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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

रघुवीर सहाय के जन्मदिन पर

(आज रघुवीर सहाय का जन्मदिन है...इस अवसर पर उनकी कुछ स्त्री और प्रेम विषयक कवितायें )
औरत की ज़िंदगी 
कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया

उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा


चढ़ती स्त्री
बच्चा गोद में लिए
चलती बस में
चढ़ती स्त्री


और मुझमें कुछ दूर घिसटता जाता हुआ।

पढ़िए गीता
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइये।


होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये।


हम दोनों

(बट्टू जी के लिए)

हम दोनों अभी तक चलते-फिरते हैं
लोगबाग़ आते हैं हमारे पास
हम भी मिलते-जुलते रहते हैं
एक हौल बैठ गया है मगर मन में
कि यह सब बेकार है
हममें से किसी को न जाने कब
जाना पड़ जा सकता है
हम दोनों अकेले रह जाने को
तैयार नहीं।

(बट्टू जी यानी कवि-पत्नी विमलेश्वरी सहाय)

नारी 
नारी बिचारी है
पुरूष की मारी है
तन से क्षुधित है
मन से मुदित है
लपककर झपककर
अन्त में चित है

जब मैं तुम्हे


जब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ
किस तरह मन इतना अकेला हो जाता है?


सारे संसार की मेरी वह चेतना
निश्चय ही तुम में लीन हो जाती होगी।


तुम उस का क्या करती हो मेरी लाडली--
--अ‍पनी व्यथा के संकोच से मुक्त होकर
जब मैं तुम्हे प्यार करता हूँ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. जन्मदिन पर शुभकामनायें ...सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं

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  2. बिना पढ़े फिलहाल यह कहना चाहुगा कि रघुवीर सहाय आज से पांच साल पहले जब पटना पुस्तक मेले में मिले तो अत्यंत नीरस, अबूझ और बेकार लगे थे तब कुछेक शायर पसंद थे... पर जब पत्रकारिता कि राह थामी तो लगा यह कैसा आदमी था एक बानगी
    "समय आ गया है जब तक कहता रहता है सम्पादकीय,
    जबकि मैं यही बात १०-२० बरस पहले कह चुका होता हूँ "

    कुछ ऐसा ही था.. पत्रकारिता इनका ऋणी है और आधुनिक कविता भी

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  3. क्या चुन-चुन कर मोती लाया है आपने.....एक-एक कविता स्तंभित कर देती है...अद्भुत कविताएँ..

    बहुत बहुत शुक्रिया उन्हें पढवाने का...रघुवीर जी के जन्मदिन पर इस से ज्यादा अच्छी तरह उन्हें याद नहीं किया जा सकता

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  4. अशोक भाई ये कविताएं रघुवीर सहाय जी का असली परिचय नहीं देतीं। चयन में और सावधानी की जरूरत थी।

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  5. राजेश जी ...आपके कहे से पूरी सहमति है...यह सहाय जी की मुकम्मल तस्वीर नहीं... असल में मुझे नहीं लगता की जनपक्ष के पाठकों या हिन्दी के किसी भी गंभीर पाठक को रघुवीर सहाय के किसी परिचय की ज़रुरत है...मै बस अस्मिताओं के इस शोर में यह कहना चाह रहा था की कैसे उन्होंने स्त्री विषयक अद्भुत कवितायें लिखी थीं और कभी उन्हें किसी खांचे में बांधने की ज़रुरत नही पड़ी

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  6. यह कविताएँ रघुवीर सहाय का परिचय देने के लिये नहीं है वरन स्त्री पर उनकी लिखी कविताओं के लिये है और कविताएँ अद्भुद हैं इसमें कोई दो राय नहीं।

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  7. माफ करें नारी और पढ़ें गीता जैसी कविताओं को अद्भुत नहीं कहा जा सकता। अद्भुत शब्‍द का उपयोग करने वाले जरा फिर से अपने कहे पर विचार करें।
    और मैं यह समझता हूं कि यहां रघुवीर सहाय का परिचय नहीं दिया जा रहा है, पर किसी के जन्‍मदिन पर जब आप कविता लगा रहे हैं तो कृतित्‍व से ही परिचित करा रहे हैं। अन्‍यथा स्‍त्री विषयक या कोई अन्‍य विषयक कविता कभी भी लगाई जा सकती है।

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  8. ठीक है राजेश भाई…अद्भुत वाली असहमति को अपनी जगह पर छोड़ते हुए कल उनकी कुछ और प्रतिनिधि कवितायें लगाता हूँ

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  9. आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

    http://charchamanch.uchcharan.com
    .

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  10. जन्मदिन पर शुभकामनायें .

    एक से एक नायाब मोती……………गज़ब की रचनायें।

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