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शनिवार, 25 दिसंबर 2010

विनायक सेन…तुम अमेरिका क्यूं नहीं चले गये…

काहे पगलाये थे बिनायक बाबू!

आपकी उम्र का कोई डाक्टर ऐसे फटीचर की तरह रहता है? सड़ियल कुर्ता पहने कोई चिरकुट लगते हैं…ऐसे होते हैं क्या डाक्टर? हमारे शहर में आईये दिखाता हूं कि कल का एम बी बी एस भी कैसे शानदार सूट पहने लंबी गाड़ी में घूमता है और आप…आख़िर में गाड़ी मिली भी तो सरकारी…वह भी 16 पहिये की! ग़ल्ती की है तो भुगतो…हम क्या करें।

किसने कहा था कि जाकर उस गांव में बस जाओे…बिना पैसे के उन फटेहालों का इलाज करो…घूम-घूम के टीके लगाओ…बच्चों की जान बचाओ…ये सब डाक्टर का काम होता है क्या? हिन्दुस्तान को क्यूबा समझ लिये थे क्या बाबू? यह चे और फिदेल का क्यूबा नहीं है भाई … गोलवलकर और टाटा का हिन्दुस्तान है! इतना ही शौक था समाजसेवा का तो किसी मंदिर में लाख-दो लाख चढ़ा दिये होते…किसी ओर्टिस-फोर्टिस में नौकरी करते हुए किसी नेता के बिटवे को बचा लिये होते…अब तुम पगलाये हुए थे तो भुगतो…हम क्या करें।


और डाक्टर का राजनीति में क्या काम? मर रहे थे लोग तो मरने देते सलवा जुडूम में। जब सलवा जुडूम नहीं था तब भी मरने के कम बहाने थे क्या? तुम्हें क्या पड़ी थी फटे में टांग देने की। और नहीं तो उस क़ानून के ख़िलाफ़ ही भिड़ गये…नहीं देखा जा रहा था तो अमेरिका चले गये होते…पर तुम पर तो पता नहीं कौन सा भूत सवार था…और सवार था तो भुगतो…हम क्या करें।

हम क्या करें बिनायक बाबू…हमारा ख़ून तो ख़ुद खौल रहा है…तुम्हारा चेहरा सोने नहीं दे रहा रात भर…हम भी तो चाहते हैं कि कहीं भाग जायें…पर इतना आसान होता है क्या?…लड़ने की ज़िद से तौबा कर लेना मुमकिन होता है क्या पागलों के लिये…कहो न बिनायक बाबू…हम क्या करें?

17 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय प्रश्न। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    एक आत्‍मचेतना कलाकार

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  2. अपना सब कुछ खोने के शर्त पर भी व्यवस्था के विरुद्ध जाकर गरीबों और शोषितों के लिए जो भी लडेगा उसका भारत में यही हश्र होगा.
    करोड़ों के हीरे बिना कस्टम ड्यूटी चुकाए लाने पर रईसजादी (मफतलाल कन्या) के धडाधड फोटो खींचते हैं और अगले दिन अख़बार में छपता है की उसने 'जील की दाल रोटी खाई और नलके का पानी पिया'. दूसरी और सड़क के किनारे चना, अमरुद बेचनेवाली बूढी औरतों की अतिक्रमणकारी मानकर बेरहमी से पिटाई होती है और उनकी डलिया तराजू जब्त कर लिए जाते हैं (इंदौर की घटना).

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  3. na kisi ne binayak babu ko kaha ki fatehal sthitiyon ke beech jeevan talasho na kisi ne kaha ki ese shakhs ke baare me likho fir bhi na jane yah kaisa sirfrapan hai, har mushikl bhugatne ko majboor karta hai sirfiro ko.

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  4. अशोक कुमार पाण्डेय, इस लेख के बाद शायद मैं इस नाम को कभी भूल नहीं पाऊंगा. तरंगित....कर दिया.

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  5. विनायक सेन को आजीवन कारावास की खबर पढ़कर मुझे शंका होने लगी हैं कि क्‍या सचमुच हिन्‍दुस्‍तान में रह रहे हैं। यानी अब घोटाले करने वाले आजाद घूमेंगे और शोषण के खिलाफ लड़ने वाले जेल में रहेंगे। सही है शोषण के खिलाफ लड़ने वाले मुठ्ठी भर ही हैं,उन्‍हें सबको जेल में भर दो। बाकी सारे आजाद रहें।

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  6. गुस्सा सही

    किसी ने नही कहा
    पर
    अच्छे लोग
    किसी की नही अपनी करते है
    विनायक जी ने वही किया.

    विनायक जी को मेरा सलाम
    मेरी इस कविता से




    राजद्रोह है
    हक की बात करना।


    राजद्रोह है
    गरीबों की आवाज बनाना।


    खामोश रहो अब
    चुपचाप
    जब कोई मर जाय भूख से
    या पुलिस की गोली से
    खामोश रहो।


    अब दूर किसी झोपड़ी में
    किसी के रोने की आवाज मत सूनना
    चुप रहो अब।


    बर्दास्त नहीं होता
    तो
    मार दो जमीर को
    कानों में डाल लो पिघला कर शीशा।


    मत बोलो
    राजा ने कैसे करोड़ों मुंह का निवाला कैसे छीना,
    क्या किया कलमाड़ी ने।


    मत बोला,
    कैसे भूख से मरता है आदमी
    और कैसे
    गोदामों में सड़ती है अनाज।


    मत बोलो,
    अफजल और कसाब के बारे में।
    और यह भी की
    किसने मारा आजाद को।


    वरना


    विनायक सेन
    और
    सान्याल की तरह
    तुम भी साबित हो जाओगे
    राजद्रोही


    राजद्रोही।




    पर एक बात है।
    अब हम
    आन शान सू
    और लूयी जियाबाओ
    को लेकर दूसरों की तरफ
    उंगली नहीं उठा सकेगें।

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  7. पाँडेय जी आज ही अख़बार में भी पढ़ा इस बाबत| सच में इस विषय को और समझने की आवश्यकता है|
    हमारे ब्लॉग्स पर भी पधारें:-
    http://thalebaithe.blogspot.com
    htto://samasyapoorti.blogspot.com

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  8. यथार्थ और व्यंग्य-दृष्टि, दोनों ही तरह से प्रभावकारी lekh है।

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  9. संजयजी ग्रोवर से पूरी तरह से सहमत...
    यथार्थ और व्यंग्य-दृष्टि, दोनों ही तरह से प्रभावकारी लेख है।

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  10. vinayak k bare me padkar hansana aur rona sath sath aata he. hansana adalat aur desh k nyay par, rona in halaton me koi kya kare vinayak..............

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  11. प्रतिरोध का दमन व्यवस्था करेगी ही...
    इस को बेनकाब करने की जरूरत है...मुखौटा उतार फैंकने की...

    वाकई...विनायक तुम पागल ही थे...
    ‘जनता पागल हो गई है’ का पागल चरित्र याद हो आया...

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  12. विचारणीय प्रस्तुति.विनायक जी के साथ अच्छा नहीं हुआ....

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  13. न जाने कब देश में अन्याय के खिलाफ माहौल बनेगा. न जाने कब तक अपराधी
    खुले घूमते रहेंगे और विनायक सेन जैसे लोगों को आजीवन कारावास मिलता रहेगा.
    न जाने कब तक हमारे जिस्म सिर्फ जीने की रस्म अदा करते रहेंगे...

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  14. बहुत जोरदार लिखा आपने। आप भी सचेत हो जाइए....
    दुश्यंत कुमार ने पहले ही लिख दिया था

    मत कहो आकाश में कोहरा घना है...
    ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।

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