तुमने वर्षांत पर मुझे एक बाली दी धान की
क्वांर में उजाली दी कांस की
कातिक में झउया भर फूल हरसिंगार के
अगहन में बंसी दी बांस की
माघ में दिया मुझको अलसी का एक फूल
फागुन में छटा दी पलाश की
चैत में दिया मुझको नया जन्म
नहर की मछलियाँ दीं मुझको वैशाख में
जेठ में मुझे सौंपी प्रिय, तुमने बेकली
छुआ, हरा किया मुझे, वर्षा के पाख में.
मैं लेकिन जल भर भर लाता हूँ आँख में
क्या जाने मेरा मन कैसा हो आता है
क्या कुछ ढूँढा करता हूँ पीछे
छूट गए वर्षों की राख में
क्या जानूं क्यों पीछे और लौट जाता हूँ.
मैं बारह मास में
लगता है बोए थे मैंने जो हीरे-मोती इस आकाश में
जीवन ने बिखरा दिया है सब, यहाँ-वहां घास में.
छुछापन सोया है मन के समीप, बहुत पास में
मैंने क्यों बोए थे हीरे-मोती इस आकाश में?
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