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बुधवार, 14 अगस्त 2013

फेसबुक और अभिव्यक्ति का जोखिम - वीरेन्द्र यादव

कँवल भारती की गिरफ़्तारी और उसके बाद अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर लेखकों के प्रतिरोध के क्रम में वीरेन्द्र यादव का यह लेख शुक्रवार के ताज़ा अंक में प्रकाशित है.




फेसबुक पर टिप्पणी लिखने के कारण विगत सप्ताह चर्चित दलित लेखक कँवल भारती की गिरफ्तारी ने जहाँ  सत्ता मद में डूबे राजनेताओं के अहंकार को बेपर्दा  किया है वहीं सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को भी उजागर  किया है . पिछले वर्ष शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे संबंधी  टिप्पणी के कारण मुम्बई में दो छात्राओं की गिरफ्तारी के बाद  फेसबुक टिप्पणी के चलते राजनेताओं की शह पर पुलिसिया कारवाई की यह दूसरी बड़ी घटना है..गनीमत यह है कि दोनों ही घटनाओं में न्यायिक हस्तक्षेप ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की है . उ.प्र. के रामपुर जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फेसबुक पर टिप्पणी लिखे जाने को अपराध न मानते हुए कँवल भारती को तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया .लेकिन हैरत और चिंता की बात यह है कि उ.प्र.सरकार के जिस बडबोले काबीना मंत्री के समर्थकों के रोष का शिकार कँवल भारती हुए हैं वे  अब पुलिस पर दबाव बनाकर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में गिरफ्तार किये जाने की मांग कर रहे हैं .
     
दरअसल इस पूरे मसले की शुरुवात नोएडा की निलंबित आई ए एस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के पक्ष में बनते जन दबाव का परिणाम है .कँवल भारती ने 4अगस्त को  फेसबुक पर यह टिप्पणी  लिखी  कि , आरक्षण और दुर्गाशक्ति नागपाल इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार पूरी तरह फेल हो गयी है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आज़म खां और मुलायम सिंह (यू.पी. के ये चारों मुख्य मंत्री) इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार की पीठ कितनी ही ठोक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि जनता से पूरी तरह कट गये हैं) वह यह है कि जनता में इनकी थू-थू हो रही है, और लोकतंत्र के लिए जनता इन्हें नाकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गये हैं. ये अपने पतन की पट कथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गये इन लोगों को समझाने का मतलब है भैस के आगे बीन बजाना.''
  
इसके पूर्व 2 अगस्त की टिप्पणी में उन्होंने लिखा था कि ,   “आपका "आज तक" कैसे सबसे तेज है? आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवा कर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने पर जेल भेज दिया गया जो अभी भी जेल में ही है. अखिलेश की सरकार ने रामपुर में तो किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया. वह इसलिए कि रामपुर में आज़म खां का राज चलता है, अखिलेश का नहीं. उनको रोकने की मजाल तो खुदा में भी नहीं है”.
        
कँवल भारती रामपुर के ही हैं जहाँ आज़म खां की मर्जी सर्वोपरि है . दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले के समानान्तर रामपुर में मदरसा गिराने के सच को उजागर करना ही कँवल भारती की गिरफ्तारी और उत्पीड़न के मूल में है .फेसबुक की प्रकृति और खुलेपन को देखते हुए कँवल भारती की टिप्पणी में अपने जनतांत्रिक मत की अभिव्यक्ति ही की गयी  है . सैकड़ों लोगों ने इस टिप्पणी को ‘लाईक’ और शेयर  भी किया है .उ.प्र. में आरक्षण और दुर्गा शक्ति नागपाल के मसले पर सरकार को अख़बारों  और फेसबुक की  सैकड़ों टिप्पणीयाँ के माध्यम से पहले ही प्रश्नांकित किया जा चुका है .इसलिए कँवल भारती पर कारवाई के मूल में रामपुर की स्थानीय राजनीति और आज़म खां के समर्थकों का सत्ता मद ही है .यह अनायास नहीं है कि कँवल भारती के विरुद्ध पुलिस में प्राथमिकी आज़म खां के स्थानीय मीडिया प्रभारी द्वारा ही दर्ज कराई गयी है . उल्लेखनीय यह भी है कि भारतीय दंड संहिता की जिन धारा 153  व 295 ए के अंतर्गत कँवल भारती के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है ये वही धाराएँ हैं ,जिनके अंतर्गत वरुण गांधी के विरुद्ध साम्रदायिक विद्वेष फ़ैलाने का मामला दर्ज किया गया था . जबकि कँवल भारती की फेसबुक टिपण्णीयों में किसी धर्म और सम्प्रदाय का न तो कोई उल्लेख है और न कोई उत्तेजक कथन . निश्चित रूप से  गिरफ्तारी की यह पुलिसिया कारवाई राजनीतिक दबंगों की प्रशासन से आपराधिक सांठ गाँठ का ही नमूना है . यह वास्तव में चिंता की बात है कि राजनीतिक दबंगई का सहारा लेकर उत्तर  प्रदेश ही नही देश के अन्य हिस्सों में भी प्रतिरोध की  जनतांत्रिक आवाजों का दमन किया जा रहा है .  भय का ऐसा वातावरण बनाने के दुष्प्रयास जारी  हैं ताकि लिखने पढने वालों का  जोखिम के इलाके में हस्तक्षेप दूभर हो जाये.
     
यह  दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समूचे घटनाक्रम में कँवल भारती के रूप में एक ऐसे धर्मनिरपेक्ष और वाम चेतना से लैस अम्बेदकरवादी  बुद्धिजीवी की घेरेबंदी की गयी है जिसकी दलित विमर्श में एक हस्तक्षेपकारी भूमिका रही है.संकीर्ण राजनीतिक नजरिये से दूर कँवल भारती ने ‘कांशीराम के दो चेहरे’ सरीखी पुस्तक तब लिखी थी जब मायावती का शासन था और वे स्वयं राजकीय सेवा में थे .अपनी एक दर्ज़न से अधिक पुस्तकों में उन्होंने वर्णाश्रमी ब्राह्मणवाद का क्रिटीक रचते हुए एक समतावादी समाज का विकल्प प्रस्तावित किया है .उन्होंने अपने लेखन में दलित अतिवाद का भी विरोध किया है .यही कारण है कि समूचा बुद्धिजीवी समाज आज उनके पक्ष में एकजुट है .सोशल मीडिया पर भी उनके पक्ष में व्यापक एकजुटता देखने को मिल रही है .मानवाधिकार कार्यकताओं ने भी इस मसले पर मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप की मांग की है .

    
यह आश्वस्तकारी है कि देश के तीनों बड़े लेखक संगठन प्रगतिशील लेखक संघ ,जनवादी लेखक संघ और जनसंस्कृति मंच सहित  स्वतंत्र लेखकों ,बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों ने भी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला मानते हुए अपना रोष और प्रतिरोध दर्ज कराया है और प्रदेश सरकार से कँवल भारती पर से तुरंत मुकदमा हटाने और माफी मांगने की मांग की है . एक अहंकारी मंत्री के समर्थकों के चलते कँवल भारती की गिरफ्तारी का  यह प्रकरण दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन की घटना के बाद उ.प्र. सरकार की जनतांत्रिक छवि पर बडा कलंक है .उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की  रक्षा करते हुए अपनी दिनोदिन गिरती शाख को और अधिक गिरने से बचायेगी .

संपर्क : 09415371872.
  

.” 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन कुछ लोग तो कनवाल भर्ती को सांप्रदायिक भी कह रहे हैं...

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  2. सभी लेखकों को कंवल भारती के साथ होना चाहिए। वीरेन्‍द्र यादव की पहलक़दमी अनुकरणीय है। जो कुछ कंवल भारती ने कहा उससे अधिक विपक्षी दलों के नेता रोज़ कहते हैं पर क्‍या अपने मौसेरे भाइयों पर मुक़दमा कायम करने का साहस सत्‍तानशीनों में है... लोकतंत्र की व्‍यवस्‍था में सत्‍ताएं आलोचना के दायरे में काम करने के लिए होती हैं...जो इस भावना का सम्‍मान नहीं करते, वे किसी हालत में लोकतांत्रिक नहीं कहे जा सकते...लोहिया जी - बूड़ा वंश अब आपका उपजे पूत कमाल...

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