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शनिवार, 9 जुलाई 2011

एकांत श्रीवास्तव की दो कवितायेँ

मृत्युदंड

मेरे दोनों हाथ बंधे हैं
जल्लाद ढंकता है सिर पर काला कपडा
थोड़ी ही देर में दी जाएगी फांसी
इस अहद में जुर्म था देखना
जनतंत्र का स्वप्न
जो मैंने देखा
मेरी कविता दुखों की खान है
वहाँ दर्द की लिपियाँ हैं अपाठ्य
फिर भी अगर पुनः आऊं धरती पर
फिर लूँ जन्म
तुम फिर मुझे मिलना
ओ मेरी कविता
तुम फिर होना
ओ मेरे मन !


जो कुरुक्षेत्र पार करते हैं

बिना यात्राओं के जाने नहीं जा सकते रास्ते
ये उसी के हैं जो इन्हें तय करता है
चाँद उसी का है जो उस तक पहुँचता है
और समुद्र उन मल्लाहों का जो उसका
सीना फाड़कर उसके गर्भ से
मछली और मूंगा निकालते हैं
वे लोग महान हैं जो जीते नहीं ,लड़ते हैं
जो पहली सांस से आखिरी सांस का कुरुक्षेत्र
लहुलुहान होकर भी जूझते हुए पार करते हैं
वे रास्ते महान हैं जो पत्थरों से भरे हैं
मगर जो हमें सूरजमुखी के खेतों तक ले जाते हैं
वह सांस महान है
जिसमें जनपद  की  महक है
और वह ह्रदय खरबों गुना महान
जिसमें जनता के दुःख हैं
धरती को स्वप्न की तरह देखने वाली आँख
और लोकगीत  की  तरह गाने वाली आवाज़ से ही
सुबह होती है
और परिंदे पहली उड़ान भरते हैं !

एकांत श्रीवास्तव के कविता संग्रह बीज से फूल तक से .

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