में कवि को जीते वक्त राजनीतिक पार्टी का और मरते वक्त सरकारी सलामी का सामना जरूर करना पड़ता है। कोई मना कर भी दे तो क्या। कवि अय्यप्प पणिक्कर अपनी बसीयत में लिख कर गए थे कि उन्हे सलामी ना दी जाए, फिर भी सरकार को आदमी की मौत को भी अपने अनुसार चलाती है। उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें सलामी दी गई थी।

अब अय्यप्पन जो सूरज को चुनौती देने वाले शब्द लिखता था, जिसे तेजाब से प्रेम था, जो आग उगलता था, तीन दिन से बर्फ की शिला पर लेटे हैं, क्यों कि केरल के सांस्कृतिक मंत्री को पंचायत के चुनावों के कारण कवि को सलामी देने का अवकाश नहीं है। वयोवृद्ध साहित्यकार सुकुमार अषिकोड चिंघाड़ रहे हैं, अरे भई, यूँ ठण्डी मत करों इस गरम कवि की आत्मा को जाने तो उसी तरह, जिस तरह जीया था. लेकिन सरकार तो राजा है ना, जीना ही नहीं , मरना भी उसके कायदे कानून से।

मलयालम के महान कवि अय्यप्पन की चिता अब कल मंगलवार को जलेगी, पता नहीं उसकी आत्मा इंतजार करेगी या नहीं, या चल पड़ेगी, सीधे सूरजो के देश , उन्हें जाकर ललकारने को

अय्यप्पन , तुम्हे शत सूरज प्रणाम!



फेसबुक पर रति सक्सेना जी का श्रद्धांजलि नोट…रति जी की नेट मैगजीन कृत्या से तो आप सब परिचित हैं ही…

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