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शनिवार, 27 अगस्त 2016

सुनो, दाना मांझी सुनो..

दाना माझी का क़िस्सा अखबारों से सोशल साइट्स तक वायरल है. दुःख, क्षोभ, गुस्सा सब लाइव है और इन सबके बीच जो अनुपस्थित है वह है उस वायरस की चिंता जो इस मुल्क में रोज़ दीना मांझी पैदा करता है. वे आंकड़ों के घर में रहते हैं, वे बुंदेलखंड में घास की रोटी खाते हैं, विदर्भ में सल्फास, महानगरों की झुग्गियों में ज़िल्लत और बिहार-झारखंड के बदनसीब इलाकों में मूस. सत्ता के समर्थक उन्हें कांग्रेस राज की पैदाइश बताते हैं तो विरोधी मोदी जी से सवाल पूछते हैं और इस तरह वे इस भारतमाता की ऐसी अनचाही औलादें हैं जिनकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. राकेश पाठक की यह कविता खीझ और गुस्से से निकली एक नागरिक की पुकार है

  • राकेश पाठक
तुमने जब अपनी पत्नी के
शव को कंधे पर रख
राजपथ पर पहला कदम बढ़ाया
उस समय कैलाश पर्वत पर
त्रिनेत्रधारी शिव
शैलपुत्री के साथ विहार कर रहे थे

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा
नयी आकाशगंगाओं
का शिल्प गढ़ रहे थे

शेषशायी विष्णु क्षीरसागर में
कमल पर विराज कर
अपनी प्रिया पत्नी से
पाँव दबवाते हुए
मत्स्य कन्याओं का नृत्य देख रहे थे

देवराज इंद्र की सभा
सदैव की तरह
अप्सराओं के उद्दाम कामवेग
में हिलोरें ले रही थी

तुमने अर्धांगिनी के शव के साथ
जब दस कोस की यात्रा प्रारम्भ की
तब भद्रजन गिरिधर की भक्ति में लीन
झाँझ मजीरे बजाते हुए
गिरिराज पर्वत की पंचक्रोशी
परिक्रमा में थिरकते हुए
परलोक सुधारने में व्यस्त थे

लोकतंत्र की राजसभाओं में
सभासद विकास की स्वर्णाक्षरी लिखने
को गंभीर मंत्रणाओं में तल्लीन रहे

चारण और भाट समवेत स्वर में
सत्ता का विरुद गाते रहे
कवि प्रेम कवितायें
लिख लिख कर धन्य होते रहे

चित्रकार तूलिका से अमूर्त शैली में
नायिकाओं के उन्नत यौवन
रेखांकित कर नयनाभिराम चित्र बनाते रहे

संगीतकारों का अभ्यास
नए राग की रचना में
अनवरत चलता रहा

और तुम बिना थके
सृष्टि का महानतम भार
अपने कंधे पर रख चलते रहे, चलते रहे

स्वर्ग के देवताओं के पास नहीं था अवकाश
तुम्हारा आर्तनाद सुनने को
और न ही पृथ्वी के अधिनायक के पास समय

सुनो , दाना मांझी
दस कोस की इस महायात्रा में
तुम्हारे कंधे पर तुम्हारी पत्नी का नहीं
मनुष्यता का शव रखा था ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यंत शर्मनाक एवं दर्दनाक घटना

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  2. उक्त तरह की घटनाएं,संवेदनहीनता निश्चय ही चिन्तनीय विषय है किन्तु इस युग इस काल की घटना के दोष अन्य किसी युग-काल से जोड़ना और बहुतायत के इष्ट देवी-देवताओं को इसमें घसीटना न तो तर्क संगत है और न ही सराहनीय।

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  3. उक्त तरह की घटनाएं,संवेदनहीनता निश्चय ही चिन्तनीय विषय है किन्तु इस युग इस काल की घटना के दोष अन्य किसी युग-काल से जोड़ना और बहुतायत के इष्ट देवी-देवताओं को इसमें घसीटना न तो तर्क संगत है और न ही सराहनीय।

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