3 जुलाई 1997
जेन अलेक्ज़ान्डर
दि नैशनल एन्डाउमेंट फ़ॉर दि आर्ट्स
1100 पेंसिल्वेनिया एवेन्यू
वाशिंगटन डीसी,20506
प्रिय जेन अलेक्ज़ान्डर,
आपके ऑफिस के एक नौजवान से अभी मेरी बात हुई जिसने मुझे बताया कि शरद ऋतु में व्हाइट हाउस में होने वाले एक समारोह में नैशनल मेडल फ़ॉर दि आर्ट्स पाने वाले बारह व्यक्तियों में मैं भी चुनी गई हूँ. मैंने तुरंत ही उस से कहा कि कि मैं राष्ट्रपति क्लिंटन या इस व्हाइट हाउस द्वारा ऐसा पुरस्कार स्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि कला का सच्चा अर्थ, मेरी समझ के अनुसार, इस प्रशासन की तिरस्कारपूर्ण नीतियों से असंगत है. मैं स्पष्ट करना चाहती हूँ कि अस्वीकार से मेरा तात्पर्य क्या है.
ऐसा कोई भी व्यक्ति जो साठ के शुरूआती सालों से मेरे रचनाकर्म से परिचित है, जानता है कि मैं कला की सामाजिक उपस्थिति में विश्वास रखती हूँ - सरकारी चुप्पियों को तोड़ने वाली के तौर पर, जिनकी आवाज़ अनसुनी कर दी जाती है उनकी आवाज़ के तौर पर और मानव के जन्मसिद्ध अधिकार के तौर पर.अपने जीवन में मैंने सामाजिक न्याय के लिए चल रहे आन्दोलनों को कला के लिए स्पेस तैयार करते देखा है, नाउम्मीदी दूर करने में कला की शक्ति देखी है. मैंने पिछले दो दशकों से हमारे देश में नस्ली और आर्थिक अन्याय के बढ़ते हुए भयानक प्रभाव को देखा है.
कला और न्याय के सम्बन्ध को लेकर कोई आसान सा फार्मूला नहीं है. पर मुझे पता है कि मेरे अपने मामले में काव्य कला का कोई मतलब नहीं अगर वह उस सत्ता के खाने की मेज सजाती रहे जो उसे बंधक बनाकर रखती है. संपत्ति और ताक़त की भीषण विषमता विध्वंसक तौर से बढ़ती ही जा रही है. किसी राष्ट्रपति द्वारा प्रतीकात्मक तौर पर कुछ कलाकारों का सम्मान करना अर्थहीन है जबकि जनता का व्यापक रूप से अपमान हो रहा है.
मुझे पता है कि आप कला के लिए सरकारी निधीयन बचाने के लिए उन लोगों के खिलाफ गंभीर और हताशापूर्ण संघर्ष में मुब्तिला रही हैं जिनका कला के प्रति भय और संदेह खुले तौर पर दमनकारी है. अंत में ,मुझे नहीं लगता कि हम कला को समस्त मानवी गरिमा और उम्मीद से अलग कर सकते हैं. मेरे देश के लिए मेरी चिंताओं को एक कलाकार के तौर पर मेरी चिंताओं से विलग नहीं किया जा सकता. एक ऐसी रस्म में मैं हिस्सा नहीं ले पाऊँगी जो मुझे इतनी पाखंडपूर्ण महसूस होगी.
भवदीय
एड्रियन रिच
कार्बन कॉपी: राष्ट्रपति क्लिंटन
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(अमेरिका की महान कवि-लेखिका एड्रियन रिच का 27 मार्च 2012 को कैलिफोर्निया में बयासी वर्ष की उम्र में निधन हो गया)
रोज बिकती, रोज कमजोर होती लड़ाइयों के बीच खड़ी संघर्ष पताकाएं हैं ये! सर्वाहरा संघर्षों की अनश्वर अग्निशिखाएँ. कब से, कब से कोशिश कर रहा हूँ कि उस लेखक का नाम याद आ जाए जिसने ब्रिटेन का पुरस्कार औपनिवेशिक बर्बरता में ब्रिटेन की भूमिका की वजह से ठुकरा दिया था, पर स्मृति है कि.. खैर.. कुछ और साथी भी हैं, देखते चलें..
जवाब देंहटाएंhttp://www.dailymail.co.uk/news/article-204471/Top-people-refused-honours-named.html
प्रेरणादायक...श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंपता चलता है यह लड़ाई बहुत पुरानी है। सलाम।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे बहुत बढिया ..वाह ..प्रेरक .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे बहुत बढिया ..वाह ..प्रेरक .
जवाब देंहटाएंसट्टा के पाखंड को लीर-लीर करने वाला आरोप पत्र.
जवाब देंहटाएंसलाम....
जवाब देंहटाएंसलाम...
जवाब देंहटाएंमैं पूर्णतः सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंइस पत्र से मेरी कुछ धारणाएं और पुष्ट हुई हैं... सलाम, इसे साझा करने के लिए और हमारी वैचारिकी को पुख्ता करने के लिए।
जवाब देंहटाएंजहाँ जनता का अपमान हो वहाँ कलाकारों का सम्मान कैसे हो सकता है ..? और फिर तुर्रा यह कि हम उसी जनता के लिए ही लिख रहे हैं | 'एड्रियन' ने तो जैसे आईना ही दिखा दिया है , बशर्ते कोई उसमे अपना चेहरा देखना चाहें ....
जवाब देंहटाएंकला का सम्मान इस तरह से नही हो सकता. टोपियाँ पहना कर या मेडल प्रदान कर के या ऊँचे मंचों पर प्रशस्तियाँ गा कर....... ये तमाम सम्मान ( सरकारी और गैरसरकारी) प्रतिबन्धित कर देने चाहिएं .
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